महाराणा का अपमान अब भी जारी है

भारत के जीवंत इतिहास के जिन उज्ज्वल पृष्ठों को छल प्रपंचों का पाला मार गया उनमें महाराणा प्रताप का गौरवमयी व्यक्तित्व सर्वाधिक आहत हुआ है।

मैथिलीशरण गुप्त ने कभी लिखा था-

जिसको न निज गौरव न निज देश का अभिमान है,

वह नर नही नर पशु निरा है और मृतक समान है।

जब ये पंक्तियां लिखी गयीं तो इन्होंने देश में चमत्कार दिखाया और सारा देश निज गौरव और स्वाभिमान से अभिभूत हो उठा। लेकिन दुर्भाग्य रहा इस देश का कि जब जागे हुए इस देश ने अपनी आजादी की पहली भोर का उत्सव मनाया तो इस देश को तुष्टिकरण की भांग पिलाकर फिर सुलाने का छल किया गया। फलस्वरूप रातों रात सत्ता के वो केन्द्र मुखरित हुए जिन्होंने निज गौरव और निज देश पर अभिमान करने वालों को संकीर्ण और साम्प्रदायिक घोषित कर दिया। इतना बड़ा पाप संसार के किसी अन्य देश में नही किया गया जितना बड़ा इस देश में कर दिखाया गया। फलस्वरूप इस देश पर सदियों से शासन करने वाला (लगभग छठी, सातवीं शताब्दी से) मेवाड़ का राणा वंश और उस राजवंश के वो दमकते हीरे रातों रात यहां मूल्यहीन हो गये जिनकी आभा और तेज से यह भारतवर्ष ही नही अपितु अफगानिस्तान के उस पार ईरान की सीमा तक का विशाल भूभाग आलोकित हुआ करता था। हीरों की चोरी करके उनके स्थान पर यहां लोहा रख दिया गया और भांग पिये हुए देश से कह दिया गया कि अब लोकतंत्र आ गया है-इसलिए जब राज बदल गया है तो देवता भी बदलो और उन्हें पूजो जिनके लिए हम कहते हैं। बस, तब से यह देश भांग के नशे में ‘मेवाड़ मुकुट’ नही बल्कि भारत मुकुट मणि महाराणा प्रताप की महानता के स्थान पर कथित अकबर महान को पूजता आ रहा है। चिंतन भ्रष्ट हो गया, पथ भ्रष्ट हो गया, धर्म भ्रष्ट हो गया। किसके कारण देश के नये नये देवता बने? -नेहरू के कारण। जो हिंदी की जगह हिंदुस्तानी (खिचड़ी भाषा) के उपासक थे और स्वयं को ‘दुर्भाग्य से हिंदू’ कहते थे। जिसे अपना हिंदू होना ही दुर्भाग्यपूर्ण लगता था उनसे आप निज गौरव और निज देश पर अभिमान की बात कैसे सोच सकते हैं? इसी नये देवता नेहरू के दरबार का एक मंत्री था जो स्वयं को आजाद कहता था लेकिन देश के इतिहास और संस्कृति के प्रति उसकी नजरें बिल्कुल तंग थीं। उसी अबुल कलाम आजाद ने भारत के पहले शिक्षामंत्री के रूप में महाराणा के स्थान पर अकबर को महान घोषित किया। फलस्वरूप देश के स्वाभिमान के लिए जंगलों की खाक छानने वाला, स्वतंत्रता का परमोपासक और घास की रोटियां खाकर स्वाभिमान का जीवन बसर करने वाला महाराणा प्रताप राष्ट्रीय इतिहास से ओझल कर दिया गया।उनके स्थान पर आया देश के स्वाभिमान को कुचलने वाला और मीना बाजार लगाकरउसमें से हिंदू ललनाओं को बलात अपने हरम में ले जाकर देश की संस्कृति को कलंकित करने वाला अकबर। इसी को कहते हैं हीरों की चोरी करके लोहे को पुजवाना।

आप तनिक विचार करें बाबर 1526 में आया, 1530 तक रहा। भारत के दस प्रतिशत हिस्सा पर भी उसका शासन नही था। यदि था भी तो वह केवल चार वर्ष रहा। हुमायूं से वह भी छिन गया। अकबर आया तो वह पूरे हिंदुस्तान का बादशाह कभी नही बन पाया। कठिनता से उसका साम्राज्य पच्चीस प्रतिशत भूभाग पर ही था। (पूरा विवरण कभी हम बाद में देंगे) यहां इतना बता देना आवश्यक है कि छठी सातवीं सदी से लेकर महाराणा प्रताप के काल तक राणा राजवंश ने भारत के विशाल भूभाग पर लगभग एक हजार वर्ष तक शासन किया उनके राजवंश के चिरस्थायित्व के क्या कारण रहे? उनकी शासन प्रणाली कैसी थी? उनकी घरेलू और विदेश नीति क्या थी? उनकी सैन्य नीति क्या थी? उनके राज्य में देश की सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक दशा कैसी थी? उनके शासन का आधारभूतढांचा कैसा था? लोकहित प्रधान था या स्वेच्छाचारी शासकों की नीतियों जैसाथा। पाठकवृन्द! क्या हमें इतिहास में ये

