पुरुष से ऊंचा स्‍थान है नारी का हिंदू परंपरा में

-राजीव त्रिपाठी

भारतीय संस्कृति में नारी का उल्लेख जगत्-जननी आदि शक्ति-स्वरूपा के रूप में किया गया है। श्रुतियों, स्मृतियों और पुराणों में नारी को विशेष स्थान मिला है। मनु स्मृति में कहा गया

है-

यत्र नार्यस्‍तु पूज्‍यन्‍ते रमन्‍ते तत्र देवता:।

यत्रेतास्‍तु न पूज्‍यन्‍ते सर्वास्‍तफला: क्रिया।।

जहाँ नारी का समादर होता है वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं और जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ समस्त यज्ञादि क्रियाएं व्यर्थ होती हैं। नारी की महत्ता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते

हैं-

यद् गृहे रमते नारी लक्ष्‍मीस्‍तद् गृहवासिनी।

देवता: कोटिशो वत्‍स! न त्‍यजन्ति गृहं हितत्।।

जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।

ज्ञान-ऐश्‍वर्य-शौर्य की प्रतीक

भारत में सदैव नारी को उच्च स्थान दिया गया है। समुत्कर्ष और नि.श्रेयस के लिए आधारभूत ‘श्री’, ‘ज्ञान’ तथा ‘शौर्य’ की अधिष्ठात्री नारी रूपों में प्रगट देवियों को ही माना गया है। आदिकाल से ही हमारे देश में नारी की पूजा होती आ रही है। यहाँ ‘अर्द्धनारीश्वर’ का आदर्श रहा है। आज भी आदर्श भारतीय नारी में तीनों देवियाँ विद्यमान हैं। अपनी संतान को संस्कार देते समय उसका ‘सरस्वती’ रूप सामने आता है। गृह प्रबन्धन की कुशलता में ‘लक्ष्मी’ का रूप तथा दुष्टों के अन्याय का प्रतिकार करते समय ‘दुर्गा’ का रूप प्रगट हो जाता है। अत. किसी भी मंगलकार्य को नारी की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया। पुरुष यज्ञ करें, दान करे, राजसिंहासन पर बैठें या अन्य कोई श्रेष्ठ कर्म करे तो ‘पत्नी’ का साथ होना अनिवार्य माना गया।

वेदों के अनुसार सृष्टि के विधि-विधान में नारी सृष्टिकर्ता ‘श्रीनारायण’ की ओर से मूल्यवान व दुर्लभ उपहार है। नारी ‘माँ’ के रूप में ही हमें इस संसार का साक्षात दिग्दर्शन कराती है, जिसके शुभ आशीर्वाद से जीवन की सफलता फलीभूत होती है। माँ तो प्रेम, भक्ति तथा श्रध्दा की आराध्य देवी है। तीनों लोकों में ‘माता’ के रूप में नारी की महत्ता प्रकट की गई है। जिसके कदमों तले स्वर्ग है, जिसके हृदय में कोमलता, पवित्रता, शीतलता, शाश्वत वाणी की शौर्य-सत्ता और वात्सल्य जैसे अनेक उत्कट गुणों का समावेश है, जिसकी मुस्कान में सृजन रूपी शक्ति है तथा जो हमें सन्मार्ग के चरमोत्कर्ष शिखर तक पहुँचने हेतु उत्प्रेरित करती है, उसे ”मातृदेवो भव” कहा गया है।

नारी का सम्‍मान

हिन्दू धर्म की स्मृतियों में यह नियम बनाया गया कि यदि स्त्री रुग्ण व्यक्ति या बोझा लिए कोई व्यक्ति आये तो उसे पहले मार्ग देना चाहिये। नारी के प्रति किसी भी तरह का असम्मान गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया। नारी यदि शत्रु पक्ष की भी है तो उसको पूरा सम्मान देने की परम्परा बनाई। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है कि भगवान श्री राम बालि से कहते हैं-

अनुज बधू, भगिनी सुत नारी।

सुनु सठ कन्‍या सम ए चारी।। इन्‍हहिं कुदृष्टि विलोकई जोई।

ताहि बधे कछु पाप न होई।।

(छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र की पत्नी कन्या के समान होती हैं। इन्हें कुदृष्टि से देखने वाले का वध कर देना कतई पापनहीं है।)

भारत में हिन्दू धर्म की परम्परा रही है कि छोटी आयु में पिता को बड़े होने (विवाह) के बाद पति को तथा प्रौढ़ होने पर पुत्र को नारी की रक्षा का दायित्व है। यही कारण था कि हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से ही महान नारियों की एक उज्ज्वल परम्परा रही है। सीता, सावित्री, अरून्धती, अनुसुइया, द्रोपदी जैसी तेजस्विनी; मैत्रेयी, गार्गी अपाला, लोपामुद्रा जैसी प्रकाण्ड विदुषी, और कुन्ती,विदुला जैसी क्षात्र धर्म की ओर प्रेरित करने वाली तथा एक से बढ़कर एक वीरांगनाओं के अद्वितीय शौर्य से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। वर्तमान काल खण्ड में भी महारानी अहल्याबाई, माता जीजाबाई, चेन्नमा, राजमाता रूद्रमाम्बा, दुर्गावती और महारानी लक्ष्मीबाई जैसी महान नारियों ने अपने पराक्रम की अविस्मरणीय छाप छोड़ी । इतना ही नहीं, पद्मिनी का जौहर, मीरा की भक्ति और पन्ना के त्याग से भारत की संस्कृति में नारी को ‘धु्रवतारे’ जैसा स्थान प्राप्त हो गया। भारत में जन्म लेने वाली पीढ़ियाँ कभी भी नारी के इस महान आदर्श को नहीं भूल सकती। हिन्दू संस्कृति में नारी की पूजा हमेशा होती रहेगी।

तेजस्विता की प्रतिमूर्ति

विधर्मियों ने हमारी संस्कृति आधारित जीवन पद्धति पर अनेकों बार कुठाराघात किया है लेकिन हमारे देश की महान् नारियों ने उनको मुँहतोड़ जवाब दिया है। अपने शौर्य व तेजस्विता से यह बता दिया कि भारत की नारी साहसी व त्यागमयी है।

प्राचीन भारत की नारी समाज में अपना स्थान माँगने नहीं गयी, मंच पर खड़े होकर अपने अभावों की माँग पेश करने की आवश्यकता उसे कभी प्रतीत ही नहीं हुई। और न ही विविध संस्थायें स्थापित कर उसमें नारी के अधिकारों पर वाद-विवाद करने की उसे जरूरत हुई। उसने अपने महत्वपूर्ण क्षेत्र को पहचाना था, जहाँ खड़ी होकर वह सम्पूर्ण संसार को अपनी तेजस्विता, नि.स्वार्थ सेवा और त्याग के अमृत प्रवाह से आप्लावित कर सकी थी। व्यक्ति, परिवार, समाज, देश व संसार को अपना-अपना भाग मिलता है- नारी से, फिर वह सर्वस्वदान देने वाली महिमामयी नारी सदा अपने सामने हाथ पसारे खड़े पुरुषों से क्या माँगे और क्यों माँगे?

वह हमारी देवी अन्नपूर्णा है- देना ही जानती है लेने की आकांक्षा उसे नहीं है। इसका उदाहरण भारतीय नारी ने धर्म तथा देश की रक्षा में बलिदान हो रहे बेटों के लिए अपने शब्दों से प्रस्तुत किया है।

”इस धर्म की रक्षा के लिए अगर मेरे पास और भी पुत्र होते तो मैं उन्हें भी धर्म-रक्षा, देश-रक्षा के लिए प्रदान कर देती।” ये शब्द उस ‘माँ’ के थे जिसके तीनों पुत्र दामोदर, बालकृष्ण व वासुदेव चाफेकर स्वतंत्रता के लिये फाँसी चढ़ गये।

अक्षय प्रेरणा का स्रोत

यदि भारतवर्ष की नारी अपने ‘नारीधर्म’ का परित्याग कर देती तो आर्यावर्त कहलाने वाला ‘हिन्दुस्थान’ अखिल विश्व की दृष्टि में कभी का गिर गया होता। यदि देखा जाय तो हमारे देश की आन-बान-शान नारी समाज ने ही रखी है। हमारे देश का इतिहास इस बात गवाह है कि युध्द में जाने के पूर्व नारी अपने वीर पति और पुत्रों के माथे पर ”तिलक लगाकर” युध्दस्थल को भेजती थी। लेकिन वर्तमान में पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार-प्रसार के प्रभाव से भारत में नारी के अधिकार का आन्दोलन चल पड़ा है। वस्तुत. नारी का अधिकार माँगने और देने के प्रश्न से बहुत ऊपर है। उसे आधुनिक समाज में स्थान अवश्य मिला है पर वह मिला है लालसाओं की मोहावृत प्रतिमूर्ति के रूप में, पूजनीय माता के रूप में नहीं।

अवश्य ही युग परिवर्तन के साथ हमारे आचार-विचार में और हमारे अभाव-आवश्यकताओं में परिवर्तन होना अनिवार्य है। परन्तु जीवन के मौलिक सिद्धान्तों से समझौता कदापि ठीक नहीं। सृष्टि की रचना में नारी और पुरुष दोनों का महत्व है। वे एक दूसरे के पूरक हैं और इसी रूप में उनके जीवन की सार्थकता भी है। यदि नारी अपने क्षेत्र को छोड़कर पुरुष के क्षेत्र में अधिकार माँगने जायेगी तो निश्चित ही वह नारी जीवन की सार्थकता को समाप्त कर देगी।

ग्रा-पो: रसिन, जिला:चित्रकूट(उत्तर प्रदेश)

127 COMMENTS

  1. आज से चार वर्षों पहले लिखे इस आलेख पर मेरी नजर क्यों नहीं पडी थी,यह मैं कह नहीं सकता,पर समाज में तथाकथित शूद्रों की दशा में आज भी कोई सुधार नहीं हुआ है.जहां तक स्त्रियों का प्रश्न है,उसके मामले में मैं इतना ही कह सकता हूँ कि किसी धर्म का कट्टरता से पालन करने वाला पुरुष वर्ग नारी जाति का सम्मान नहीं करता.ये जो उदाहरण दिए गए हैं,उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि हाथी के दांत दिखाने के और,खाने के और.रही बात विदेशियों और दूसरे धर्म वालों के द्वारा हिन्दू धर्म को बदनाम और बर्बाद करने की साजिश तो यह बहाने बाजी के अतिरिक्त कुछ नहीं है.मनु स्मृति में चार वर्ण बनाने को जो भी कारण हो,पर बाद में वह महज अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का हथियार बन कर रह गया.

  2. परिवारों में रिश्ते बनते भले ही शरीर से हैं, लेकिन रिश्तों को निभाने के लिए शरीर से अलग हटना पड़ता है। भारतीय परिवारों में भी बदलते दौर में एक बड़ा परिवर्तन आया है। हमारे यहां पहले रिश्तों को महत्व दिया गया, शरीर को गौण रखा गया।

    इसीलिए भारत के परिवार के सदस्य एक-दूसरे से भावनात्मक रूप में रहते हैं। धीरे-धीरे घर-गृहस्थी का विस्तार हुआ। बाहर की दुनिया में लोगों का समय अधिक बीतने लगा। लक्ष्य परिवार से हटकर संसार हो गया और यहीं से शरीर का महत्व बढ़ गया।

    जैसे ही हम रिश्तों में शरीर पर टिकते हैं, हमारा आदमी या औरत होना भारी पड़ने लगता है, उनका अहं टकराने लगता है। बाप और बेटे का एक रिश्ता है। जब तक इसमें केवल रिश्ता काम कर रहा होता है, प्रेम और सम्मान भरपूर रहेगा, लेकिन जैसे ही दोनों अपने शरीर पर टिकेंगे, तो भीतर का पुरुष जाग जाता है और यहीं से फिर बाप-बेटे नहीं, दो पुरुष नजर आने लगते हैं।

    ठीक यही स्थिति पति-पत्नी के बीच बन जाती है। स्त्री हो या पुरुष, जब तक रिश्ते की डोर से बंधे हैं, दोनों एक-दूसरे के प्रति अत्यधिक सम्मानपूर्वक रहेंगे, लेकिन इनके भीतर का आदमी, औरत जागते ही रिश्ते बोझ बन जाते हैं।

    यही स्थिति हर संबंध में काम करती है। पत्नी के रूप में रिश्ता एक दायित्व, एक स्नेह का होता है, लेकिन यदि वह स्वयं भी अपने भीतर की स्त्री को ही जाग्रत कर ले, पुरुष भी केवल शरीर ही देखने लगे, तो फिर सारी अनुभूतियां कामुकता, अपेक्षा, महत्वाकांक्षा और लेन-देन पर टिक जाती हैं।

    जिन रिश्तों में शरीर गौण हों और भावनाएं प्रमुख हों, वहां जिंदगी मीठी होने लगती है। यह सही है कि शरीर के बीज से ही रिश्ते अंकुरित होते हैं, लेकिन जो लोग वापस शरीर की ओर लौटेंगे, वे रिश्तों का वृक्ष नहीं बना पाएंगे।

    रिश्तों से जुड़ने पर ऐसा लगता है, जैसे पत्थर में से मूर्ति संवारी गई। छुपा हुआ निखरकर आता है। हमें आज के दौर में यह ध्यान रखना होगा कि रिश्ते शुरू तो शरीर से हों, पर धीरे-धीरे शरीर से हटकर भावना, संवेदना,
    ” Ham aourat ko fakat ek jism samjh lete hai,
    Uasme RUH bhi hoti hai ye kanha samjhate hai.”……Av

  3. त्रिपाठीजी का यह लेख एक एतिहासिक दस्तावेज की तरह है क़ि प्राचीन भारत में स्त्रिओं की क्या दशा थी उसके समर्थन में अच्छे उद्धरण भी दिए गए है पर यह बहुत पुरानी बात है श्री राम का युग और उसके बाद महाभारत का युग स्त्रियों क़ि स्थिति इसी नहीं थी हम सीता क़ि व्यथा और द्रोपदी क़ि विवशता के प्रकाश में देखें तो ऐसी बात नहीं थी पुरुष वर्चस्व साफ दीखता है राम एक मर्यादा पुरुष कहलाते है और उस मर्यादा को अच्छुन रखने के लिए सीता के मान क़ि बलि चदा दी दो दो बार उनकी अग्नि परिच्छा ली गई मैंने इसका कारण जानने क़ि कोशिश क़ि पर मन उनके उत्तरों से संतुष्ट नहीं हुआ द्रोपदी का हाहाकार सम्पूर्ण महाभारत में गूंजता है धर्मराज विवश है धरम निबाहने के लिए भीष्म अपनी नपुंशक प्रतिज्ञा से बंधे है उनका भी बडबोलापन युद्ध के समय सामने आ जाता है पर द्रोपदी के क्रंदन और अभय क़ि भिक्षा के सामने उनकी जुबान बंद हो जाती है भीस्म तो शुरुआती दौर में ही अपनी प्रकृति को प्रकट कर देते है क़ि उनके मन में नारीओं के प्रति क्या भाव है और क्या स्थान वे अपने ह्रदय में देते है इसका परिचय वे कशी नरेश क़ि पुत्रियों का अपहरण कर के देते है यहाँ में अपहरण कह रहा हूँ हरण नहीं ,अपहरण मर्जी के खिलाफ होता है और हरण में स्वीकार होता है अस्तु भीष्म ने काशीनरेश क़ि कन्याओं का अपहरण कर के स्त्रिओं केप्रति अपनी मानसिकता भी जाहिर कर दी आज क़ि मनोवैज्ञानिक भाषा में इसे अनुवाद किया जाये तो भीष्म का व्यक्तित्व विखंडित व्यक्तित्व कहा जायेगा ,सिजोफ्रेनिक महाभारत एक काव्य ही नहीं है वह उस काल के इतिहास का दर्पण भी है सामाजिक और राजनीतिक दोनों स्थितिओं का जहाँ तक पूर्व वैदिक काल क़ि बात है वह समय मातरि सत्ता का था परन्तु उत्तर वैदिक काल में स्थिति बदल चुकी थी या बदल रही थी गौतम बुद्ध के ज़माने में भी देखा जाये स्थिति बेहतर नहीं थी इसका प्रमाण संघ में स्त्रिओं के प्रवेश पर निषेध काल क्रम में आगे बढ़ने पर सामंतयुग में स्त्रिओं का स्थान गिरता ही गया
    वर्त्तमान में उसी अवनति के अवशेष मिलते है आज लड़की के पैदा होने पर ख़ुशी नहीं मनाई जाती घर परिवार में समाज में लड़के और लड़की का भेद बरक़रार है इसका जवलंत उदहारण है दहेज़ क़ि प्रथा लडकिया योग्य हों पढ़ी लिखी हों सब प्रकार से कुशल हों यह अपेछा होती है परन्तु लड़कों के लिए दहेज़ jaroori होता है यह है हमारे हिन्दू समाज में स्त्रिओं की स्थिति
    विपिन कुमार सिन्हा

  4. आप लोगो की बातो से मै सहमत हू इस बारे में मै जगतगुरु शंकराचार्य निश्छालानंद सरस्वती से बात की थी हम सहयोग करे तो बात बन सकती है वेद उपनिषद विदेशो के पुस्तकालय में आज भी है और उनपर शोध हो रहा है हमारे लोग उसे विकृत करने में लगे है हिन्दू धर्म के सद्साहित्य पर तो काम होना ही चाहिए कपूर जी ने सही कहा धर्मपाल जी पुस्तक पढ़ने से ही भारत समझ में आ जाता है ये पुस्तके ०७१२५३२२६५५ पर बात कर मगाई जा सकती है कपूर जी भारतीय इतिहास का पुनर लेखन एक प्रवंचना कहा प्राप्त ओ पायेगी प्रकाशन का नंबर भी मिल जाये तो अच्छा है

  5. आदरणीय श्री जीत भार्गव जी,
    नमस्कार।

    आपने जो सकारात्मक टिप्पणी की है और समरसता की बात कही है, उसका स्वागत है।
    आपकी सभी सकारात्मक बातों से मैं सहमत हूँ, लेकिन दूसरे धर्मों में की आन्तरिक स्थिति क्या है, इससे हिन्दू होने के नाते मुझे सीधे तौर पर कोई सरोकार नहीं है और मेरा मानना है कि किसी भी हिन्दू को होना भी नहीं होना चाहिये।

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, हाँ एक मानव होने के नाते अवश्य हमें प्रत्येक मानव की बात करनी चाहिये, लेकिन जब हम मानव के रूप में सोचने और चिन्तन करने की योग्यता अर्जित कर लेते हैं तो धर्मों की दीवार नहीं दिखनी चाहिये। दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकती।

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, यहाँ पर हिन्दू धर्म की बात करना श्रेयस्कर होगा, क्योंकि मैं हिन्दू हूँ और मुझे हिन्दू धर्म में अन्तर्निहित अच्छी या बुरी बातों से निश्चित तौर पर फर्क पडता है। जिनके कारण मेरे और हर हिन्दू के जीवन का प्रत्येक क्षण प्रभावित होता है। जबकि दूसरे धर्मों की आन्तरिक व्यवस्था से या कमियों से मौटे तौर मेरे जीवन पर, सीधे तौर पर कोई असर नहीं पडता।

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, मुझसे विरोध रखने वाले कुछ टिप्पणीकार एवं लेखकों का कहना है कि मैं हिन्दू धर्म की कमियों को तो रेखांकित और उजागर करता हूँ, जबकि इस्लाम या ईसाई धर्म की कमियों की ओर मेरा ध्यान नहीं जाता है। आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, ऐसा कहने वालों का अपना दृष्टिकोंण है, जिससे मैं तनिक भी सहमत नहीं हूँ। इस बारे में मेरे दृष्टिकोंण को समझने के लिये एक उदाहरण देना जरूरी समझता हूँ :-

    एक शिक्षक एक विद्यार्थी को प्रताड़ित करता है, जिसकी वह प्रधानाध्यापक को शिकायत करता है, क्योंकि शिक्षक की प्रताडना से विद्यार्थी आहत होता है और वह अपमानित भी अनुभव करता है। कार्यवाही या सुधार नहीं होने पर विद्यार्थी शिक्षक के बारे में सार्वजनिक रूप से सबको बतला देता है। जिसके प्रतिउत्तर में शिक्षक कहता है कि मैंने तो इस विद्यार्थी को कुछ भी प्रताड़ित नहीं किया, दूसरे स्कूलों में जाकर देखो वहाँ के शिक्षक अपने विद्यार्थी को कितना प्रताड़ित करते हैं। मारपीट तक करते हैं और यह विद्यार्थी तो अपने स्कूल का दुश्मन है, जो अपने शिक्षक को तो बदनाम कर रहा है, जबकि दूसरे स्कूल के शिक्षकों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहता है?

    आदरणीय श्री भार्गव जी विद्यार्थी को जिस शिक्षक से तकलीफ है, वह उसके बारे में शिकायत कर पा रहा है, यह क्या कम है और यदि विद्यार्थी दूसरे स्कूलों के शिक्षकों की शिकायत कर सकने में सक्षम होता तो क्या उसके अपने स्कूल के शिक्षक की इतनी हिम्मत हो सकती थी कि वह उस विद्यार्थी को तंग कर पाता?

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, मैं उन सभी आदरणीय विसम्मत विद्वान साथियों से कहना चाहता हूँ, जो मुझे या अन्य मेरे जैसे विचारों के लोगों को हिन्दू धर्म का दुश्मन, राष्ट्रद्रोही, ईसाईयों या इस्लाम का ऐजेण्ट या कुछ भी कहते रहते हैं, कि मैं हिन्दू हूँ और चाहे कारण कुछ भी रहे हों, लेकिन यह सर्वस्वीकार्य तथ्य है कि हिन्दू धर्म में वर्णवाद, जातिवाद, वर्गवाद आदि के आधार पर भेदभाव और हिन्दू द्वारा हिन्दू का शोषण सदियों से होता रहा है ओर आज भी सतत जारी है। जिसके कारण जो लोग व्यथित हैं, उनकी पीडा को दूर करने के लिये हिन्दू धर्म के धर्माचार्यों, आचार्यों और शंकराचार्यों को आगे आना चाहिये था, लेकिन दिखावे के अलावा कुछ नहीं किया गया। जिसके कारण ऐसे लोगों के प्रति व्यथित लोगों के मनोमस्तिष्क में वितृष्णा या घृणा या दुश्मनी या नफरत पैदा होना स्वाभाविक क्रिया का प्रतिफल है। इसके लिये मेरी राय में व्यथित लोग जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए उनका दमित और प्रताड़ित अवचेतन मन जिम्मेदार है!

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, ऐसे व्यथित लोगों के हालातों का लाभ उठाने के लिये वे लोग आगे आते हैं, जिनके नाम आपने अपनी टिप्पणी में गिनाये हैं। दु:ख तो तब होता है जबकि आप जैसे प्रबुद्ध एवं संवेदनशील कहलाने और समझे जाने वाले लोग भी, व्यथित लोगों की हजारों साल की पीडा को समझते हुए भी उसका स्थायी संवैधानिक निदान करने के बजाय, इन्हें कुरूति, कुप्रथा, सामाजिक बुराई जैसे हल्के शब्दों में आलोचना करके किनारा कर लेते हैं और बीच में ले आते हैं-हिन्दुस्तान और हिन्दू धर्म की अस्मिता को!

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, क्या हिन्दुस्तान का मतलब देश की दबी-कुचली और हजारों सालों से विभेद का सामना कर रही आबादी नहीं है? यदि हाँ तो हिन्दुत्व के सबसे अग्रणी पैरोकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं संघ द्वारा संचालित भारतीय जनता पार्टी के ऐजेण्डे के पहले दस मुद्दों में देश की आधी से अधिक आबादी की पीडा के निराकरण का दर्द क्यों नहीं है? इनके ऐजेण्डे में हिन्दुओं के मन में मुसलामानों के प्रति विरोध पैदा करने वाले तीन मुद्दे-राम मन्दिर, कश्मीर और समान नागरिक संहिता ही क्यों हैं? इनके स्थान पर आदिवासी, दलित और स्त्री को सामाजिक एवं धार्मिक सम्मान और सत्ता तथा देश के संसाधनों में समान भागीदारी प्रमुख मुद्दे क्यों नहीं है?

