विविधा

कंधमाल काण्ड की खुलने लगी परतें – कुलदीप चंद अग्निहोत्री

kandhamlस्वामी लक्ष्माणानंद सरस्वती की हत्या की जांच के लिए राज्य सरकार ने न्यायमूर्ती महापात्र को अधिकृ त किया था। यह अलग बात है कि जब महापात्र ने स्वामी जी की हत्या और उसके उपरांत हुई हिंसा की गहराई से जांच करनी प्रारम्भ की तो सरकार को असुविधा होने लगी। इसलिए सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से एक प्रकार से न्यायमूर्ती महापात्र से असहयोग करना ही प्रारम्भ कर दिया है। राज्य सरकार जांच के मामले में आयोग को सहयोग नहीं दे रही। दूसरी ओर तथाकथित दंगा पीडित ईसाईयों के लिए ऐसे पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना कर रही है, जो अब आतंकवाद का अड्डा बनते जा रहे हैं और इन पुनर्वास केन्द्रों में बम बनाने के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। ध्यान रहे चर्च द्वारा स्वामी लक्ष्माणानंद सरस्वती की हत्या के बाद उमडे जन आक्रोश के कारण बहुत से लोग अपने घरों से भागकर राहत शिविरों में आ गए थे। लेकिन जल्दी ही स्थिति सामान्य होने के बाद वे अपन-अपने घरों को लौट गए। और अपने दैनिक कामकाज में लग गए। परन्तु राज्य सरकार ने दो तीन सौ लोगों के लिए नंदगिरी में एक स्थायी पुनर्वास केन्द्र की स्थापना कर दी। इस पुनर्वास केन्द्र में ये लोग स्थायी रूप से किस आधार पर रखे गए थे और उसका उद्देश्य क्या था। इसकी व्याख्या कभी सरकार ने नहीं की। अलबत्ताा इस पुनर्वास केन्द्र में शायद सरकारी खर्चे पर ही एक चर्चनुमा भवन का निर्माण जरूर कर दिया गया। उधर ज्यों-ज्यों न्यायमूर्ती महापात्र स्वामी जी की हत्या की गुत्थियां सुलझाने में लगे हैं और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों की। शिनाख्त का प्रयास कर रहे हैं। त्यों-त्यों नंदगिरी के इस पुनर्वास केन्द्र की गतिविधियां भी बढ रही है। नंदगिरी पुनर्वास केन्द्र में अब लगभग स्थायी रूप से रह रहे इन ईसाई बंधुओं का कहना है कि वे अपने गांव वापिस नहीं जा सकतेक्योंकि वहां इनकी जान को खतरा है। आश्चर्य है कि इनके गांव के ही दूसरे लोग वापिस जा चुके हैं। इनके वापिस न जाने का रहस्य अब धीरे-धीरे खुलने लगा है।

पिछले दिनों इस पुनर्वास केन्द्र में बम बनाते हुए कुछ लोग अचानक विस्फोट हो जाने से मारे गए और घायन हो गए। इस विस्फोट में अजय दिगाल की तो मौके पर ही मौत हो गई। एंथोनी मलिक समेत कुछ दूसरे कार्यकर्ता बुरी तरह घायल हो गए। पुलिस द्वारा केन्द्र की तलाशी लिए जाने पर बहुत सी विस्फोटक सामग्री और दूसरी आपत्तिाजनक चीजें बरामद हुईं। छानबीन से यह भी पता चला है कि इस केन्द्र में इस प्रकार की गतिविधियां काफी लंबे अर्से से चल रही थी। किसी प्रभावी लोबी ने शायद इस पुनर्वास केन्द्र को इन्हीं आतंकवादी गतिविधियाें को चलाने के लिए ही बंद नहीं होने दिया। इस घटना के बाद से यह भी मांग उठने लगी है कि स्वामी लक्ष्मानंद सरस्वती की हत्या के बाद हुईहिंसात्मक गतिविधियों की नए सिरे से जांच की जाए क्योंकि हो सकता है जो लॉबी बम बनाने की इस घटना से जुडी हुई है। उसी लॉबी ने स्वामी जी की हत्या के बाद हिंसा को बढावा दिया हो। आखिर यह प्रश्न भी उठता है कि पुनर्वास केन्द्र में इतनी कडी सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद इतने लंबे अर्से से वहां से यह आतंकवादी गतिविधियां कैसे संचालित होती रहीं?