चीजें कभी पढ़ायी गयीं? कदापिनही, हीरा चोरी हो गया। दर्द है, पीड़ा है, एक कसक है, एक चोट है।स्वेच्छाचारी और धर्मान्ध शासकों की नीतियों को तो यहां पढ़ाया गया, लेकिन राजशाही को लोकशाही के अनुरूप चलाकर एक अदभुत राजनीतिक व्यवस्थादेने वाले हिंदू शासकों की घोर उपेक्षा की गयी। एक अकेला मेवाड़ का राजवंश है जो महाराणा प्रताप के बाद भी अपने स्वाभिमान का सौदा नही करपाया। 1911 में जब जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार किया था और दिल्ली को देश की नई राजधानी बनाने की घोषणा की थी तो इस दिल्ली दरबार में भी तत्कालीन  मेवाड़ नरेश की कुर्सी खाली रही थी। कहना न होगा कि इसी राजवंश ने देश के स्वाभिमान की रक्षा उस समय भी की थी। तत्कालीन महाराणा ने दिल्ली दरबार में जाकर जॉर्ज पंचम के लिए शीश झुकाना उचित नही माना था। ऐसी परिस्थितियों में क्या ये माना जाए कि निज देश पर निज भाषा पर और निज संस्कृति पर अभिमान होना पाप है? यदि ऐसा है तो मानना पड़ेगा कि हमने अपनी निजता के साथ आत्म प्रवंचना की है। हम अपनी अस्मिता की रक्षा नही कर सके, हम अपने स्व की रक्षा नही कर सके।

यह खेल तब तक चलता रहेगा जब तक कि हम हीरों को सही स्थान नही देंगे-इसलिए मंदिरों में पुन: वही मूर्तियां स्थापित करने का समय आ गया है जो भगतों का कल्याण कर सकें। भांग का नशा अब उतरना चाहिए और राष्ट्र के जीवंत मूल्यों की सुरक्षार्थ नई प्रतिज्ञा से अभिभूत नये राष्ट्र का निर्माण करने के लिए संकल्पित होने की आवश्यकता है। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे भाजपा और आरएसएस को हिंदू आतंकवाद का जनक घोषित कर रहे हैं। दिग्विजय सिंह हाफिज सईद को सईद साहब कह रहे हैं। जिन्होंने हमारे शहीदों का सर कलम किया वो लोग ‘साहब’ हो गये और बाबा रामदेव जैसे लोग जो देश में राष्ट्रवाद की अलख जगा रहे हैं, वो दिग्विजय सिंह की नजरों में ठग हो गये। दुर्भाग्य इस देश का रहा कि इसे तीसरी, चौथी पंक्ति के नेता पहली पंक्ति के नेता के रूप में झेलने पड़ रहे हैं, ये लोग हीरों की चोरी कर पत्थर को पुजवाने वाले लोग हैं, जिनकी अकल पर पत्थर पड़ गये लगते हैं। अपने राष्ट्रभक्तों का अपमान करने की यह परंपरा जितनी देर तक इस देश में चलती रहेगी उतनी देर तक हम एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण करने में सफल नही होंगे। कांग्रेस के चिंतन शिविर में बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है, कि उस सत्य को छुआ तक नही गया है, जिसने इस देश को दशकों से रूला रखा है। गृहमंत्री शिंदे और दिग्विजय सिंह के बयानों को महाराणा प्रताप के साथ हुए अपमान के छल के साथ तनिक जोड़कर देखिए, घालमेल की सारी खिचड़ी साफ-साफ आपके सामने आ जाएगी। हमें बदलते परिवेश के साथ जीने की कला नही आई। हम अभिशप्त हो गये इतिहास के उन छल प्रपंचों और षडयंत्रों को झेलने के  लिए जिनमें यहां राष्ट्रभक्तों को सदा उपेक्षित और अपमानित किया गया है और जो लोग देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं उन्हेंसाहब और कायदे आजम की उपाधि देकर सम्मानित किया गया। स्वामी श्रद्घानंद ने गांधी को सबसे पहले महात्मा कहा था, लेकिन जब गांधी का सच उनके सामने आया तो सबसे पहले कांग्रेस और गांधी को छोडऩे वाले शख्स भी वही थे। देश स्वामी श्रद्घानंद के प्रति बहुत श्रद्घा रखता है, और उन जैसे लोगों के प्रति श्रद्घा रखने का ही परिणाम है, कि कांग्रेस को लोग छोड़ते जा रहेहैं। यदि अब भी हीरों की चोरी का कारोबार कांग्रेस नही छोड़ेगी तो यह देशउसे छोडऩे को तैयार बैठा है। इस बात को कांग्रेसियों को समझना होगा।कांग्रेस ने साबित कर दिया है कि उसके यहां महाराणा का अपमान अब भी जारी है।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