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, संघ की ओर से कहा जाता है कि संघ के अनेक ऐसे प्रकल्प हैं जो दलित-आदिवासियों और स्त्रियों के उत्थान के लिये बहुत बडे-बडे कार्य कर रहे हैं, लेकिन ऐसा कहते समय वे यह भूल जाते हैं कि संघ स्वयं और भाजपा दलित, आदिवासी, पिछडे और स्त्रियों के संवैधानिक आरक्षण के खिलाफ हैं या कहो मजबूरी में लोकतान्त्रिक मंचों पर समर्थन करते हैं!

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, एक ओर संवैधानिक समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों का खुलेआम सडकों पर उतर कर विरोध किया जाता है, दूसरी ओर दलित-आदिवासियों के क्षेत्रों में जाकर उनकी सेवा करने का दिखावा (क्षमा करें मेरे पास इस कार्य के लिये इससे अधिक उपयुक्त और सरल कोई शब्द नहीं है) किया जाता है।

    आदरणीय श्री जीत भार्गव जी, क्या आप समझते हैं कि किसी भी समाज के लोगों में समानता एवं सम्मान के भाव के पैदा हुए बिना एकजुटता और समरसता पैदा हो सकती है? यदि हाँ तो आप बतायें कि कैसे? मैं खुले दिल से आपका और आपके विचारों का स्वागत करने को तैयार हूँ!

    शुभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  6. डॉ. मीणा साहब और डॉ. राजेश जी, आपका धन्यवाद.
    मीणा साहब आप एक प्रबुद्ध लेखक और समाज सेवी है. आपको कई बार पढ़ता रहता हूँ. हिन्दू समाज में समरसता के लिए आपकी चिंताओं से अवगत होता रहता हूँ.
    आज हिन्दू समाज काफी हद तक जातिवाद की सीमाओं से कही आगे बढ़ चुका है. और जहां भी जातिवाद चरम पर है वहां समाज का ताना-बाना गर्त में है, चाहे वह तथाकथित सवर्ण हो या तथाकथित दलित.
    इसलिए समरसता आज दोनों की जरूरत ही नहीं बल्कि मजबूरी भी है.
    अब सवाल ये है की यह समरसता आये कैसे. किसी कथित अगड़े द्वारा कथित पिछड़े को गाली देने या कथित पिछड़े द्वारा कथित अगड़ो को गाली देने से समरसता आने से रही.
    इसके लिए हमें अपनी शंकाओं का समाधान और संवाद का माहौल कायम करना होगा. अपने धर्म ग्रंथो को सही परिपेक्ष्य में देखना होगा. हमें अंग्रेजो और गैर-हिन्दुओ के नजरियों से धर्म ग्रंथो को नहीं देखना चाहिए. क्योंकि अंग्रेजो समेत गैर-हिन्दुओ के निहित स्वार्थ रहे है. वह हमेशा विभाजन का खेल खेलकर हिन्दू समाज को एक-दूसरे के सामने खडा करने की साजिश करते रहे है. अंग्रेज तो चले गए लेकिन बदले में मिशनरिया आ गयी है. मिशनरियो के जरिये गुमराह हुए हिन्दू दलित ईसाई बनाने के बाद भी वहा जलालत के शिकार है. इस्लाम के भी सय्यद, पठान,मुग़ल या शेख ही राज कर रहे है, और अंसारी, जुलाहे आदि पिछड़ी जातिया कतार में पीछे ही है. महिलाओं का शोषण इस्लाम में आये दिन होता रहता है. चर्च भी यौन शोषण में सबसे आगे है.
    यहाँ इस्लाम और ईसायत का उदाहरण देकर मै हिन्दू समाज में व्याप्त बुराइयों को जायज नहीं ठहरा रहा हूँ, लेकिन सिर्फ कहना चाहता हूँ की जाती और लिंग के नाम पर सर्वत्र थोड़ी बहुत बुराइया है. ऐसे में हिन्दू समाज में व्याप्त बुराइयों को दुरुस्त करने की बजाय हम एक दूसरे को कोसते रहे तो कब उद्धार होगा.
    यहाँ हम में से कई पाठक इसा लेख के लेखाका समेत डॉ. राजेश कपूर और पुरोहितजी को कोस रहे है. क्या इससे समाज ठीक हो जाएगा. अगर गाली देने से किसी का भला होता तो मायावती-पासवान-उदयराज-कामराज और रणवीर सेना कभी के देश और समाज का कल्याण कर लेते.
    आशा है आप मेरे मंतव्य को समझेंगे और इस दिशा में सकारात्मक नजरिया रखते हुए समरसता का मार्ग प्रशस्त करेंगे.

  7. जीत भार्गव जी आप की सार्थक व बुधिमत्तापूर्ण टिपण्णी पढ़ कर विश्वास बढ़ा कि कुछ लोग हैं जो बात को सही ढंग से समझते हैं. बड़े महत्व की बात यह है कि इतिहास की सही जानकारी के बिना घटनाओं का सही आकलन कभी भी संभव नहीं हो सकता. देश का दुर्भाग्य यह है की एक तो इतिहास का अध्ययन करने वाले ही बहुत कम लोग हैं. और अगर हैं भी तो उन्हें देश के दुश्मनों द्वारा लिखा, भारत के दुश्मनों-आक्रमणकारियों, भारत को बरबाद करने वालों का इतिहास यह कह कर थमा दिया जाता है की यह भारत का इतिहास है. अब ऐसे झूठे इतिहास को पढ़ कर कोई कैसे सही निष्कर्ष निकाल सकता है. यही कारण है कि विदेशी आक्रमण कारियों की प्रशंसा व भारत की आलोचना से भरा JHUTHAA इतिहास पढ़ कर अनेक देशभक्त भी भ्रमित हो जाते हैं.
    सही इतिहास की जानकारी के लिए मुझे अपने इतिहास अध्ययन के ३०-४० साल के जीवन काल में जो सर्वोत्तम पुस्तक मिली है वह है———————–
    ” भारतीय इतिहास का पुनर लेखन एक प्रवंचना ” इतनी सरल, सम्पूर्ण व ज्ञान वर्धक पुस्तक मैंने अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं देखी. इसके इलावा इतिहास पर कोई सबसे प्रमाणिक और सबसे महत्वपूर्ण काम हुआ है तो वह है गांधीवादी विचारक श्री धर्मपाल जी का दस पुस्तकों का संच. यूरोपीय और मुस्लिम इतिहास के षड्यंत्रों को इतने ठोस ढंग और प्रमाणिक ढंग से उधेडा है की कोई इसके तथ्यों को हिला नहीं सकता. अंग्रेज़ी से गुजराती व हिन्दी में इन १० पुस्तकों का अनुवाद हो चुका है. SARW SEWAA SANGH, WAARAANASEE से मुझे यह साहित्य MILAA है.
    धर्मपल जी का साहित्य विद्वानों के लिए अधिक उपयोगी और भाषा में थोड़ा जटिल है. पर रघुनन्दन प्रसाद द्वारा लिखित ‘ भारतीय इतिहास का पुनर लेखन एक प्रवंचना’ की भाषा बड़ी सरल और प्रवाहमान है. केवल यह एक पुस्तक पढ़ कर फिर कोई BHRAM भारत के इतिहास को समझने में नहीं रह जाता. खेद यह है की अभी यह पुस्तक समाप्त है, उपलब्ध नहीं. बाबासाहेब अप्ते स्मारक समिति, झंडेवालान से यह पुस्तक छपी है.

  8. तमाम टिप्पनिकारों ने मूल आलेख की ऐसी दुर्गति करी है की अब एक दूसरे से कह रहे हैं की ये मेरा नहीं है, जिसका है {त्रिपाठी जी } वे मौन हैं .

  9. श्री जीत भार्गव जी,
    नमस्कार।

    आपने बहुत ही तार्किक तरीके से वेदों के अनुवाद को गलत सिद्ध करने और डॉ. राजेश कपूर जी से एक हजार प्रतिशत सहमत होने का उल्लेख किया है। जबकि सौ प्रतिशत सहमत होने और एक करोड प्रतिशत सहमत होने में मेरे विवेक और ज्ञान से कोई अन्तर नहीं हैं। अपनी बात कहने का सबका अपना-अपना तरीका होता है।

    आपके माध्यम से मैं उन सभी विद्वजनों से विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ, जो कथित रूप से वेदों के अनुवाद को गलत या भ्रामक मानते हैं कि वे स्वयं ही सभी वेदों, पुराणों, उपनिषदों और अन्य हिन्दू धर्मग्रन्थों का आम बोलचाल की, आमजन के बीच वर्तमान में प्रचलित भारतीय भाषाओं में सरल अनुवाद क्यों नहीं करते हैं? जिससे कथित रूप से अंग्रेजों द्वारा भ्रामक एवं गलत अनुवादित इन ग्रन्थों से आज की पीढी दिग्भ्रमित नहीं हो। भारत की आजादी को इतना समय गुजर चुका है, जिसमें यह कार्य सैकडों बार किया जा सकता था।

    यदि ऐसा किया जाता है कि हिन्दू एकता में उल्लेखनीय सुधार होगा और वेदों एवं धर्मग्रन्थों के आधार पर जो विचार भिन्नता है, उसमें स्वत: ही मतैक्य पैदा होगा।

    मैं तो यहाँ तक कहना चाहूँगा कि इन धर्मग्रन्थों का अनुवाद ऐसे तटस्थ लोगों के एक समूह से करवाया जाये, जिस पर किसी भी पक्ष या वर्ग या वर्ण के समर्थक होने का कभी भी आरोप नहीं लग सके। क्योंकि वर्तमान में हर वर्ग और हर वर्ण में संस्कृत को जानने वाले हैं। जिससे यह विवाद हमेशा को समाप्त हो जाये।

    यदि इस कार्य में आर्थिक समस्या है तो इसके लिये एक कोष की स्थापना की जावे। जिसमें सभी हिन्दुओं का अंशदान संग्रहित किया जावे, इससे भी हिन्दू एकता एवं समरसता में वृद्धि होगी। हमें नकारात्मक के बजाय सकारात्मक पहल भी करनी चाहिये।

    आशा है विद्वजन सकारात्मक रूप से इस विचार को आगे बढाने के लिये चिन्तन करेंगे।
    शुभकामनाओं सहित।
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    ०९८२८५-०२६६६

  10. डॉ. राजेश कपूर से १०००% सहमत..
    ”* अंग्रेजों को हिन्दुओं को धर्मान्तरित करने में सफलता नहीं मिल रही थी. तब उन्होंने इसके कारणों को जानने का प्रयास किया तो पता चला की हिन्दू समाज ब्राह्मणों के कहने से चलता है. तब हमारेब्राह्मण बड़े ज्ञानी, तपस्वी, त्यागी और संयमी होते थे. सारा हिन्दू समाज ब्राह्मणों की तपस्या, ज्ञान व त्याग के कारण उनके कहे अनुसार चलता था. इस बात से ईसाई मिशनरी बड़े चिढ़ते थे. तब ब्राह्मणों को अपमानित, प्रताड़ित और पतित बनाने के प्रयासों की शुरुआत हुई. उस शत्रु-षड्यंत्र का शिकार बन कर अगर हम ब्राह्मणों को अपमानित करें तो यह तो अपने समाज के शत्रुओं की सहायता करना हुआ. वैसे भी अकारण किसी समाज या वर्ग को अपमानित करने वाली भाषा बोलना असभ्यता, अन्याय और मुर्खता व दुष्टता की बात नहीं है क्या? बिना किसी आधार या प्रमाण के ब्राह्मणों को अपमानित करना सरासर अन्याय पूर्ण है. कुछ कहना ही है तो ये विद्वेष, घृणा फैलाने वाली फतवों की भाषा बंद करके ; जो भी कहना है प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर सही भाषा में कहना चाहिए. वैसे भी सच तो यह है न कि सारा समाज जिस अनुपात में बला बुरा है, ब्राहमण भी उसी अनुपात में अछे या बुरे हैं. इस बात में कोई गलती है तो प्रमाण के साथ बात करें अन्यथा ये समाज तोड़क देश के दुश्मनों की भाषा बोलनी बंद करें .
    #हिन्दू धर्म, हमारे ग्रंथों व ब्राह्मणों को बदनाम करने के सुनियोजित प्रयास हमारे देश के दुश्मनों ने किये हैं, अपनी बात के प्रमाण दे रहा हूँ ———–
    *वेदों का अनुवाद करने वाले मैक्स्मुलर की नीयत क्या थी और उसकी नियुक्ती करने वालों की नीयत क्या थी, ये देखें,
    -ईसाई पंथ के प्रचार के लिए स्थापित बोडन चेयर पर मैक्समुलर की नियुक्ती की सिफारिश करते हुए कलकत्ता के बिशप काटन ने लिखा था, ”…हमारे मिशनरियों को संस्कृत जानने और हिन्दू धर्म शास्त्रों तथा दर्शनों को समझने और हिन्दू पंडितों से उनकी अपनी ही धरती पर उन्हें चुनौती देने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.” ईसाईकरन से जुड़े आक्सफोर्ड के एक सक्रीय सदस्य ‘डा.ई.बी.पुसी’ ने मैक्समुलर को लिखा था,
    ”…आपका कार्य भारतीयों को ईसाई बनाने के प्रयत्नों में नवयुग लाने वाला होगा और और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को अपने को धन्य समझाने का अवसर होगा जिसने आपको आश्रय देकर भारत को ईसाई बनाने के प्राथमिक और दूरगामी प्रभाव वाले कार्य को सरल बना दिया है.” आप समझ रहे हैं न कि आक्सफोर्ड जैसा सम्मानित समझे जाने वाला विश्वविद्यालय भी धर्मांतरण के कट्टरपंथी कार्यों का संचालक , पोषक है.
    स्वयं मैकाले ने वेदों के अनुवाद के अपने गुप्त उद्देश्य को प्रकट करते हुए अपनी पत्नी को पत्र लिखा था कि उसके द्वारा किया वेदों का यह अनुवाद हिन्दू धर्म की जड़ें उखाड़ने वाला प्रमाणित होगा. तब भी इसाईयत का प्रसार न हो तो ये किसका दोष है.
    साफ़ है कि वेदों का अनुवाद केवल हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए करवाया गया था. ये भी साफ़ हो जाता है कि वेदों के अर्थ जान-बूझकर गलत और बुरे किये गए. इसके बिना उनके गुप्त अजेंडे की पूर्ती कैसे होती ?
    इसी गलत नीयत से ब्राह्मणों, हमारे धर्म ग्रंथो को सच-झूठ मिला कर बदनाम करने का षड्यंत्र अनेक दशकों से चल रहा है. अतः अगर हम भी उस षड्यंत्र का एक हिस्सा नहीं तो गैरजिम्मेवार, असभ्यता पूर्ण टिप्पणियों से हमें बचना चाहिए.”

  11. सामान्यतया हम जैसा सोचते है वैसी ही हमारी विचारधारा बन जाती है.
    कुछ लोग चीख चीख कर कह रहे है की हमारे देश में (केवल हिन्दू धर्म में) स्त्रियों का आपमान, शोषण होता है. इसका मतलब स्त्रियों को दुसरे देशो और दुसरे धर्मो में हमारे देश से ज्यादा और हिन्दू धर्म से ज्यादा सम्मान मिलता है. एक सर्वे करवा लेते है, शास्त्रार्थ को विराम मिलेगा.

    मनुष्य सामाजिक प्राणी है और उसमे पुरुष शारीरिक रूप से सक्षम होने से थोडा स्वभाभिक दम्भी होता है. किन्तु वातावरण, परिवेश और सामाजिक संस्कृति का उसपर प्रभाव पड़ता है. हिन्दू धर्म में हमेशा से स्त्रियों को पूर्ण सम्मान मिलता है. हां पिछले हजार बारह सो सालो की गुलामी ने सामाजिक ढांचा को बहतु बदल दिया है. हजारो जहाज, हजारो लाखो ऊँचो, घोड़ो में भर भर कर सोना चांदी, जवाहरात जिस देश से ले जाया गया हो वोह गरीब तो हो ही जाएगा, जाहिर खाली पेट जो न कराय. किन्तु कुछ लोगो के द्वारा किये गए कार्य से पुरे समुदाय को बदनाम नहीं किया जा सकता है.

    ठीक है अगर हमारे पुर्वेजो में कुछ ने महिलाओं को प्रतारित किया है तो आप जिंदिगी भर ढोल नगाड़े बजा बजा कर लोगो को बताते रहोगे या उनकी गलती को सुधारने की कोशिश करोगे.

    जैसे की हिंदी परिवार का बच्चा हिंदी बोलेगा, बंगाली परिवार का बच्चा बंगाली बोलेगा और अन्य भाषी परिवार का बच्चा उसी परिवार की भाषा बोलेगा क्योंकि बचपन से वोही देखता, सुनता और सीखता है.
    जिस बच्चे को उसकी माँ, दादी ने लाड प्यार के साथ और सख्ती से बचपन से यह सिखाया हो की महिलाओ की रक्षा करना, इज्जत करना उन्हें सम्मान देना – वह शादी के बाद भी अपनी पत्नी को सामान देगा चाहे वोह किसी भी धर्म का हो.
    इस लेख को लिखने के लिए श्री त्रिपाठी जी को धन्यवाद. हिन्दू धर्म पर प्रकाश डालने के लिए डॉ. प्रो. मधुसूदन जी का धन्यवाद.

  12. इस विमर्श के सन्दर्भ में जितने भी भाई बहिनों ने सहभागिता की है उन सबकी चिर स्थाई पुस्तिका के रूप में इन टिप्पणियों को सम्पादित करने का प्रयाश किया जाना चाहिए ….पृष्ठ भूमि में राजीव त्रिपाठी का आलेख हो और उपसंहार में दीपाजी की बृहदाकार टिप्पणी ….यदि सम्भव हो तो ……..

  13. यह सही है की यह लेख डॉ. मधुसूदन जी ने नहीं, बल्कि श्री राजीव त्रिपाठी जी ने लिखा है, पाठकों को किसी कारण से भ्रम हो गया है. संभवत; प्रवक्ता के लगातार एडिट करने से ऐसा हुआ हो. श्री दीक्षित जी को इस बात को समझना चाहिए.

  14. दीपाजी की यह बात पूर्णरुपेण सही है कि चाहे कोई भी धर्म हो, उसके ठेकेदारों ने स्त्री को पददलित और दास रुप में रखने के ही कार्य किया है । पुरुषों के समाज ने भद्दे अपशब्द तक तो स्त्री के अंगों के आधार पर गढ़े हैं । येनकेनप्रकारेण कुतर्कों के आधार पर उसे पुरुष से हीन ठहराना तथा पुरुषों द्वारा किये जाने वाले कुकर्मों को उचित ठहराने का कार्य ही धार्मिक व्यवस्थाओं के आधार पर सभी धर्मों में किया गया है । स्त्री थोड़ी भी मुखर हो तो उस पर स्त्री होने के नाते ही प्रहार किये जाने लगते हैं जैसे कि दीपाजी पर किये जा रहे हैं ।

    दीपाजी के साहस की सराहना करने के साथसाथ मैं उन्हें यह स्मरण रखने की सलाह देता हूँ कि स्त्री को देर से ही सही और सीमित ही सही, जितने भी अधिकार प्राप्त हो पाये हैं, उनकी प्राप्ति का श्रेय उन उदार मानसिकता के पुरुषों को भी है जिन्होंने उनके अधिकारों के लिये आवाज़ उठाई । अतः सभी पुरुषों को ग़लत न समझें ।

    जितेन्द्र माथुर

  15. मधुसूदन जी का यह लेख तो खैर एक हाईस्कूल निबंध के ही स्तर का है.मधुसूदन जी ने जितने उद्धरण स्त्री की के महात्म्य के पक्ष में स्मृतियों से दिए है उससे कहीं अधिक स्त्रियों के विपक्ष में यहाँ मिल जायेंगे. एक तो अभी लीजिये
    पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने
    रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा, न स्त्री स्वतान्त्रयामार्हती !! अर्थात स्त्री स्वतंत्रता लायक नहीं है. ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ये सब तदन के अधिकारी बहुत बदनाम है. मधुसूदन जी ने बचाव किया है की राम ने नहीं, तुलसी और वाल्मीकि ने नहीं समुद्र ने कहा. लेकिन समुद्र देवता भी तो हिन्दू संस्कृति के ही अंग हैं या फिर वे भी उसी प्रकार अछूत है जैसे शूद्र और समुद्र यात्रा करने वाले हो जाया करते थे. एक सज्जन ने मुझे बताया की ताड़ना शब्द का अर्थ पीटना नहीं है बल्कि देखना है. तब भी यहाँ वाही मनु वाली ही ध्वनि हुयी ना. स्त्री को देखे रहना पड़ता है. एक बात और ये स्त्री को देवी बना बंद कीजिये तभी उसका भला होगा. देवी बना कर आप उसे ताख पर बैठा दें और रोज़ धूल झड कर पूजा करलें बस वह बुत बनी बैठी रहे और जप्ती रहे भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा देवता है. आप उसे धुनते रहें, घर में रगड़ते रहे, वह बिता वेतन की नौकरानी बनी रहे, आपके दसियों बच्चों की मान बने औए फिर वोह बच्चे कहें मेरे पास माँ है. माँ का रूप पवित्र है. भारत की स्त्रियों का औसत हीमोग्लोबिन ७ होता है जबकि एक स्वस्थ स्त्री का १३ होना चाहिए. हमारी संस्कृति है की घर की अन्नपूर्ण देवी पहले पति और भाछों को खिलाये फिर यदि kuch बचे तो खुद khaye.वोह sabka dhyan rahhe लेकिन koi उसका dhyan न rakhe. vidhvaon की jo durdash hamare samaj में है (banaras में maine swayam dekha है dayaniya sthiti) वह duniyan के kisi desh में नहीं है. USA के samaj की आप chahe jitni burai karo (yahi apne kamre में baithe maithe culture shock jhelte huye) पर वोह samaj अधिक jagah deta है स्त्री को. यहाँ तो kul की pratishtha का bhar स्त्री पर ही dhar diya gaya है. purush jaa कर vyabhichaar kare और स्त्री kul की pratishtha की raksha kare. स्त्री chua choot का khayal rakhe और purusg kisi शूद्र को apni vasana का shikar बना कर apne kartavya का paalan kare. bhai. gargi namak vidushi ने yagyavalkya जैसे rishi से shastrarth किया और jab वे haarne lage तो unhon ने khaha की gargi aise prashn न pooch की tere sir के tukde हो jayen. yah pratyaksh dhamki thi. baad में gargi yagyavalkya ने vivah कर लिया auar gargi ban gayin kul vadhu unki vidwatta vahin samapta हो gaye. वे बस हाईस्कूल के nibandhon में नारी की म्हणता bakhanne के liye ही rah gaye. Aur yagyavalkya ने smritiyan likhin, granth likhed और apne career को badaya.

