
आज पूरी दुनिया कोरोने नामक महामारी से जूझ रही हैं, और इसी की वजह से पूरी दुनिया में मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 2020 वह वर्ष है, जब दुनिया ने इतनी ज्यादा मौतें देखीं। चाहे वह विकसित देश हों या विकासशील देश, मौत का आंकड़ा दिन व दिन बढ़ता ही जा रहा है। विश्व स्तर पर, कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या 4722233 है और इससे होने वाली मौतों की संख्या 313266 हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है, यहाँ अब तक कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या 90927 हो चुकी है, जब कि इससे मरने वलों की तादाद 2872 है। पिछले 52 दिन में तो ऐसा लग रहा कि इतने प्रयासों के बावजूद, कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या में कोई बाढ़ सी आ गई है। बाकी दुनिया की तरह, यहाँ भी लोगो से सामाजिक दूरी के लिए आग्रह किया जा रहा है, और अब तक 3 लॉकडाउन के तहत लोगों को उनके घरों में रखने की कोशिश की गई हैं, जो सरकार का एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय था। कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए 24 मार्च से 14 अप्रैल तक राष्ट्रव्यापी तालाबंदी की गई थी। तब से, लॉकडाउन अवधि को दो बार बढ़ाई जा चुकी है। लॉकडाउन के पहले चरण में, जहां सभी सरकारी और निजी कार्यालय, शैक्षणिक संस्थान, रेस्तरां, होटल आपूर्ति, रेल, हवाई सेवाएं बंद थीं, केवल आवश्यक सेवाएं की ही अनुमति थीं। वर्तमान समय में, देश में लॉकडाउन का तीसरा चरण चल रहा है, जिसके आगे बढ़ने की भी उम्मीद है। तीसरा लॉकडाउन 4 मई, 2020 को लागू किया गया था, लेकिन यह पिछले लॉकडाउन की तरह नहीं था, अपितु इसमें कुछ विशेष बातें शामिल थीं। इसमें देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई फैसले किए गए थे। ।
सरकार ने कोरोना वायरस के सक्रिय मामलों की संख्या के आधार पर देश को नारंगी, हरे और लाल क्षेत्रों में विभाजित किया है। प्रतिबंधों का स्तर रेड ज़ोन, ऑरेंज ज़ोन और ग्रीन ज़ोन भिन्न है। ये क्षेत्र भारत में 733 जिलों के एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं। रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन कोरोना वायरस के मामलों, केस दरों और परीक्षण और निगरानी की श्रेणी जैसे कारकों पर आधारित है। रेड ज़ोन में बड़ी संख्या में मामले हैं, ऑरेंज ज़ोन में अपेक्षाकृत कम मामले और पिछले 21 दिनों में ग्रीन ज़ोन में कोई मामले नहीं हैं। हालांकि अधिकांश गतिविधियों को ग्रीन ज़ोन में अनुमति दी जाती है, लेकिन ऑरेंज ज़ोन में अधिक प्रतिबंध हैं जो रेड ज़ोन में और बढ़ जाता हैं।
गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा जारी किए गए नए दिशानिर्देशों के अनुसार, “शराब और पान की दुकानों को ग्रीन और ऑरेंज ज़ोन में खोलने की इजाजत दी गई और इसमें सबसे अहम एक दूसरे से न्यूनतम छह फीट (2 गज) रखने पर विशेष ध्यान दिया गया और साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एक समय में पांच से अधिक लोग दुकान में मौजूद न हों । और आबकारी अधिनियम के तहत आने वाली दुकानें खोलने के निर्देश दिये गये। इन दुकानों में पान, गुटका, बीड़ी और शराब की दुकानें शामिल थीं। लेकिन सबसे ज्यादा विवाद शराब के ठेकों के लिए पैदा हुआ । दा हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन की वजह से शराब की दुकानें बंद हो गईं, जिससे देश को 700 करोड़ का नुकसान हुआ। जिसके पीछे सरकार तर्क दे रही है, कि ऐसी दुकानें खोलने से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा क्योंकि इनसे राज्य सरकार को अच्छा राजस्व कर मिलता है। शराब की दुकानों से मिलने वाला राजस्व अन्य करों से अधिक है, जो 2019-20 में 12.5% था। अकेले शराब उद्योग से कई राज्यों को 15 से 30 प्रतिशत तक कर प्राप्त होता है जो लगभग 2.48 लाख करोड़ रुपये होता है। इस प्रकार, देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए, सरकार ने शराब की दुकानों को खोलने की अनुमति दी जिसमे सामाजिक दूरी को भी बहुत महत्वपूर्ण तरीके से लागू किया गया था।
