अकेला किसान ने खोदा तालाब

शैलेन्द्र सिन्हा

दुनिया में इतिहास रचने वालों की कोर्इ कमी नहीं है। कुछ लोग अपना नाम चमकाने के लिए इतिहास रचते हैं तो कुछ लोग निस्वार्थ रूप से अपना कार्य करते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है कि उन्होंने इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया है। बिहार के गया जिले के दशरथ मांझी एक ऐसे ही इतिहास रचयिता रहे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी के र्इलाज में बाधक बने पहाड को काटकर सड़क निर्माण किया था। दशरथ मांझी की कहानी आज बिहार के स्कूली किताबों में दर्ज है जिसका शीर्षक है-पहाड़ से उंचा आदमी। ठीक ऐसी ही कहानी है झारखंड के किसान श्यादमल चौधरी की है। जिन्होंने अकेले ही अपने अथक प्रयास से तालाब का निर्माण कर डाला और गांव के खेतों के लिए सिंचार्इ का पानी उपलब्ध करा दिया। दुमका जिला सिथत जरमुंडी ब्लाक के विशुनपुर-कुरूआ गाव के श्यादमल चौधरी आज क्षेत्र के किसानों के लिए आदर्ष बन चुके हैं। सौ गुणा सौ की लंबार्इ तथा 22 फीट गहरे इस तालाब को खोदने का काम उन्होंने 14 वर्श में पूरा कर डाला।

65 वर्षीय इस जुझारू किसान को यह विचार उस समय आया जब उन्होंने अधिकारियों से अपनी जमीन पर पटवन के लिए एक तालाब की मांग की थी जो उन्हें नहीं मिला। फिर क्या था प्रतिदिन दो चौका मिटटी काटकर अकेले ही तालाब का निर्माण कर दिया। यह काम उन्होंने वर्ष 1997 में शुरू किया था और 2011 में पूर्ण किया। आठवीं पास श्यावमल के निर्णय पर शुरू में लोग मजाक उड़ाया करते थे, उन्हें ताना देते थे, ऐसे कर्इ अवसर आए जब उनके हौसले को तोड़ने की कोशिश की गर्इ, कर्इ बार स्वास्थ्य ने भी साथ छोड़ा और वह गंभीर रूप से बीमार हुए लेकिन यह स्वाभिमानी किसान अपनी धुन में लगा रहा, बिना किसी बात की परवाह किये। आखिरकार चुनौती ने भी अपने हथियार डाल दिए और उनके संकल्प की जीत हुर्इ। इस उम्र में जबकि इंसान अपनी सेहत के आगे बेबस होने लगता है, जब उसके हाथ पैर उसके काबू में नहीं रहते हैं, उसके लिए घर की चारपार्इ ही एकमात्र सहारा होती है, ऐसी उम्र में श्याेमल चौधरी ने तालाब खोदकर नर्इ पीढ़ी को भी संदेश दे दिया। तालाब के पानी का उपयोग वह जहां अपने खेतों में सिंचार्इ के लिए करते हैं वहीं दूसरों को भी इसका उपयोग करने की इन्होंने इजाजत दे रखी है। आज न सिर्फ विशुनपुर-कुरूआ बलिक पेटसार, मरगादी, बेलटिकरी और बैगनथरा सहित कर्इ गावों के किसान उन्हीं के निर्मित तालाब के पानी से सिंचार्इ कर अपने खेतों को लहलहा रहें हैं।

चौधरी के पास अपनी जमीन है, जिसमें आलू, प्याज, केला और आम के पेड़ लगे हैं। वह स्वयं अपने फसलों की देखभाल करते हैं। सिंचार्इ के उपयोग के साथ साथ वह तालाब में मछली का उत्पादन भी कर रहे हैं, जो उनकी आय का अतिरिक्त स्त्रोत साबित हो रहा है। श्याैमल चौधरी के इस साहसिक कार्य की अब भी सरकारी महकमें में कोर्इ कद्र नहीं है। पटवन के लिए उन्होंने कृषि विभाग से गार्ड वाल और सिंचार्इ के लिए पंपिग सेट व पार्इप की मांग की, जो उन्हें अब तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। अधिकारी उनकी सुनते कहां हैं, अफसोस की बात तो वह है कि उन्होंने अपनी पीड़ा जनप्रतिनिधि तक भी पहुंचाने की कोशिश की लेकिन वहां भी केवल आश्वाजसन ही मिला जिसके पूरा होने का उन्हें अबतक इंतजार है। परंतु इसके बावजूद श्याजमल चौधरी अब भी निराश नहीं हुए हैं। दशरथ मांझी की तरह वह भी अपने धुन का पक्का हैं। उन्होंने किसानों को जागरूक करने और उन्हें अपनी क्षमता को अहसास कराने के लिए उनके साथ बैठकें करनी शुरू कर दी है जहां वह किसानों की कृषि समस्या पर बात कर उसके हल का प्रयास करते हैं। श्यारमल खुश हैं आखिर उनका जीवन धन्य हो गया, जो लोग कभी उनके कार्य का मजाक उड़ाया करते थे आज वही उन्हें श्रद्धा के भाव से देखते हैं। आसपास के गर्इ गांवों के किसान आज उन्हें अपनी प्रेरणा मान रहें हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव में भी जमीन का सीना चीरकर तालाब के निर्माण पर वह गर्वान्वित हैं। देर से ही सही सरकार को भी उनके कार्यों के महत्व का अंदाजा हुआ। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें राजधानी रांची में सम्मानित किया। हम होंगे कामयाब के तर्ज पर श्यानमल ने किसानों को आज एक राह दिखार्इ है। वास्तव में ऐसे किसान ही समाज के रोल मॉडल बन सकते हैं। (चरखा फीचर्स)

