मुंबई के उपनगर मीरा रोड के बैंजो लेन में पहले तल पर “जाज “ ओपन एयर रेस्टोरेंट की ये एक उदास शाम थी । इस रेस्टोरेंट में सब कुछ खुला ही था यहां तक किचन भी ,सिर्फ वॉशरूम ढके -मूंदे थे। “जाज “ रेस्टोरेंट की खासियत ये थी कि यहाँ गीत-संगीत हमेशा गुंजायमान रहता था । उनके पास पेशेवर गाने वाले लोग थे जो कस्टमर की डिमांड पर गाने गाया करते थे और हर वीकेंड पर एक स्पेशल कलाकार का शो होता था ,वो कलाकार अच्छे मगर सस्ते होते थे,जाहिर है हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में काम पाने की कोशिश कर रहे लोगों मजमा यहां जमा होता था।
मीरा रोड आर्ट और कल्चर का उत्तरी मुंबई में नए केंद्र के तौर पर उभर रहा था । सबसे निचले लेवल के कलाकारों से लेकर थोड़े बहुत कामयाब कलाकार भी यहां इकट्ठे होते थे ।
टीवी अभिनेता, सिंगर, म्यूजिक से जुदर लोग काम -धाम की मीटिंग के लिये “जाज “ रेस्टोरेंट को मुफीद मानते थे।
कहने को ये मीरा रोड की एक अच्छी जगह थी ये लेकिन पहले माले पर स्थित इस रेस्टोरेंट के नीचे की सड़क पर गाड़ियों के हॉर्न की जो चीख -पुकार मचती थी उससे शायद ही किसी संगीत प्रेमी को तसल्ली से कुछ सुनने को मिल पाता होगा । लेकिन यही तो मुम्बईया ज़िंदगी का फलसफा था कि सुकून किसी को नहीं और सुकून की तलाश सभी को रहती थी।
मंगेश पालगांवकर को ये जगह इसलिये खास पसंद थी क्योंकि मीरा रोड की इन्हीं गलियों में उसका बचपन बीता था ,सो वो गाहे -बगाहे इस जगह आने की गुंजाइश निकाल ही लिया करता था। हालांकि उसके बचपन की कोई निशानी अब बाकी नहीं था , उसका स्कूल टूटकर शॉपिंग माल बन चुका था, उसका चाल वाला किराए का घर अब बारह मंजिली बिल्डिंग में तब्दील हो चुका था। लेकिन फिर भी कोई कशिश थी जो उसे इस इलाके में खींच लाती थी। अपने बचपन और किशोरावस्था के दिनों को याद करते हुए उसने एक सिगरेट निकाल कर होंठो से लगा ली।
मंगेश ने सिगरेट के कुछ ही कश लगाए थे तब तक वेटर उसके पास आकर खड़ा हो जाता है। वेटर को देखकर मंगेश अपना सिर ऊपर करता है तो वेटर उसे इशारे से साइन बोर्ड दिखाता है ,जिस पर लिखा होता है
“ टेबल पर बैठ कर शराब और सिगरेट पीना सख्त मना है “।
मंगेश सिगरेट लेकर बाहर चला आता है ,सड़क पर ।वो वहीं खड़ा होकर सिगरेट पी रहा होता है ,तभी एक 36-37 के उम्र की एक लेडी फोन पर चीखती हुई जाती है –
“पेमेंट नहीं होगा तो मेरा क्या होगा मैं तो रोड पर आ जाऊंगी।मेरी इंसल्ट होने से अच्छा है कि मैं अब सुसाइड ही कर लूं ।लेकिन मैं सुसाइड करूँगी तो बहुत लोगों को लेकर जाऊंगी। सुना तुमने लालवानी को बता देना।मैं कुछ भी कर सकती हूँ”।