    • निवेदन: मैंने कई टिप्पणियां इस विषय पर दी है। आप सारी टिप्पणियां पढ कर जो कहना हो, कहे।
      उस टिप्पणीके नीचे रिप्लाय कीजिए। और पूरी, नागरी में टिप्पणी देंगे तो पढने में समय कम लगेगा। कुछ क्रम देकर प्रश्न पूछे, तो और भी अच्छा होगा। कृपया अन्यथा ना लें।

    • दीक्षित जी यह लेख मेरा नहीं है, अर्थात मैं ने नहीं लिखा है।
      anupam dixit says:”मधुसूदन जी का यह लेख तो खैर एक हाईस्कूल निबंध के ही स्तर का है.मधुसूदन जी ने जितने उद्धरण स्त्री की के महात्म्य के पक्ष में स्मृतियों से दिए है उससे कहीं अधिक स्त्रियों के विपक्ष में यहाँ मिल जायेंगे. एक तो अभी लीजिये”

      दीक्षित जी यह लेख मेरा नहीं है, अर्थात मैं ने नहीं लिखा है।

  16. सभी को dhanyavad ,
    sabhi yah janle ki yah DEEPA SHARMA,ke कम से कम 5 Id है और Anuj Kumar,Vinita Raga,,और any कई नाम से isme tippaniya hai,,,,,darasal yah ek pidit mansik bimar hai abhi isne facebook पर इस प्रवक्ता.कॉम के बारे में उलटा-सीधा छापना शुरू कर दिया है |जिस कानून की यह गवाही दे रही है ,उसी में इस खिलाफ प्रकरण दर्ज करना पड़ेगा |यह सामाजिक समरसता को तोड़ रही है,,,,,यह कहीं अपने को शुद्र और कहीं ब्रह्मण बता रही है ,,यह कोई लव नहीं कर रही है क्योंकि कानून का जरा सा जानकर भी sybar crime से बचता है,,डेल्ही और देहरादून में कहीं पर भी इस दीपा शर्मा नाम से जिसके पास टाटा gsm का ip 182 .156 .180 .239 हो ऐसा नहीं मिला है ,,,देहरादून पुलिस इसके बताये फर्जी पते पर तलाशा नहीं है साहब कोई भी ,,,,,,,,इसने कई बार अपना पता अब्जलपुर ,देहरादून कभी अपने पिता का नाम डी.R .RAGa बताया सभी फर्जी है,,,,,,,,,,खैर डेल्ही पुलिस syber crime ब्रांच अपना कम कर रही है,,,,मुझे लगता है एक-अध् पाठक जो इसका समर्थन कर रहे है वो या तो थोडा बहुत बहक गए है |या वो भी इसी के फर्जी I D से भेझे गए है अभी प्रमाणित नहीं हुआ है,,,,,,,,,,,,,,,,राजस्थान वाली दलित बहिन रैगर अजमेर में कभी नहीं थी,,,,,,,,,,,,,,क्योंकि राजस्थान में रैगर समाज बहुत सम्मानित और शुद्रो में बहुत महत्व रखता है आज वोट की राजनीती में इनकी बहुत पूंछ है मई स्वयं उन्हें हर जगह सम्मानित होते देखता हु,,,,,,,,अगर संविधान में धर्म जितने ताकत होती तो आज जो सर्वत्र महापतन सामने खड़ा है यह नहीं होता इस नाते आंबेडकर दुनिया से नक़ल कर उसे बनाकर कोई बहुत अच्छा कार्य नहीं किया है,,,,,,और खेइर वो थे भी प्रारूप समिति के अध्यक्ष मात्र ,,,,संविधान सभा के अध्यक्ष तो डॉ.राजेंद्र प्रसाद थे,,,,,,,,,,,,,अब समय आ गया है की हम इतिहास में हुयी भूलो को सुधार ले ,,और नैतिक शिक्षा अनिवार्य करे नहीं तो यहफर्जी दीपा शर्मा जैसे न जाने और कितने छुपे होंगे ,,,,,,इसे तो सजा कानून दे ही रहा है,पर स्थायी इलाज है की नैतिक शिक्षा की शुरुआत हो जनि चाहिए ,,,,
    “जय भारत “

  17. हे अग्रज ज्ञानी बंधुओं
    “डॉ. प्रो. मधुसूदन उवाच says:
    September 3, 2010 at 12:15 am
    दीपा शर्मा जी– एक बिनती करता हूं। वैसे, बिनती कोई विवशता ना समझें।आपको एक लेख लिखनेकी बिनती, कर सकता हूं? मुझे लगता है, इसमें समय बचेगा।आप स्वतंत्र है, विवशता ना समझें।”
    दीपा जी का नया लेख पढ़ें https://www.pravakta.com/?p=12886&cpage=1#comment-6958
    “डॉ. प्रो. मधुसूदन उवाच says:
    September 3, 2010 at 2:48 am ”
    तो क्या अब राम चरित मानस की सत्यता भी संदिग्ध है.
    “डॉ. प्रो. मधुसूदन उवाच says:
    September 5, 2010 at 9:52 am
    जिस अमरिका में अधिकार के आधार पर समानता के लिए लडा जाता है।…….”
    मुझे मधुसुदन जी का मार्गदर्शन अच्छा लगा हमें सुधार करना होगा अपना भारत बनाने के लिए धन्यवाद मधुसुदन जी .
    आप अग्रज बंधुओं के निर्देशन की प्रतीक्षा में
    आपका अनुज

    • अनुज कुमार जी –के लिए यह व्यक्तिगत संदेश है।

      किसी स्वयंसेवी संस्था के कार्यालय में चले जाइए।पर मुझे संघसे असीम प्रेरणा मिली है, साहजिक है, मैं आपको मेरा व्यक्तिगत सुझाव दूं। न आपको कोई वर्ण पूछेगा, न जाति। आवश्यकता है, कि आपके नगरमें, उनका कार्यालय हो, तो भेंट करें।
      आगे आगे आपही रास्ता खुलता जाएगा।
      मैं गांधीवादी परिवारसे पलकर अनायास संघमें गया, आज तक जो तरक्की कर पाया, उसका श्रेय मैं संघको ही दूंगा।
      अपने जीवन में भी सफलता के लिए आवश्यक महत्वाकांक्षा मैं ने, संघमें सीखी। बिना भेद भाव, बिना उच नीच।जीवन सार्थक अनुभव करता हूं।
      शुभेच्छाएं।

  18. जिस अमरिका में अधिकार के आधार पर समानता के लिए लडा जाता है। बच्चों के लिए भी सोचा नहीं जाता, बच्चे भी बडे होने पर अपने आप को मा बाप के sex के, वासना पूर्ति के By-product मानते हैं।इस लिए मा-बाप का आदर नहीं, न कुछ त्याग है(अपवाद ज़रूर है)। आधे विवाह और परिवार तलाक में नष्ट होते हैं।
    लडकियां डेट में कुछ भी करने को तैय्यार है,(नहीं तो दूसरी तैय्यार है।)( मेक अप इसी लिए खपता है।)कीमत लडकी के लिए बडी भारी होती है।२ लाख (१.६५ लाख, २००५)गर्भ पात हर साल न्यू योर्क में होते हैं।लडका तो स्वैराचारी होता है, बिना जिम्मेदारी मज़े। कौन मूरख शादी करेगा, काफी ब्याह यहां गर्भ के बाद अनिवार्यतः किए जाते हैं।
    इसी लिए भी,यहां भारतीय बच्चे ऐसी कमज़ोर कंपीटिशन की अपेक्षा पढाई में, माता-पिता की छाया में संस्कार और प्रेम पाने से अच्छी पढाई, और उन्नति (तरक्की) कर पाते है।और जो परिवारका पुरुष (ज्यादा तर) यहां की लुभावनी फिसलन पर फिसल गया है, वह परिवारभी (महिला कम दोषी होती है) खतम हो चला है।
    मेरे खद्दर धारी चाचा R S S को बुरा (मुझे नहीं) मानते थे, यहां आने पर शिविर में ले गया, तो स्तंभित हो गए, प्रशंसा करने लगे। भारत, अन्य क्षेत्रों में पीछडा होगा, पर कल्चरमें नहीं। मन खोलके बात रखी है। गीता पर हाथ रखकर कहता हूं। सच्चायी ही लिखता हूं।जो मस्तिष्क में, वही जबान पर, वही कृतिमें, और वही लिखा है।
    कल भारत अगर खाई में गिरा, तो हम आप शायद इस दुनिया में ना हो, पर हमारी अगली पीढी हमे-आपको आदर से नहीं देखेंगी। जीतना है हमें, इन दुष्ट परिस्थितियों से।आपसे हारने में मुझे कोई दुःख नहीं, जीतने में कोई आनंद नहीं। चर्चा बहुत चली, सभी बिंदू रखे गए। कोई भी बिंदू शायद बचा नहीं है।
    वह अफ़साना जिसे अंज़ाम तक लाना न हो मुमकीन॥
    उसे एक खूब सुरत मोड़ देकर छोडना अच्छा॥
    सारा डेटा आपके सामने रख दिया।
    आप बुद्धिमान हैं। निर्णय आप करे। आपका निर्णय ईमानदारी से किया हो, किसे बताए, ना बताए। विषय बहुत चर्चा गया। सभीने अपने विचार रखें। यही जनतंत्र है। और जनतंत्र सफल हुआ। प्रवक्ता भी यही तो चाहता है।

    The divorce rate in India is even quite lower in the villages in India (वाह) and higher in urban parts (पश्चिम की असर)of India. These days divorce rates in India’s urban sphere are shooting up.(पश्चिम की असर)
    Some facts from CIA World book for comparison with US
    –Infant mortality rate -India – 64.9 deaths/1,000 live births (यहां सुधार ज़रुरी है)
    USA -6.76 deaths/1,000 live births
    –Life expectancy at birth-India 62.5 years (इतना बुरा नहीं)
    USA 77.26 years
    –Birth rate-India – 24.79 births/1,000 population (यहां कमी चाहिए)
    USA – 14.2 births/1,000 population
    –Death rate India -8.88 deaths/1,000 population
    USA – 8.7 deaths/1,000 population (समान) है।
    –Divorce rat–US – 50%–India – 1.1%
    देशवासियों आपके सामने C I A का कुछ डेटा देता हूं।
    तलाक का दर १.१ % (भारत){ मेरा भारत वाह } और ५०% अमरिका

  19. दीपाजी,
    (१) आप टिप्पणी ज़रूर दे, पर सारी टिप्पणिय़ां पढ ले। जिससे द्विरुक्ति और समय बचेगा।
    (२) कैसे, विकसन/उत्क्रांति शील निकष पर हिंदुत्व को परखा जाना चाहिए, उसका विवरण मैं कर चुका हूं।
    (३) किसी भी अन्याय के पक्षमें मैं नहीं।
    (४) हम (आपका भी योगदान चाहते हैं)सारी अन्यायी परंपराओं को समाप्त करने में सक्रिय हैं।
    ===>
    (५) केवल, उत्सुकता हेतु, आपके उद्धरण को खोजनेका मैंने प्रयास किया।
    तथ्य प्रस्तुत हैं।( मैं लेकिन ठोस कार्यमें अधिक विश्वास करता हूं।)
    राम भगवान पर ऐसा घिनौना आरोप ?
    क्या “सूद्र पसु नारी…. इत्यादि ” –रामने कहा है?
    उत्तर: नहीं। नहीं। नहीं। तुलसीदास ने भी नहीं।
    (६) रामचरित मानस में ( गोरखपूर)हिंदी पाठ, अंग्रेज़ी अनुवाद (पृष्ठ ५७१)
    रामजी जब समुद्र को लांघने के लिए, आगे बढते हैं, तो समुद्र पहले तो मानता नहीं है, पर बादमें………आप पढे थोडा लंबा है।
    तो निम्न वचन समुद्रने कहे हैं। रामने नहीं/तुलसीदास ने भी नहीं।
    तुलसीदास तो समुद्रने कहे वाक्योंका विवरण लिख रहे हैं। उनका काम रिपोर्टर का है।
    (७)”ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
    सकल ताडना के अधिकारी।”
    प्रश्न:फिरसे, क्या रामने कहा है?
    उत्तर: नहीं।नहीं। नहीं।
    (८) श्री राम विरोधियों को बिनती, “मानस” को ठीक देख ले।
    थोडा कटु कह दिया।
    पर, उद्धरण, ठीक संदर्भसे किया जाए।
    आपको दुःख है, तो सुधार आंदोलन करें।
    कार्यसे बोलिए।
    हम सभी आपका स्वागत करेंगे।
    केवल चर्पट पंजरी हम नहीं बजाते।

  20. हे अग्रज ज्ञानी बंधुओं
    कहाँ चले गए कपूर साहब, मधुसुदन जी ये दीपा जी क्या कह रही हैं पुरोहित जी आप ही आइये. सब लोगों के ढपोर शंख चुप क्यों हो गए ? कहीं ये दीपा इसाई, कमुनिस्ट, मुस्लिम, हिन्दू विरोधी तो नहीं है, क्योंकि शायद ये सही कह रही है? तो क्या जो सच कहता है वो इसाई, कमुनिस्ट, मुस्लिम, हिन्दू विरोधी होता है?
    साधुवाद है दीपा जी आपके लिए
    आप अग्रज बंधुओं के निर्देशन की प्रतीक्षा में
    आपका अनुज

  21. दीपा शर्मा जी– एक बिनती करता हूं। वैसे, बिनती कोई विवशता ना समझें।आपको एक लेख लिखनेकी बिनती, कर सकता हूं? मुझे लगता है, इसमें समय बचेगा।आप स्वतंत्र है, विवशता ना समझें।

  22. हार या जीत के लिए, नहीं, सत्य को ढूंढने के लिए चर्चा चले। आप असहमत हो, तो पढनेका कष्ट ना करें।
    (१) प्रकृति उत्क्रांतिशील है, विकसन शील है(ऍमिबासे मनुष्य तक)।बदलते परिवेश में मनुष्य़ भी बदलते आया है।
    (मेरी समजमें) इस लिए, हिंदू धर्म उत्क्रांतिशील है। वह हर पौराणिक और ऐतिहासिक कालसे समयानुसार बदलते, सुधार करते आया है। इसके कई उदाहरण आपको मिलेंगे।आपत्‌ धर्म भी अल्प काल चलता है।
    इस बदलावका निकष है, निम्न श्र्लोक।
    ॥यस्तर्केण अनुसंधते स धर्मो वेद नेतरः॥ {महाभारत(?) का है} =>॥हिंदी अन्वयार्थ:=> जो तर्क के आधारपर परखा और सिद्ध किया जा सकता है, वही धर्म है,दूसरा नहीं।
    इस लिए हिंदू धर्मको कोई भी पौराणिक या ऐतिहासिक (Frozen in time) घटनाओ से बांध रखना, अनुचित है। अच्छी घटनाओ से ज़रूर सीखे।
    उदा: द्रौपदी के पांच पति थे, इस लिए आज हर लडकी को पांच पतिओं से ब्याहा नहीं जाता।
    इस लिए जिस के अनुसार वह जिएगा, वह स्मृति भी बदलेगी। हमारी १८ स्मृतियां लिखी गई है। मैने नीचे गुजराती सूचि को(समय बचाने) नागरी/गुजराती मिश्रित लिपिमें उतारा है।
    (१) मनु, (२) आत्रेयी (३) वैष्णवी (४) हारितकी (५) याज्ञवल्कि (६) शनैश्वरी (૭) अंगिरा, (૮) आपस्तंबी (९)सांवर्तिकी સ્મૃતિ, (૧૦) कात्यायनी (૧૧) बृहस्पति સ્મૃતિ, (૧૨) પારાશરી સ્મૃતિ, (૧૩) શંखी સ્મૃતિ, (૧૪) लिखीता સ્મૃતિ, (૧૫) दाक्षी સ્મૃતિ, (૧૬) ગૌતમી સ્મૃતિ, (૧૭) શાતાતપી સ્મૃતિ, और (૧૮) વાસિષ્ઠી સ્મૃતિ.
    ==आजके लिए नयी स्मृति (मनु नहीं) ११५० वर्षके गुलामीके कारण बनी नहीं है, पर विवेकानंदजी के विचारों के आधार पर बन सकती है।=हिंदीमें भी बन सकती है।
    ऊर्ध्व दिशामें ही सभीको उपर उठना है। विवेकानंदजी: हिंदू के केवल दो आदर्श (१) ब्रह्म तेज, और (२) क्षात्र वीर्य।
    हम इसी युगांतरी काम में जुटे हुए हैं। ११५० वर्षों की मलिनता, दूर करने में समय लगेगा। डॉ. हेडगेवार जी ने इसे प्रारंभ किया है। आप सचमें तो इस युगांतरी कार्यमें चाहे तो हाथ बटा सकते हैं।बहुत काम है। आपने गिनाया, वह भी।
    ॥अभिव्यक्ति कर्म से हो, न शब्दों से॥हां सत्यको उद्‌घाटित करने चर्चा की जाए।
    सच्चाई के शोधमें हम भी हैं

  23. महोदय नमस्कार , मेरी परीक्षाएं आप सबके आशीर्वाद से अच्छी रहीं ,
    अब हम विषय पर आते हैं ,

    दीपा शर्मा जी के सारे कमेन्ट जो की इस मूल लेख के विरोध में लिखी गयी है, को एक लेख की शक्ल में हमने प्रकाशित किया है, आप सारे कमेन्ट यंहा से पढ़ सकते हैं : https://www.pravakta.com/?p=12886

  24. तीन महिलाओं को निर्वस्त्र कर पीटा
    Aug 31, 02:10 am
    https://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6688381.html
    इलाहाबाद। कोरांव थाना क्षेत्र के नेवादा गांव में तीन महिलाओं ने आरोप लगाया है कि गांव के कुछ दबंगों ने उन्हें बीते गुरुवार को निर्वस्त्र कर पेड़ से बांधकर पीटा है। सोमवार सुबह महिला थाने पहुंची पीड़ित महिलाओं का कहना था कि दबंग उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे थे, जब उन्होंने इसका विरोध किया तो सारी मर्यादा को ताक पर रखकर उनके साथ यह अमानवीय व्यवहार किया गया। पुलिस को सूचना देने पर उसने दोनों पक्षों के खिलाफ शांति भंग के तहत कार्रवाई की। साथ ही जमीन को कुर्क करने के लिए धारा 145 के तहत अपनी रिपोर्ट भेज दी।

  25. श्री राजीव त्रिपाठी जी
    निवेदन है की .लगभग सेंचुरी ही होने जा रही है .और आपने प्रस्तुत आलेख पर शायद ही इतनी टिप्पणियों का अनुमान किया होगा .प्रवक्ता .कॉम ने एक बहुत जरुरी और प्रगतिशील विषय पर शोधात्मक टिप्पणियों को पूरी इमानदारी और कुशलता से प्रकाशित करके सम्भवत; मीडिया में एक कीर्तीमान जैसा बनाया है .सभी टिप्पनिकारो की टिप्पणियों को पुस्तकीय आकार देकर यदि इसे साहित्य जगत में उताराजाए तो कैसा रहेगा ?

  26. 4. और हिन्दू धर्म के रक्षकों से हम जैसों की रक्षा कैसे संभव है?
    अगर हम अधर्मि है तो हमारि रक्षा कोयी नही कर पायेगा,सारे साधन होते हुवे भी रावण मारा गया था,अगर हम शोषित अनुभव करते है तो जैसा पहले लिखा हिन भावना त्याग कर योग्य बनो,सर्मथ बनो,सब नत्म्श्तक हो जयेन्गे।

    • माननीय संम्पादक महोदय
      आपका धन्यवाद के आपने नारी की दशा को अन्य लेख में भी दर्शित किया है
      https://www.pravakta.com/?p=11024&cpage=1#comment-६७०२
      भाई की जिंदगी के लिए बेचती रही जिस्म

      -संजय स्‍वदेश

      नागपुर।

      गत शनिवार को शहर की बदनाम गली में 15 लड़कियों के साथ पकड़ी गई खुशबू (परिवर्तित नाम) अपने भाई रोहित की जिन्दगी बचाने के लिए नागपुर में 8 महीने से गंगा जमुना की कश्मीरी गली में जिस्म फरोशी का काम कर रही है। पकड़े जाने के बाद यह रहस्य खुशबू ने उजागर किया कि उसका छोटा भाई रोहित इन लोंगो (धंधा कराने वाले) के चंगुल में था। उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी थी। अगर वह उनका कहना नहीं मानती तो वह अपना भाई हमेशा के लिए खो देती। खुशबू के माता-पिता पहले ही मर चुके हैं। खुशबू को मुंबई से लेने पुलिस के साथ उसका मौसा आया था। खुशबू का छोटा भाई रोहित भी अपने मौसा के साथ नागपुर आया। रोहित को दिल्ली में मीनाबाई के भाई के घर रखा गया था। मीनाबाई सतीश कर्मावत (40)कश्मीरी गली का एक ऐसा नाम हैं जहां गरीब मजबूर लड़कियों को खरीदकर उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनसे जिस्म फरोशी का धंधा कराया जाता है। मीनाबाई मूलत: आगरा की पिपरेटा खेडागर की रहने वाली है। मीना के साथ पुलिस ने अनारकली, कृष्णा, मुन्नीबाई टिकाराम कालफोर, रुखसाना, कश्मीरी बाई, आशा बाई, स्नेहल बुद्धम राऊत ने खुशबू को जबरन धंधे में उतारा था। पुलिस मीनाबाई के एक भाई की तलाश में आगरा भी गई थी। लेकिन वह वहां नहीं मिला।

      मीनाबाई के घर से नागपुर क्राइम ब्रांच और लकडग़ंज पुलिस ने संयुक्त रुप से कार्रवाई कर लड़कियों को पकड़ा। पुलिस ने कार्रवाई के दौरान ग्राहक शैलेष मिलिन्द मेश्राम, आदाम इसा खान वर्धा तथा राकेश यादवराव राऊत को गिरफ्तार किया है।

      मीनाबाई के घर से मिली लड़कियों में कई कम उम्र की लड़कियां भी हैं। मीनाबाई के पास खूशबू 8 महीने से है। पुलिस सूत्रों के अनुसार देह व्यापार का धंधा इतनी गहराई तक पैठ जमा चुका है कि एक धंधे वाला दूसरे धंधे वाले के पास अपनी लड़कियों को भेजता है और उसकी लड़कियों को अपने पास रखता है। इससे ग्राहकों को हर बार नई लड़की आई है का झांसा दिया जाता है। ग्राहक भी दलालों के झांसे में आ जाते हंै। नागपुर की गंगा जमुना में छापा मार कार्रवाई के दौरान खुशबू जब पुलिस के हाथ लगी तो एक ुपुलिसकर्मियों को उसने अपनी कहानी बताई कि उसे इस धंधे मेंं आखिर किस तरह ढकेल दिया गया। उस पुलिसकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि खुशबू मूलत: मुंबई की रहने वाली हैं। उसके माता-पिता की मौत के बाद छोटे भाई की जिम्मेदारी उस पर आ गई। वह कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई। उन लोगों ने उसके छोटे भाई रोहित को अगवा कर नई दिल्ली भेज दिया। खुशबू को धमकी दी गई कि अगर वह धंधा नहीं करेगी तो उसके भाई को मार दिया जाएगा। वह मजबूर हो गई। 8 महीने पहले उसे नागपुर की मीनाबाई के पास भेजा गया। उसे यकीन दिलाने के लिए कि उसका भाई जिन्दा है। रोहित से खुशबू की बात कराई जाती थी। खुशबू के मौसा को जब यह बात पता चली कि वह नागपुर में मीनाबाई के पास है तो वह मुंबई अपराध शाखा पुलिस की मदद ली। मुंबई पुलिस ने अपराध शाखा नागपुर पुलिस के फोन पर जानकारी दी कि मुंबई से एक लड़की को अगवा कर जिस्म फरोशी के धंधे में लगाया गया है। खुशबू की पहचान के लिए उसका मौसा भी मुंह पर कपड़ा बांधकर नागपुर की बदनाम गली में पुलिस के साथ पहुंचा। मीनाबाई के देहव्यापार अड्डे पर जब नागपुर क्राइम ब्रांच ने लकडग़ंज पुलिस के साथ छापा मारा तो वहां पर खुशबू भी मिली। उसके मौसा ने उसे पहचान लिया। इस घटना की खबर मिलने पर रोहित को मीनाबाई ने पकड़े जाने के डर से आजाद कर दिया। रविवार को रोहित भी नागपुर पहुंचा। खबर लिखे जाने तक रोहित लकडग़ंज थाने में थानेदार मकेश्वर के समक्ष था। थानेदार मकेश्वर यह सच जानने की कोशिश कर रहे थे कि खुशबू ने जो आपबीती जो बताई उसमें कितना सच और कितना झूठ है।
      उपरोक्त में देखने वाली बात ये है के हिंदुत्व के ठेकेदार यहीं से जन्म लेते हैं और देश को सुधारने नारी मुक्ति सम्मान का ठेका लेते हैं अपने शहर को घर को सुधर नहीं पाए ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है के हिन्दू धर्म में नारी का क्या हश्र हुआ है और क्या होने वाला है
      आपका अनुज

      • विवेकानंद जी कहते हैं, कि हम सभी, (उसमें आप भी आते हैं) इस स्थितिके लिए जिम्मेदार हैं। समस्याएं सुलझाने के लिए कोई ठेकेदार नहीं हैं।कोइ किसी ठेकेदार को वेतन देता नहीं है। सारे अपना यथा शक्ति श्वेच्छांसे, योगदान करते हैं।
        आप यदि कहेंगे कि, समस्याएं हम सभीकी हैं, बहुत सारी हैं। आप सही हैं।
        कंधेसे कंधा लगा कर समस्याओंको जितना हो सके, सुलझानेका प्रयत्न करना हमारा काम है, आपका भी। बहुत सारे लोग दिन रात उसीमें लगे हैं। जो स्थिति है, आपके भी सामने हैं, हमारे भी सामने हैं। प्रयास कम पड रहा है, क्यों? क्यों कि हाथ बटानेवाले कम है। प्रश्न पूछनेवाले अधिक हैं।
        आप यदि केवल प्रश्न पूछेंगे, तो आप पराए हैं। आप भी इसी काम में अपने बन कर साथ दे, तो अपने हैं। पसंद आप करें। परायोंको उत्तर देने के लिए हम बाध्य नहीं हैं।
        Reply

        • अग्रज बंधू को अनुज का प्रणाम
          आप जिसको पसंद करना चाहें वो आपका है जिसको नापसंद करें वो पराया. किसी भी बात पर उत्तर वो लोग देते हैं जो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. और जो जिम्मेदारी समझते हैं उन्हें जिम्मेदारी समझाने की जरूरत नहीं होती. कोई भी सुधार अपने से प्रारंभ होता है . अगर हमारे घर में कोई काम गलत हो रहा है तो हम अपने मोहल्ले मैं भी किसी और को रोकने का हक खो बैठते हैं. अगर हम मोहल्ले में किसी को रोकेंगे तो वह अनुज होकर भी यही उत्तर देगा. हे अग्रज आप आदेश करें हम आप के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलने को तैयार हैं.
          आपका अनुज

  27. हिन्दू धर्म का पालन करने के लिये हम जैसे लोगों को क्या करना चाहिये?

