‘मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया’ – देवानन्द

आज यानि 4 दिसंबर 2011 को, बालीवुड के सदाबहार सदाबहार अभिनेता देवानन्द (88 वर्ष) ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यु लंदन में हृद्याघात से हुई। देवानन्द भारतीय सिनेमा के बहुत ही सफल कलाकार, निर्देशक और फिल्म निर्माता हैं। देवानन्द के बचपन का धर्मदेव आनंद था, फिल्म जगत मे उन्हें देव आनंद के नाम से प्रसिद्धि मिली, देवानन्द का जन्म 26 सितम्बर 1923 में गुरदास पुर (जो अब नारोवाल जिला, पकिस्तान में है) में हुआ और उनके पिता किशोरीमल आनंद पेशे से वकील थे।

 

उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। देव आनंद के भाई, चेतन आनंद और विजय आनंद भी भारतीय सिनेमा में सफल निर्देशक रहे हैं। उनकी बहन शील कांता कपूर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक शेखर कपूर की मा है। देवानन्द इतने लोकप्रिय थे की वे जो भी पहनते थे, जो भी करते थे वो लोगो के बीच एक स्टाइल बन जाता था। उनके बालों पर हाथ फेरने का अंदाज़, काली कमीज़ पहनने का अंदाज़, और उनके बोलने का अंदाज़ लोगो के बीच काफी प्रसिद्ध हुआ।

देव आनंद काम की तलाश में मुंबई आये और उन्होंने मिलट्री सेंसर ऑफिस में 160 रुपये प्रति माह के वेतन पर काम की शुरुआत की। शीघ्र ही उन्हें प्रभात टाकीज़ एक फिल्म हम एक हैं में काम करने का मौका मिला। और पूना में शूटिंग के वक़्त उनकी दोस्ती अपने ज़माने के सुपर स्टार गुरु दत्त से हो गयी। किसी भी तरह की नाकामी को उन्होंने कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया है। उनकी फिल्म का एक गीत ‘मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया’ उनके जीवन के इस पहलू को दर्शाता है।

 

देव आंनद का फिल्मी सफर 1946 में अपने मित्र गुरुदत्त के साथ ‘हम एक है’ फिल्म से शुरू हुआ। उन्होंने अब तक सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय, तीस फिल्मों का निर्देशन, बीस फिल्मों का निर्माण और दस फिल्मों की कहानी लिखी है। देवानन्द ने 1949 में फिल्म निर्माण के लिए नवकेतन इंटरनेशनल फिल्म नाम से कंपनी बनाई। इसके जरिए समय-समय पर उन्होंने नए उभरते हुए कलाकारों को सामने लाने का प्रयास किया।

 

उन्होंने अपनी फिल्मों में नए आयडिया के साथ कई प्रयोग किए। इन्हीं प्रयोगों और जिंदादिली के कारण उन्हें सदाबहार अभिनेता का दर्जा प्राप्त है। 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे देव आनंद का वास्तविक नाम देवदत्त पीशोरीमल आनंद है। उन्होंने लाहौर के सरकारी कालेज से स्नातक की उपाधि ली। 1948 में बनी ‘जिद्दी’ उनकी पहली सफल फिल्म रही और 1951 में कल्पना कार्तिक, गीता बाली के साथ बनी फिल्मी ‘बाजी’ ने उन्हें स्टार बना दिया। अगले वर्ष 1952 में बनी फिल्म ‘जाल’ भी अच्छी साबित हुई। इसी वर्ष उनके भाई चेतन आनंद ने निम्मी और कल्पना कार्तिक को साथ लेकर ‘आंधियां’ फिल्म बनाई। 1954 में चेतन आनंद द्वारा बनाई गई उनकी फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ बॉक्स आफिस सफल साबित हुई।

 

1956 में बनी ‘सीआईडी’ हिट रही। अगले वर्ष 1957 में उनकी नूतन के साथ ‘पेंइंग गेस्ट’ फिल्म बनी। इस जोडी़ को बॉक्स आफिस पर काफी सराहा गया। 1958 में मधुबाला और नलिनी जयवंत के साथ बनी फिल्म ‘काला पानी’ में देवानन्द के बेहतरीन अभिनय की काफी तारीफ हुई। उनके भाई विजय आनंद द्वारा निर्मित ‘काला बाजार’ के साथ एक और हिट फिल्म उनकी झोली में आ गई। 1961 में बनी ‘हम दोनों’ के गानों को काफी सराहा गया। इस फिल्म में उन्होंने डबल रोल किया था।

 

उन्होंने नूतन के साथ 1963 में ‘तेरे घर के सामने’ फिल्म में दोबारा काम किया जो सुपर हिट लव स्टोरी साबित हुई। 1965 में उन्होंने नंदा, कल्पना और सिम्मी ग्रेवाल के साथ ‘तीन देवियां’ फिल्म में काम किया। इसी वर्ष वहीदा रहमान के साथ बनी लव स्टोरी फिल्म ‘गाइड’ सुपर हिट रही। 1967 में वैजयंती माला के साथ बनी फिल्म ‘ज्वैल थीफ’ में सुरीले गीत और अविस्मरणीय संवाद देखने को मिले।

