मच्छर से कुछ सीखो भाई …………

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मनुष्य भले ही स्वयं को संसार के प्राणियों में सबसे अधिक बुद्धिमान समझे, पर मैं इससे सहमत नहीं हूं। इन दिनों सब तरफ बाबा रामदेव और उनके योगासनों की धूम है; पर एक बार जरा आसनों के नाम पर तो नजर डालें। मयूरासन, श्वानासन, कुक्कुटासन, सिंहासन, गोमुखासन, मत्स्यासन, भुजंगासन, मकरासन, उष्ट्रासन… आदि। नाम गिनाना शुरू करें, तो सूची समाप्त नहीं होगी। ये आसन जल, थल और नभचरों के स्वभाव और मुद्राओं के आधार पर बने हैं। गनीमत है कि गधासन या सुअरासन नहीं हैं, वरना..। कुछ और आगे बढ़ें, तो फिर ताड़ासन, वृक्षासन, हलासन और सेतुबंधासन भी है। अब भी क्या आप मानव को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानेंगे ?
अगर अब भी आप मुझसे असहमत हों, तो मानव के विभिन्न अंगों की उपमाओं पर गौर करें। कोयल जैसा कंठ, हिरनी जैसी चाल, चीते जैसी गति, सिंह जैसी दहाड़, हाथी जैसी मस्ती, लोमड़ी जैसी चालाकी, नाग जैसी फुंकार, चींटी जैसा परिश्रम, गाय जैसी सरलता, मधुमक्खी जैसा संग्रह, छिपकली जैसी एकाग्रता….आदि। ‘‘काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निद्रा’’ वाले श्लोक में विद्यार्थी के पांच में से तीन लक्षण तो इन प्राणियों से ही लिये गये हैं।
मेरे दावे को आप एक और कसौटी पर कसें। आज भले ही बुलेट ट्रेन और राकेट का युग हो; पर अधिकांश देवी-देवताओं के वाहन पशु, पक्षी ही हैं। गणेश जी को चूहे की, तो मां दुर्गा को सिंह और इन्द्र देवता को हाथी की सवारी पंसद है। वरुण देवता के अवतार साईं झूलेलाल मछली पर चलते हैं। जगत कल्याणी मां गंगा भी मकरवाहिनी हैं। कहते हैं कि सुबह-सुबह कोई भैंसे पर सवार यमराज का नाम ले ले, तो झगड़ा हो जाता है।
थोड़ा और आगे बढ़ें। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर भले ही हनुमान जी विराजित हों, पर अधिकांश महारथियों की ध्वजाओं पर सांप, केकड़े और बिच्छू आदि का कब्जा था। इन ध्वजाओं से ही उन महारथियों की उपस्थिति का पता लगता था। विशालता के लिए सागर, तो अनादि और अनंत के लिए आकाश को याद किया जाता है। अर्थात कहीं से भी नाप और तोल लें, मानव का सर्वश्रेष्ठ होने का दावा सौ प्रतिशत गलत है।
लेकिन इन दिनों जिस छोटे से प्राणी के आतंक से उत्तर भारत थर्राया हुआ है, वह है मच्छर। इसके डंक से बचने के लिए मानव ने मच्छरदानी से लेकर कई तरह की क्रीम और बिजली से चलने वाले उपकरण बना लिये हैं; लेकिन यह फिर भी अजेय बना है। भारतीय जवानों की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की तरह वह भी कमरे और मच्छरदानी में घुसकर अपना काम कर जाता है।