    अपने अपने कर्तव्यो का पालन करना,ये कर्तव्य क्या है वो अपने बुजुर्गो से,गुरु से शास्त्र से सिखना।कुछ एक तो सनातन सत्य है जैसे सत्य आचरण करना,चरित्र्वान बनना,विनयशिल होना आदि।जितना चाहो विस्तार कर सकते हो एसे,गीता मे मिल जायेगा,नही तो किसि ब्रह्म्निश्ट गुरु कि शरण मे सिख सकते है.

    अब हिन्दू धर्म की कैसे रक्षा हो सकती है?
    धर्म कि रक्षा हम क्या करेन्गे,धर्म हमारि रक्षा करता है,अपने कर्त्व्यो का पालन करना हि धर्म कि रक्षा है.

  28. . हिन्दू धर्म है क्या?
    जो हिन भावना को दुर करे और हिन्सा ना करे वो हिन्दु।
    जो धारण करें वो धर्म।
    जो ऎसि बात बतायें,जो भारत से जन्मा हो एसा धर्म,हिन्दु धर्म।
    एसमे कोन बडि बात थी जो समझ मे नही आयि???

    • what is Hindu? its not a religion its a culture which founded in indian subcontinental. every person of indian subcontinental is hindu. are u Brahman? how can u describe hindu a religion. i think the religion is Sanathan

      • If you seems that “dharm” and “religion” same then you are doing mistake,you right every indian is hindu origion,but i am saying about hindu dharm,

  29. बेगम अंजना की प्रस्तुत सन्दर्भ में -नारी विमर्श अंतर्गत कारुणिक काव्यात्मक abhivykti se में abhi bhoot hun .इस भयावह तस्वीर को समग्र मानवता तक पहुँचाने का महत एवं पुनीत कार्य हेतु प्रवक्ता .कॉम को धन्वाद .

  30. ॥एक बहना की यह सिसकियां॥

    आप तो आवाज़ खुले आम उठा सकती हैं,
    कुछ मेरी आवाज़ भी उठाइए।
    अंधा इन्साफ़ ?
    मेरी सिसकियां ?
    हऽहंऽहऽहऽहं ………

    चार चार बेगमें मर्दोंको?।
    और, चलती फिरती जेल बेगमको?।१।

    आंख मूंद ले ज़रा, औरत बन जा।
    फिर देख, तेरे सोचका मज़ा।२।

    ज़रा, हरा चश्मा उतारकर तो, देख ।
    अंडेसे बाहर निकल कर तो, देख। ३।

    बुर्क़ा नहीं, ये चलती फिरती जेल है।
    हिम्मत है ? इक रोज़ पहनके देख!।४।

    माँ-बहनो को, इतना भी, क्यों सताया?
    मर्द, है तेरा इन्साफ़, अधूरा देख।५।

    दुनिया तो पहुँच चुकी है, चाँद पर।
    तु इक्किसवी सदीमें, झाँककर तो, देख।६।

    -कब तक रहेंगे, छठवी सदीमें कुढते ?
    कब तक रहेंगे लेते, दुनियासे पंगा?।७।

    कहे तो किनसे कहे? ।
    कठ पुतलियां, वोटोंपर बिक चुकी।८।

    उस परवरदिगार के नाम पर?
    आतंक, काला धब्बा,
    है हिम्मत ? तो देख।९।

    —- बेगम अँजना

    • तम गुण में गिर जाता जब मानव,मानव नाम काम करता दानव।
      असुर है वो जो जननि को कष्ट देता है,
      जिनके चरणों में “जन्नत” है ऎसि माँ को पीडित करता है।|
      खुदा का नूर है हर इक में क्या “मर्द या क्या औरत जात”।
      फ़िर क्यो आयी ये,परदे-बुर्के,शोषण-असमानता जैसि बात॥
      धर्म नहीं है कपडें में,धर्म नही है दाडि-चोटि में।
      बाह्य प्रतिक है ये सारे,जो जोडे अंरमन को वो ही अल्लाह को प्यारे॥
      “माँ”कि एक”आह!” ही राख कर देती महलो,नगरो को।
      फ़िर एन करोडों “माँओं” कि “आहे” को जो ना देख क्या हिन्दु क्या मुस्लमां??

  31. Vijay and purohit ji.
    Namaskar,
    bhrata shri, mere exam hone ki wajah se me haridwar me hun. Yadi kisi ko mere se sambandhit koi aaptati he to wo mujhe bhalla college haridwar mayapur me samprak kar sakte hen. Me apke sabhi sawalo ka jawab dungi. Lekin pehle meri pariksha nipat jayen. Me apko ravivar ko lok sewa ayog haridwar me mil sakti hun. Yadi kisi bhai ko koi shikayat ya sujhav ho to den. Lekin me abhe 4 din aur aapki comment ka jawab nahe de paungi. Mobile se answer roman me likha jata he jo mujhe pasnd nahee. Tb tak aap apni is behan ke liye prarthna kare. Ki mujhe safalta mile.
    Dhanywad

    • कोइ मेरी भी सुनेगा?
      अंधा इन्साफ़ ?
      चार चार बेगमें मर्दोंको?।
      और, चलती फिरती जेल बेगमको?।१।

      आंख मूंद ले ज़रा, औरत बन जा।
      फिर देख, तेरे सोचका मज़ा।२।

      ज़रा, हरा चश्मा उतारकर तो, देख ।
      अंडेसे बाहर निकल कर तो, देख। ३।

      बुर्क़ा नहीं, ये चलती फिरती जेल है।
      हिम्मत है ? इक रोज़ पहनके देख!।४।

      माँ-बहनो को, इतना भी, क्यों सताया?
      मर्द, है तेरा इन्साफ़, अधूरा देख।५।

      दुनिया तो पहुँच चुकी है, चाँद पर।
      तु इक्किसवी सदीमें, झाँककर तो, देख।६।

      -कब तक रहेंगे, छठवी सदीमें कुढते ?
      कब तक रहेंगे लेते, दुनियासे पंगा?।७।

      कहे तो किनसे कहे? ।
      कठ पुतलियां, वोटोंपर बिक चुकी।८।

      उस परवरदिगार के नाम पर?
      आतंक, काला धब्बा, है हिम्मत ? तो देख।९।
      —- बेगम अँजना

    • महादेव आप को सफ़लता और सुख प्रदान करें,आपके ग्यान में एसि तरह व्रिधि करता रहे ताकि आप गार्गि,मैतरिय,सुर्या भारति और मादालसा कि पम्परा का निर्वाह कर्ति रहे और देश,समाज और धर्म के लिये उपयोगि सिध हो……………………..

  32. मित्र विनय देवन जी

    आपने बहन प्रियंका की पीड़ा पर दुनियां भर की बातें तो लिख दी, लेकिन आपने पीड़ित की तकलीफ के कारणों और उसके साथ घटी घटना का और उसके यहाँ पर धार्मिक/राजनैतिक संगठनों के लोगों के कुकर्मों के बारे में भी तो कुछ नहीं लिखा कुछ तो लिखो.

  33. sabase badi samsya ye hai ki hame pata hi nahi hai ki ved kya kahata hai smriti ke bare me,jati ke bare me ya,stri-purush ke bare me ya or kisi bat ke bare me.
    jab prastavit lekhak ne ye batatane ka prayas kiya ki hamare shashtr kya sochate hai stri our purush ke bare me,hamari parmpra kya apeksha rakhati hai hamase stri ko dekhane ki drishti me to us par katu tippanni ka kya ouchitay???
    ye akatay rup se saty hai ki jis samay enhe anubhut kiya gaya tha us samay koe jatigat vyvstha nahi thi balki “varn vyavstha” thi,sare ke sare varn sambhdi tatv varn par hi lagu ho sakate hai,par aaj hame ek bhi varn apane rup me nahi dikhayi deta,fir apani agyanata ko smritkar par v brahamano par aropit karane ka koe labh nahi hai,brahaman aaj varn nahi ek jati ho gaya hai,jisaka shashta uchch svr se nishedh karate hai,jise sunana ho vo gita me,smriti me ved me vivekanand me adhi adhi me sun sakata hai.
    ab bat ati hai smriti ki to mene pahale bhi likha hai smriti praman nahi hai,shruti praman hai,es yug ki smriti gita hai na ki manu smriti,smriti pratey yug ke hisab se parivartit hoti hai par “the univarsal truth” hamesha saty rahate hai jo saman rup se smirityo me mil jate hai.
    aaj bhi nari ko mata our bahan ka hi darja hai,jis manu ko bar bar kosa jata hai vo manu svyam kahate hai nari hamesha hi smmaniy hai har avstha me.
    yaha par anek logo ne atyacharo ka varnan kiya hai,kya kabhi kisi bhi shashtr me en atyacharo ka samrthan milata hai????agar kisi ko mil bhi jaye to agale hi kshan ese sloko ko un un shashtro se bahar karane me hindu samaj ko koe sankoch nahi hai our na tha,hamare ved didim goshana karate huve kahate hai :eshavshymidam sarvam……”ya gita kahati “eshavar sarv bhutanam hriday tishati arjun..”” ya achary shankar kahate hai “chandalostu s tu divjostu gururityesha manisha mam” eska arth karate huve mere guru kahate hai ki “he who is possed pf such strong realisation,be he of the lowliest or of the holiest birth,he is the guru.this is my considered opinion,”
    eska arth sidhs sidha sa nikalata hai ki vrtaman ke jativad ko ved,smiriti ya shankar par aropit karana un mahan acharyo ke sath anyaya hai jo bar bar manushy matr me eswar ki pusti kar rahe hai.
    to samaj me etana bhed kto???etna jativad kyo???dharm ke nam par dukandari kyo??
    to uska javab svyam gita deti hai ki jab manushy tam gun se achchhadit ho jata hai tab vo es prakar ka acharan karane lagata hai,aaj sara bharatvarsh tamo gun se achchhadit ho raha hai,tabhi to manav matr ka dam bharane vala,balika me bhuvaneshvari ka darshan karane val ek chhoti balaika ko chotil karata hai,kya ese kisi vykti ko “pandit” kaha ja sakata hai???ved nahi kahata,smriti ya shankar ya manu nahi kahate,par samaj jarur kahata hai,lekin samaj to ravan ke samane bhi chup tha our kans ke samane bhi,our to our kuchh logo ko chhod diya jaye to mugalo our angrejo ke samane bhi natmashtak tha,eska arth hai samaj ki vrti vichitr hai,shoshit ko ya pidit ko pidit hote dekhane ki hai chahe vo kahi ka bhi samaj ho par ha agar koe vivekanand ban jaye ya ambedakar ban jaye to usake pichhe ho leni ki bhi hai,atah samaj ki galati ko dharm par dalana uchit nahi hai.
    es samaj ko vyvsthit banane hi to anek logo ne apane jivan ko nyochhavar kiya hai chahe vo ram,krishn ho ya gandhi,savrkar ya hedgevar.
    aneko vrsho ki gulami ne hamare hindu samaj ko ershayalu,kalahpriy{apas me},dabbu bana diya hai,ye vikratiya hategi,aaj se 20 sal pahale jitani thi utani aaj nahi hai.en vikritiyo ko hi to dhona hai par es prakar ki apane vshtr nahi fate,katu-vikshipt-tarkhin-vyrth ki alochana karane se hatati hoti to ab tak to ja chuki hoti,nahi gayi kyo???kyoki parivartan prem se ata hai dhoshpatti se nahi,damakiyo,galiyo,andh virodh se nahi.ek matr sneh se hi manushy badalata hai.
    “rudi kuruti se do dale ma ka anchal mal mal,chal nirantar chal nirantar chal chal………….”

    • आदरणीय पुरोहित जी,

      आपने परिश्रम से सामग्री जुटाई है, जिसका लक्ष्य सभी पाठकों तक अपने विचार पहुंचना है. आप किसी कारण से अपनी टिप्पणी रोमन हिंदी में लिखते हैं, जिसमें अनजाने में अनेक ऐसी रह जाती हैं, जिनके कारण लेखन का सम्पूर्ण उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता है.

      अकेले आपके मामले में ही यह नहीं है, बल्कि रोमन हिंदी लिखने वाले सभी मित्रों के लेखन में ये समस्या है.

      इन दिनों नेट पर बहुत सारे टूल्स उपलब्ध है, जिनसे आपके रोमन में लिखे को साथ साथ हिंदी में बदला जा सकता है, जिसे पोस्ट करने से पूर्व पढ़कर आप एडिट भी कर सकते हो.

      रोमन में लिखने वाले सभी मित्रों को इस ओर ध्यान देना चाहिए, जिससे हम हिंदी को भी सम्रद्ध कर सकें.

      यहाँ पर मैं आपके लेख को परिवर्तक के जरिये परिवर्तित करके प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे आपको ज्ञात हो सकेगा की आपका लिखा गया हिंदी में क्या पढ़ा जा रहा है :-

      -0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-

      सबसे बदि सम्स्य ये है कि हमे पता हि नहि है कि वेद क्य कहता है स्म्रिति के बरे मे,जति के बरे मे या,स्त्रि-पुरुश के बरे मे या ओर किसि बत के बरे मे.
      जब प्रस्तवित लेखक ने ये बततने का प्रयस किया कि हमरे शश्त्र क्य सोचते है स्त्रि और पुरुश के बरे मे,हमरि पर्म्प्र क्य अपेक्शा रखति है हमसे स्त्रि को देखने कि द्रिश्ति मे तो उस पर कतु तिप्पन्नि का क्य औचितय???
      ये अकतय रुप से सत्य है कि जिस समय एन्हे अनुभुत किया गया था उस समय कोए जतिगत व्य्व्स्था नहि थि बल्कि モवर्न व्यव्स्थाヤ थि,सरे के सरे वर्न सम्भ्दि तत्व वर्न पर हि लगु हो सकते है,पर आज हमे एक भि वर्न अपने रुप मे नहि दिखयि देता,फिर अपनि अग्यनता को स्म्रित्कर पर व ब्रहमनो पर अरोपित करने का कोए लभ नहि है,ब्रहमन आज वर्न नहि एक जति हो गया है,जिसका शश्ता उच्च स्व्र से निशेध करते है,जिसे सुनना हो वो गिता मे,स्म्रिति मे वेद मे विवेकनंद मे अधि अधि मे सुन सकता है.

      अब बत अति है स्म्रिति कि तो मेने पहले भि लिखा है स्म्रिति प्रमन नहि है,श्रुति प्रमन है,एस युग कि स्म्रिति गिता है ना कि मनु स्म्रिति,स्म्रिति प्रतेय युग के हिसब से परिवर्तित होति है पर モथे उनिवर्सल त्रुथヤ हमेशा सत्य रहते है जो समन रुप से स्मिरित्यो मे मिल जते है.
      आज भि नरि को मता और बहन का हि दर्जा है,जिस मनु को बर बर कोसा जता है वो मनु स्व्यम कहते है नरि हमेशा हि स्म्मनिय है हर अव्स्था मे.
      यहा पर अनेक लोगो ने अत्यचरो का वर्नन किया है,क्य कभि किसि भि शश्त्र मे एन अत्यचरो का सम्र्थन मिलता है????अगर किसि को मिल भि जये तो अगले हि क्शन एसे स्लोको को उन उन शश्त्रो से बहर करने मे हिंदु समज को कोए संकोच नहि है और ना था,हमरे वेद दिदिम गोशना करते हुवे कहते है :एशव्श्य्मिदम सर्वमナナヤया गिता कहति モएशवर सर्व भुतनम ह्रिदय तिशति अर्जुन..ヤ” या अचर्य शंकर कहते है モचंदलोस्तु स तु दिव्जोस्तु गुरुरित्येशा मनिशा ममヤ एस्का अर्थ करते हुवे मेरे गुरु कहते है कि モहे व्हो इस पोस्सेद प्फ सुच स्त्रोंग रेअलिसतिओन,बे हे ओफ थे लोव्लिएस्त ओर ओफ थे होलिएस्त बिर्थ,हे इस थे गुरु.थिस इस म्य कोंसिदेरेद ओपिनिओन,ヤ
      एस्का अर्थ सिध्स सिधा सा निकलता है कि व्र्तमन के जतिवद को वेद,स्मिरिति या शंकर पर अरोपित करना उन महन अचर्यो के सथ अन्यया है जो बर बर मनुश्य मत्र मे एस्वर कि पुस्ति कर रहे है.

      तो समज मे एतना भेद क्तो???एत्ना जतिवद क्यो???धर्म के नम पर दुकंदरि क्यो??
      तो उस्का जवब स्व्यम गिता देति है कि जब मनुश्य तम गुन से अच्छदित हो जता है तब वो एस प्रकर का अचरन करने लगता है,आज सरा भरत्वर्श तमो गुन से अच्छदित हो रहा है,तभि तो मनव मत्र का दम भरने वला,बलिका मे भुवनेश्वरि का दर्शन करने वल एक छोति बलैका को चोतिल करता है,क्य एसे किसि व्य्क्ति को モपंदितヤ कहा जा सकता है???वेद नहि कहता,स्म्रिति या शंकर या मनु नहि कहते,पर समज जरुर कहता है,लेकिन समज तो रवन के समने भि चुप था और कंस के समने भि,और तो और कुछ लोगो को छोद दिया जये तो मुगलो और अंग्रेजो के समने भि नत्मश्तक था,एस्का अर्थ है समज कि व्र्ति विचित्र है,शोशित को या पिदित को पिदित होते देखने कि है चहे वो कहि का भि समज हो पर हा अगर कोए विवेकनंद बन जये या अम्बेदकर बन जये तो उसके पिछे हो लेनि कि भि है,अतह समज कि गलति को धर्म पर दलना उचित नहि है.
      एस समज को व्य्व्स्थित बनने हि तो अनेक लोगो ने अपने जिवन को न्योछवर किया है चहे वो रम,क्रिश्न हो या गंधि,सव्र्कर या हेद्गेवर.
      अनेको व्र्शो कि गुलमि ने हमरे हिंदु समज को एर्शयलु,कलह्प्रिय{अपस मे},दब्बु बना दिया है,ये विक्रतिया हतेगि,आज से 20 सल पहले जितनि थि उतनि आज नहि है.एन विक्रितियो को हि तो धोना है पर एस प्रकर कि अपने व्श्त्र नहि फते,कतु-विक्शिप्त-तर्खिन-व्य्र्थ कि अलोचना करने से हतति होति तो अब तक तो जा चुकि होति,नहि गयि क्यो???क्योकि परिवर्तन प्रेम से अता है धोश्पत्ति से नहि,दमकियो,गलियो,अंध विरोध से नहि.एक मत्र स्नेह से हि मनुश्य बदलता है.
      モरुदि कुरुति से दो दले मा का अंचल मल मल,चल निरंतर चल निरंतर चल चलナナナナ.ヤ

      -0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-

      एक बात और भी मैं ऐसे अनेक मित्रो को जनता हूँ जो इंग्लिश या रोमन लिपि को नहीं जानते, लेकिन वे अपने बच्चों की मदद से नेट पर हिंदी में अपने पसंद के विषय पढ़ते हैं. ऐसे पाठक आपके विचारों को रोमन हिंदी में पढने से वंचित हो जाते हैं!

      आशा करता हूँ की मेरे निरपेक्ष सुझाव पर सभी साथी मित्र विचार करेंगे. धन्यवाद!

      • आपका यह विचार अमुल्य है,मै पहले “बराक” से लिख कर कोपि करता था पर पता नही क्यो मेरा प्रव्क्ता के commnet वाले बोक्स पर राईट किल्क ही नही होने लगा अब मेने की पेड से ही पेस्ट करना सिख लिया है…………………………

  34. !! प्रवक्ता.कॉम के पाठकों से पाठकों से विनम्र अपील !!