 

1971 में जीनत अमान के साथ बनी ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में हिप्पी संस्कृति को दिखाया था। इसे उन्होंने ही निर्देशित किया। 1978 में बनी फिल्म ‘देश परदेस’ भी बॉक्स आफिस पर सफल रही। 1970 में बनी प्रेम पुजारी, 1980 में लूटमार, 1990 में अव्वल नंबर, 1998 में मै सोलह बरस की, 2005 में मि0 प्राइम मिनिस्टर और 2009 में चार्ज शीट उनके सफल निर्देशन के लिए जानी जाती है।

 

1950 में ‘अफसर’ को उन्होंने अपने भाई चेतन आनंद के साथ निर्मित किया। इसके लिए अलावा काला पानी, काला बाजार, हम दोनों, गाईड, ज्वैल थीफ, हरे रामा हरे कृष्णा आदि फिल्मों को निर्माण भी उन्होंने किया। एक लेखक के तौर पर उन्होंने आंधियां, प्रेम पुजारी, हरे रामा हरे कृष्णा, देस परदेस, अव्वल नंबर की कहानी लिखी।

 

उन्होने जिन संगीतकारों, लेखकों और गायकों के साथ काम किया उनमे से कुछ शंकर-जयकिशन, ओ पी नैयर, कल्याण जी आनंद, सचिन देव बर्मन, राहुल देव बर्मन, लेखक हसरत जयपुरी, मजरूह सुल्तानपुरी, नीरज, शैलेंद्र, आनंद बख्शी, गायक मोहम्मद रफी, महेंद्र कपूर, किशोर कुमार, आदि।

भारतीय सरकार ने देव आनंद को भारतीय सिनेमा के योगदान के लिए 2001 में पद्मा भूषण और 2002 में दादा साहब फाल्के पुरस्कारों से सम्मानित किया। वर्ष 2003 में उन्हें आईफा लाइफ टाईम अचिवमेंट पुरस्कार से नवाजा गया। फिल्म फेयर में गाईड और काला पानी के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का पुरस्कार मिला और गाईड को उनकी बेहतरीन फिल्म बताया गया। 1958 में निर्मित उनकी फिल्म काला पानी को ऑस्कर के लिए भी नामांकित किया गया था।

देवानन्द फिल्म जगत के उन गिने चुने लोगो मे शामिल हैं जो राजनीतिक व सामाजिक रूप से सक्रिय हैं। 1977 में उन्होंने एक राजनितिक दल नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया का निर्माण किया, जो की तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी के खिलाफ था। लेकिन ये राजनितिक दल ज्यादा समय तक नहीं रहा।

सितम्बर 2007 में उनकी आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ उनके जन्म दिवस के अवसर पर प्रदर्शित की गयी, जहाँ भारत के प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी भी उपस्थित थे। आमतौर पर मशहूर हस्तियों की जीवनियों के प्रसंग विवादों का विषय बनते हैं लेकिन उनकी जीवनी हर माइने मे बेदाग रही। देव आनंद की फिल्में उनके संगीत के कारण भी प्रसिद्ध है, उनकी फिल्मों का संगीत आज भी लोगों को मंत्र मुग्ध करता है।

 

 

3 COMMENTS

  1. गाइड फिल्म का एक डायलग याद आरहा है,
    “दूर कहीं बारिश हो रही है ,मेरा तन भींग गया है चलो इसको बदल लूं”.

  2. इसी वर्ष १४ फरवरी को मेरे साठवें जन्मदिन (सस्ठी पूर्ती} के अवसर पर मेरे मित्र श्री अनिल बंसल (जनसत्ता के ब्यूरो चीफ) ने देवानंद की आत्मकथा मुझे भेंट दी थी. कल उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर धक्का सा लगा. ऐसा लगा जैसे कोई अपना चला गया हो. फिल्म जगत में तो उन्होंने अपना एक खास स्थान बनाया हिता लेकिन उनकी अधिकांश फ़िल्में किसी समसामयिक समस्या का फ़िल्मी समाधान था. जब आपातकाल में सारे देश में लोकतंत्र पर काले बदल मंडरा रहे थे तो १९७७ के चुनाव के दौरान फिल्म जगत के भी कुछ जागरूक लोगों ने आपातकाल के विरोध में अपना स्वर उठाया. उनमे प्रमुख नाम थे शत्रुघ्न सिन्हा और देवानंद. लेकिन देव साहब की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी अतः उन्होंने राजनीतिक मंच को समाप्त कर दिया. उन जैसे लोग हमेशा जिन्दा रहते हैं कभी मर नहीं सकते. जैसा गीता में कहा है वो शायद जीर्ण हो चुके वस्त्रों को बदलने गए हैं. देवानंद अमर रहें.

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