टीवी पर लाइव योग शो और उसकी विचारधारा

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

बाबा रामदेव के टेलीविजन पर योगशिविर लगाए जाने के बाद अनेक योगियों के टीवी शो आने लगे हैं। तकरीबन प्रत्येक चैनल योग पर कोई न कोई आइटम पेश करता है। टीवी की आमदनी के लिए योग शो का कार्यक्रम पैकेज में रहना जरूरी है। योग शो की लाखों ऑडिएंस है। लाखों की ऑडिएंस का अर्थ है चैनल के लिए सोने की खान।

बाबा रामदेव के योग शो की खूबी है उनके आसन और उनके हिन्दुत्ववादी और चिकित्सा विज्ञान विरोधी, बहुराष्ट्रीय कंपनी विरोधी राजनीतिक वक्तव्य जो कभी भी टेलीविजन चैनलों की खबरों में जगह नहीं बना पाए। बाबा रामदेव ने जिन राजनीतिक मसलों को उठाया है और अपनी राय दी है उसे चैनलों ने कभी समाचारों में कवरेज नहीं दिया है।

बाबा के टीवी शो में हमें भारत की स्वास्थ्य दशा के साथ सांस्कृतिक दुर्दशा का आख्यान भी सुनने को मिलता है। पश्चिमी जीवनशैली के दुष्परिणामों के बारे में भी सुनने को मिलेता है। इन सबको बड़े ही कौशल के साथ बाबा रामदेव आसन-प्राणायाम के साथ रीमिक्स कर देते हैं।

पहले वे प्राणायाम-आसन बताते हैं फिर अनुकरण करने के लिए कहते हैं और भोक्ता जब तक अनुकरण करता है तब तक वे किसी न किसी मसले पर वक्तव्य देते रहते हैं। वे अपने संदेश को प्राणायाम और आसन की क्रिया के बाच में संप्रेषित कर देते हैं। यह काम वे वृत्तचित्र की संरचना में करते हैं। बाबा रामदेव के योग की टीवी पर सफलता ने टीवी के मेडीकलाइजेशन की प्रक्रिया को बल पहुँचाया है। अब टीवी पर स्वास्थ्य संबंधी सैंकड़ों कार्यक्रम प्रतिदिन आते हैं। कुछ चैनल तो सिर्फ स्वास्थ्य के कार्यक्रम ही प्रसारित करते रहते हैं। विभिन्न भाषाओं में स्वास्थ्य सेवाओं पर धारावाहिकों का भी प्रसारण हो चुका है।

मीडिया में हेल्थ संबंधित स्टोरियों के आने से हेल्थ का जनसंपर्क बढ़ा है। इससे यह भी पता चला है कि हेल्थ के समाचार,कार्यक्रम,धारावाहिक दिखाए जाएं तो उनके लिए लाखों की ऑडिएंस मिल सकती है। हेल्थ पहले इस तरह मीडिया में बड़ा विषय नहीं था। अब तो हेल्थ अनेक चैनलों, पत्रिकाओं और अखबारों में स्थायी पन्ना और कॉलम है।

आज हेल्थ पर अनेक वेबसाइट हैं जो तत्काल सूचनाएं देती हैं। यहां तक कि भी हेल्थ संबंधित सैलिब्रिटी गॉसिप आने लगी हैं। समूचे टेलीविजन नेटवर्क ने हेल्थ को जिस तरह मुद्दा बनाया है उसमें जीवनशैली, रूपचर्चा, धर्म और मनोदशा रूपान्तरण के विषय केन्द्र में हैं। बाबा रामदेव का लाइव कवरेज इसके ही फ्लो में पढ़ा जाना चाहिए।

बाबा अपने लाइव टेलीकास्ट में योग के आसनों की प्रस्तुति करते समय एक अवधि के बाद स्टीरियोटाइप होगए हैं। साथ एक ही किस्म की पद्धति को अपनाते हैं, अंतर सिर्फ आता है उनके भाषण की थीम में। भाषण की थीम बदलकर ही वे कुछ नया पैदा करते हैं वरना उनके लाइव टेलीकास्ट टेली शॉपिंग के विज्ञापन जैसे होते हैं। टेली शॉपिंग में जिस तरह कोई नया पात्र माल की तारीफों के पुल बांध है और उसके उपयोग की विधि बताता है। ठीक वैसे ही बाबा रामदेव भी करते हैं। अंतर है उनके भाषण के विषयों का। इसके अलावा उनके लाइव शो में स्थान का अंतर भी रहता है। कभी इस शहर में तो कभी उस शहर से उनका लाइव टीवी शो प्रसारित होता है,इससे उन्हें नए ग्राहक मिलते हैं। विभिन्न शहर, बदली ऑडिएंस और बदले हुए भाषण के विषय के जरिए वे अपने टीवी शो में आकर्षण पैदा करने की कोशिश करते हैं। वे अपने भाषणों में नए-नए विषयों का समावेश करके ऑडिएंस में विचारधारात्मकप्रभाव भी पैदा करने की केशिश करते हैं। लेकिन योग-प्राणायाम के कार्यक्रम में योग-प्राणायाम प्रमुख है,भाषण प्रमुख नहीं है। वह अतिरिक्त है। इसकी सांस्कृतिक भूमिका है। उन विषयों को टीवी पर बनाए रखने में सांस्कृतिक-राजनीतिक भूमिका है जिन्हें हम हिन्दुत्व के विषय के रूप मेंजानते हैं।