(लेखक झारखंड में विगत कर्इ वर्षों से स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं तथा राज्य के विभिन्न सामाजिक और आर्थिक विषयों पर समाचारपत्रों के माध्यम से जनप्रतिनिधियों एवं नीति निर्धारकों का ध्यान आकृष्ट कराते रहते हैं)

11 COMMENTS

  1. शैलेन्द्र सिन्हा जी आप द्वारा उठाये प्रेरक विषय अनेकों के निराश जीवन में प्रकाश किरण फैलाने वाले सिद्ध होंगे. शुभकामनाएं.

  2. धन्य है दशरथ मांझी, श्यादमल चौधरी, भगीरथ. इनके जज्बे को प्रणाम. काश ऐसी ही इक्षाशक्ति और व्यक्तियों में आ जाय तो देश धन्य हो जाय और देश के हर व्यक्ति को रोटी, कपडा और रहने को छत मिल जाय.

  3. डॉ. मधु सूदन जी की प्रतिक्रया में त्रिनिनाद की कमाल की जानकारी को विस्तार से जानने के लिए सर्च किया तो पूरी कहानी पता चली. इस धुन के धनी हिन्दू का नाम है श्री सेवदास साधू. पूरी दास्ताँ नीचे दिए लिंक पर पढ़े. यह अंगरेजी साप्ताहिक ऑर्गेनाइजर में छपी थी…https://www.indiarightsonline.com/Sabrang/relipolcom13.nsf/5e7647d942f529c9e5256c3100376e2e/6f92c710fd0c8dd9e5256db400293736?OpenDocument

  4. श्यादमल चौधरी, या दशरथ मांझी के रूपमें, हमारे भारत में, भगीरथ अब भी जन्म लेते रहते हैं।
    स्मरण होता है, कि, त्रिनिदाद में भी एक भगीरथ ने ऐसा ही काम किया था।दिनभर गन्नेकी खेती में गिरमिटिया काम करने के पश्चात संध्या को, साइकिल पर मिट्टी की दो थैलियां लटका कर, ढोते हुए, समुद्र किनारे डाल डाल,जिसने एक टापू बनाया, और उसपर मंदिर खडा किया।
    क्यों? कि मिशनरियों के अडंगो के कारण शासन ने त्रिनिदाद की भूमिपर उसे मन्दिर खडा करने नहीं दिया।
    धन की भी समस्या रही होगी।
    अन्य बन्धुओने भी आरम्भका विरोध त्याग कर,उसकी अमिट आकांक्षा देख, उसे मिट्टी ढोने में सहायता दी थी।चंदा भी दिया था।
    समुंदर से १००- १५० गज एक छरहरी पगडंडी पर चल कर जाना पडता है। और फिर आप इस मन्दिर के निकट आते हैं। किनारे पर आज “इस भगीरथ” का पुतला लगा हुआ है। मन्दिर आज मध्यम आकार का, पर, भली अवस्था में प्रतीत होता है।
    पर इस भगीरथ का, नाम स्मरण नहीं कर पा रहा हूं। रामसेतु की गिलहरी की स्मृति भी उभर आयी।
    श्रद्धा का बल असीम होता है।
    जिन खोजा तिन पांईयां।
    बाकी के दीन दुखियां॥
    टिप्पणीकार इस मन्दिर की भेंट कर आया है।

  5. झारखण्ड में भी यदि नितीश कुमार जैसा कोई मुख्य मंत्री आ जाएगा तो श्यादमल चौधरी को भी वह मान्यता और सम्मान प्राप्त हो जाएगा जो आज बिहार के दशरथ मांझी को मिला हुआ है और उनकी कहानी भी पुस्तक में शामिल होकर अगली पीढी के लिए प्रेरणा स्रोत्र बन जायेगी. आशा करते हैं की वैसा दिन जल्द ही आयेगा .

Leave a Reply to Jeet Bhargava Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here