11 COMMENTS

  1. लोक इतिहास और सरकारी इतिहास दोनों ही अपने आप में अपूर्ण हैं. दोनों में फर्क समझने की जरुरत है. सरकार द्वारा दस्तावेजीकरण किया गया इतिहास उसकी वैचारिक प्रतिबद्धता का आइना हुआ करता है वह सामंत्युगीन वस्तुनिष्ठ घटनाओं को समष्टि हित के अनुरूप प्रस्तुत किये जाने के लिए सुविदित है. लोक साहित्य में जीवंत समाज की अधूरी आकांक्षाएं उनके दिवंगत नायकों के धीरोदात्त चरित्र में अभिव्यक्त हुआ करती हैं, प्रत्येक कौम अपने समय के लिए अतीत से कुछ ऋण लेकर गतिमान रहता है. यह ऋण उसके सामाजिक-सांस्कृतिक और राष्ट्रीय मूल्यों के पुरोधा अमर शहीदों से ही लिया जा सकता है. अनेकों कुर्वानियों के प्रतीक स्वरूप एक सर्वमान्य राष्ट्रपुरुष गढ़ा जाता है, जो अपने वतन के निर्माण का और अपनी कौम के शहीदों का प्रतिनिधित्व किया करता है. जिस तरह प्राचीन यूनानियों ने सिकंदर को ,रोमनों ने सीज़र या गैरी वाल्दी को फ्रांसीसियों ने नेपोलियन या वाल्तैयेर को , ब्रिटेन ने महारानी विक्टोरिया को ,रूस ने लेनिन को,चीन ने माओ को, क्यूबा ने फिदेल कास्त्रो को,फिलिस्तीनियों ने यासिर अराफात को,पकिस्तान ने जिन्ना को अपना राष्ट्रनायक माना उसी तरह आज़ाद भारत के तत्कालीन स्वाधीनता सेनानियों ने महात्मा गाँधी को भारत का ‘राष्ट्रपिता ‘ माना. शहीद भगतसिंह,महाराणा प्रताप ,वीर शिवाजी,चंद्रशेखर आज़ाद ये सभी तो ज्ञात अमर बलिदानी हैं,दाहिरसेन से लेकर शहीद हेमराज और सुधाकर सिंह तक कोई भी हमारे लिए राणा प्रताप या वीर शिवाजी से कम नहीं आंका जाना चाहिए.यह समझ देश के जनता की होनी चाहिए. सरकारी इतिहास महज कृत्रिम कागजी गुलदस्ता हैऔर जनता के दिलों में अमार शहीदों के लिए निरंतर विद्द्य्मान सम्वेदनाएँ -जैसे महकते हुए ताजे फूलों की कुसुम – मंजरी.

    • श्रीमन तिवारी जी,भारत में सरकार इतिहास इतना अधिक विकृत है कि इतना किसी अन्य देश में नहीं है। भारत में इतने राज ऋषि /राष्ट्रपुरुष और ब्रहमऋषि हुए है कि शेष विश्व के सारे महापुरुष मिलकर भारत के किसी एक राज ऋषि या ब्रह्माऋषि का सामना नहीं कर सकते। क्या विदुर जैसा ज्ञानी पुरुष और चाणक्य जैसा नीतिज्ञ कृष्ण जैसा नीतिवान और राम जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम किसी अन्य देश के पास है। हमारा इतिहास तब तक अपूर्ण है जब तक हम अपने राज ऋषियों और ब्रह्म ऋषि महान पुरुषो को उचित स्थान नहीं दे देते है।

  2. लेख बहुत अच्छा लगा… हिंदुत्व व् भारतीय संस्कृति की बात करना … आजकल हिन्दू आतंकवाद या धार्मिक उन्माद फ़ैलाने वाला हो गया है… कांग्रेसी और अन्य दल सिर्फ अपना हित व्सा वोट बैंक की रज्ञिऎति साधने के लिए, देश हितों को ताक पर रख रहे है…अनाप शनाप बक रहे हैं… देश को तो यह बिकने के कगार पर ले ही आये हैं ..कभी कभी तो लगता है.. की यह क्या हिन्दू हैं भी या नहीं.. या… इनके घरों में पूजा अर्चना व् धार्मिक क्रिया कलापों का अनुसरण होता है की नहीं..?