पहले तो मच्छर से फैलने वाले मलेरिया रोग के बारे में ही हमने सुना था। हमारे गुरुजन बताते थे कि मलेरिया का मच्छर गंदे पानी में पैदा होता है। अतः जहां भी गंदा पानी जमा होता था, वहां मिट्टी के तेल में दवा मिलाकर छिड़की जाती थी, जिससे नये मच्छर पैदा ही न हों; पर मच्छरों की हिम्मत देखिये। अपने अस्तित्व पर संकट जानकर उन्होंने ‘तुम डाल-डाल, हम पात-पात’ की तर्ज पर साफ पानी में पलने वाली एक नयी सेना बना ली। इन दोनों ने आपस में काम भी बांट लिया। गंदे पानी के मच्छर ने मलेरिया फैलाने का जिम्मा लिया, तो साफ पानी वाले ने डेंगू और चिकनगुनिया का। अब इन्सान मुसीबत में है। गंदे पानी में मलेरिया और साफ पानी में डेंगू। और किसी तीसरी तरह के पानी का अभी आविष्कार नहीं हुआ।
लेकिन हमारे मित्र शर्मा जी कुछ ज्यादा ही ‘ग्रेट’ हैं। इन दोनों बीमारियों से एक साथ लड़ने के लिए वे साफ और गंदे पानी के ‘कॉकटेल’ से नहाने लगे। फिर भी वे डेंगू से पीड़ित हो गये। मैं उनके घर गया, तो वे नीम और गिलोय का काढ़ा पी रहे थे। उन्होंने एक गिलास मुझे भी थमा दिया। मैंने जैसे-तैसे उसे उदरस्थ किया।
– शर्मा जी, अब स्वास्थ्य कैसा है ? आजकल मच्छरों से बच कर रहना ही ठीक है।
– हां है तो, पर यदि हम चाहें, तो उससे भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।
– मैं समझा नहीं शर्मा जी।
– देखो वर्मा, अनुभवी लोगों ने कहा है कि सोना अगर कूड़े में पड़ा हो, तो भी उठा लेना चाहिए।
– हां, कहा तो है, पर इसका मच्छर से क्या लेना-देना है ?
– वर्मा जी, बाबा रामदेव को ही लो। वे अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़की सबके उपयोग के लिए कुछ न कुछ बना रहे हैं, जिससे समाज के हर वर्ग में घुसकर विदेशी कम्पनियों को देश से बाहर कर सकें। भारतीय जनता पार्टी वालों को देखो। देश के अधिकांश भागों में उनका नाम और काम पहुंच गया है। फिर भी उन्हें संतोष नहीं है। वे इस प्रयास में लगे हैं कि बाकी स्थानों पर भी कैसे पहुंचें ? इसीलिए उन्होंने अपना राष्ट्रीय अधिवेशन केरल में किया, जहां पहली बार उनका एक विधायक जीता है।
– लेकिन शर्मा जी, बाबा रामदेव, भा.ज.पा. और मच्छर…. ?
– यही तो रहस्य की बात है। मच्छरों ने तय किया कि उन्हें हर वर्ग और क्षेत्र में बीमारी फैलानी है। इसके लिए उन्होंने योजनाबद्ध रूप से काम किया। हर क्षेत्र के लिए अलग सेना और अलग रणनीति। ऐसे ही यदि सभी कारोबारी और राजनीतिक दल करें, तो उनका भी पूरे भारत में विस्तार हो सकता है।
मैंने ऐसे कई महान लोगों की जीवनियां पढ़ी हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारते हुए सफलता प्राप्त की। ऐसे लोग हर ‘नेगेटिव’ बात में से भी अपने मतलब की ‘पोजिटिव’ चीज ढूंढ लेते हैं; लेकिन शर्मा जी में इस गुण का प्रकटीकरण मैंने पहली बार ही देखा। ये डेंगू वाले मच्छर का प्रभाव था या उस काढ़े का, कह नहीं सकता।
मित्रो, यदि आप भी कारोबारी या राजनेता हैं, तो मच्छर (और शर्मा जी से भी) बहुत कुछ सीख सकते हैं। कई राज्यों में चुनाव सिर पर खड़े हैं। वहां के लोग यदि चाहें, तो शर्मा जी की विशेषज्ञता का लाभ उठा सकते हैं; पर यह ध्यान रहे कि वहां जाने पर उन्हें नीम और गिलोय का काढ़ा जरूर पीना पड़ेगा।

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