तब तक उधर से फोन कट होने की आवाज़ आती है।उधर से फोन कटते ही औरत झल्ला के कहती है-
“ रासकल्स ,बिच कहीं के “
ये कहते हुए वो तेजी से जाकर मेज पर बैठती है और हाइपरटेंशन की दो टेबलेट निकालकर खाती है ।वो आंख बंद कर लेती है टेंशन के मारे ।
तनाव से आंखे बंद करके दो टेबलेट दवाई के निगल चुकी महिला करीब पांच मिनट यूँ ही चुपचाप निकाल देती है।
उसकी जिस्मानी तकलीफें कुछ कम हुईं तो उसे अतीत ने आ घेरा। वो अपनी वर्तमान ज़िंदगी से नाखुश थी तो उसे अपने अतीत का रह -रह कर वही दृश्य याद आता है जब उसने एक बड़ा निर्णय लेते हुए अपनी पुरानी ज़िंदगी से छुटकारा पाते हुए ये जिंदगी चुनी थी।
उसे वो दिन अक्सर याद आता था जब एक छोटे से कमरे में उसका सामान बिखरा पड़ा है जिसे वो बड़ी तेजी से बैग और सूटकेस में पैक कर रही है और एक पुरुष सिगरेट के लंबे कश लगाते हुए बड़े असमंजस में उसे देखे जा रहा था ,लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं फूट पा रहे थे।
उस महिला को आंखे बंद किये देखकर मंगेश चौंक पड़ा । वो उम्मीद कर रहा था कि वो महिला आंखे खोले ,उसे देखे ,कुछ प्रतिक्रिया दे तभी वो अपना अगला कदम उठाए।
मंगेश ने सोचा कि अगर वो महिला उसे देखकर ठीक ढंग से बर्ताव करेगी तो वो भी हाय -हैलो कह देगा और अगर उस महिला ने कुछ गलत ढंग या गुस्से से उसे देखा तो वो भी उसके पास नहीं जाएगा।उसे देखकर मंगेश को याद आया कि ऐसे ही वो आठ साल पहले भी गयी थी तब उसने यंग मंगेश को” रास्कल “ कहा था और मंगेश ने उसको थप्पड़ जड़ते
“ बिच” कहा था ।
अंततः उससे लड़ झगड़ कर वो फ्लैट छोड़ कर चली गयी थी ।
पांच मिनट तक उस महिला के आंखे ना खोलने पर मंगेश का धैर्य जवाब दे गया। वो अपनी टेबल से उठकर उस महिला की टेबल पर आ गया और कुर्सी खींचकर बैठने की कोशिश करने लगा। कुर्सी खींचने की आवाज से उस महिला की तन्द्रा टूट गयी।
वो लेडी जब आंख खोलती है तो सामने के टेबल पर मंगेश को बैठा पाती है ।पहले तो लेडी के चेहरे पर बहुत हैरानी आती है लेकिन फिर वो फीकी हंसी हंसते हुए कहती है –
“तुम ,इतने बड़े शेयर मार्केट के एनालिस्ट इस मामूली जगह पर ।तुम्हे तो अपनी शाम किसी फाइव स्टार के बार में बितानी चाहिए”
मंगेश भी हंसते हुए कहता है-
“हाँ अमृता गुप्ता नाम की एक टॉप मॉडल को देखने के लिये पीछे पीछे चला आया “।
ये सुनकर वे दोनों हंसने लगते हैं।दोनों की परेशानियां कुछ पल के लिये काफूर हो जाती हैं और उनके चेहरों पर उल्लास नजर आने लगता है।
एक वेटर आता है वो कहता है
“आर्डर प्लीज “।
मंगेश मुस्कराते हुए कहता है-
“मुझे तो चाय ही पिला दो ,मैडम से पूछ लो वे क्या पियेंगी ।उनके स्टेटस के लायक इस रेस्टोरेंट में कुछ मिलता भी है या नहीं “?