    आदरणीय सम्पादक जी,

    आपके माध्यम से प्रवक्ता.कॉम के सभी पाठकों से विनम्रतापूर्वक अनुरोध/अपील करना चाहता हूँ कि-

    1- इस मंच पर हम में से अनेक मित्र अपनी टिप्पणियों में कटु, अप्रिय, व्यक्तिगत आक्षेपकारी और चुभने वाली भाषा का उपयोग करके, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

    2- केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से कुछ ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सम्पादक की नीयत पर भी सन्देह किया है। लेकिन जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, फिर से दौहरा रहा हूँ कि प्रवक्ता. कॉम पर, स्वयं सम्पादक के विपरीत भी टिप्पणियाँ प्रकाशित हो रही हैं, जबकि अन्य अनेक पोर्टल पर ऐसा कम ही होता है। जो सम्पादक की नीयत पर सन्देह करने वालों के लिये करार जवाब है।

    3- सम्पादक जी ने बीच में हस्तक्षेप भी किया है, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि हम में से कुछ मित्र चर्चा के इस प्रतिष्ठित मंच को खाप पंचायतों जैसा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं उनके नाम लेकर मामले को बढाना/तूल नहीं देना चाहता, क्योंकि पहले से ही बहुत कुछ मामला बढाया जा चुका है। हर आलेख पर गैर-जरूरी टिप्पणियाँ करना शौभा नहीं देता है।

    4- कितना अच्छा हो कि हम आदरणीय डॉ. प्रो. मधुसूदन जी, श्री आर सिंह जी, श्री श्रीराम जिवारी जी आदि की भांति सारगर्भित और शालीन टिप्पणियाँ करें, और व्यक्तिगत टिप्पणी करने से बचें, इससे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। कम से कम हम लेखन से जुडे लोगों का उद्देश्य तो पूरा नहीं हो सकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि कोई हमसे सहमत या असहमत हो सकता है, यह उसका अपना मौलिक अधिकार है।

    5- समाज एवं व्यवस्था पर उठाये गये सवालों में सच्चाई प्रतीत नहीं हो या सवाल पूर्वाग्रह से उठाये गये प्रतीत हों तो भी हम संयमित भाषा में जवाब दे सकते हैं। मंच की मर्यादा एवं पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखने के लिये एकदम से लठ्ठमार भाषा का उपयोग करने से बचें तो ठीक रहेगा।

    6- मैं माननीय सम्पादक जी के विश्वास पर इस टिप्पणी को उन सभी लेखों पर डाल रहा हूँ, जहाँ पर मेरी जानकारी के अनुसार असंयमित भाषा का उपयोग हो रहा है। आशा है, इसे प्रदर्शित किया जायेगा।

  35. कुछ टिप्पणीकारो ने सीधा तो नहीं पर, अलिखित संकेतसे मुझे ब्राह्मण समझा है। मैं केवल हिंदू हूं। और हिंदुत्वको और भारतीयता को सर्वथैव समान मानता हूं। यही मेरा परिचय है।

  36. ॥मौलिक चिंतन विधि॥
    सार: विषय प्रवेशके लिए लिखे शब्द ही मेरे हैं।जो व्यक्ति विचार करना चाहते हैं, उनके लिए प्रस्तुत है, निम्न लघु लेख।जो विचार करना ना चाहे, वें अपना समय बचाएं, ना पढें।
    आप पढने के पहले सुनिश्चित करें कि, आपका पैंतरा क्या है?(१) आप या तो नारी के पक्षमें मत रखती/ते हैं ?(२) या पुरूष के पक्षमें ?(३) क्या आप धर्मके अंतर्गत हर चीज को देखते हैं?
    यदि आप उपरके (तीनो) वर्गोमें नहीं है, और यदि आप धर्म से उपर उठकर किसी तथ्य को देख सकती/ते हैं ? तो आप आगे पढें; नहीं तो (अपना/मेरा) समय व्यय ना करें,आप अपने मतको दढता से चिपके रहें, अपना समय बचाएं।
    पढने के बाद, आप अपना पैंतरा अंतमें सुधार सकते हैं, और आपको सही लगे तो बदल सकते/ती हैं। कोई विवशता नहीं।
    धर्मके अंतर्गत भी उसके सुनिश्चित होनेपर स्वीकार सकते/ती हैं।
    पहलेसे ऐसा करना, आपके ज्ञानको बढा नहीं सकता।
    ====================================
    ॥प्रारंभ॥
    मैं किसी धर्मके आधार पर विषय नहीं रखूंगा।(पर, यह विधि पतंजलि योग दर्शनसे अधिक सूक्ष्मता से प्राप्त हो सकती हैं, इसे आप धर्म कहें, पर मैं
    इसे विज्ञान मानता हूं, और हां इसका आधार मैं लूंगा।)यह भी स्वीकार ना हो, तो पढनेका कष्ट ना करें। (आप भी क्षमता बढाकर इसे प्राप्त कर सकतेहैं, पर इसके लिए आपको किसी योगी के पास जाना होगा, केवल पढना पर्याप्त नहीं लगता।) मैं मानता हूं, कि कुछ विभूतियां महान होती है, जो ५ इंद्रियों से परे(उपर), फिर मन से परे, फिर बुद्धिसे परे, ऐसे, उपर उठते उठते
    आत्मामें लीन होनेकी विधि जानती हैं। आत्मासे भी जब कोई और उपर उठता/ती है,तो परमात्मा में भी लीन हो सकता/ती हैं। आत्मा को नरता या नारिता नहीं होती, इसलिए जो दृष्टि प्राप्त होती है, वह निर्मल, स्वच्छ इंद्रीय रहित, लिंग रहित ,याने, नर/नारी पहचान रहित होती है।(इस स्थितिमें आप को आपका नाम, लिंग, देश, धर्म, कुछ स्मरण में नहीं होता)इस लिए,इस स्थिति पर शुद्ध ज्ञान प्रकाश हो सकता है।
    माताजी (अरविंदाश्रम) नर/नारी दोनोको समान रूपसे देखती है।वें निष्पक्ष हैं। किसीके प्रमाण पत्रकी आवश्यकता उन्हें नहीं है।
    कुल ७६ पृष्ठोंकी पुस्तक हैं। आप चाहे तो इस पुस्तक को पढ सकते हैं।
    नाम: “नर और नारी”
    (श्रीमां व श्री अरविंदके लेखोंसे संकलित)
    श्री. अरविंद सोसायटी, पांडिचेरी.
    मूल्य ५ रुपये, (१९८१ संस्करण, मेरी प्रति, मेरे पास जो है)
    पहले ४४ पृष्ठ माताजी के विचार हैं।
    ४५ से ७६ तक श्री अरविंदके विचार हैं।
    (अरविंद के विचार और अनुक्रम मैं ने दिया नहीं है)
    कुछ विचार (यहां मेरा चयन है)
    नर नारी के संबंधोंके मूलमें जाने के लिए आपकोसृष्टिकी उत्पत्ति के उदगम तक जाना होता है।जीवन की यह परंपरा नर नारी के पूरक लैंगिक संबंधो बिना संभव नहीं है।
    केवल विषय अनुक्रम से आपको कुछ अनुमान हो जाय, इस लिए —
    ॥अनुक्रम॥
    १ दासता
    २ जिम्मेदार कौन?
    ३ स्त्रियोंकी समस्या
    ४ स्त्री और पुरूषमें भेद क्यों?
    ५ स्त्रियोंका कार्य (जापानमें दिया गया भाषण)
    ६ नारी और युद्ध ( १ले महा युद्धके समय प्रकाशित)
    ७ स्त्री और पुरुष
    ८ नारी शरीर और व्यायाम
    उनकी ओरसे दिया गया दासता का सारांश रूपमें,
    बिना कोई बदलाव किए मैंने नीचे दिया है।
    ॥दासता॥
    श्रींमाँ: (संदर्भ श्री मातृवाणी:)अरविंदाश्रम पॉंडिचेरी (श्री अरविंद सोसायटी) कहती हैं:
    जबतक कि स्त्रियां अपने-आपको स्वतंत्र न करें तबतक कोई कानून उन्हें स्वतंत्र नहीं कर सकता।
    कौन-सी चीज है, जो उन्हें दासी बनाती है?
    १-पुरुष और उसके बलके प्रति आकर्षण,
    २-घरेलू जीवन और सुरक्षाकी कामना,
    ३-मातृत्वके लिए आसक्ति।
    यदि स्त्रियां इन तीन दासताओंसे मुक्त हो सकें तो वे सचमुच पुरुषोंके बराबर हो जाएंगी।
    पुरुषकी भी तीन दासताएं है:
    १- स्वामित्वकी भावना, शक्ति और आधिपत्यके लिए आसक्ति,
    २-नारीके साथ लैगिक संबंधकी इच्छा,
    ३-विवाहित जीवनकी छोटी-मोटी सुविधाओंके लिए आसक्ति।
    यदि पुरुष इन तीन दासताओंसे मुक्ति पा लें, तो वे सचमुच स्त्रियोंके बराबर हो जाएंगे।
    श्रींमाँ: (संदर्भ श्री मातृवाणी:)अरविंदाश्रम पॉंडिचेरी (श्री अरविंद सोसायटी)

  37. Mr. Dr. Rajesh Kapoor ji, aapse ek pathika Ms. Priyanka ji ne neeche likhe sawal poochhe hain aur aap chup hain. Dr. Prof. Madhusoodan ji ko aage badha diya hai, galat baat hai. apne mukharvind se saaf-saaf kaho kya jawab hai aapka?

    “”श्रीमान कपूर साहब से उपरोक्त विवरण को सामने रखकर मैं पूछना चाहती हूँ कि आम लोगो की भाषा में सारगर्भित तरीके से बताने का कष्ट करें कि-

    1. हिन्दू धर्म है क्या?
    2. हिन्दू धर्म का पालन करने के लिये हम जैसे लोगों को क्या करना चाहिये?
    3. अब हिन्दू धर्म की कैसे रक्षा हो सकती है?
    4. और हिन्दू धर्म के रक्षकों से हम जैसों की रक्षा कैसे संभव है?

    5. हिन्दू धर्म के नाम पर हजारों सालों से हम पर जुल्म और आतंक कायम करने वालों को यदि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने सक्रिय कार्यकर्ता नियुक्त करता है, शिवसेना में सम्मान दिया जाता है, भारतीय जनता पार्टी में ओहदे दिये जाते हैं और प्रवीण तोगड़िया के कार्यक्रमों के आयोजनों की जिम्मेदारी दी जाती है तो भी क्या हमें सिर्फ हिन्दू धर्म, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी की ही जय बोलनी चाहिये?

    6. क्या इन हालातों में भी हमें यह भी कहने का हक नहीं है कि हिन्दू धर्म स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों और हर कमजोर व्यक्ति को इंसान की तरह जीने का अधिकार ही नहीं देता है?

    7. मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं है, कि आपके ग्रंथों में क्या-क्या अच्छा लिखा है, मैंने तो वह लिखा है जो हकीकत में हो रहा है। क्या कोई है, जो इस बात का जवाब देगा?””

  38. श्रीराम जी, विजय जी, प्रियंका जी, दीपा जी मुझे लगता है ये बहस बेकार है। क्योंकि यदि कोई देखना और समझना ही नहीं चाहे तो फिर उसका क्या किया जा सकता है। मालवी में (या शायद आप लोगों ने भी सुनी होगी) कहावत है – अंधे के आगे रोना अपने दीदे खोना… तो फिर हम अपना समय और ऊर्जा क्यों बर्बाद करें। ये सारे कथित राष्ट्रवादी और हिंदुवादी देख नहीं पा रहे हैं कि समय कितना बदल गया है। इतिहास और धर्मग्रंथों का सहारा लेकर ये सिद्धांत बता रहे हैं, व्यवहार में क्या है, इस मामले में तो ये लोग छुई-मुई हो जाते हैं। भ्रूण हत्या, दहेज हत्या जैसी कुरीतियों के प्रति आँखें मूँदे हैं और और लड़कियों का प्रेम विवाह कर लेना इनकी नाक का सवाल है, जैसे लड़की इंसान न हो, काठ का पुतला हो या इनके घरों के ड्राइंग रूम में सजाने की वस्तु…।
    जो लोग मानव होने की मूलभूत जरूरत भूल चुके हो और इंसान होने की बजाए मात्र ब्राह्मण हो रहे हो, उनसे किसी भी तरह की बहस पत्थर से अपना सिर फोड़ने की तरह है।

    • भ्रूण हत्या और दहेज़ किसी नारी या पुरुष द्वारा चलाई गयी प्रथा नहीं है, इसे पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने समर्थन किया है. और सबसे ऊपर यह अशिक्षा (सिर्फ पड़ना लिखना नहीं उच्च विचारों के भी शिक्षा) के कारन है. आपको पता है ये अशिक्षा क्यों नहीं मिट रही है क्योंकि पिछले ६० सालों से कांग्रेस ही सत्ता मैं है वो नहीं चाहते देश के नागरिक समझदार बने अगर बन गए तो हमारा विरोध करेंगे अनपढ़ रहेंगे तो कंही भी अगुठा लगायेंगे.

      अ. भ्रूण हत्या इतनी नहीं जितना प्रचारित किया जा रहा है
      बी. इमरजेंसी गोलियां और गर्भ ठहरने का डर ख़त्म करना भी भ्रूण हत्या के कारन हैं
      स. जितने बड़े विज्ञापन गर्भ न ठहरने की इमरजेंसी गोलियां के आ रहे हैं
      ऐसे विज्ञापन संयम बरतने के नहीं आ रहे हैं जो हमारी संस्कृति मैं था हमारी महिलाये अन्धानुकरण का परिणाम भुगत रही हैं

      डी. महिलाओं के व्यवहार मैं धीरे धीरे एक लम्बे समय से जारी अभियान के माध्यम से परिवर्तन लाया गया है ताकि वो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों की खरीदार बने महिलाये इसकी शिकार हुयी हैं न की आधुनिक.

      हुआ भी यही है महिलाओं को लक्मे, लोरियल, गार्नियर द्वारा उनको अपने पुरुष प्रधान समाज से बगावत करना सिखया गया है मतलब इन उत्पादों का प्रयोग करने से आपकी छवि एक बोल्ड नारी की बनेगी …ये परिवर्तन बहुत सूक्ष्म था विज्ञापन दर विज्ञापन हर दिन छोटी छोटी ख़बरों के माध्यम से जो आज पूरी तरह से पुख्ता हो गया है .

      बहुत बातें हैं बताने मैं समय लगेगा

      • अमिता जी आपने कहा, लड़कियों का प्रेम विवाह, कोई माँ बाप अपनी संतान का बुरा नहीं चाहता. मां बाप इसलिए चिंतित रहते हैं की प्रेम के नाम पर कोई उनकी लड़की को उल्लू न बना दे.

        लड़कियों कई मामलों मैं समझ नहीं पाती, जब सच्चाई सामने आती है तो न वो किसी को बता नहीं पाती न ही किसी ब्लॉग पर लिख पाती है की उन्होंने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी है.

        काश ऐसी लड़कियों भी किस माध्यम पर पश्चाताप करती तो वास्तविकता पता चलती.

        महिलाये कई मामलों मैं पुरुष से पीछे है जब बराबरी पर आ जाएँगी तो वो शायद खुद को पुरुष और पुरुषों को महिलाओं के रूप मैं देखना चाहती हैं.
        सिगरेट बीयर वगेरह का उपयोग करके वो शायद यह समझे की यही असली स्वतंत्रता है, लेकिन अफ़सोस के अलावा कुछ नहीं मिल पायेगा.

  39. आदरणीय तिवारी जी
    मेरा मंतव्य ये है की इतिहास के -मानव सभ्यता के अतीत को कुरेदना बंद करो
    यदि कुरेदना ही है तो सच का सामना करने की सभी में सामर्थ होना चाहिए

    पुर्णतः असहमत हूँ……….
    पहली बात इतिहास को कुरेदना बंद नहीं किया जा सकता है क्योंकि इतिहास से सबक सीखते हैं जब भी कोई व्यक्ति गलत तथ्य लाएगा हम इसी प्रकार प्रतिवाद करेंगे

    में अपने पूर्वजों के गुनाहों “यदि उनने किये हैं “की माफ़ी माँगता हूँ…………..
    इस सन्दर्भ में आपके लिए एक पंचतंत्र की प्रेरक कहानी लिखती हूँ शायद आप बेहतर समझ जाएँ
    एक वन प्रदेश में तालाब था। नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकडे आदि वास करते थे। पास में ही बगुला रहता था, एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

    बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उससे पुचा “मामा, क्या बात हैं भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?”

    बगुले ने जोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला “बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं।

    केकडा बोला “मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नही तो मर नहीं जाओगे?”

    बगुले ने कहा की कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पडेगा।”

    बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं जब सबने उससे पूछा

    बगुले ने बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता । यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी “मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।”

    सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।

    अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते “देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा हैं।”

    बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं।

    बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकडे ने बगुले से कहा “मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।”

    भगतजी बोले “बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।”

    केकेडा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकडे का माथा ठनका। वह हकलाया “यह हड्डियों का ढेर कैसा हैं? वह जलाशय कितनी दूर हैं, मामा?”

    बगुला भगत ठां-ठां करके खुब हंसा और बोला “मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं हैं। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तु मरेगा।”

    केकडा सारी बात समझ गया। और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजो को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए।

    फिर केकेडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।
    …………………. कहने का आशय यह है की महोदय आपका ये कथन ………..
    में अपने पूर्वजों के गुनाहों “यदि उनने किये हैं “की माफ़ी माँगता हूँ………………. मुझे बिलकुल पसंद नहीं आया है आप पूर्वज को तो जाने ही दो जो पाप आज हो रहें हैं वो तो देख सकते हो और आप पूर्वजों ने क्या किया उसके प्रति भी शंकालु हो , हैरत है मुझको की आप जेसा सुलझा हुआ इंसान इस तरह की शंका व्यक्त कर रहा है हमारे पूर्वजों ने क्या क्या कुकर्म किये हैं उसको दोहरौंगी तो अभिषेक पुरोहित , राजेश जी, मधुसुधन जी और कई अन्य को लगेगा उनको कह रही हूँ , अभिषेक पुरोहित जी तो हर बात खुद के लिए ही ले जाते हैं ,
    महोदय यदि आपको कहना ही है तो फिर सत्य कहें उसमे शंका व्यक्त करके आप सारा कहा चौपट कर दे रहे हैं
    आशा है आप बात समझेंगे और बुरा नहीं मानेगें
    दीपा शर्मा देहरादून

    • दीपा जी मुझे लगता है की आप कोई महिला नहीं बल्कि एक संगठित यूनिट हैं जिसमे ४ -5 व्यक्ति मिलकर बारी बारी से कमेन्ट पोस्ट कर रहे हैं…

      कभी इंडियन कभी दीपा कभी कुछ और…

      • सभी लोग ज्यादा समझदार हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना है
        – डा. प्रो. मधुसूदन उवाच

  40. श्री राजीव त्रपाठी जी को धन्यवाद.

    हां यह सच है की कुछ सो सालो से भारत में जाती प्रथा न निचली जातियों पर बहुत अन्याय किया है. कारन भी है की हमारे देश में लूट खासोट तो पिछले हजार सालो से होती आ रही है उसने कुछ वर्गों को कमजोर बना दिया है. ऐसे समय जिसको मौका मिला उनसे अपना डंडा चलाया. अंग्रजो ने भी अपनी चले खूब चली. भारत में एक समय सभी गाँव आत्म निर्भर हुआ करते थे आज अन्न से भी मोहताज हो गए है.

    रही बात लेख के विषय की तो यह सही है की नारीओ का स्थान पुरुष से ऊँचा रहा है. आज भी किसी भी महिला को मांजी, बराबर उम्र की लडकियों को बहनजी, अपने से कम उम्र वालो को बेटी कहकर संबोधन होता है. (पिछले २०-३० सालो से इनकी जगह आंटी, मैडम ने ले ली है). जिस घर में मदिरा न उपयोग होती हो, जिस घर में महिला को सामान मिलता हो उस घर का पुरुष बाहर भी महिला को सामान देगा.
    जिस बच्चे को उसकी माँ, दादी ने लाड प्यार के साथ और सख्ती से बचपन से यह सिखाया हो की महिलाओ की रक्षा करना, इज्जत करना उन्हें सामान देना – वह सादी के बाद अपनी पत्नी को सामान देगा.

    श्रीमान तिवारी जी ने बताया की “मध्य युग की सामंती व्यवस्था में कोई भी आमजन शोषण विहीन नहीं था……………… बिलकुल सही कहा है.
    श्रीमान राजेश कपूर जी भारत के इतिहास, हिन्दू धर्म के बारे में बताते रहते है. इनकी भाषा तीक्ष्ण है किन्तु सत्य तो तीखा होता है.
    श्रीमान डॉ. मधुसुदन जी ने भारतीय संस्कृति और परंपरा के बारे में बहुत अच्छा कहा है.

    घर में किसी बर्तन पर धुल जम जाये तो उसे पड़ोस को नहीं दिखाते है बल्कि साफ़ कर दुबारा उपयोग के लिए रख लेते है. आज जरुरत है समाज में व्याप्त कुरुतिओं की धुल साफ़ करने की. आइये फिर से महिलाओ को उनका खोया हुआ सामान लोटाये.
    सीताराम, राधेश्याम.

  41. प्रियंका जी –
    (१) आप की “प्रदीर्घ टिप्पणी का प्रवक्ता पर होना” प्रमाणित करता है, कि प्रवक्तापर आपका लगाया आरोप मूलतः गलत है।
    (२) जैसे आप लिखती हैं, मैं लिखता हुं, वैसेही अन्य टिप्पणीकार लिखते हैं। डॉ. राजेश कपूर और अभिषेक जी भी। उनको लिखते बंद करना “वाणी स्वातंत्र्य” के विरुद्ध होगा। जानिए, कि, सच उद्‌घाटित करने में, सभी का योगदान है। यह संवाद है, विवाद नहीं, सच प्राप्त होता है, तो सभी को प्राप्त होता है।मैं संवादको हार-जीत के हिसाबसे नहीं देखता, आपके लिखे बिना मुझे आपके अनुभव पता ना होते।
    (३)आप लिखती हैं कि आपको ” देवी देवताओं के मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया”—मेरी दृढ मान्यता है, आप पर घोर अन्याय हुआ है।और अन्य अन्याय भी आपने गिनाए हैं। जिनको मैं नकार नहीं रहा हूं, पर उसी अनुभूति को मेरे हदयमें, अंतःकरणमें, अनुभव करनेसे क्लेष अनुभव कर रहा हूं, जिसमें से आपको गुजरना पडा। मेरी बहन, यह लिखना कोई छलावा ना समझे। मैं कुछ ही अनुभव कर सकता हूं। मराठीमें कहावत है, अर्थ है, “किसी के जन्म में गए बिना समझा नहीं जाता”।
    (४) आप एक गलत फहमी से पीडित प्रतीत होती हैं।संघ-और विश्व हिंदू परिषद भी इसे अन्याय ही मानता है।(दुःख है, कि अभी उनके हाथ इतने लंबे नहीं है।) V H P ने तमिलनाडुमें १२०० पुजारियोंको जुलाई १९९८ में, प्रशिक्षित किया था। उनकी रपट कहती है।
    ” Till July 1998, sixteen courses of 15 days’ duration have been conducted and 1200 Poojaris have undergone the training. As a matter of principle, we are not interested in the castes of the applicants. But for statistical purposes, we collect the particulars. Poojaris from all castes have been trained.
    Break Up Figure is as Follows
    Scheduled Castes===>145==
    Scheduled Tribes ===>54==
    Most Backward ===>73==
    Backward====>670==
    Forward===== >258==
    TOTAL ===>1200==
    Out of the above, 214 Poojaris have been initiated into Siva Deeksha and 203 Poojaris have been adorned with Yagnopaveetha Dharanam irrespective of their castes.”
    और कुछ ऐताहासिक जानकारी आपको R S S A vision in Action से प्राप्त हो सकती हैं।
    (५)आप पूछती हैं कि “क्या हमें सिर्फ हिन्दू धर्म, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी की ही जय बोलनी चाहिये?”
    नितांत नहीं। आप स्वतंत्र है, चाहे जिसकी जय बोलने के लिए। कोई आपको बाध्य नहीं कर सकता।
    (५) समस्याएं हैं। हमारी सभीकी उसे हमही सुलझा सकते हैं।
    ज्ञानेश्वर, जनाबाई, नामदेव, रैदास,….. अनेकानेक भक्त भी तो हो गए, जो ब्राह्मणेतर थे। सुधार कई बार हुए हैं।
    (६)स्मृतियां भी १८ है। हरेक “काल” को ध्यानमें रखकर बनी हुयी।हम ऊर्ध्व गामी है।
    सामान्यतः राजकीय पक्ष श्रेय (क्रेडिट) लेना चाहेंगे, उनसे बचना चाहिए ऐसा मैं मानता हूं।
    शुभेच्छाएं।

  42. दीपाजी ;प्रियंका जी अमिता जी ;रश्मिजी आप सभी के लेखन में विषय वस्तु का गंभीर चितन झलक रहा है .जिस देश में इतनी क्रांतीकारी सोच की प्रगतिशील
    युवा एवं साहसी महिला लेखिकाएं हों ;उसमें ये दो चार अधकचरे ;रूढीवादी -पुरातन पंथी ऐसे ही मानिए जैसे की चंद्रमा की कालिमा .
    आप सभी की वेदना के निरूपण में सच्चाई है .अतीत में जिस किसी ने भी
    दमित वर्ग -दलित ;अबला -का उत्पीडन किया है उसे निंदा का पात्र होना ही होगा .
    हाँ -यह अवश्य है की मध्य युग की सामंती व्यवस्था में कोई भी आमजन शोषण विहीन नहीं था ,अनेक जातक कथाओं में .पौराणिक आख्यैकाओं में कहानी इस वाक्य
    से शुरूं होती है की -एक ब्राह्मण था वह लकड़ियाँ काटने जंगल गया ;;या सुदामा की दीं दशा में आपको शोषण कर्ताओं की अच्छी परख हो जायेगी .
    मेरा मंतव्य ये है की इतिहास के -मानव सभ्यता के अतीत को कुरेदना बंद करो
    यदि कुरेदना ही है तो सच का सामना करने की सभी में सामर्थ होना चाहिए
    सापेक्ष रूप में दलित मजदूर -किसान तथा नारी का उत्पीडन इतना ज्यदा हुआ की उनके अश्रुओं से सप्तसिंधु खारे हो गए
    में अपने पूर्वजों के गुनाहों “यदि उनने किये हैं “की माफ़ी माँगता हूँ

    • Vah Tiwari ji aapne mujhe bhi mauka de diya “maafee” mangne ka.

      mai Bhi apne poorvajon ke anyaay ke liye bina kisi kintu parantu ke

      “maafee mangta hoon”

      “aur saath hi aaj ke samay men bhi jo koi galat kar rahe hai, unka samartahan nahi karke, unka virod karne ka vhi sarvjanik roop se vachan deta hun.”

      jahan bhi dr, kapoor, dr. madhusudan, abhishek purohit aur inke saathi dharm aur sansanskarti ka naam par logon ko dabayenge main inka poori takat ke saath virodh karoonga.

      aasha hai ki hamare poorvajon ke kaarn hemen ghrana se nahin dekha jayega. yadi main dugey parivar men janma hun to ismen mera kaya kasoor hai?

