
संस्मरण
आज कांग्रेस पार्टी से ग्वालियर गुना के सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री रहे स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि है। वे आज ही के दिन 30 सितंबर 2001 को उप्र के मैनपुरी में हुए विमान हादसे में नहीं रहे थे। आज ग्वालियर से लेकर मध्यप्रदेश व कांग्रेस के तमाम कार्यालयों में उनकी स्मृति में कई कार्यक्रम किए जा रहे हैं।
निसंदेह स्व. माधवराव सिंधिया ग्वालियर के ब्रांडनेम थे। आज भी किसी दूसरे प्रदेश और प्रांत में अपने शहर ग्वालियर का नाम बताते ही उनके आयु वर्ग के लोग उनका जिक्र छेड़ देते हैं। सिंधिया के असामायिक निधन से कांग्रेस ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी क्षति पहुंची थी।
महाराज बाडे़ पर सिंधिया के 50वे जन्मदिवस पर हुआ विशाल अभिनंदन समारोह हुआ था। स्कूली दिनों के दौरान बाडे़े पर यह आयोजन मुझे मेरे स्वर्गीय पिता पंडित रघुनंदन शास्त्री ने किसी सहृदयी पुलिसवकर्मी के सहयोग से नगर निगम मुख्यालय की छत पहुंचकर दिखवाया था। भीड़ में कम हाइट के कारण आगे न दिखने के कारण मेरे पिताजी मुझे वहां लेकर पहुंचे थे। जहां तक मुझे याद आ रहा है उस समारोह में उनके राजनैतिक मित्र और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और तत्कालीन किक्रेट सितारे और 1983 वर्ल्ड कप के विजेता कपित देव भी आए विशेष मेहमान थे।
माधवराव सिंधिया को प्रत्यक्ष देखने का दूसरा अवसर मुझे लक्ष्मीगंज जच्चाखाने पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान मिला। मध्यप्रदेश के तत्कालीन वाणिज्य कर मंत्री और स्थानीय विधायक भगवान सिंह यादव की अगुआई में हुए लोकार्पण समारोह में सिंधिया का काफिला आया था। मैं भी जटारगली से अपनी साइकिल लेकर तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया को उत्सुकतावश देखने गया था। सिंधिया के साथ मप्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के कई मंत्री ठीक उसी तरह आजू बाजू थे जिस तरह से 2018 की कमलनाथ सरकार के कई स्थानीय मंत्री माधवराव सिंधिया के बेटे और पूर्व केन्द्रीय मंत्री व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पिछले 10 माह से बराबर देखे जा रहे हैं।
स्वर्गीय माधवराव सिंधिया से बिल्कुल करीब और हाथ मिलाने का पहला और अंतिम अवसर जनकगंज स्कूल के सामने की गली में बने हजारा भवन में मिला। तब सिंधिया पी वी नरसिम्हाराव के नेतृत्व वाली न केवल केन्द्रीय कैबीनेट छोड़ चुके थे बल्कि कांग्रेस से इस्तीफा देकर आम चुनाव में मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस बना चुके थे। वे मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रुप में ग्वालियर से सांसद पद के लिए अपना प्रचार करने वहां आए थे। हजारा भवन तब उगता सूरज निशान के झंडे बैनर लिए तमाम महिलाओं और पुरुषों से भरा था। प्रचार के उस दिन मुझे स्व सिंधिया की व्यापक लोकप्रियता का न केवल साक्षात दर्शन करने का अवसर मिला बल्कि पिताजी के साथ हजारा भवन में ही उस लोकप्रिय राजनेता से मैंने लौटते समय उत्साह से हाथ भी मिलाया। सिंधिया ने विकास कांग्रेस की महिला विंग को वहां अपने भाषण से जोश में भर दिया। वे चिर मुस्कान के धनी होकर राष्ट्रीय छवि के साथ साथ सड़क तक पहुंच रखने वाले जनता के नेता थे।
निसंदेह इस पूरे कालखंड के दौरान वे ग्वालियर के हर वर्ग में लोकप्रिय थे एवं उनकी राजनेता के अलावा रियासतकालीन सिंधिया राजपरिवार से होने के कारण भी राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी जुदा पहचान भी थी।
माधवराव सिंधिया संकोची के साथ भावुक इंसान भी थे।अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के निधन के बाद चिता को मुखाग्नि देते वक्त उनका भाव विहल होकर फूट फूटकर रोने वाला फोटो अखबारों में प्रमुखता से छपा था।
सिंधिया के बारे में राजनैतिक समर्थकों और विरोधियों की अपनी अपनी राय हो सकती है मगर ग्वालियर मप्र से लेकर देश की राजनीति में उनके कद को कोई दरकिनार नहीं कर सकता और करता भी नहीं है। वे गरिमामय राजनीति करने वाले ऐसे राजनेता रहे जिसने पद की कूटनीतिक राजनीति से लगभग लगभग खुद को अलग ही रखा। संभवत कूटनीति एवं राजनैतिक उठापटक में संकोच के कारण माधवराव मध्यप्रदेश के लिए सुयोग्य मुख्यमंत्री उम्मीदवार होते हुए भी अपने जीवनकाल में जयविलास महलस से श्यामला हिल्स तक का सफर पूरा नहीं कर सके।
इसके बाबजूद केन्द्रीय रेल मंत्री, नागरिक उड्डन एवं पर्यटन मंत्री एवं सबसे अंत में मानव संसाधन विकास मंत्री के रुप में उन्होंने बहुत उर्जा और उत्साह से काम किया। सिंधिया ने रेल मंत्री रहते हुए जो शताब्दी चलाई उसके लिए आज भी उनको पक्ष विपक्ष सबमें याद किया जाता है। माधवराव सिंधिया ने इन तीनों मंत्रालयों में रहते हुए ग्वालियर को ट्रिपल आईटीएम से लेकर आईआईटीटीएम जैसी राष्ट्रीय स्तर की सौगातें दिलाईं। अगर कानपुर में वो दर्दनाक विमान हाउसा न होता तो शायद ग्वालियर और मप्र के खाते में क्या क्या होता ये सोचना भी बहुत दिलचस्प है।
वाजपेयी सरकार के आम चुनाव में हारने के बाद जब केन्द्र में यूपीए की सरकार बनने जा रही थी सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद को अंर्तआत्मा की आवाज पर ठुकराया था। उस समय निश्चित रुप से श्रीमती गांधी के विचार से लेकर निर्णय प्रक्रिया तक में वैकल्पिक नामों में माधवराव सिंधिया का नाम भी बहुत गंभीरता से आता। माधवराव अगर नायक न भी बनाए जाते तो भी वे नायक की चयन प्रक्रिया से लेकर बाद में सरकार में बहुत मजबूत स्थिति में होते। इस तरह की कई बातें उनके गुजरने के सालों बाद भी आज भी उनकी स्मृति से जुड़ी चर्चाओं का हिस्सा होती हैं।
खैर तब क्या होता क्या नहीं होता ये अब केवल चर्चाएं ही हैं लेकिन इतना तय है कि कानपुर में हुआ वह हादसा ग्वालियर के राजनैतिक रसूख पर किसी वज्रपात से कम न था जिसका असर आज भी ग्वालियर महसूस करता होगा।
घोर विपक्षी भी आज तक मानते हैं कि माधवराव सिंधिया का आसामयिक निधन ग्वालियर अंचल के साथ मध्यप्रदेश व देश की राजनीति व लोकतांत्रिक दलीय व्यवस्था के लिए अत्यंत ही गंभीर क्षति थी।