जीवन नहीं आसान

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रात की चादर  तो
हमेशा से ही अंधेरी ही होती है,
रौशनी के लिये
दीपक जलाने पड़ते है दोस्तो।
जिन्दगी भी कहाँ आसान होती है
किसी की भी……
पहाड़ों को काटकर
रस्ते बनाने पड़ते हैं।
आसानी से जो मिल जाय उसकी
कद्र ही नहीं……
मेंहनत से कमाई हर चीज़
अनमोल होती है।
सोने को भी
आग का दरिया पार करना पड़ता़ है
तभी तैयार होता है
जेवर बनके निखरता है।
बिन तराशे हुए हीरे में
हीरे सी चमक ही कहाँ
तराशे जाने पर ही वो
अनमोल  बनता है।
जब किसी की गायिकी पर
वाह निकलती है
सालों का रियाज़ और मेंहनत भी
दिखती है।
कोई लक्ष्य एक दिन में नहीं मिलता
श्रम और समय की पूंजी लगती है।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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