    • श्रीमान तिवार जी,
      आपने हमारी पीडा को समझा, इसके लिये और राजेश कपूर, अभिषेक पुरोहित, मधुसूदन जैसे लोगों द्वारा संस्कृति के नाम पर दी जा रही गालियों से संरक्षण दिलाने में सहयोग किया, इसके लिये आपका आभार।

      मैं यह भी कहना चाहूँगी कि बात मध्ययुग की नहीं आज की हो रही है। बहन प्रियंका का उदाहरण आज का सच है?

      आपसे आग्रह है कि जो लोग प्रवक्ता पर गलत भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं और पाठकों को अपने विचार व्यक्त करने से रोकने के लिये विदेशी, क्रिश्चन, देशद्रोही घोषित कर रहे हैं, व्यक्तिगत सवाल उठाकर कटघरे में खडा कर रहे हैं, इनका कडाई से विरोध होना चाहिये और ऐसे लोगों को प्रवक्ता पर टिप्पणी करने से बैन किया जाना चाहिये।

      इस मामले में आपका और सभी निष्पक्ष पाठकों का सहयोग जरूरी है।

      राष्ट्रवाद का नाम लेकर किसी पर भी आरोप-प्रत्यारोप लगाना कौनसी सभ्यता है।

      श्रीमान सम्पादकजी को भी इस बारे में गम्भीरता से सोचना चाहिये।

      • Rashmi:जी आप कहती हैं।
        आपका उद्धरण “…….—मधुसूदन जैसे लोगों द्वारा संस्कृति के नाम पर— दी जा रही “गालियों से” संरक्षण दिलाने में सहयोग किया, इसके लिये आपका आभार।” —यहां आपका उद्धरण अंत होता है।
        प्रश्न:
        –आदरणिया रश्मि जी। मैंने आपको कोई गाली दी हो, यह मुझे स्मरण नहीं।
        वैसे =====आप किन शब्दोंको मेरे गालियां मान रही है? और कहां मैंने आपको गाली दी, यह स्पष्ट करें।
        कहीं मुझे, ऐसा तो प्रतीत नहीं होता, पर आपको यदि ज्ञात है, तो बताने की कृपा करेंगी? जिससे आगे के लिए मैं कुछ परिवर्तन करूं।
        मैं निश्चित रूपसे मानता हूं, कि मैं मनुष्य हूं, और अनवधान से चूक भी सकता हूं। और क्षमा मांगने मेरा सरभी झुक सकता है। पर मुझे स्मरण नहीं हो रहाकि किस गालि का संकेत आप कर रही हैं।
        बहन जी कृपा करके बताइए कि, किस संदर्भमें, मैंने “आपको याने रश्मि शाह को” गालि दी।
        उत्तराभिलाषी।

        • वर्तमान की हकीकत बयां करना क्या पाप है
          प्रियंका रैगर अजमेर

    • धन्यवाद!

      श्रीमानजी मैं मध्य युग की नहीं हूँ, वर्तमान में जिन्दा हूँ और वर्तमान की हकीकत बयां कर रही हूँ!

  43. महोदय
    खोकली संस्क्रती और परम्परा को तो बाद में देखा जायेगा इसके सन्दर्भ में तो बाद में भी लिखा जा सकता है , पहले ये आंकड़े ध्यान देने योग्य हैं
    kanya bhurn hatya
    देश में पिछले चार वर्षो में कन्या भ्रूण हत्या के 401 मामले प्रकाश में आये हैं।

    स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्नी दिनेश त्निवेदी ने बताया कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से प्राप्त सूचना के अनुसार वर्ष 2006, 2007, 2008 और 2009 के दौरान भ्रूण हत्या के सूचित किए गए मामलों की संख्या क्रमश 125, 96, 73 और 107 थी।

    भारत सरकार ने स्वीकार किया है कि 2001-05 के दौरान रोजाना करीब 1800-1900 कन्या भ्रूण की हत्याएं हुई हैं।
    केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसआ॓) की एक रपट में कहा गया है कि साल 2001-05 के बीच करीब 6,82,000 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है अर्थात इन चार सालों में रोजाना 1800 से 1900 कन्या भ्रूण की हत्या हुई है।

    हालांकि महिलाओं से जुड़ी समस्या पर काम कर रही संस्था सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी का कहना है कि यह आंकड़ा भयानक है लेकिन वास्तविक तस्वीर इससे भी अधिक डरावनी हो सकती है। गैरकानूनी और छुपे तौर पर और कुछ इलाकों में तो जिस तादाद में कन्या भ्रूण की हत्या हो रही है उसके अनुपात में यह आंकड़ा कम लगता है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े इतने भयावह हैं तो इससे इसका अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि समस्या कितनी गंभीर है।

    रपट के मुताबिक 1981 में 0-6 साल के बच्चों का लिंग अनुपात 1981 में 962 था जो 1991 में घटकर 945 हो गया और 2001 में यह 927 रह गया है। इसका श्रेय मुख्य तौर पर देश के कुछ भागों में हुई कन्या भ्रूणकी हत्या को जाता है।

    उल्लेखनीय 1995 में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम :प्री नेटल डायग्नास्टिक एक्ट, 1995 के मुताबिक बच्चे के लिंग का पता लगाना गैर कानूनी है जबकि इसका उल्लंघन सबसे अधिक होता है।
    Jan 08, 10:52 am
    मुजफ्फरपुर [जागरण संवाददाता]। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद उत्तर बिहार के कई जिलों में कन्या भ्रूण हत्या बदस्तूर जारी है। मानवता विरोधी यह घटना फिलहाल गुमनाम वाकया बनकर रह गई है।
    सिविल सर्जन गर्भ के बारे में सटीक जानकारी देने वाले अल्ट्रासाउंड जांच घरों पर नजर रखने का दावा तो करते हैं, पर जमीनी हकीकत यही है कि लिंग परीक्षण खूब हो रहा है। घर में पहले से ही ‘लक्ष्मी’ विराजमान हैं, तो गर्भस्थ कन्या को बीमार बता डाक्टर उससे निजात का रास्ता सूझा देते हैं। चूंकि गर्भस्थ शिशु के बीमार होने की दशा में गर्भपात कानूनन जायज है, लिहाजा डाक्टर और परिजन दोनों बच निकलते हैं।
    लिंग निर्धारण कर उसकी हत्या के कारोबार में मुजफ्फरपुर के कई निजी नर्सिग होम के हाथ खून से रंगे हैं। सिविल सर्जन दफ्तर में गठित सेल में भ्रूण हत्या से संबंधित कोई शिकायत दर्ज नहीं है। सिविल सर्जन डा. बिल्टू पासवान यह जरूर कहते हैं कि औचक निरीक्षण में ही मामले सामने आ पाते हैं।
    बेतिया में कई ऐसे अल्ट्रासाउंड क्लीनिक हैं। यहां कन्या भू्रण की पहचान होने पर चोरी छिपे भू्रण हत्या भी करा देते हैं।
    बगहा में शहर के विभिन्न स्थानों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक अनचाहे खासकर कन्या भ्रूण हत्या का खेल जारी है। पूर्वी चंपारण जिले में सरकारी आंकड़े में लड़के एवं लड़कियों के बीच का अंतर ही इस खेल को उजागर कर देता है। पिछले वर्ष 33,812 संस्थागत प्रसव हुए, जिनमें लड़कियों की संख्या महज 14,891 हैं। जिले कई निजी क्लीनिकों में बेरोकटोक भ्रूण हत्याओं का खेल चल रहा है।
    सिविल सर्जन डा. धर्मदेव सिंह कहते हैं कि आम लोगों में बेटा-बेटी के फर्क ने ही इस जघन्य अपराध को जन्म दिया है।
    सीतामढ़ी में एक अनुमान के मुताबिक हर माह 100 से ज्यादा महिला भ्रूणों को दुनिया में आने से रोक दिया जाता है।
    मधुबनी में सिविल सर्जन डा. मो. शब्बीर अहमद का कहना है कि कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए छापामारी दल का गठन किया गया है। दल अल्ट्रासाउंड करने वालों पर पैनी नजर रख रही है, साथ ही इसकी वैधता की भी जानकारी बटोर रही है। समस्तीपुर के सिविल सर्जन डा. भैरव प्रसाद कहते हैं कि भ्रूण हत्या रोकने के लिए विभाग पूरी तरह प्रयासरत है।
    दरभंगा जिले में कुल 59 अल्ट्रासाउंड केंद्रों में से अधिकतर में चोरी-छिपे लिंग परीक्षण होता है। सीएस डा. लखींद्र प्रसाद, कहते हैं कि जिलांतर्गत लिंग परीक्षण व भ्रूण हत्या का एक भी मामला उनके संज्ञान में नहीं आया है।
    अब खुद अपने लेख ka avlokan kar प्रम्प्रेयं बताते रहें
    धन्यवाद दीपा शर्मा

    • दीपा जी— आपके परीक्षण हेतु। दृढता पूर्वक मानता हूं, कि, भ्रूण हत्त्या सर्वथैव गलत है। सभी ठीक ठाक होता, तो यह चर्चा ही ना होती।
      ==>भ्रूण हत्त्या को घटाने के लिए गुजरात क्या कर रहा है? देखिए।
      गुजरात में, मूल, आर एस एस के संस्कारसे ही और फिर, अपनी प्रतिभा से, मोदी जी ने, समर्थ शासन से, जो चमत्कार कर के दिखाया है, वह किसी भी अपेक्षा से परे हैं। वह, भारत के लिए एक सूर्योदय की भांति हैं। चारों ओर की निराशा में यह आशा की प्रभात समा है। वे भी एक व्यक्ति हैं, मानव है, पर आज तक मुझे उन के व्यवहार में और शासन में कम ही त्रुटियां दिखाई दी है।
      गुजरात शासन ने कन्या शिक्षा योजना प्रारंभ की हुयी है। कन्या शिक्षा निधि स्थापित किया है। कोई कन्या गुजरात में अशिक्षित ना रहे, इस उद्देश्य से। और इस के परीणाम भी दिखाई दे रहें हैं। २००६-०७ में शाला छोडने वाली बालिकाओं का दर, २०.८१ से घटकर ३.६८ हुआ है(सूक्ष्मताएं वेब साइट पर देखें)। दूसरी योजना, बालिका समृद्धि योजना है, जिसके अंतर्गत बालिका के जन्म के बाद ५००० रुपयोंकी राशि उपहार दी जाती है।और, १९९७- १५ अगस्त के बाद जन्मी और शाला जाती बालिका को वार्षिक (हर वर्ष) ३०० से १००० रुपए तक की सहायता, कक्षा १ में (३०० से), १०वी में(१०००) तक दी जाती है। अधिक जानकारी के लिए देखें==> https://en.wikipedia.org/wiki/Gujarat_Development_under_Narendra_Modi#Girl_child_education
      समस्याएं हैं, हमारी सभी की है, उनसे दूर भागना नहीं हैं,(१) उसे जड-मूलसे समझे,फिर, (२) हम मिलकर उसे सुलझाएंगे, यह प्रवृत्ति हो, तो कोई आपत्ति नहीं। कोई और आकर समस्याएं सुलझा नहीं जाएगा।
      शुभेच्छाओं सहित।

    • आपने दीपाजी (वास्तविक नाम भिन्न हो सकता है) आपने कभी भ्रूण हत्या रोकने का कोई काम किया है, अगर आपको इतना अफ़सोस है तो क्यों नहीं समाज मैं नहीं उतरती ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे ‘ आप ठान लीजिये की आपको कोई २० से २५ भ्रूण हत्या (कई मामलों मैं ये अनचाहा गर्भ होता है जिसे भ्रूण हत्या बताया जाता है) को आपको रोकना है. कोई संगठन बनाइये और काम शुरू कीजिये, यंहा बहस करने से कोई फायदा नहीं होगा.

  44. महोदय राजेस्श कपूर जी
    या आप जो भी हैं ,
    आप क्यों नहीं मानते की हिन्दू ध्राम्ग्रंथों की कमिय दूर करना चाहिए जबकि आप हिन्दू हैं आपको हिन्दुओं के ग्रन्थ का तप पता नहीं पर इस्लामिक ग्रंतोहं पर आपकी टिपण्णी देख कर लगता है आप इस्लाम से गहरा नाता रखते हैं, wese to ye meri शैली नहीं है magar आपकी hi भाषा में कहूँ तो कहीं आप पाकिस्तानी अराजक तो नहीं है जो नहीं चाहते हैं की हिन्दू एक हो वर्ण व्यवस्था ख़तम हो कहीं एसा तो नहीं की यदि ऐसा हो गया भारत मज़बूत होगा और हमारे देश की मजबूती को आप नहीं चाहते हैं क्या हो आप विदेशी ताकतों के agent ……………………
    ये आपकी शैली है महोदय …… अब हम अपनी तरह से बात करते हैं ……………
    आदरणीय राजेश कपूर जी , शत शत नमन करते हुए ,
    यद्यपि मुझे नहीं लगता है की आपकी उम्र अधिक हो चुकी है जिसके कारन आपको स्मिरती सम्बन्धी दोष हो सकता है , आप की बातों में हमेशा बड़ा विरोधाभास रहता है कहीं तो आप अंग्रेजों को कोसते हैं कहीं उनके गुणगान करते हुए नज़र आते हैं , महोदय
    कभी आप पटेल. विवेकानंद, दयानंद, भगत सिंह को भारत निंदा का रोगी बताते हैं कभी आप उनको महान बताते हैं
    मतलब ये है की आप बिन पेंदी के लोटे जेसे रहते हैं ये एक उत्तम गुण है आपका , सुविधानुसार चीजों को ढाल लेना
    महोदय,
    ये सारा भारत जनता है की इन महापुरषों की हमारे जीवन में क्या महत्व है लेकिन महानुभाव ये अँगरेज़ इस्लाम धर्म के बारे में जब कुछ लिखते हैं तो आप उसका हवाला दे दे कर देश में अराजकता और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने में कोई कसार बाकी नहीं रखते हैं और unka kaha maan jate हैं ……
    जब यही हिन्दू धर्म के बारे में कहा गया तो आपका दृष्टिकोण ही बदल गया …..
    महोदय
    आप बहुत विरोधाभासी ब्यान देते हैं आपको राजनीति में भी जाना चाहिए वहां nishchit roop से आपका भविष्य उज्जवल होगा. मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं महोदय
    शत शत नमन करते हुए ……… दीपा शर्मा ‘प्रेतबाधा’

  45. श्रीमान सम्पादक जी,
    नमस्कार।

    मैं करीब छह-सात महिने से प्रवक्ता एवं अन्य कई हिन्दी साइटों को पढती रहती हूँ। पहली बार अपने पति के तकनीकी सहयोग से टिप्पणी करने का साहस कर रही हूँ। आशा करती हूँ कि सम्पादक जी मेरी इस कटु सच्चाई को जरूर प्रकाशित करेंगे।

    प्रवक्ता पर जिस किसी ने भी ब्राह्मणों या हिन्दू धर्म की मनमानी, तानाशाही और भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ लिखने का साहस किया है, उसे श्री राजश कपूर, श्री अभिषेक पुरोहित आदि के द्वारा बोलने नहीं देने के प्रयास किये जा रहे हैं। यही नहीं ऐसे लोगों को क्रिश्चन, देश विरोधी, मुर्ख, आदि भी घोषित किया जा रहा है। यदि ऐसा है फिर तो सबसे बडे देशद्रोही तो संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ही हैं।

    मैं अपनी पहचान पर प्रश्न नहीं उठे इस बात को हमेशा के लिये समाप्त कर देने के लिये सबसे पहले अपना परिचय लिख देती हूँ।

    मेरा नाम : प्रियंका रैगर
    पिता का नाम : कल्लू रैगर
    (क्योंकि उनका रंग काला है, इसलिये गाँव के पण्डितजी ने उनका नामकरण कल्लू किया था)
    माता का नाम : मंगली रैगर
    (क्योंकि उनका जन्म मंगलवार को हुआ था, इसलिये गाँव के पण्डितजी ने उनका नामकरण मंगली किया था)
    जाति : रैगर, जिसे सभी चमार कह कर सम्बोधित करने में फक्र का अनुभव करते हैं।
    धर्म : हिन्दू
    निवासी : रैगरों की बस्ती, जिला-अजमेर (राजस्थान)

    लेकिन मैं नहीं जानती कि हिन्दू होने के क्या मायने हैं?

    क्योंकि जब से जन्म लिया है, माँ को घर में हनुमानजी, शिवजी, सीताराम, राधाकृष्ण, दुर्गा, कालिका आदि न जाने किन-किन देवी-देवताओं के नाम से जमीन पर ढोक देते देखा है, लेकिन अपने गाँव में कभी भी हमें इन देवी देवताओं के मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया।

    12-13 वर्ष की उम्र में एक बार मैं गलती से गाँव के अन्य स्कूल के बच्चों के साथ मन्दिर के चबूतरे पर चढ गयी तो पण्डित जी ने गुस्से में मुझे चबूतरे से नीचे धकेल दिया। जिसके कारण मेरे पैर में फ्रेक्चर आ गया, जिसके चलते आज भी मैं लंगडाकर चलती हूँ और सारे लोग मुझे नाम से नहीं, बल्कि लंगडी कहकर बोलते हैं। लंगडी होने के कारण मुझे से 15 वर्ष बढे और पहले से दो बच्चों के पिता विधुर से मेरा विवाह किया गया, लेकिन वे बहुत अच्छे हैं.

    चबूतरे से नीचे धकेल दिए जाने पर जब मैं दर्द से चिल्ला रही थी, तो पण्डित जी ने मुझे उठाया या संभाला नहीं, बल्कि बाल्टी लेकर पास के कुऐ पर नहाने चल दिये और बडबडाने लगे, चमारी ने अपवित्र कर दिया, सर्दी में दुबारा नहाना पड़ेगा।

    एक दूसरी घटना,

    जिसमें में किसी की पहचान प्रकट करके उनका सम्मान या अपमान नहीं करना चाहती। परन्तु विश्वास करें कि मैं सच लिख रही हूँ।

    रैगरों (चमारों) के एक बीए पास युवा ने अपने पिता के बार-बार मना करने के बाद भी अपने विवाह के समय दूल्हे के रूप में घोडी पर सवार होकर अपनी निकासी करवाने की जिद की तो क्या हुआ?

    सबसे पहले गाँव के पण्डितजी ने गाँव के राजपूत से कहा, ठाकुर साहब ये क्या हो रहा है? चमारों का छोरा धर्म को भ्रष्ट करने पर उतारू है। पढलिखकर अपने आपको साहब समझने लगा है। इसे बताओ कि चमारों की औकात क्या होती है। केवल पाँच मिनट में दूल्हा बना रैगरों का युवा लहूलुहान हो गया, उसकी एक आँख फोड दी गयी, तीन दांत तोड दिये और इसके बावजूद भी हमारे रैगरों ने एक अन्य पण्डितजी को बुलवाकर अस्पताल के बैड पर लेटे-लेटे की उस युवा का विवाह करवाया, क्योंकि पण्डितजी ने बताया की हिन्दू धर्म के अनुसार तेल चढने के बाद यदि विवाह नहीं हो तो ऐसे लडका-लडकी जीवन में कभी भी संतान का सुख नहीं पा सकते हैं।

    इन दो घटनाओं को सामने रखकर मैं पूछना चाहती हूँ कि दोनों पण्डितों ने जो सुलूक किया और अन्य लाखों करोडों लोगो के साथ हजारों वर्षों से आज तक किया जा रहा है, वह उन्हें किसने सिखाया है?

    क्या इसके लिये हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्म के ब्राह्मणों द्वारा रचित ग्रंथों में रचित क्रूर, शोषक, विभेदकारी और मानव को मानव नहीं समझने वाले सूत्र व श्लोक जिम्मेदार नहीं हैं।

    अन्य राज्यों का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मैं बतला दूँ कि आज भी कमोबेश राजस्थान के गाँवों में ऐसे ही हालात हैं।

    आपके यहाँ के पाठकों के अनुसार मैं यह भी कहना चाहती हूँ कि यदि इन सब बातों का विरोध नहीं करें तो हम सच्चे हिन्दू और यदि इनका विरोध करें तो क्रिश्चन, देशद्रोही क्या यही न्याय है?

    एक सरकारी भेदभाव का उदाहरण भी प्रस्तुत है।

    राजस्थान में एक उच्च स्टेटस वाली ब्राह्मण महिला के साथ, बलात्कार किया। यह घटना स्थानीय समाचार-पत्रों में पहले पृष्ठ पर छपी। इस पर तत्कालीन मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे ने स्वयं ने पुलिस अधीक्षक को 24 घण्टे में अपराधी को गिरफ्तार करने के लिये हुक्म दिया और पुलिस ने भी तत्काल हुकम की पालना की।

    इसके बाद उस महिला को सरकारी खर्चे पर, सरकारी वाहन में ससम्मान बुलवाकर मुख्यमन्त्री निवास में स्वयं मुख्यमन्त्री ने मुआवजे के रूप में दस लाख रुपये का चैक भेंट किया। इसको मीडिया द्वारा बढचढकर सराहा गया।

    लेकिन इसके करीब दो सप्ताह बाद ही दलित वर्ग की एक महिला के साथ ब्राह्मणों एवं राजपूतों के पांच पुरुषों/लडकों ने सामूहिक बलात्कार किया।

    पुलिस ने महिला की रिपोर्ट तक नहीं लिखी, पुलिस अधीक्षक ने महिला से मिलने से इनकार कर दिया।

    स्थानीय समाचार-पत्रों में कहीं अन्दर के पृष्ठ पर एक कालम की खबर छपी।

    मुख्यमन्त्री से मिलने आयी तो स्वागत कक्ष में कहलवा दिया गया कि कलेक्टर के नाम चिट्ठी लिख दो मुआवजा मिल जायेगा।

    जिस पर कलेक्टर ने दस हजार रुपये का मुआवजा तो दे दिया, लेकिन अपराधी दो वर्ष तक खुलेआम घूमते रहे। जबकि पीड़ित महिला ने नामजद रिपोर्ट पेश की थी।

    इस मामले को एक छोटे समाचार-पत्र ने हैडिंग दिया था-

    “राजे तेरा कैसा राज-एक को दस लाख, दूजी को दस हजार?”

    कुछ समय पूर्व अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन इसका श्रेय कांग्रेसी सरकार को भी नहीं दिया जा सकता। क्योंकि सबके सब एक जैसे हैं। सबके दिमाग पर ब्राह्मणों ने कब्जा कर रखा है, जो कोई ब्राह्मणों के इस मोहपाश से मुक्त होना चाहता है, उसे ब्राह्मण धर्मविरोधी घोषित कर देते हैं।

    गाँवों में मन्दिरों में प्रवेश की जिद करने वाले कितने सारे भोले भाले लोगों को गाँव के पण्डित जी के आदेश पर स्थानीय बाहुबलि राजपूत और जाटों ने समाज से बहिष्कृत किया हुआ है। यहाँ प्रवक्ता पर भी ब्राह्मणों की नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाने वालों को द्रेशद्रोही घोषित किया जा रहा है? क्या ब्राह्मणों की हाँ में हाँ मिलाना ही न्याय एवं हिन्दू धर्म है।

    श्रीमान कपूर साहब से उपरोक्त विवरण को सामने रखकर मैं पूछना चाहती हूँ कि आम लोगो की भाषा में सारगर्भित तरीके से बताने का कष्ट करें कि-

    हिन्दू धर्म है क्या?

    हिन्दू धर्म का पालन करने के लिये हम जैसे लोगों को क्या करना चाहिये?

    अब हिन्दू धर्म की कैसे रक्षा हो सकती है?

    और हिन्दू धर्म के रक्षकों से हम जैसों की रक्षा कैसे संभव है?

    हिन्दू धर्म के नाम पर हजारों सालों से हम पर जुल्म और आतंक कायम करने वालों को यदि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने सक्रिय कार्यकर्ता नियुक्त करता है, शिवसेना में सम्मान दिया जाता है, भारतीय जनता पार्टी में ओहदे दिये जाते हैं और प्रवीण तोगड़िया के कार्यक्रमों के आयोजनों की जिम्मेदारी दी जाती है तो भी क्या हमें सिर्फ हिन्दू धर्म, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी की ही जय बोलनी चाहिये?

    क्या इन हालातों में भी हमें यह भी कहने का हक नहीं है कि हिन्दू धर्म स्त्रियों, दलितों, आदिवासियों और हर कमजोर व्यक्ति को इंसान की तरह जीने का अधिकार ही नहीं देता है?

    मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं है, कि आपके ग्रंथों में क्या-क्या अच्छा लिखा है, मैंने तो वह लिखा है जो हकीकत में हो रहा है। क्या कोई है, जो इस बात का जवाब देगा?

    हालांकि मैं जानती हूँ कि मैंने मेरा परिचय सार्वजनिक करके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद के गुण्डों से दुश्मनी मोल ले ही ली है। परन्तु ये मेरा कुछ भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि अब मैं राजस्थान से बाहर अपने पति के साथ निवास करती हूँ।

    सम्पादक जी मैं मेरी उक्त टिप्पणी को अन्य कुछ पाठकों, अपने सुभचिन्तकों आदि को भी भेज कर रही हूँ, क्योंकि मुझे इसकी भू्रणहत्या की आशंका है।

    कृपया मेरी आशंका को निर्मूल सिद्ध करने का कष्ट करें।

    • Ye hai hindu parampra. Aapne sahi kiya he. Jo log aaj tak aap logo par julm karte aayen hen un nich logo se na daren. Khul kar samne aayen. Ye sirf ativadi, rudhivadi sankirn mansikta ke log sirf ek sangathan visesh ke log hen. Befikr rahen ye abhivyakti ka uchit manch he. Isme koe duragrah mujhe pratit nahee hua. Thnx

    • mai soch hi raha tha ki abhi tak kyo nahi mere rajy ka naam aya our abhi tak kyo nahi kisine koe achchhi si kahani bana kar chhapi???chalo apane chhap di,bahut dukh huva sun kar ki apane jivan ki ye sari dasha brahamano ke karan hai,mai ye bhi maan leta hu ki apane jo bhi likha vo puranatah saty hai,par ab ap bataeygi ki age kya???jo-jo atyachar apane likhe hai vo vapas brahmano ke sath karengi???ya jato ya rajputo ke sath???eska koe solution batane ka kasht karengi???
      rahi bat baba sahab ambedakar ki to jakar vapas padhiye unko,kitana sangharsh kiya unhone mandir mai pravesh ke liye,kitana karun hokar pukara brahamno ko,kyo???agar hindu dharm kharab tha,ya gatiya tha,ya brahman rakshash jati thi to vo kyo pukarate??lekin unako saflta nahi mili,esliye unhonhe bodh panth svikar kiya,pata hai kyo???kyoki bodh our hindu alag nahi hai,lekin ye baat aap shayad bhul gayi ki keval vo hi nahi the en jatigat vyavstha ke divaro par nakhun khurachane vale,veer savarkar ne to saflata purvak vanchit bandhuo ko mandir mai pravesh dilvaya tha,ye veer savarkar kon the??pata karana jakar.
      aaj ka bharat 100 sal pahale ka bharat nahi hai,aaj brahamano ki rasoyi mai chamar kahalane vale bandhu ko sath baith kar khana khate dekha ja sakata hai,esi tarah safayi ka kam karane valo ke gar brahaman ya rajput ko bhojan karate,agar esa apane nahi dekha to ye apaka durbhagy hai mene dekha hai,balki kiya bhi hai,our vo bhi ek do bar nahi kitani hi bar,ye parivartan kese aya???kya savidhan ke karan??kya ambedakar ke karan???jise aap gunda kah rahi hai na us sangh ke karan aya hai.
      jara batayengi mene kab kisi prakar ke koe shoshan ka samrthan kiya??lekin kisi ko bhi bina jane brahmano ko gali nikalane ka adhikar nahi hai,achchhe our bure sab samaaj me hai,ap chahe to esi 10 gatnaye mai chamar samaj ke bare mai de dunga,lekin esa karna na mera lkshay hai na udheshshy,na esase kisi ka bhala hone vala hai.
      katuta tyag kar dekhiye sangh kya kya parivartan la raha hai………………….

      • lagta hai ki tum hi hamare poorvajon ki atyacharee kom ke avshesh ho. tumko kisee ne ye nahin sikhaya ki kaisee ke dukh dard ka majak udana hundu sanskrati ka hissa nhin hai. sawalon ke uttar diye jate hai, ulte sawal nahin kiye jate. jise tum kahin bata rahe ho, yadi yahi ghatna tumhare sath ghati goti to? tumne sweekar kiya hai ki tum rajasthan ke ho aur tumne jaise bhasha ka upyog kiya hai, usse lata hai ki rajasthan men abhi bhi atyachari jaise pandit hai.

        • mujh par vyktigat tipapni karane se bach sakate the.mene kya majak kiya???ab age kya ho ye batao??yu hi brahamano ko gali nikalate raho our brahaman sunate rahe???agar koe prashan puchhe to galiyo ki tadat our jyada????apako pata hai ye sare tark apako chrition missinariyo ki sites par mil jayenge,ya unaki kitabo me mil jayenge.
          en mata ji ke sath jo atyachar huva hai vo mene to nahi kiya na,ya mere parivar ne to nahi kiya na,ya kahi esa to nahi ki ye apani frustation ko brahamano ke upar dal rahi hai,kon jane saty kya hai.lekin esi kahaniya ya gatnaye na jane kitni hi hai our kitani ban jati hai uname kitna ansh saty ka hai ya asaty ka iswar jane par esaka arth ye nahi hai ki kisi ko hindu dharm ko kosane ka brahmano ko galiya bakane ka adhikar mil jaye.
          apane apane gar ke sanskaro ke karan sabaki bhasha vesi vesi ho jati hai galiya bakane vale ke garo ka sankar kaisa hai ye kahani ki mujhe koe avashaykta nahi hai.
          asha hai ap samajhenge ki apane kya likha hai…………

    • आपने जो बातें बताई है जैसे छुआछुत काफी पुरानी कुपराम्परा है. प्राचीन भारतीय समाज मैं पूरी सामाजिक व्यवस्था भिन्न थी. समाज को ब्रह्मिन, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र जैसे वर्गों मैं उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के आधार पर भिवक्त किया गया था. छुआछुत कुप्रथा काफी बाद मैं फैली, विदेशी आक्रमणों के बाद कुछ ज्यादा ही.

      एक बार फिर बता दूँ यह वर्ग विभक्तिकरण लोगो के कार्यों के आधार पर था. यह सब उस समय के समाज को व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए था ताकि विभिन्न वर्गों के बीच अव्यवस्था न फैले. यह सब बहुत व्यवस्थित था. इसके उदाहरण भी हैं.

      जैसी एक प्रकार के बीजों को एक साथ उगाने पर वह समाज के लिए ज्यादा हितकारी हैं. न की जंगल मैं अनेक प्रकार के बीजों का मिश्रण जो की किसी के काम भी नहीं आता. उस समय इन वर्गों के साथ व्यवहार भी उच्च दर्जे का होता था.

      केवट का उदहारण है शबरी का भी है
      कर्ण को भी उस समय दुर्योधन ने पूरा सम्मान दिया था
      एकलव्य जरूर अपवाद है…किन्तु इसका भी शास्त्र मैं अनुकूल जवाब है कोई विद्वान इसका जरूर उत्तर देगा. मुझे दुःख है की कई शास्त्रों के विद्वान प्रवक्ता से परिचित नहीं हैं या वो कंप्यूटर पर उपलब्ध नहीं है, नहीं तो वे इसका सटीक उत्तर दे सकते हैं. भविष्य मैं जरूर जुड़ेंगे. आप कभी प्रवचन या शास्त्रों को सुनने नहीं गयी इसीलिए आप ऐसी बात कर रही हैं. वंहा आपको जरूर इन बातों का उत्तर मिलेगा.

      • विनय जी– आपका सादृश्य-तुल्य(Analogous) निम्न उदाहरण मुझे प्रसन्न कर गया।
        ” जैसी एक प्रकार के बीजों को एक साथ उगाने पर वह समाज के लिए ज्यादा हितकारी हैं. न की जंगल में अनेक प्रकार के बीजों का मिश्रण जो की किसी के काम भी नहीं आता.” वाह।
        उसीकी पुष्टि करते हुए, मैं कुछ, आजके परिप्रेक्ष्य में जोडना चाहता हूं।
        {पाठकों से एक ही, बिनती है।:=> प्रश्न अवश्य पूछिए,पर इसी संदर्भ क्रमसे, इससे अमूल्य समय बचेगा, आपका/मेरा भी, अन्यथा ना लें, मेरे कार्यालयके बाहर कई क्लायंट खडे हैं}
        वर्णके के ४ आधार होते थे। (१) व्यवसाय बंदी (२)स्पर्श बंदी (३) रोटी व्यवहार (४) बेटी (विवाह ) व्यवहार।
        आवश्यक है, विचारना। अब विचारिए।
        (क) क्या आज व्यवसाय बंदी है?
        आज “क्षत्रिय व्यवसाय” सेनामें, सारी जाति/वर्णों के लोग पाए जाते हैं।शासन भी, “क्षत्रिय व्यवसाय” में) हर वर्ण/जाति के नेता पाए जाते हैं,
        वैश्य व्यवसाय में सभी पाए जाते हैं।कई वैश्य, आज शिक्षक (ब्राह्मण व्यवसाय) में भी है। कोई बंदी नहीं।
        सेवा (डाक्टरी भी सेवा शूद्रोंका व्यवसाय) सभी पाए जाते हैं।
        “बाटा” भी जूते बेचता है।
        प्रमाणित हुआ कि, व्यवसाय बंदी समाप्तिकी(शायद पूरी समाप्त नहीं है) पर राह पर है।
        (ख) स्पर्श बंदी? आज विमानमें, रेलमें, बसमें आप किसी के भी निकट बैठते हैं, स्पर्श होता ही है।अस्पृश्यता समाप्तिकी राह पर ही, है। (प्रमाणित)
        (ग) रोटी बंदी? क्या आप होटलमें, विमानमें, इत्यादि खाते हैं? किस जातिका बनाया हुआ होता है? जानते हैं? नहीं ना? तो, रोटी बंदी खतम है।(प्रमाणित)
        (घ) बेटी व्यवहार कुछ टिका हुआ है। क्यों? १ तो वह विवाहेच्छुंओंका वैयक्तिक चुनावका “स्वतंत्र मानवाधिकार” है। आप अपने बच्चोंको बल पूर्वक उनकी इच्छाके विरूद्ध चाहे किसीसे विवाह नहीं करवा सकते। और एक बहुत महत्वका बिंदू==> विवाह सफलता के लिए, अनुरूपता (Compatibility) के आधार पर होने चाहिए।जहां ऐसा नहीं किया जाता, वह पश्चिम खाईमें फिसल रहा है।विवाह एक पेडकी डाली काटकर दूसरे पेडपर सफलता से लगाने समान हैं।आप बबूल के पेडपर कदंब की डाली सफलता से लगा सकते हैं, क्या? नहीं ना।
        ==> पहली तीनों बाते समाप्तिकी राह पर है। यह समय लेने वाली धीमी प्रक्रिया है। मेरे दादाके, पिताके , मेरे और मेरे बच्चोंके जीवन व्यवहारमें बहुत बहुत अंतर आया है।बटन दबाया, और यह खतम हुआ, ऐसा नहीं है।
        भारतको परायोने विघटित किया, अब हमारे अपने ऐसा ना करे।
        जिस बट वृक्ष के नीचे सभीको छाया प्रदान हो रही है। उसीको ना तोडा जाए। जो,भी यह करने जा रहे हैं।आज चुनाव जीतेंगे, इस कर्मका फल कलका भारत भुगतेगा।
        भेदको मन से मिटा दीजिए, यही उसकी जड है।नहीं तो मनुष्य और कुछ ढूंढ लेगा भेद करने के लिए। मैं किसीसे भेद भाव नहीं करता। मुझे यही संस्कार दिया गया है। मैं अपने आप को हिंदू मानता हूं।आप प्रबुद्ध पाठकों को अल्प शब्दों में समझाया है,जिसे पौने घंटे के व्याख्यान में(अन्य और पहलुओं सहित) अंग्रेजीमें प्रस्तुत किया था।
        शास्त्रभी यह मंत्र देता है=> ॥यस्तर्केण अनुसंधते स धर्मो वेद नेतरः॥
        अर्थ: जो तर्क पर खरा उतरे वही धर्म है, इतर नहीं।
        हमारी स्मृतियां भी १८ है। केवल “मनु” की लिखी ही नहीं। याज्ञवल्क्य, जैमिनि, देवल, दाक्षी,……इत्यादि.
        ॥भेदको मन से मिटा दीजिए, यही उसकी जड है॥
        ।पूरा पढके प्रश्न पूछिए।

    • महोदया,
      आपके राजस्थान का तो मुझे पता नही, किंतु हमारे महाराष्ट्रमे शादी-रिश्ते के अलावा और मामलोमे जात की कोई बात नही होती है.

  46. Respected Sampadak Ji,
    Pravakata.Com

    main Bade dhukh ke saath likh rahi hun ki dr. rajesh kapoor ji ke in vakyon men (“अमिता जी आप हिन्दू हैं की नहीं,….” “इन मूर्खों को कितना सहें…..” ) aur anya anek lekon men aisi hi bhasha ka prayog kiya hai aur yah sab kuchh aapko bhi thik laga hoga tab hi to aapne inhen prakashit kiya hai. aapki soch RSS & BJP ki samrthak hai, aap hinduvadi & Dalit-aadiwasi Virodhi hain yah bat to pravakta ka har paathak jaan chuka hai, lekin aap stree virodhi (arthat apni mata bahnon ke virodhi) bhi hain aur nishpaksh patrakarita ka matlab bhi nahin samjhte hai, yah baat aapne dr. kapoor & abhishek purohit ki asanyamit aur ghatiya bhasha ko prakashit karke poori tarah se siddh kar di hai. yahan par kisi anya ne jo kuchh bhi kaha hai uska brahamnon ke hi granthon men praman hai, likin ye do log evam inke alava ranjan viswash manmani, vyakigat, asanymit, amaryadit, garimaheen aur ghatiya tppani kar rahe hai aur dhukh hai ki editor ke roop men aapka inko poora sanrakshan bhi mil raha hai ! Maf kijiyega mujhe to aisa lagata hai ki jaise Dr. Man Mohan Singh PM hai, lekin sab kuchh Soniya Gandhi ke hath men hai, Shyad aise hi pravakta men aapko nam ke liye editor banaya hua hai, sab kuchh ukt logon ke haath men hai? maine aisi ghatiya tippani anya kisi port par nahin dekhi, yadi aap editor hain aur nishpaksh hai to krapya swayn ko siddh bhi karen. Thanx

    • Rashmi ji.
      Shuruat me mujhe bhe aisa he laga tha lekin mein galat thi. Sampadak ji har tarh ki tippani prastut karte hein aur unke samay aur drishtikon ki qadar karte hue hamko ye dhyan rakhna hoga ki yahan sambhav nahe ki wo har tippani padh pate ho. Aap apne upar ki tippani dekhen clear ho jayga.
      Aap bina is baat ki parwah kiye ki log kya keh rahe hain apne dhrm ke raste rehkar apna karm karen. Hamko esi baten sunkar samjh to aata he ki duniya me kitne prakar ke jeev he. Jb kabhi ham real life me inka virodh karte rahenge to ye kis had tak hamko hataash karenge iska ham yahan anuman laga sakte hen.
      Aapki. Deepa sharma. Dhrampur dehradun. Uttrakhand.

    • रश्मि जी मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ की आप कम से कम हिन्दू नारी तो नहीं हैं. वोट बैंक के डकेतों के लिए लिखनेवाले प्रायोजित लेखक हैं.
      देश मैं नारी का बहुत सम्मान हुआ है नारी बहुत शक्तिशाली थी है और रहेगी इसके उदाहरण देने की जरूरत नहीं है.

      कुछ अपराधियों ने उसको जरूर अपमानित किया है लेकिन अपराधी और पूरे पुरुष समाज की तुलना नहीं की जा सकती. आज भी हर घर मैं नारी की ही सत्ता चलती है, आज जो प्रस्तुत किया जा रहा है सब भारतीय नारी को टार्गेट करके बहुराष्ट्रीय कंपनिया यह स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं की नारी के साथ अत्याचार हुआ है और अब उसको इसका बदला लेना है या इसके लिए उसको अपनी छवि बोल्ड सेक्सी किसी की परवाह न करने वाली न समाज की की न परिवार (परिवार को तो अब आनोर किलिंग के नाम पर बेटियों का दुश्मन की भांति प्रचारित किया जा रहा है)

      यह पूरा षड़यंत्र कुछ देशों और हमारी शक्तिशाली परंपरा जिसके कारन आज तक भारत बचा हुआ था का है इसे समझने के लिए एक दूरदृष्टि चाहिए.

    • रश्मीजी,
      आप RSS के विषय मे कुछ लिखते समय उसके बारेमे जान लिजीये. RSS दलीत/आदीवासी विरोणी नही है. एनका ” आदीवासी कल्याण आश्रम इस क्षेत्रमे अच्छा कार्य कर रहा है. वह नारी विरोधी भी नही है, उसकी “राष्ट्र सेविका समिती” नामसे महीला शाखा कार्यरत है.

  47. ॥दासता॥
    (संदर्भ श्री मातृवाणी:)अरविंदाश्रम पॉंडिचेरी (श्री अरविंद सोसायटी)
    श्रींमाँ: कहती हैं:
    जब तक कि स्त्रियां अपने-आप को स्वतंत्र न करें तब तक कोई कानून उन्हें स्वतंत्र नहीं कर सकता।
    कौन-सी चीज है, जो उन्हें दासी बनाती है?
    १-पुरुष और उसके बलके प्रति आकर्षण,
    २-घरेलू जीवन और सुरक्षाकी कामना,
    ३-मातृत्व के लिए आसक्ति।
    यदि स्त्रियां इन तीन दासताओं से मुक्त हो सकें तो वे सचमुच पुरुषों के बराबर हो जाएंगी।
    पुरुषकी भी तीन दासताएं है:
    १- स्वामित्वकी भावना, शक्ति और आधिपत्य के लिए आसक्ति,
    २-नारी के साथ लैगिक संबंध की इच्छा,
    ३-विवाहित जीवन की छोटी-मोटी सुविधाओं के लिए आसक्ति।
    यदि पुरुष इन तीन दासताओं से मुक्ति पा लें, तो वे सचमुच स्त्रियों के बराबर हो जाएंगे।
    श्रींमाँ: (संदर्भ श्री मातृवाणी:)अरविंदाश्रम पॉंडिचेरी (श्री अरविंद सोसायटी)

  48. अमिता जी आप हिन्दू हैं की नहीं, ये तो आप ही जानें पर आप द्वारा जो ब्राह्मणों के खिलाफ फतवा जारी किया गया है, जानती है की इसकी शुरुआत क्यों और किसने की थी और इसका उद्देश्य क्या है ?
    * अंग्रेजों को हिन्दुओं को धर्मान्तरित करने में सफलता नहीं मिल रही थी. तब उन्होंने इसके कारणों को जानने का प्रयास किया तो पता चला की हिन्दू समाज ब्राह्मणों के कहने से चलता है. तब हमारेब्राह्मण बड़े ज्ञानी, तपस्वी, त्यागी और संयमी होते थे. सारा हिन्दू समाज ब्राह्मणों की तपस्या, ज्ञान व त्याग के कारण उनके कहे अनुसार चलता था. इस बात से ईसाई मिशनरी बड़े चिढ़ते थे. तब ब्राह्मणों को अपमानित, प्रताड़ित और पतित बनाने के प्रयासों की शुरुआत हुई. उस शत्रु-षड्यंत्र का शिकार बन कर अगर हम ब्राह्मणों को अपमानित करें तो यह तो अपने समाज के शत्रुओं की सहायता करना हुआ. वैसे भी अकारण किसी समाज या वर्ग को अपमानित करने वाली भाषा बोलना असभ्यता, अन्याय और मुर्खता व दुष्टता की बात नहीं है क्या? बिना किसी आधार या प्रमाण के ब्राह्मणों को अपमानित करना सरासर अन्याय पूर्ण है. कुछ कहना ही है तो ये विद्वेष, घृणा फैलाने वाली फतवों की भाषा बंद करके ; जो भी कहना है प्रमाणों और तथ्यों के आधार पर सही भाषा में कहना चाहिए. वैसे भी सच तो यह है न कि सारा समाज जिस अनुपात में बला बुरा है, ब्राहमण भी उसी अनुपात में अछे या बुरे हैं. इस बात में कोई गलती है तो प्रमाण के साथ बात करें अन्यथा ये समाज तोड़क देश के दुश्मनों की भाषा बोलनी बंद करें .
    #हिन्दू धर्म, हमारे ग्रंथों व ब्राह्मणों को बदनाम करने के सुनियोजित प्रयास हमारे देश के दुश्मनों ने किये हैं, अपनी बात के प्रमाण दे रहा हूँ ———–
    *वेदों का अनुवाद करने वाले मैक्स्मुलर की नीयत क्या थी और उसकी नियुक्ती करने वालों की नीयत क्या थी, ये देखें,
    -ईसाई पंथ के प्रचार के लिए स्थापित बोडन चेयर पर मैक्समुलर की नियुक्ती की सिफारिश करते हुए कलकत्ता के बिशप काटन ने लिखा था, ”…हमारे मिशनरियों को संस्कृत जानने और हिन्दू धर्म शास्त्रों तथा दर्शनों को समझने और हिन्दू पंडितों से उनकी अपनी ही धरती पर उन्हें चुनौती देने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.” ईसाईकरन से जुड़े आक्सफोर्ड के एक सक्रीय सदस्य ‘डा.ई.बी.पुसी’ ने मैक्समुलर को लिखा था,
    ”…आपका कार्य भारतीयों को ईसाई बनाने के प्रयत्नों में नवयुग लाने वाला होगा और और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को अपने को धन्य समझाने का अवसर होगा जिसने आपको आश्रय देकर भारत को ईसाई बनाने के प्राथमिक और दूरगामी प्रभाव वाले कार्य को सरल बना दिया है.” आप समझ रहे हैं न कि आक्सफोर्ड जैसा सम्मानित समझे जाने वाला विश्वविद्यालय भी धर्मांतरण के कट्टरपंथी कार्यों का संचालक , पोषक है.
    स्वयं मैकाले ने वेदों के अनुवाद के अपने गुप्त उद्देश्य को प्रकट करते हुए अपनी पत्नी को पत्र लिखा था कि उसके द्वारा किया वेदों का यह अनुवाद हिन्दू धर्म की जड़ें उखाड़ने वाला प्रमाणित होगा. तब भी इसाईयत का प्रसार न हो तो ये किसका दोष है.
    साफ़ है कि वेदों का अनुवाद केवल हिन्दू धर्म को समाप्त करने के लिए करवाया गया था. ये भी साफ़ हो जाता है कि वेदों के अर्थ जान-बूझकर गलत और बुरे किये गए. इसके बिना उनके गुप्त अजेंडे की पूर्ती कैसे होती ?
    इसी गलत नीयत से ब्राह्मणों, हमारे धर्म ग्रंथो को सच-झूठ मिला कर बदनाम करने का षड्यंत्र अनेक दशकों से चल रहा है. अतः अगर हम भी उस षड्यंत्र का एक हिस्सा नहीं तो गैरजिम्मेवार, असभ्यता पूर्ण टिप्पणियों से हमें बचना चाहिए.

    • Mahoday rajesh ji, shat shat naman karte hue,
      gerzimmevar aur asabhyatapurn tippani se bachna? Ek aur virodhabhasi kathan he apka. Apko apke dvara ki gaee tippaniya (purv me mere tatha anay ke prti yadi apko smriti sambandhi dosh na hoto, vivekanand, dyanand, patel, ram mohan ray aur bhagat singh ko bharat ninda ka rogi btana) yaad ho to mahoday dekh len aur ye pehle khud par laagu karen. Aap se fir nivedan he virodhabhasi comment na kiya karen hum ulajh jate hen.
      Deepa sharma ‘pretbadha’

  49. हमें धर्मों से मुक्ति दे दें… मसला हिंदू या मुस्लिम का कतई नहीं है। स्त्री के मामले में सारे धर्म एक-से हैं। कृपया धर्मग्रंथों का हवाला न दें, उसमें जो कुछ भी लिखा गया है, वो सिर्फ शब्द हैं। कर्म तक कभी पहुँचे ही नहीं। स्त्री को देवी और शक्ति बनाकर उसकी जो दुर्गति की जा रही है, वो सारा कुछ ब्राह्मणों की ही देन हैं, यदि यहाँ किसी को ये लगता है कि ये ब्राह्मण विरोध है, तो लगे… मैं ब्राह्मण होते हुए भी इस बात को स्वीकार करती हूँ कि स्त्री की दुर्दशा के लिए ब्राह्मणों से ज्यादा और कोई जिम्मेदार नहीं है। यहाँ मसला धर्म का नहीं है, देश का नहीं बल्कि वर्चस्व का है, पुरुष कभी-कभी अपनी सत्ता को चुनौती मिलती सह नहीं पाता है, बस इतना ही मामला है।

    • jara bateyegi konsi brahaman hai aap??matalab apaka gotra kya hai??kon si shakha hai???kon sa kul hai???ap koe sarvagy hai??ya fir brahamano ki pratinidhi???ya koe farji id vali???mene ne apko vote nahi diya,fir apako ye thekedari kisane di ki yah bataye ki kon doshi hai our kon nahi???ya ap hi judge hai???to kon se kanun se esa kaha apane???matalb konsa logic hai esake pichhe????ya brahaman meniya se pidit hai???brahaman shabd ka matalab pata hai???ya brahaman kon hota hai ye bhi pata hai???