बाबा के शो वही लोग देखते हैं जिन्हें योग से लगाव है या योग सीखना है। अथवा ऐसे भी लेग देखते हैं जिनकी हिन्दुत्व के एजेण्डे में रूचि है। बाबा का बार-बार टीवी शो करना इस बात का संकेत है कि हेल्थ के बाजार में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा है। इसमें बाबा योग के लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बाबा अपने मालों के लिए ग्राहक जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। बाबा के अधिकांश टीवी शो खुले वातावरण में होते हैं। वे कभी हॉलघर में कार्यक्रम नहीं करते। खुला आकाश, मैदान और पीछे योग का चित्र या आयोजन स्थल का बैनर। मंच पर बाबा के द्वारा प्रस्तुत योग-प्राणायाम और हिन्दुत्व और जीवनशैली के विषयों पर लंबे-लंबे भाषण।

बाबा के कार्यक्रमों में आए दिन ऐसे मरीजों को पेश किया जाता है जो यह बताते हैं कि वे फलां बीमारी से परेशान हैं, उन्हें दवा कोई असर नहीं कर रही है। कुछ ऐसे भी मरीज आते हैं जो यह बताते हैं कि योग-प्राणायाम असर कर गया है, बीमारी में सुधार है। बाबा के कार्यक्रमों में इस तरह के बयानों के प्रसारण का लक्ष्य है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान। संबंधित व्यक्ति को दवा क्यों नहीं लग पायी, इसके अनेक कारण हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि वह सही डाक्टर से न मिला हो, दवा की मात्रा ठीक से न लेता हो। उसके खान-पान में अनियमितता हो आदि, लेकिन बाबा इस तरह मरीजों की प्रतिक्रियाओं को मेडीकल सिस्टम की असफलता के प्रमाण के रूप में दुरूपयोग करते हैं। बाबा का इस तरह की प्रतिक्रियाओं को दिखाना योग उद्योग और फार्मास्युटिकल उद्योग के बृहत्तर नव्य उदारतावादी एजेण्डे की संगति में आता है। वे अपने योग कारपोरेट एजेण्डे के साथ इसे मिलाकर पेश करते हैं और योग उद्योग के बाजार हितों को विस्तार देने का काम करते हैं। बाबा के ये कार्यक्रम आम लोगों में मेडीकल चिकित्सा के खिलाफ जबर्दस्त असर छोड़ रहे हैं। साधारण लोगों में एक अच्छा खासा वर्ग तैयार हो गया है जो यह मानता है कि योग-प्राणायाम या आयुन्वेद से सब बीमारियां ठीक हो जाएंगी। इस तरह के लाइव शो के जरिए बाबा बड़े पैमाने पर प्रत्येक कार्यक्रम और शिविर के जरिए दौलत बटोरने में सफल रहे हैं।

बाबा रामदेव की टीवी प्रस्तुतियों में एक मेडीकल प्रोफेशन की असफलताओं का व्यापक कवरेज रहता है। लेकिन वे अच्छी तरह जानते हैं कि हजारों डाक्टर हैं जो अपने मरीज की अपनी क्षमता और क्षेत्र से बाहर जाकर मदद करते हैं। प्रतिदिन 8-14 घंटे काम करते हैं। प्रतिदिन लाखों मरीजों का सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में इलाज करते हैं। जबकि इन अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं तक नहीं हैं।

हमारे शहरों-कस्बों में समर्पित डाक्टरों की लंबी-चौड़ी फौज है जो मरीजों के इलाज में बड़ी तत्परता से काम करती है। अपवादस्वरूप मामलों के छोड़ दें तो मेडीकल पेशे से जुड़े लोग आम लोगों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। यह भी सच है कि इन डाक्टरों में निजी क्षेत्र के पैसा कमाऊ डाक्टर भी आ गए हैं जो सिर्फ ऊँची फीस के बिना इलाज नहीं करते। लेकिन इस तरह के डाक्टरों का प्रतिशत कम है।