लेकिन जिस तरह की तस्वीरें न्यूज और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इसने सामाजिक बंदी को पूरी तरह से धज्जियां उड़ा दीं। शराबियों का उत्पात सड़कों पर भी देखा गया है। इसके अलावा जूनापुर में एक पति ने अपनी गर्भवती पत्नी को शराब के लिए पैसे न देने पर गोली मार दी। कई स्थानों पर, महिलाओं को इस वजह से घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा। बेकाबू भीड़ और सुरक्षा को खतरे में देखते हुए कई दुकानें समय से पहले बंद कर दी गईं। हालांकि दुकानों के खुलने का समय सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक था, लेकिन लोग रात 9 बजे से ही कतार में खड़े थे। रिपोर्टों के अनुसार, इस बीच शराब के ठेकों पर पर लंबी लाइनें दिखाई दीं, ये कतारें छोटी नहीं थीं बल्कि शराब की चाहत ने लोगों को कई किलोमीटर तक कतारों में खड़े होने के लिए मजबूर किया। भीड़ के द्वारा सामाजिक दूरी का पालन नहीं करने पर पुलिस को लाठियों का भी उपयोग करना पड़ा।
4 मई, 2020 के बाद से कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। पहले चरण में लॉकडाउन के बाद से सख्त नियम लागू किए गए हैं। गौरतलब है कि इतने सख्त लॉक डाउन के बावजूद, 24 मार्च को, देशभर में संक्रमण की संख्या 519 थी, जो अब 82933 को पार कर गई है।
इन सभी घटनाओं के मद्देनजर, सरकार के इस फैसले पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं, लोग अपने अपने तरीकों से सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर कई मीमस भी वायरल हो रहे हैं, जैसे – “4 मई 2020 से पान की दुकान” , शराब इत्यादि, सभी आवश्यक चीजें खुली रहेंगी, स्कूल और कॉलेज बंद रहेंगे और हम बेवक़ूफ़ यह सोचते रहते हैं कि सबसे ज़रूरी पढाई है “,” अब बेब्ड़े बचायेंगे देश की अर्थव्यवस्था” इत्यादि। ये सब वे चीज़े है जो देश के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर, AIIMS, 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 14.6 प्रतिशत लोग (10 से 75 साल की उम्र के बीच) कुल “160 मिलियन” शराब का सेवन करते हैं। और इसमें से पांच में से एक व्यक्ति अल्कोहल निर्भरता (Alcohol dependence) से प्रभावित है, और उसे तत्काल उपचार की आवश्यकता है (गुप्ता, 2020)।
भारत, जो अपनी संस्कृति के लिए दुनिया में एक अलग पहचान रखता हैं, सरकार के इस फैसले ने दुनिया के सामने भारतीय सभ्यता को तार तार कार दिया है और साथ ही साथ भारत को नशा मुक्त करने का एक बेहतरीन अवसर भी छोड़ दिया। देश की अर्थव्यवस्था में सुधार अति आवश्यक है, लेकिन क्या देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार के पास केवल एक यही रास्ता बचा था? एक तरफ, कोरोनोवायरस संक्रमण और इस से होने वाली मौतों की तेजी से बढ़ती घटना, और दूसरी तरफ, हर कदम पर लॉकडाउन नियमों में छूट देश में एक भयावह तबाही के लिए अग्रणी कर रही हैं। एक बात सोचने की है कि संक्रमण के मामलों में वृद्धि के बावजूद लॉकडाउन में छूट देना कितना सही हैं? क्या इस छूट से कोई सकारात्मक परिणाम मिला है? ऐसे मुश्किल समय में जब कोरोना वायरस के कारण सभी का जीवन खतरे में है, क्या सरकार के इस फैसले से 121 करोड़ (2011 की जनगणना) भारतीयों का जीवन खतरे में नहीं डाल दिया? लोगों के मन में इसी तरह के कई सवाल उठ रहे हैं। और अब बस यह देखना है कि सरकार का अगला कदम क्या होगा?