
- मुरली मनोहर श्रीवास्तव
महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम आने के बाद वहां की राजनीति ने तूल पकड़ लिया है। एक साथ चुनाव लड़ने वाली भाजपा और शिवसेना सत्ता पर काबिज होने के लिए कुटनीति का सहारा लेने लगी हैं। यहां की राजनीति शुरुआती दौर से साथ-साथ चलने की दोनों दलों की रही है, कभी किसी तरह की बातें उभरर सामने आयीं तो इन दोनों दलों ने दूर होकर भी देख लिया है। इस बार फिर से सत्तारुढ़ तो होने के करीब हैं मगर सबसे बड़ी बात ये है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पेंच फंसी हुई है। इस तरह दोनों दलों के खींचतान में निर्दलीय विधायकों की चांदी हो गई है, दोनों तरफ से लुभावने वादे किए जाने की बातों से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ निर्दलीयों को मिलाकर सरकार बन जाएगी, क्या सरकार बनाने के बाद गठबंधन की तोहमत नहीं दी जाएगी। जैसे कई सवाल महाराष्ट्र की राजनीति कि दशा दिशा कुछ अलग ही नजर आ रही है। अब ऐसी परिस्थति में ये भी माना जा रहा है कि सत्ता पाने के लिए एनसीपी के करीब भी हो सकती है भाजपा।
एक तरफ शिवसेना चुनाव परिणाम आने के बाद से ही ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर सरकार बनाने का वादा मांग रही है। वहीं दूसरी तरफ भाजपा, जो विधायकों के लिहाज से सबसे बड़ी पार्टी होने का हवाला देते हुए इस फॉर्मूले पर अपनी सहमति नहीं जता रही है। इसलिए अपनी कुर्सी बचाने के लिए दोनों ही दल विधायकों को अपने पक्ष में करने के लिए नूरा कुश्ती कर रही हैं। हलांकि भाजपा के समर्थन में तीन निर्दलीय विधायकों गीता जैन, राजेंद्र राउत और रवि राणा ने घोषणा कर दी है। वैसे गीता जैन पहले भाजपा से टिकट की मांग कर रही थीं, इनकी जगह भाजपा ने नरेंद्र मेहता को उतारा था। जैन टिकट नहीं दिए जाने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ गई थीं, सफलता मिलने के बाद फिर से भाजपा को समर्थन देने के लिए देवेंद्र फडणवीस को आश्वस्त कर चुकी हैं।
भाजपा और शिवसेना के
बीच समझौते को लेकर अभी कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आयी है। शिवसेना नेता दिवाकर
राओते के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिल
चुके हैं। मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच खींचतान जारी है।
लेकिन किसी भी पक्ष से कोई भी बात सामने नहीं आ रहा है। इस पूरे मसले पर गौर करें
तो शिवसेना ने 50-50 के फॉर्मूले को प्रस्तुत कर पत्ते
तो खोल दिए हैं, मगर भाजपा अभी भी दम साधे हुए हैं। शिवसेना को लिखित तौर पर
मुख्यमंत्री पद के लिए उसे आश्वासन चाहिए। परंतु भाजपा की तरफ से इस पर कोई सूचना
नहीं प्राप्त हुई है। खबर ये भी सुनने को मिल रहा है कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को
मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती है।
महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री फडणवीस ने तो एक कार्यक्रम में इतना तक कह दिया कि राज्य में गठबंधन की एक स्थिर सरकार बनेगी। लेकिन कैसे बनेगी इसका अब तक खुलासा नहीं कर पाए हैं। उन्होंने ये भी कहा कि राज्य में हम गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे हैं। इसलिए आने वाले पांच साल हम राज्य में हम भाजपा के नेतृत्व वाली स्थिर सरकार देंगे। अब ऐसे में गौर करने वाली बात ये है कि महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में वर्ष 2014 पर नजर दौड़ाएं तो उस समय की तुलना में भाजपा को 17 सीटों का घाटा हुआ है। शिवसेना को जहां 2014 में 63 सीटें मिली थीं वहीं 2019 में 56 सीटों पर इसको सब्र करना पड़ा। इन सबसे इतर अगर बात करें एनसीपी की तो उसके पास भी 54 सीटे हैं, कहीं ऐसा न हो कि भाजपा की एनसीपी के साथ सांठ गांठ बढ़ रही हो। अगर ये दोनों साथ आ जाते हैं तो भी सरकार बनने में कोई परेशानी नहीं होगी। जबकि दूसरे एंगल से सोचे तो शिवसेना को भाजपा से अलग होकर एनसीपी, कांग्रेस को मिलाना होगा तब जाकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकती है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या ये तीनों मिलेंगे तो ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने पर सहमति जता देंगे। हैं बड़ी पार्टी होने के नाते अगुवाई कर सकते हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो महाराष्ट्र में सरकार अंततोगत्वा भाजपा-शिवसेना की ही बनेगी। क्योंकि इन दोनों का माइंडसेट भी एक है। अब आगे देखना ये दिलचस्प है कि आखिर पेंच में होने वाली पंचायत पर कब विरामचिन्ह लगता है और भाजपा-शिवसेना की सरकार यानि भाजपा के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार बनती है।
असल में शिव सेना का यह रवैया उसे ही भरी पड़ेगा यदि भा ज पा ने पंवार के साथ मिल कर सरकार बना ली तो शिवसेना के हाथ कुछ नहीं आएगा वह अपना प्रलाप करती रह जायेगी , हालाँकि भ ज पा को इसकी कीमत पंवार को जरूर चुकानी पड़ेगी , लेकिन शिव सेना के साथ भी सौदा कोई सस्ता पड़ने वाला नहीं है , वह कांग्रेस के साथ मिल कर केवल गंदगी ही फ़्लायेगी शिव सेना का कोई राजनीतिक सिद्धांत नहीं है केवल मराठा वाढ व गुण्डावाद के , उसका हिंदुत्व भी केवल दिखावा रह गया है , वह भी बाला साहब से बहुत दूर निकल आयी है जैसे कांग्रेस गाँधी से
शिवसेना का एनसीपी व् कांग्रेस से मिल कर सर्कार बनाना अपनी आत्म हत्या करना होगा , यह सत्ता के लिए इन दोनों के तलवे चाटनेKO मजबूर होगी , पहली बात आदित्य जैसे अपरिपक्व व नौसिखिये को सी एम् बनाना उन्हें गवारा नहीं होगा , और सब ने सत्ता लोलुपता में आ कर उसके नेतृत्व में सरकार बना भी ली तो कर्णाटक वाला इतिहास दोहराया जाएगा, ये दोनों आदित्य की नाक में डीएम कर देंगे
वैसे शिव सेना की ठसक को कम करने के लिए एक बार भा ज पा को सत्ता से दूर हो जाना चाहिए यह ठाकरे को एक बड़ा सबक मिलेगा , कुछ दिन में उसके ही विधायक ठाकरे को आँख दिखाना शुरू कर देंगे
लेकिन भा ज पा भी मुहं लगी सत्ता की मलाई छोड़ना नहीं चाहती लेकिन अभी यह दिलचस्प स्थिति कुछ दिन चलेगी शिव सेना केवल दबाव की राजनीतिKA खेल खेल रही है बाद में ये दोनों ही अपना थूका हुआ चाटते नजर आएंगे