“ब्लैक कॉफी विदाउट शुगर, और साहब के लिये चाय “
फिर मंगेश की तरफ मुखातिब होते हुए अमृता ने कहा –
“ टॉप मॉडल इस चिल्लमचिल्ली वाली थर्ड क्लास रेस्टोरेंट में 15 रुपये वाली काफी पीने नहीं आती है । किस एंगल से मैं तुमको मॉडल लग रही हूँ। 37 की ऐज में आंटी बन चुकी हूँ। शुगर,ब्लड प्रेशर, हाइपरटेन्शन ,कोई भी ऐसी बीमारी नहीं है जो मुझको ना हो। पिछले आठ सालों में ही मैं बीस साल बूढ़ी हो गयी हूँ। जवानी तो चली गयी ,मैं कब चल दूं पता नहीं “
ये कहते हुए अमृता ने लम्बी सांस छोड़ी।
मंगेश ने उसके चेहरे को एकटक देखते हुए कहा –
“क्यों वो तुम्हारा मेहरोत्रा कहाँ गया जो कहता था कि तुमको टॉप मॉडल बनाएगा ,बाद में एक्टिंग के असाइनमेंटस भी दिलवायेगा ।उसी सब के लिये तो घर छोड़ा था तुमने”।
अमृता ने थोड़ी देर तक चुप्पी साधे रखी । मंगेश की बेचैनी और उकताहट देखकर धीरे से बोली –
“ अब ये सब मत पूछो ,इतना समझ लो कि जवान लड़की में एक रस होता है ,उस रस को हर कोई पीना चाहता है ।जब तक आदमी को वो रस नहीं मिलता वो कुत्ते की तरह लार टपकाता रहता है ,एक बार आदमी वो रस पी लेता है तो फिर उसके लिए वो लड़की एक ठूंठ रह जाती है,खाली ड्रम की तरह ।जैसे मैं तुम्हारे लिये हो गयी थी ,तुम्हारी नजरों से उतर गयी थी ।मर्दों की एक आदत होती है ।अपनी उसी आदत के हिसाब से मैं सबके लिये बेकार होती चली गयी ।तुम कहो रितिका रस्तोगी के साथ खुश तो हो ना तुम ।उसने तो तुमको बच्चा दे ही दिया होगा ।कितने बच्चे हैं तुम दोनों के “
ये कहते हुए अमृता ने मंगेश के चेहरे पर आंखे गड़ा दी।
तब तक वेटर चाय और काफी ले आता है ।वो कप रखकर चला जाता है दोनों दो तीन घूंट पीते हैं फिर अमृता कहती है-
“आई एम सारी ,मुझे कोई हक नहीं बनता तुम्हारी लाइफ के बारे में पर्सनल सवाल करने का ,ये तुम्हारी ज़िंदगी है जैसे चाहो जियो”ये कहते हुए अमृता सर झुका लेती है और धीरे -धीरे काफी सिप करती रहती है।
मंगेश थोड़ी देर तक मुस्कराता रहता है फिर हंसते हुए कहता है –
“एक बेबी गर्ल है 5 साल की लेकिन वो रितिका और उसके पति की बच्ची है,मेरी नहीं।मेरे और रितिका के बीच कभी कुछ था ही नहीं । उसने सिर्फ मेरे आइडियाज पर पैसे लगाए थे शेयर मार्केट से प्रॉफिट कमाने के लिये। जब शेयर मार्केट क्रैश हुआ तो मैं भी बैंकरप्ट हो गया और उसका भी सारा पैसा डूब गया”।
ये कहकर मंगेश चुप हो गया ।अमृता ने सिर ऊपर उठाया और सवालिया नजरों से उसे देखनी लगी।
थोड़ी देर ठहरकर मंगेश ने शब्दों को चबाते हुए बोलना शुरू किया –
“ शुरू में उसको प्रॉफिट हुआ तो तो वो खुश थी । फिर उसने अपनी सारी पर्सनल सेविंग्स मुझे शेयर बाजार में लगाने को दे दी ,जब मार्केट क्रैश हो गया और उसके पैसे के साथ मेरा भी पैसा डूब गया तो वो मुझे ही दोषी समझने लगी कि मेरी ही गलती या लापरवाही से पैसा डूब गया है। उसने सिर्फ अपनी पर्सनल सेविंग्स मेरे जरिये शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करवाई थी सबसे छुप -छुपा के ,सिर्फ यही था कोई अफेयर वगैरह नहीं। उसकी अपनी ज़िंदगी थी उसने बाद में शादी कर ली । अब वो और उसका हसबैंड मिलकर भयंदर में कोई कोचिंग क्लास चलाते हैं।मैंने उसका मोबाइल नम्बर ब्लॉक कर रखा है लेकिन इतने साल बीत जाने के बावजूद अपने हसबैंड के चोरी-चोरी वो नए -नए नम्बरों से मुझे काल करती है और मुझसे अपने पैसे मांगती है । प्रॉफिट के सब साथी लॉस में सिर्फ मैं दोषी।अब मैं उसको पैसे कहाँ से दूं। जब सारी कैपिटल डूब गयी तो मैंने शेयर मार्केट भी छोड़ दिया। लेकिन इस शेयर मार्केट से अब भी मेरा पीछा नहीं छूट रहा है । दुनिया की नजरों में चोर ,बेईमान भी बना। इसी वजह से तुम्हारे जैसी वाइफ भी मुझे छोड़ गयी।इस मार्केट ने मेरा सब कुछ छीन लिया अमृता”।
“ तो तुम अब करते क्या हो “ अमृता ने हौले से पूछा।
“वसई की एक बेकरी के प्लांट में मैनेजर हूँ, इधर एक क्लाइंट से कलेक्शन के लिये आया था, वहीं प्लांट के बाजू में रहता भी हूँ और तुम “?