ज्यादातर डाक्टर आज भी सामान्य फीस पर ही इलाज करते हैं। सामान्य तौर पर डाक्टर जैसे बताए उसे यदि मरीज मान ले तो उसे किसी भी नीम-हकीम और योगी की जरूरत नहीं होगी।

बाबा रामदेव अपने शिविर में आने वाले किसी भी व्यक्ति से पैसे की बात करते नजर नहीं आते। वे शिविर में भाग ले रहे किसी व्यक्ति से यह नहीं पूछते कि यहां आने में कितना पैसा खर्च हुआ? कैंप की फीस कितनी दी? वे यह सवाल भी नहीं पूछते कि बाबा की दवाएं लेते हो तो उनका दाम क्या है? वे यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि शिविर में भाग लेने वाले कितने लोग हैं जिनकी बीमारी पर योग-प्राणायाम का कोई असर नहीं हो रहा है अथवा नकारात्मक असर हो रहा है।

4 COMMENTS

  1. ऐसा मालूम होता है की किसी घटिया कांग्रेसी ने ये लेख लिखा हो जिसे न तो योग की जानकारी है और स्वामी रामदेव की | या तो किसी राजनैतिक दल से पैसा खा कर लेख लिख दिया है जिस को पढ़ कर सिर्फ हंसी ही आती है |

  2. टीवी पर लाइव योग शो और उसकी विचारधारा – by – जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

    मुझे संदेह होने लगा है कि बाबा रामदेव जी ने जगदीश्‍वर चतुर्वेदी जी को अपना propaganda agent तो भर्ती नहीं कर लिया है.

    आये दिन जगदीश्‍वर चतुर्वेदी महाराज बाबा रामदेव जी को प्रवक्ता.कॉम पर कोसते रहते हैं और हम पाठक बाबा की रक्षा में टिप्पणी करते रहते हैं.

    यह कोई film promotion जैसा प्रतीत है

    या

    कोई economic offence हो रहा है.

    पाठको BE AWARE

    हमें बेवकूफ तो नहीं बनाया जा रहा है ?

    – अनिल सहगल –

  3. चतुर्वेदी जी तथ्यपरक लिखना प्रारंभ कर दें आपकी भाषा शैली बहुत अच्छी है …..पर आपकी लेखनी पढ पढ कर ये विश्वास हो चला है कि आप सिर्फ अनर्गल प्रलाप करना ही जानते हैं….सच लिखने का माद्दा आप मैं नहीं है सही कहा किसी ने …..अज्ञः सुखम आराध्यते सुख्तारामाराध्यते विशेषज्ञः ज्ञान लव दुर्विदग्द्हम तं नरं ब्रह्मापि न रंजयते.श्लोक उद्धृत करने में शायद कुछ खामियां रह गयी हो पर मेरे अनुसार उसका अर्थ कुछ इस प्रकार है:मूर्ख को आसानी से समझाया जा सकता है,उससे से भी आसानी से बुद्धिमान को समझाया जा सकता है पर उस मुर्ख को जो स्वयं को बुद्धिमान समझता है ब्रह्मा भी नहीं खुश कर सकते हैं.

  4. जगदीश्वर चतुर्वेदी जी मूल रूप से साहित्यकार हैं । साहित्यकार कल्पनाशील होता है और जो वह लिखता है उसका तथ्यों के साथ कोई संबंध नहीं होता । इसलिए पंडित जी जो लिख रहे हैं वह उनकी कल्पना है और तथ्यों से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है । मैं प्रवक्ता के निय़मित पाठक के नाते चतुर्वेदी जी की कल्पनाशीलता की प्रशंसा करता हूं । उनकी कल्पनाशीलता जबरदस्त है तथा भाषा का प्रवाह भी अत्यंत बढिया है । लेकिन उनके लेखों में तथ्य ढूंढना शायद चतुर्वेदी के साथ अन्याय करना होगा । अतः मेरा मानना है कि पाठकों को उनके लेख में तथ्य नहीं ढूंढने चाहिए तथा उनके द्वारा लिखे गये लेखों को तथ्यों की दृष्टि से गंभीरता से नहीं लेना चाहिए ।

    चतुर्वेदी जी की योग, प्राणायमों पर टिप्पणी करना भी वैसे ही है जैसे पुरातत्व का कखग न जानने वाले बाबरी एक्शन कमेटी के वकील गिलानी की पुरातात्विक मामलों में टिप्पणी करना है ।

    इसलिए पंडित जी की कल्पनाशीलता का पुनः प्रशंसा करता हूं और पाठकों से उनके लेखों में तथ्य ढूंढने का प्रयास कर उनके साथ अन्याय न करने की अपील करता हूं ।

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