एक पहलवान और 25 मरीज

गुजरात में शंकरसिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी या कांग्रेस ने वाघेला को छोड़ दिया, उससे क्या फर्क पड़ने वाला है ? वाघेला यदि कांग्रेस में रह भी जाते तो क्या वे मुख्यमंत्री बन सकते थे? क्या चुनाव जीतकर वे सरकार बना सकते थे ? गुजरात में कांग्रेस की दाल पहले से पतली है। उसके 11 विधायकों ने राष्ट्रपति के चुनाव में रामनाथ कोविंद को वोट दे दिए याने उन्होंने पाला बदल लिया। ये सब पाला बदलू विधायक वाघेला के साथी ही थे, यह कहना मुश्किल है।

वाघेला को जो अपना नेता नहीं मानते, ऐसे दर्जनों कांग्रेस के विधायक भी आज पाला बदलने की फिराक में हैं। वे जानते हैं कि कांग्रेस में रहेंगे तो उनका भविष्य अंधकारमय है। चार-माह बाद गुजरात में चुनाव होने वाले हैं। यदि भाजपा उन्हें टिकिट दे दे तो वे जानते हैं कि अगले पांच साल तक उनकी विधायकी कहीं नहीं गई। इस समय तो हाल यह है कि गुजरात से राज्यसभा के लिए कांग्रेसी उम्मीदवार का जीतना ही मुश्किल हो रहा है।

आज की कांग्रेस में लोग क्यों हैं ? यह गांधी की कांग्रेस नहीं है। यह इंदिरा गांधी-सोनिया गांधी की कांग्रेस है। यह कुर्सी कांग्रेस है। सिर्फ कुर्सी के लिए लोग कांग्रेस में आते रहे हैं। अब कांग्रेस के लिए कुर्सी एक सपना बन गई है। यदि देश के सारे विरोधी दलों को भी जोड़ ले तो भी कांग्रेस अब भाजपा को चुनौती नहीं दे सकती। क्या 25 लकवाग्रस्त मरीज मिलकर भी एक अकेले पहलवान को पटकनी मार सकते हैं ? कांग्रेस के पास न कोई नेता है और न ही नीति है।

इसके साथ मिलने वाले लगभग सभी दल परिवार-केंद्रित हैं। वे भी कांग्रेस की तरह प्रायवेट लिमिटेड कंपनियां हैं। पहली बात तो वे सब, किसी एक नेता को अपना नेता स्वीकार नहीं कर सकते और उन्होंने कुर्सी के लालच में स्वीकार कर भी लिया और वे कुर्सी पा भी गए तो देश फिर वही नाटक देखेगा, जो उन्होंने मोरारजी और चरणसिंह के बीच देखा था या विश्वनाथप्रताप सिंह और चंद्रशेखर के बीच देखा था।

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