    बहुत शर्म की बात हैं..की इन लेख में कही बातों से छात्र-छात्राओं को अवगत करने के बजाये… इन्हें दबाया जा रहा है… जो की हमारे देश की धरोहर हैं..

    पर हमें हिम्मत न हार अपनी आवाज़ बुल्लंद करनी ही होगी…वर्ना… अपनी अस्मिता और स्वाभिमान खोने से कोई नहीं बचा सकता…

    जय हिन्द..जय भारत
    आर त्यागी

    • श्रीमन आर त्यागी जी,आपकी चिंता उचित है हमारे छात्र छात्राओं को जो कुछ पढ़ाया जा रहा है वह देश के भविष्य के प्रति कतई भी उचित नहीं कहा जा सकता । हम जिये जा रहे है और यूं ही जिये जा रहे है । सफर ज़िंदगी का तय किए जा रहे है ।।
      लेकिन यह स्थिति कब तक चलेगी।
      हिम्मत तो नहीं हारेंगे……….तुम अगर साथ देने का वादा करो ……..।
      अच्छी टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

  3. मंजी हुयी सुन्दर सुसंस्कृत भाषा में,
    सत्यधौत इतिहास को,
    उजागर करने के लिए,
    और प्रत्येक पाठक के ह्रदय को छूने वाला आलेख लिखने के लिए आप को जितने धन्यवाद दें, अपुरे ही सिद्ध होंगे|
    डटे रहिए, पूरब में शायद उष:काल की दुन्दुभि सुनाई दे रही है|
    “चेतक करो अब चेत करो, घोड़े की टाप सुनाई दी,
    भागो भागो भाग चलो भाले की नोक दिखाई दी|”

    • श्रद्धेय डाक्टर साहब बहुत ही उत्साहजनक टिप्पणी है आपकी । मेरे लघु प्रयास को आपके आशीर्वाद से सही दिशा बोध होता है। व्यापक अनुसंधान की आवश्यकता इस दिशा में है । अपने सीमित साधनो के बीच रहते हुए जितना हो पा रहा है उतना किया जा रहा है । आप जैसे विद्वानो का मार्गदर्शन और कर्तव्य बोध आगे बढ्ने के लिए प्रेरित करता है वही मेरे लिए आत्मसंतोष का विषय है । एक बार पुनः आभार

  4. thanks for this article. we know all these things but it is unwritten rules that we should undermine all the Hindu achievement. We should disrespect all the Hindu Icon and if you can’t Ignore them so that next generation will never come to know about them. We have did the same with Rana family. It is difficult for government to defame them so they decided to ignore them.

    • मान्यवर तिवारी जी,भारतीय सरकार का द्रष्टिकोण राणा परिवार सहित देश के अन्य अनेकों शहीदो व उनके परिवारों के प्रति ऐसा ही रहा है । इस पक्षपात को दूर करने के लिए इतिहास की गंगा के प्रदूषण को दूर करना हमारे और आपके लिए आवश्यक है । आपके सुभचिंतन के लिए धन्यवाद ।

  5. aankhe khol dene wala lekh hai yeh. . . . bare dukh ki baat hai ki jo baat bhaart ki raashtriye bhaasha mein kahin yaan likhi jaaye usko itna mehtv nahin mil pata. आशा karta hoon ki iss lekh ko adhik se adhik paathkon tk pahunchey. Kitne dukh ki baat hai deshpremiyon ko, swabhimaan rakhne waalon ko deshdrohi aur aantakwadi kaha jaata hai. . . aur Hafiz Saeed ko SAHIB keh kr smman diya jaata hai. . . wah wah… kaash yeh sb adhik se adhik Bhaartiye samjh paayen.

    • मान्यवर कश्यप जी,एक और एक ग्यारह होते है।आपका शुभ राष्ट्रचिंतन निश्चय ही पौ फटने की और संकेत कर रहा है।व्यापक षड्यंत्र का अंधेरा दूर होगा और सच का सवेरा एक दिन अवस्य होगा।आवश्यकता देश में सज्जन शक्ति के ध्रुवीकरण करने की है।क्योंकि यह एक सच है दुर्जन शक्ति जल्दी एक हो जाती है अपेक्षाकरत सज्जन शक्ति के।हम और आप उसी दिशा में आगे बढ़ रहे है अपने साथ का भरोसा बनाए रखे ।आभारी रहुंगा।

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