“माडल्स को तैयार करती हूँ। उनकी लिपिस्टिक, क्रीम ,हेयर स्टाइल ,मेकअप वगैरह ठीक करती हूँ। लेकिन वो काम भी नहीं मिलता बराबर । लोग काम तो करवा लेते हैं लेकिन साल -साल भर पेमेंट नहीं देते। कटोरा लेकर सड़क पर आ जाने या सुसाइड कर लेने का ही रास्ता बचा है अब तो। देखो कब तक गाड़ी चलती है ?”
ये कहकर अमृता सुबक -सुबक कर रोने लगी।
मंगेश उसको रुमाल देता है लेकिन वो अपने पर्स से रुमाल निकालकर अपने आंसू पोंछती है और फिर कहती है
“बहुत प्रॉब्लम है मंगेश मेरी लाइफ में । मेरा हेल्थ भी ठीक नहीं रहता। अकेली लेडी को दुनिया मुफ्त का माल समझती है। मेरा जी भी बहुत घबराता है अकेले रहने की वजह से “।
मंगेश कोमल स्वर में कहता है
“अकेले रहने में सबको प्रॉबल्म होती है ।इसीलिये मैंने भी दहिसर का रूम छोड़ दिया था और वसई शिफ्ट हो गया था उधर इलाहाबाद वाले शुक्ला जी के साथ रहता हूँ । बड़े ही धर्म -कर्म वाले और पुजारी टाइप के आदमी हैं। दहिसर का रूम खाली पड़ा है,एक अपने जोगदंड चाचा हैं वही अपनी गारमेंट फैक्टरी के कुछ कपड़े वहां रखते हैं “।
अमृता ने सिर झुकाकर कहा –
“ठीक है ,अगर रेंट ना दे पाने की वजह से मकान मालिक मुझे निकाल दे तो तुम उन कपड़ों के ढेर के बीच मुझे रहने के लिये थोड़ी सी जगह दे देना “।
दोनों चुप हो जाते हैं ,बड़ी देर तक सन्नाटा रहता है फिर मंगेश अपना हाथ बढ़ाकर अमृता के हाथ पर रख देता है ।अमृता पहले तो नजरें उठाकर मंगेश को देखती है ,फिर नजरें झुका लेती है ।
मंगेश –
“सर छुपाने की जगह मिल जाएगी लेकिन शर्त ये है कि तुमको मकान मालिक से अफेयर करना होगा और कपड़ों के ढेर में कभी -कभी कपड़े उतर भी जाया करेंगे “ये कहते हुए मंगेश ने शरारत से आंख मारी।
अमृता नजरें झुका लेती है और हँसते हुए कहती है-
“फिर से वही सब ,लाइफलांग यही गेम चलता रहेगा क्या “
मंगेश हँसते हुए कहता है “लाइफ इटसेल्फ इज ए गेम ऑफ लॉस्ट एंड फाउंड”।
उस सिंदूरी शाम में उन दोनों के चेहरे उल्लास से दमक उठे।