लगे हाथ एक गणना इनकी भी हो जाए…

सुशील कुमार ‘नवीन’

पहलगाम हादसे के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच अघोषित युद्ध की शुरुआत हो चुकी है। इसका परिणाम क्या रहेगा? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। इस गंभीर माहौल की जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक चिंतन हो रहा है वहीं कुछ कुचक्रिय तत्व अभी भी सक्रिय है। जातीय जनगणना तो जब होगी सो होगी, इससे पहले ऐसे लोगों की गणना बहुत जरूरी है। जो भारत में रहते हैं और भारतीय नहीं है। जो इसी मिट्टी में जन्मे हैं और इसी के विखंडन का स्वप्न देखते हैं। जो यही कमाते हैं और इसका प्रयोग इसी के खिलाफ करते हैं। युद्ध अपने तरीके से चलता रहेगा, युद्ध के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे लोगों की पहचान आज इस घड़ी में करना बेहद जरूरी है। जयचंदों की फौज जिस तरह से बढ़ रही है वो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। चाणक्य नीति में साफ लिखा गया है कि –

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भ पयोमुखम्॥

इसका सीधा सा भाव है कि पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले और सामने मीठा बोलने वालों को उसी प्रकार त्याग देना चाहिए, जिस प्रकार  मुख पर दूध तथा भीतर विष से भरे घड़े को त्याग दिया जाता है।

   एक सच्चे देशभक्त का इस समय कर्तव्य बनता है कि आपदा आने के समय वो आपसी गिले शिकवे भूल एकमत से राष्ट्रहित में ली गई प्रत्येक कार्रवाई का समर्थन करे। उसमें यथोचित सहयोग करें, उसका संबल बनें। किसी तरफ की छींटाकशी,मीनमेख निकाल दूसरे पक्ष के लिए उदाहरण बनना राष्ट्रविरोधी से कमतर नहीं है। देश आज जिस संकट से गुजर रहा है वह हमारे द्वारा पैदा नहीं किया गया है। गीता का प्रसिद्ध श्लोक यहां सार्थक सिद्ध है। इसके अनुसार कहा गया है –

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

युद्ध से इनकार किए जाने पर श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना है। कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। इसलिए तुम केवल निरन्तर कर्म करो। कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो।

     संसार का कोई भी ऐसा देश नहीं है। जहां राष्ट्र विरोधी ताकतें मुंह बाए न खड़ी हो। दुश्मन राष्ट्र से ज्यादा खतरा राष्ट्र के अंदर छिपी पड़ी इन कुचक्रियों से होता है। वक्त बेवक्त इनका सिर्फ एक उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह से अपनी विचारधारा को ज्यादा से ज्यादा प्रसारित किया जाए। इन्हें इस बात से मतलब नहीं कि देश किस स्थिति से गुजर रहा है। उन्हें सिर्फ अपनी विचारधारा को अग्रसर रखना होता है, चाहे वो विचारधारा राष्ट्रविरोधी ही क्यों न हो।

   आज के समय को ही ले लीजिए। पक्ष-विपक्ष आज सरकार के साथ खड़ा है। फिर भी कुछ लोगों की जुबान नहीं रुक रही है। इसी का फायदा सोशल मीडिया के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा उठाया गया है  हमारे ही लोगों द्वारा की गई बयानबाजी का प्रयोग हमारे ही खिलाफ उनके द्वारा खूब किया गया है। कन्हैयालाल मिस्र का एक निबंध मै और मेरा देश पढ़ा हो तो उसकी एक पंक्ति आज के समय में अपनी सार्थकता को पूर्ण सिद्ध करती है कि युद्ध में जय बोलने वालों का बड़ा महत्व है। भाव यह है कि युद्ध करना हर किसी के सामर्थ्य में नहीं है। लेकिन अपने साथियों का उत्साह बढ़ाना तो हमारे हाथ में है। लेकिन हम है कि अभी भी बाज नहीं आ रहे। आलोचना या समीक्षा का अभी वक्त थोड़े ही है। अभी तो जो हो रहा है उसे होने दें। वो चाहे अच्छा है या बुरा। हमारा पहला फर्ज बनता है कि उसमें सहयोग करें। लोकतंत्र में सबको बोलने का अधिकार है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। एक छोटी सी चिनगारी की उपेक्षा से दावानल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

  प्राचीन भारत के महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक आचार्य चाणक्य के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए जीवन सिद्धांत और रणनीतियां न केवल राजनीति, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी सफलता प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने का कार्य करते हैं। उनके द्वारा बताये गए नियमों में जीवन की कठिनाइयों का सामना करने और सही दिशा में आगे बढ़ने के उपाय दिए गए हैं। ये न केवल आत्मनिर्भर बनाते हैं, बल्कि जीवन में बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

  आचार्य चाणक्य के अनुसार यदि आपका कोई शत्रु है तो कमजोरियों का पता लगाकर कमजोर करो। शत्रु को नष्ट करने से पहले उसे हराना बहुत जरूरी है। चाणक्य का कहना था कि सच्चाई अक्सर कड़वी होती है, लेकिन यह हमेशा सही होती है, यदि हम सच्चाई को अपनाते हैं, तो जीवन में हमें कोई पछतावा नहीं होगा।  आचार्य चाणक्य राष्ट्र शब्द को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्र केवल किसी भूखंड मात्र नहीं होता। राष्ट्र संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषा, इतिहास इन पांचों विषयों का बोध होता है। उनके अनुसार देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है। अपने नीति सूत्रों के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने तत्कालीन सुप्त जनमानस के पटल पर राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं आत्मगौरव की भावना को जाग्रत किया। देश के आत्मगौरव और आत्मस्वाभिमान को सुदृढ़ एवं अखंड रखने के लिए अनिवार्य है राष्ट्र की एकता एवं संगठन। चाणक्य का विचार था कि ‘राष्ट्रीय एकता राष्ट्र रूपी शरीर में आत्मा के समान है। जिस प्रकार आत्मा से हीन शरीर प्रयोजनहीन हो जाता है, उसी प्रकार राष्ट्र भी एकता एवं संगठन के अभाव में टूट जाता है।

ऐसे में आज हम सब का भी दायित्व बनता है कि समाज एवं राष्ट्र स्तर पर कहीं भी कुछ ऐसा घटित हो रहा है जो राष्ट्रहित में नहीं है तो एक सजग भारतीय की तरह उस पर मुखर हो। गलत देखकर चुप रह जाना भी किसी अपराध से कम नहीं होता। राष्ट्र-विरोध की स्थितियों से संघर्ष करना समय की जरूरत है। उनसे पलायन करने से राष्ट्रीयता सशक्त मजबूत नहीं हो सकती। महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा गया है –

दुर्जनः परिहर्तव्यः विध्ययालंकृतोऽपि सन् 

मणिना भूषितः सर्पः किमसो  भयंकरः॥

दुर्जन व्यक्ति यदि विद्या से भी अलंकृत हो फ़िर भी उसका छोड़ देना चाहिए। मणि से भूषित सांप क्या भयंकर नही होते?

लेखक;

सुशील कुमार ‘नवीन‘

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