महाकुंभ

प्रभुनाथ शुक्ल 

महाकुंभ के अमृत जल में
भाव-भक्ति और दर्शन है डूबा
फिर सौंदर्यबोध की कस्तूरी में
चंचल मन जाने यह क्यों डूबा

काया का कलुष मिटाती गंगा
यम से भी लड़ती हैं यमुना माता
जीवन का सार तत्व हैं सरस्वती
संतो की वाणी सा निर्मल है संगम

कुंभ के मुख में बसते हैं श्री विष्णु
ग्रीवा में बिराजते हैं रूद्र अवतार
आधार भाग में बसते हैं ब्रह्मा जी
मध्यभाग में देवियों का निवास

कलुष कर्म की गठरी तू है सिर धारे
तेरा मनवा क्या खोज रहा है प्यारे
भाव-भक्ति और दर्शन को तू छोड़
नश्वर काया के पीछे तू सिरफोड़

त्रिवेणी में झूठी मोक्ष की डुबकी
शांत न होती तेरे मन की फिरकी
संयम खोती संत-असंत की वाणी
मोक्ष के चाहत की तेरी यह नादानी

ज्ञान-वैराग्य की गठरी ना खोली
झूठ का चंदन और अक्षत-रोली
मालावाली बाला की सौ की फेरी
मोना का साया बस तेरी हमजोली

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