ऐसा ही प्रश्न न्यायमूर्ति महापात्र के समक्ष राज्य सरकार के उच्च अधिकारियों द्वारा शपथ लेकर दिए जा रहे ब्यानों के बाद उठता है। राज्य सरकार के निवर्तमान डीजीपी, वर्तमान पुलिस आयुक्त और निचले स्तर के पुलिस अधिकारियों के ब्यानों में एक चौंकाने वाली साम्यता देखी जा रही है। लगभग सभी पुलिस अधिकारियों का कहना है कि स्वामी जी की जान को खतरा है ऐसी पर्याप्त सूचनाएं राज्य सरकार के पास थीं उनका कहना है कि स्वामी जी गौ-रक्षा, मतांरण विरोध, जन जातिय समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए जिस प्रकार से सक्रिय थे उससे दूसरे सांप्रदाय के लोग उन से बहुत ही चिढे हुए थे। स्पष्ट है कि यहां दूसरे संप्रदाय से अभिप्राय चर्च से ही है। चर्च पिछले लंबे अर्से से स्थानीय लोगों के मतांतरण में जुटा हुआ है। इसके लिए उसने जनजातिय समाज को अपना लक्ष्य बनाया हुआ है। इतना ही नहीं चर्च ने जनजाति समाज की भूमि पर अवैध कब्ज किया हुआ है। मतांतरित ईसाई भी जनजातिय समाज के लिए आरक्षित भूमि पर सरकारी अधिकारियाें से मिलकर कब्जा किए हुए है। यहां तक की जनजातिय समाज की आरक्षित नौकरियों पर भी मतांतरित ईसाई जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर कब्जा कर रही है।

जाहिर है इस पूरे षडयंत्र में राज्य सरकार का एक तबका चर्च के साथ मिला है। स्वामी लक्ष्माणानंद सरस्वती भी इन्ही षडयंत्रों और षडयंत्रकारियों को बेनकाब करने में जुटे हुए थे और जनजातिय समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए लड रहे थे। राज्य सरकार के पास इस प्रकार की पक्की सूचनाएं थी कि ये षडयंत्रकारी स्वामी जी को रास्ते से हटाने का प्रयास कर रहे हैं। ताज्जुब है कि सभी पुलिस अधिकारी न्यायमूर्ति महापात्र के समक्ष यह तो बार-बार दोहरा रहे हैं कि स्वामी जी की जान को खतरा है लेकिन इससे आगे इस प्रश्न पर रहस्यात्मक चुप्पी धारण्ा कर लेते हैंकि इसके बावजूद स्वामी जी को सुरक्षा क्यों नहीं प्रदान की गई? कहीं ऐसा तो नहीं है कि जो लॉबी नंदगिरी में बम बनवा रही थी वे ही लॉबी स्वामी जी को सुरक्षा प्रदान किए जाने में बाधा बन रही थी और वही लॉबी स्वामी जी हत्या के बाद सुनियोजित ढंग से हिंसा फैला रही थी ताकि उसके लिए उडीसा के जनजातिय समाज को बदनाम किया जाए और उस पर ज्यादा से ज्यादा मनोवैज्ञानिक और कानूनी दबाव डाला जाए। इन लोगों को लगता होगा कि डरा हुआ जन जातिय समाज चर्च के कब्जे में आसानी से आ जाएगा। यह आसानी और भी ज्यादा होगी क्योंकि अबकी बार जनजातिय समाज को बचाने के लिए कोई लक्ष्माणानंद सरस्वती भी नहीं होगा। रहा सवाल राज्य सरकार का, वह तो पहले ही चर्च के आगे घुटने टेक चुकी है यदि कोई कसर बची थी तो दो दिन पहले ही अमेरिका के 21 सीनेटरों ने राज्य सरकार को बाकायदा एक चिट्ठी लिखकर चेतावनी दी है कि कंधमाल में ईसाईयों पर अत्याचार हो रहे हैऔर राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। जाहिर है कि अमेरिका के इस दबाव से डरकर राज्य सरकार के हाथ उठेंगे लेकिन वे नंदगिरी में बम बनाने वालों को नहीं पकडेंगे । उनकी पकड में जनजाति समाज ही आएगा। शायद तभी अमेरिका प्रसन्न होगा। वैसे भी पता चला है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के नजदीकी लोग अमेरिका में ही बसें हुए हैं। ताज्जुब है अमेरिका के इन सीनेटरों ने चिट्ठी लिखने के लिए वहीं वक्त चुना जब न्यायमूर्ति महापात्र की जांच आगे बढने लगी। और पुलिस अधिकारियों द्वारा दिए गए शपथपत्रों की खबरें अखबारों में प्रकाशित होने लगीं।

(सभार: हिन्दुस्थान समाचार)