दूरदर्शिता की कमी से सड़कों पर बीतता राजधानीवासियों का जीवन

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Trafficjamdelhiआज दिल्ली की जो तस्वीर आपके सामने है उसे बनाने में कोई एक दिन नहीं लगा। यह तो वर्षों की साधना का फल है। आज दिल्ली में आप विभिन्नता देखते हैं। कहीं तो नई दिल्ली के वो सरकारी बँगले जो बेहद खुले, हवादार एवं सुरक्षित हैं तो कहीं पुरानी दिल्ली चिराग दिल्ली या महरोली के वो बेतरतीब बहुमँजिला मकान जहाँ कि चिड़िया भी पर नहीं मार सकती। कहीं तो नई दिल्ली की चौंधियाती चौड़ी सड़कें तो कहीं अँधियारा व तंग महरोली-बदरपुर रोड़। कहीं तो मैट्रो की सवारी तो कहीं रिक्शा गाड़ी। कहीं सड़कों के किनारे बने तंग बाजार जहाँ कुछ लेने के लिए हाथ बढ़ाओ तो आपको पहले अपना हाथ ही ढूँढना पड़ जाए वहीं दूसरी ओर शोभायुक्त लुभावने बड़े-बड़े मॉल एवं शॉपिंग कॉम्पलैक्स। लेकिन एक चीज जो दिल्ली में कहीं भी भिन्न नहीं! हर जगह एक जैसी है और वो है सड़क पर हर दिन – हर वक्त का जाम।

दिल्ली के नेता कहते नहीं थकते कि दिल्ली को हम पैरिस बना देंगे। काफी प्रयास किए भी गए लेकिन ये समय का फेर ही समझिए कि दिल्ली तो अब वो दिल्ली भी नहीं रह पाई जो कभी 80 के दशक से पहले होती थी, शांत, स्थिर व शानदार। वक्त रहते सरकारें चेत ही नहीं सकीं कि जब कोई नगर महानगर का रूप लेता है तो वहाँ काम की तलाश में हर तरफ से लोगों का जमावड़ा होने लगता है जिससे वहाँ पर बाशिंदों की जनसंख्या भी बढ़ने लग पड़ती है और फिर इतनी बड़ी आवादी की जरूरतें पूरी करने के लिए वहाँ हर प्रकार की सुविधाएं मुहैय्या करानी पड़ती हैं। बिजली-पानी-सड़क के अतिरिक्त कितनी ही अन्य व्यवस्थाएँ करनी होती हैं जैसे कि पार्किंग, शापिंग मॉल अथवा बाजार, सुरक्षा निर्बाधा एवं शीघ्र आवागमन आदि।

यों तो स्थिति की गंभीरता को समझकर प्रशासन ने बहुत से कदम उठाए लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी। इसीलिए आज दिल्ली की सड़कों पर केवल रात्रि के अलावा सडक पार कर पाना संभव नहीं, दिन के समय तो उन पर कुछ रहता है तो वह है कछुए की चाल से रेंगते वाहन। वर्ष 2000 तक तत्कालीन बीजेपी सरकार ने इस समस्या को समझा और कई फ्लाईओवरों एवं मैट्रो के निर्माण की योजनाएं बनाईं किन्तु उनमें भी दूरदर्शिता की कुछ कमी रह गई। उसके पश्चात आई काँग्रेस सरकार ने भी इन योजनाओँ को बहुत उत्साह के साथ आगे बढ़ाया किन्तु कोई भी पक्ष, नेता अथवा अधिकारी यह नहीं सोच पाया कि जिस प्रकार से दिल्ली की आवादी बढ़ रही है उसको देखते हुए यहाँ अवरोध रहित (Intersection-Free) अर्थात बिना चौराहों अथवा रेड-लाइटों वाली चौड़ी सड़कें ही कामयाब रह पाएँगी।

कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली में दो फ्लाई-ओवरों – मैडिकल एवं धौला कुआँ का निर्माण हुआ जिनमें कोई अवरोध नहीं था और वाहनों का आवागमन बिल्कुल अवरोध-रहित हुआ। चलिए वहाँ तो जगह की कमी नहीं थी इसलिए इतने विस्तार वाले सुविधाजनक फ्लाईओवर बन पाए लेकिन उन चौराहों का क्या जहाँ सीमित जगह है और जहाँ ऐसे फ्लाईओवर की कल्पना तक नहीं की गई। आज उन फ्लाई ओवरों को नीचे से चौराहे के पार जाने के लिए वाहनों को तीन से चार बार अपनी बारी आने का इन्तजार करना पड़ता है जिसमें कि 10 से 20 मिनट का समय तथा ईंधन की बर्बादी एक आम बात है। यदि सरकारों ने अच्छे आर्किटैक्टों की मदद से इन्हीं फ्लाईओवरों को चारों दिशाओं में आवागमन के लिए बाँटा होता तो आज दिल्ली की सड़कों पर यों जमघट न लग रहे होते। उस पर मन्त्रियों के बहाने देखिए, कोई कहता है कि जगह ही कम थी। बात केवल जगह की कमी की नहीं बल्कि जगह के सर्वोत्तम एवं अनुकूलतम उपयोग की है। इतनी ही जगह में एक फ्लाईओवर से चार दिशाओं में आवागमन बिल्कुल संभव है, कमी केवल प्रोजेक्ट कम्पनियों के आर्किटेक्टों, सरकारी अधिकारियों तथा मन्त्रियों की दूरदर्शिता में थी।

वर्तमान समय में जहाँ बढ़ती ईंधन जरूरतें तथा निरन्तर घटते पैट्रोलियम पदार्थ भविष्य के लिए एक चिन्ता का विषय हैं वहीं ग्लोबल वार्मिंग जैसा भयंकर राक्षश भी पैदा हो चुका है जो कि मौसमों-ऋतुओं को काफी हद तक लील चुका है। यदि इसी प्रकार कईं हजार लीटर ईँधन सड़कों पर यूँ ही बिना उपयोग के बर्बाद होता रहेगा तो जरा सोचिए कि और कितने समय तक वह उपलब्ध रह पाएगा। और कितने समय तक हम अपने पर्यावरण की रक्षा कर पाएंगे जिसमें कि इस बेमतलब की ईंधन की बर्बादी से खतरनाक गैसों को मात्रा दिन दूनी रात चौगुनी होती जा रही है। और ध्यान दें दिल्ली का वातावरण एक बार फिर से बेहद दूषित हो चुका है।

सड़कों में लगने वाले जाम से एक तरफ तो अमूल्य समय की बर्बादी होती है वहीं गंभीर मरीजों को समय पर हॉस्पिटल भी नहीं पहुँचाया जा पाता जिससे कितनी ही अमूल्य जिन्दगियाँ सड़कों पर ही दम तोड़ देती हैं। एक और अप्रत्यक्ष प्रभाव जो इस ट्रेफिक जाम से वाहन चालकों पर पड़ता है वह है संयम एवं धैर्य खोना जिसके कारण दिल्ली की सड़कों पर कितनी ही घातक दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। वहीं चिड़चिड़ेपन के कारण सड़कों पर रोड़-रेज (Road Rage) भी एक आम बात हो चुकी है।

यदि समय रहते हमारी सरकारों ने चेत लिया होता तथा दूरदर्शिता का प्रमाण दिया होता तो कम से कम वर्तमान परियोजनाओं में तो इस जाम से छुटकारा पाने का प्रावधान हो जाता। लेकिन दुर्भाग्य! ये हो न पाया। इस समय दिल्ली के सभी फ्लाईओवर जो कि केवल सीधे और द्विमार्गीय ही बने हैं आने वाले चन्द वर्षों में एक बड़ी समस्या बनने वाले हैं। तो क्या उस समय इन नए बने फ्लाईओवरों को इनके जीवन काल से पहले हटाकर नए फ्लाईओवरों में परिवर्तित किया जाएगा? जनता के धन का इससे अच्छा दुरूपयोग और क्या होगा?

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