हाथी खड़ा नदी के तट पर,
जाना था उस पार|
कश्ती वाला नहीं हुआ,
कोई जाने को तैयार|
इस पर तभी एक मेंढ़क ने,
दरिया दिली दिखाई|
बोला चिंतित क्यों होते हो,
प्यारे हाथी भाई|
बिठा पीठ पर तुमको अपनी,
नदिया पार कराऊं|
कठिन समय में परोपकार कर,
मेंढक धर्म निभाऊं|
प्रोत्साहन ने मेंढकजी के,
हाथी को उकसाया|
पैदल चलकर पार नदी ,
वह चटपट ही कर आया|
छोटे छोटे लोग बड़ों को,
भी हिम्मत दे जाते|
और कठिन से कठिन काम,
आसानी से हो जाते|