      • मुझे कुछ भी स्पष्ट करने की जरूरत नहीं है। जो लोग सही बात को भी सह नहीं पाते, वो ब्राह्मण तो क्या भगवान होने का दावा करें तो करते रहें… जो लोग इंसान होने के सच को नहीं समझ सकते, वे दुनिया के सारे धर्मशास्त्र समझें भी तो क्या समझ लेंगे। आप और आप जैसे बहुत सारे ब्राह्मणों को लगता है कि धर्मग्रंथों की रचना स्वर्ग में हुई है… वे पृथ्वी की ही रचना है और सारा का सारा सुविधा का शास्त्र है… अपने घरों में स्त्रियों को (माँओं और पत्नियों को) आपके लिए व्रत-उपवास करते देखकर कभी आपके मन में जागा कि यदि ये स्त्रियाँ आपके जीवन में न हो तो आपकी स्थिति क्या होगी? जो इतना सा सच नहीं खोज पाए… उससे बहस करने का क्या मतलब है? स्त्री की स्थिति का किसी धर्म, किसी जाति और किसी देश से संबंध नहीं है… ये सुविधा का दर्शन है, बस… और यदि आपको ये दिखता नहीं तो फिर कहा जा सकता है कि आप आँख वाले अंधे हैं… माफ करेंगे… क्योंकि ये तरीका मेरा नहीं है, लेकिन मुझे ये कहने के लिए मजबूर होना पड़ा है

        • esa pratit hota hai ki ap apane gar mai bahut jyada pratadit hai,mujhe apase our un sabhi mato bahano se sahanubhuti hai jo apane pane garo mai ya bahar shoshan ka shikar huvi hai,jaha tak mere gar ki bat hai jo bahan ji apako uasaki chinta karane ki jarurat nahi hai vo bahut prasann hai our chain purvak apane apane kartavyo ka palan kar rahi hai.
          rahi baat mujhe kosane ki to jaha tark nahi de sake vaha kosana apake sanskaro ko shobha de sakata hai mujhe nahi.
          je ram ji ki.

        • अमिता जी आप के साथ कुछ अन्याय हुआ है ऐसा लगता है, लेकिन उससे ज्यादा यह लगता है की आप किसी के बहकावे मैं आ गयी हैं, ये किसी प्रकार की फिल्म, सीरियल या अन्य किसी माध्यम के द्वारा आपके अवचेतन मस्तिस्क मैं { की महिलाओं के साथ अब तक बहुत बुरा हुआ है } गहरे तक बैठा दिया गया है, आपकी उम्र की लड़कियों पर इस दुष्प्रचार का सबसे ज्यादा असर हुआ है. किसी को दोष देना सही नहीं है, ये वास्तविकता जब तक आपको समझ आएगी तब तक एस देश का विनाश हो चूका होगा. और अफ़सोस जब कहने सुननेवाला भी कोई नहीं होगा.
          अद्रश्य शत्रुओं ने हमारे देश की महिलाओं के दिमाग पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है. (मीडिया, फिल्म एवं प्रचार माद्यम के द्वारा) कृपया अपनी सोच को फिर से व्यवस्थित करें , आपकी सोच इस देश को बर्बाद कर देगी.
          मुस्लिम समूहों के द्वारा अथाह धनबल के द्वारा ये सब किया जा रहा है. इसका एक उदाहरण आपको देता हूँ एक बहुत बड़े समाचारपत्र की आज की खबर है ” साइना नेहवाल अपने विदेशी दौरे पर आमिर शाहरुख़ की फिल्में देखेंगी.” ऐसी कई ख़बरें जिन्हें मीडिया की द्वारा बताया जा रहा है

          न्यूज़ चेंनेल, सीरिअल्स, फिल्मो (आमिर शाहरुख़, सलमान एवं माफिया के धन से तैयार )
          इन ख़बरों, सीरिअल्स, फिल्मों का प्रमुख उद्देश –
          १. हिन्दू महिलाओं को ये बताना हिन्दू पुरुषों ने उनका अपमान किया है.
          २. हिन्दू महिलाओं का आज तक शोषण हुआ है
          ३. हिन्दू पुरुषों को नीचा दिखाना
          4. मुस्लिम पात्रों को श्रेष्ठ दिखाना
          5. हिन्दू रीतियों रिवाजो का उपहास उड़ना
          ६. मुस्लिम पात्रो को कद काठी के दम पर श्रेष्ठ दिखाना
          ७. मुस्लिम पात्रों को अमीर एवं हिन्दू पात्रों को गरीब दिखाना (३ एडियट)
          ८. मुस्लिम पात्रों को महिलाओं का हितेषी बताना (डेलिवरी वाला सीन ३ एडियट) (चक दे मैं भी कई सीन हैं )
          ९. हिन्दू त्योहारों का उपहास उड़ाना (नयी वाली डान )
          १०. हिन्दू महिलाओं के मुस्लिम पात्रो से अन्तरंग सम्बन्ध दिखाना (पीपली लाइव मैं जर्नलिस्ट और मंत्री सलीम किदवई)

          और भी बहुत कुछ….

          अगर आप इन प्रायोजित फिल्मों को ध्यान से देखेंगी तो आपको बड़ी भरी साजिश समाज आएगी….काश हमारे देश की महिलायें इस षड़यंत्र को समझ पायें.

      • Mahoday,
        brahmano me itne varg hein, to gair brahmano ki to aap kya kehte honge. Aap sarvsresht brahman hein, ham bhe maan jate hen, isi granthee ke khilaaf to ham likhte hen. Ab ye aapko ye sb btatayngi to yen ken inko brahman ki paridhi se bahar kar hi denge. Ye hamko vishwas he ji, aur rahe baat judge ki, to mahoday wo to aap hi hein. Sada se, manusmrti, ved aur anay granthon ki vyakhya karne ka ekadhikar lekar aap judge hi to bane hue hein, ek stri ne zara kya likha aapke andar ka purush brahman jag gaya. Aapko fir btati hun. Hay tulsidas ji ke bhakt, manusmirti ke diye tukde khane wale brahman putr, hay vedon ke gyata, hay bhagwad geeta ke khewanhar,
        desh me ab inka kanun nahee hai. Savindhan he jiske tahat article 19 me diye gaye bolne ke adhikar ke dvara ham judge nahee to faryadi zarur hein.

        • he devo ki bhumi deharadoon mai nivas karane vali meri vidhushi bahan!!apane mujhe ati shresht our sammaniy sambodhan diye usake liye mai hriday se abhari hu our atyant kritarth hu.
          ab mai to tahara bhayankar jativadi,our manu ke tukade par palane vala,jo manu maharaj mujhe kah kar gaye hai ki tum “pushti karana” ki kya dharmanukul hai,kya vedanukul hai,esliye “pushkrana” ho gaya.kya kare “purush brahaman” jo tahare,kabhi sote hi nahi hai,our jo-jo bhi sone ka abhinay karata hai unko bhi sone nahi dete hai.sabaki asuri nind ke dushaman jo hai……………….

    • जिन्हें तर्क समझमें आता है, उनके लिए मैं कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूं। तर्क, चर्चा या युक्ति प्रश्नोको केंद्रमें रखकर क्रमवार करने पर सुविधा रहेगी।आप जो माने वह मानने में आप को कोई रोक नहीं सकता। किंतु दूसरों को वही मनवाने के लिए आपको तर्क ही देना होगा। आप अपने मन में क्या मानते/ती हैं, वहीं दूसरे भी माने यह चाहते/ती हैं, तो फिर सभ्य भाषा में तर्क दें।गालियां देनेपर कुछ प्रमाणित नहीं होता, आपका घटियापन केवल प्रमाणित होता हैं।
      ====>
      (१) रात के अंधेरे में मान लें कि अकेली जा रही, नारी को कोई पुरुष दिखाई पडता है, तो दोनो में से भय लगने की संभावना किसे हैं?
      (२) सामान्यतः ऊंचायी किसकी अधिक होती है?
      (३)सामान्यतः वजन किसका अधिक होता है?
      (४) सामान्यतः अधिक शक्तिशाली कौन होता है?
      (५) विवाह के बाद सामन्यतः कौन किस के घर स्थायी रूप से रहने चला जाता है?भावनिक/मानसिक दृष्टि से भी, और भी ढेर सारे प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

  50. इन मूर्खों को कितना सहें जिका एक मात्र काम है की हिदू को लांछित , अपमानित करना? शायद यही सही है. अभी श्री कृष्ण को दी जा रही गालियों की गिनती सौ नहीं हुई है क्या ?

    • galiya to apane ko sambal pradan karati hai,our ye batati hai hindu vastav me sakshat shiv ka utaradhikari hai,lekin shiv ke es bholepan ke karan anek bhasmasur paida ho gaye hai par jald hi mohani rup ban kar svaym vishnu en bhasmasuro ka udhar karenge………………..tab tak farji logics our murkhata purn bato ka maja lijiye…………

      • Kitni sundar tippani ke hai ye btati he ki aap vastvik aur sarvsresht brahman hein. Lekin ye aaj ke yug me sambhav nahe he ki prtyak nar-nari in baton se darkar aapki puja kare. Jitna bhagwan apka he utna hi sbka he,
        mahoday lekin aapke vicharo se lagta he ki aap ishwar ki anupam kriti hen. Mahoday aapke gyan aur aasha ki aap ke alava jo sach kehne ka sahas karta he bhasmasur he.
        Naman he apko tulsi-manas putr

  51. bada vichitr hai esa lagata hai es manch par ese log hai jo jaan-bujh kar hinduo ko,brahamano ko galiya nikalane hi es manch par aye hai,jabaki unaka shastr ya bhoutik gyan do kodi ka bhi nahi hai.
    yaha ek bahan ji likhati hai durgavati,lakshimi bai mar dali gayi jese mano hinduo ne hi mara ho unhe???yaha likhate hai gargi damkayi gayi,kesi murkho vali bat hai???pata hai gargi koun thi???gari janak ki sabha me upashthit ataynt sammaniy vidhudhi thi jo yaglvay se shashtrath karati hai,ab ek bat bataeye ese vidhusi ko kisane our kab damkaya,batayenge jra??gargi kya puchh rahi hai our yaglavy kya bta rahe hai ye samjhana en kichad pekane valo ke bas ka nahi hai bas nam sun liye char lage hai hinduo ko galiya nikalane…………|
    satyata ye hai kichahe vo surya bharati ho,savitri ho,sita ho,gargi ho,maitri ho,mandan mishr ki patani ho,chahe vo madalasa ho chahe vo,satyvati ho,chahe vo dropadi ho ya kunti ya any koe our………….bharat ki ye nariya brahamgyani ke pad par prathishtit thi our es brahamgyani ka kya matlab hota hai vo vo hi jaan sakate hai jo apani vikrit mansikata chhod kar nirpeksh bhav se ved ka adhdhayayan kare…………..

    • Gargi ko kisne dhamkaya? Apko nahe pata? Aashchry he mahoday. Ab apko har baat btakar time he kharab karna hoga. Laabh vahan hota he jahan btane par samne vala samjhne ki yogyta rakhta ho, mahaan aatmaon ko ye baten samajh nahe aa sakti hen.
      Last me jo aapne nirpeksh bhav likh diya he usko likhte ki ham jese tulsi aur manuvadiyon ke anusar karen to aapka mantvye purn ho jata.
      Shubhkamnao sahit. Deepa sharma

  52. महोदय ;
    मुझ पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप न लगे इसलिए मेरा कहना है की धर्म का दूसरा अर्थ स्त्री विरोध ही है सभी धर्मों ने स्त्री को नकारा है और अपमानजनक शब्दों से पुकारा है। पुरुष प्रधान समाज ने तो सारी की सारी अश्लील और अभद्र गालियां स्त्री के अंगों से जोड़ कर गढ़ी हैं। उसने स्त्री को बराबर तो कभी माना ही नहीं। संहिताओं में कभी ढील दे दी गई, तो कभी उन्हें कस दिया गया।
    वह द्रौपदी बन कर पांच पतियों को झेलती रही और सदैव दांव पर लगाई जाती रही। वह न तो बराबर समझी गई और न ही अपना निर्णय खुद ले सकने में सक्षम। जो रजिया, अनारकली, हीर, लैला या शीरीं, दुर्गावती और महारानी लक्ष्मीबाई बनीं, वे मार डाली गईं या गार्गी की तरह धमकाई जाती रहीं।
    स्त्रियों के प्रति मनु की आचार संहिता की संकीर्णताएं हें या इस्लाम के तालिबानी मुल्ला-मौलवियों या उनके पर्सनल लॉ की संहिताएं अथवा इसाई धर्म के पोप के स्त्रियों के खिलाफ ग़र्भपात, तलाक या दूसरे विवाह को लेकर बनाये गए निर्देष, एक बात जो सभी में समान है, वह यह कि किसी भी धर्म ने स्त्री को न तो निर्णय लेने का अधिकार दिया और न ही उसे स्वालम्बी बनने दिया। इससे बड़ा मानवीय अधिकारों का उल्लंघन और क्या हो सकता है? सच तो यह है कि धर्म भेदभाव करता रहा है।
    चाहे कबीर हों, चाहे तुलसी जैसे भक्त कवि , चाहे वेदों की ऋचाएं गाने वाले ऋषि अथवा पुराणों की कथाएं सुनाने वाले पाण्डे या कुरान की आयतें या बाइबिल पढ़ने वाले मुल्ला-पादरी, सभी के सभी औरत को पुरुष के अधीन रहने की हिदायत ही नहीं देते, बल्कि वे उन्हें ‘नरक का कुण्ड’, ‘माया’, ‘महाठगनी’ व ‘ताड़न की अधिकारी’ बताते रहे हैं। पश्चिमी धर्मो में तो औरत को आदिम की ‘पसली’ से बना बताया गया है। वैदिक धर्म में ब्रह्मा ने जबरन अपनी पुत्री सरस्वती से ही संभोग कर सृष्टि रच डाली। यानी सृष्टि भी बलात्कार की उपज है। ठीक इसके विपरित आदिवासी मिथकों में स्त्री-पुरुष दोनों हंस के अण्डे से एक समान बराबर-बराबर पैदा हुए। कोई किसी के अधीन नहीं। दोनों ने मिलकर सृष्टि रची।
    महोदय अब तो अपनी इन बातों को लगाम लगाओ और इस हकीकत को पहचानो की हिन्दू परम्परा में नारी पुरषों से ऊँचा तो दूर बराबरी का दर्जा भी कभी नहीं दिया गया है आप सिर्फ वे शोलोक लिख देते हो जिनसे नारी को सम्मान मिल सकता था पर मिला कहाँ , व्यवहार में तो उन्ही श्लोको और प्रावधानों को apnaya गया है jo naari की गरिमा के प्रतिकूल थे
    जय हिंद. दीपा शर्मा , धर्म पुर देहरादून , उत्तराखंड

    • hahaha kha se lati hai ap esi farji bate???brahma ne kab sarsvati………….?????shivmahimn strot me ek line atai hai jab brahma ne apani putri ke sath duskram karane ki koshish ki to shiv ne ban mara our brahma bhage bhage firate rahe jo aj bhi mrigshira ke rup me nakshatr ka pichha kar raha hai.
      atayant sanketik rup me likhe es bat ki gaharayi samajhana shayad apake bas ka nahi to mujhe bhi koe batane ka intreset nahi,lekin etana jan lijiye apani budhi se jo jo samajh me ata hai vo hi saty ho our vesa hi saty ho jaruri nahi hai,rahi bat dharm ki to dharm ne hi nari ki ejjat karana sikhaya hai,nahi to adim manav ke liye vo to ek bhogy vastu thi.

      • पुरोहित जी ,
        hivmahimn strot me ek line atai hai jab brahma ne apani putri ke sath duskram karane ki koshish ki …………………
        क्या बात है जब ब्रह्मा कोशिश करते है तो इस सामने पुरुष का क्या ……….
        jara bateyegi konsi brahaman hai aap??matalab apaka gotra kya hai??kon si shakha hai???kon sa kul hai???ap koe sarvagy hai??ya brahaman kon hota hai ye bhi pata hai???
        ये लिखकर आपने खुद परिचय दिया की ब्रह्मण कितने टाइप की व्याख्या करते हैं जब आपका ब्राह्मणों के ओर्ती ये रव्वेया है तो अन्य की तो क्या कहने

  53. महोदय,
    आपने जो भी लिखा है उस पर कोइ मतभेद नहीं है की ये हिन्दू धर्म में है परन्तु क्या इस पुरुष प्रधान समाज ने इस को अपनाया है कभी नहीं , पुरुषों ने जिन सिन्ध्धंतों को अपनाया है वो भी हिन्दू धर्म में ही दिए गए हैं,
    स्त्री और पुरुष के बीच सम्बन्ध का यही कटु यथार्थ है कि स्त्री पुरुष को उत्पन्न करती है परन्तु पुरुष उसका अमर्यादित शोषण करता है और ऐसा करने के लिये वह सामाजिक, नैतिक और धार्मिक रूप से अधिकृत है।पुरुष द्वारा स्त्री को भोग्य के रूप में मान्यता ‘उत्पादन द्वारा उत्पादक’ के भक्षण का एक मात्र उदाहरण है। स्त्री के प्रति पुरुष की इस मानसिकता का विकास संभवतः सृष्टि-रचना के आदि सिद्धान्त में निहित है जहाँ सृष्टिकर्ता स्त्री नहीं पुरुष है,
    हिन्दू परम्परा में पशु-पक्षी इत्यादि के स्रोत का तो पता नहीं, मनुष्य की उत्पत्ति भी योनि से न होकर ब्रह्मा के शरीर के विभिन्न हिस्से से हुई और वह भी मनुष्य के रूप में नहीं बल्कि वर्ण के रूप में। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त से लेकर सभी अनुवर्ती गन्थों में उत्पत्ति का यही वर्ण-व्यवस्थायीय प्रावधान मिलता है और इसके लिये रचित मंत्र और शालोकों का जो सन्देश है उनसे यही पता चलता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में केवल पुरुषों की ही उत्पत्ति हुई स्त्रियों की नहीं भारतीय समाज-व्यवस्था में स्त्री बाहरी व अपरिचित तत्त्व हैं। इसलिये भारतीय समाज का रवैया यदि इसके प्रति शत्रुवत् है तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये।
    अध्यात्म के स्तर पर धर्म का चाहे जो तात्पर्य हो लेकिन व्यवहार के स्तर पर उसका वही आशय है जो कानून का है। दोनों का उद्देश्य समाज को नियंत्रित करना है। इसके लिए ‘क्या करना चाहिये’ और ‘क्या नहीं करना चाहिये’ का संहिताकरण और उल्लंघन करने पर दंडित करने का प्रावधान दोनों जगह किया गया है लेकिन दोनों में एक अन्तर है। कानून लोकतांत्रिक व्यवस्था की देन है और सबको समान दृष्टि से देखने की वकालत करता है और धर्म राजतंत्र द्वारा पोषित ब्राह्मणवादी व्यवस्था है जो वर्ग-हित की वकालत करता है। इसमें मनुष्य के साथ समानता के आधार पर नहीं बल्कि उसके वर्णगत्‌ हैसियत के आधार पर व्यवहार करने का प्रावधान है, जिसे ईश्वर अथवा मनुष्येतर शक्तियों द्वारा अनुमोदित घोषित करवाकर इसे अनुल्लंघनीय बना दिया गया
    महोदय ,
    निवेदन है की स्त्रियों की बुरी दशा के ज़िम्मेदार इन ग्रंथों को बीच में लाना बंद कर दो क्योंकि आप इनकी आलोचना सुनने का धैर्य और सहस नहीं रखते हो, आज की नारी को इन सबसे आज़ादी की आवश्यकता है उसे आज़ाद करो इन बेवजह की पुरषों की सत्ता बनाने वाली बातों से, क्योंकि इनके द्वारा नारी का शोषण ही हुआ है सम्मान नहीं मिला ,
    महोदय ,
    आपसे निवेदन है की धर्म का सहारा लेकर नारी पर शोषण का अध्याय बंद करो वास्तविकता क्या है आज की नारी जानती है
    जय हिंद,मेरी और से स्वतन्त्रा दिवस की बधाई , सभी पाठकों और प्रवक्ता संपादक मंडल और लेखकों को भी, भारत माँ की जय हो …….. दीपा शर्मा , धर्म पुर देहरादून , उत्तराखंड

    • budhi jab vikrit ho jaye tab pata nahi chalata kya likha rahe hai,our kyo likha rahe hai.apane likha ki vo “purush” hai jisane sab banaya,yahi likha na??kisane bola apako???apaki vedo our shashrto na padhane ki,na samjhane ke kshamata ko un par aropit mat kariye,ved didim gosh karata huva kahata hai sare bhed to vyvhar me hai jo mithya hai svpanvat hai vo to ajnma,agochar,anant,nirdun hai vo na stri hai na purush hai na napunsak hai,vo chetanyvat samvit prakash hai jisase hi jagat ka sab kan prakashit ho raha hai.
      ya to sahi gyan grihan kariye nahi to jakar check kariye asaty likhane ki prerana apako kaha se mil rahi hai.

      • Mahoday ye prerna vedik dhrm aur any aarush granthon se mil rahe he jinko brahmano ke alawa kisi anay ko padhne ka adhikar nahe tha. Apke gyan par hamko tippani ni karni. Kynki sadiyo se apke mukh me to sarsvati viahymaan hein mahoday.

  54. brahamanon ne is desh men stree sahit sabhi gair brahmanon jatiyon ko hajaaron salon se dhokhe men rakha hai, jis rajput jati ke bal par inhone desh ki sampoorn janta ko moorkh banaya us rajput jati ko hi in logon ne barbad kar diya. jab lagta hi ki inki chalaki khatam ho rahi hain, logon ko sach pata chal gya gai to aise lekh likh diye jaate hain. jisase janta gumrah hotee rahe. isase ghatiya kuchh bhi nahi hai.

  55. The issue in discussion be raised to find a formula under which the struggle between man versus woman creates beauty and happiness of being complimentary to each other and eliminate the bitterness of competition.
    सुषमा स्वराज और सोनिया जी मिल कर संसद की लोक सभा में एक बिल पेश करने का शोर तो मचा ही सकती है. इसमें क्या विरोध हो सकता है?

  56. कुलं पवित्रं जननी कृतार्था ;वसुधरा पुन्यावती च तेनु .
    अपार स्म्वितुसुखासागारे अस्मिन्न ;लीनं परे ब्रह्मणि यस्य चेतः
    { श्रीमद्भागवत }
    सुरतिय नरतिय नागतिय ;क्या चाहत सब कोय .
    गोद लिए हुलसी फिरे .तुलसी सोऊसूत होय .
    {उपरोक्त पहली पंक्ति गोस्वामी तुलसीदास जी की है -उन्होंने महाकवि अव्दुराहीम .खान.खाना को लिखी थी .उसके जबाब में उक्त दोहे की दूसरी पंक्ति
    रहीम ने वापिस तुलसी को लिखी थी .ऐसी लोकमान्यता है .
    प्रस्तुत आलेख ठीक ही है .यह आयाम समझने से परम्परावादी स्त्री विमर्शियों को कुछ न कुछ मिल ही जाएगा .

  57. सारे संसार में केवल भारतीय संस्कृति और परंपरा ही “पर स्त्री मातृ समान” मानती है। गुजरात में हर नारी के नाम के पीछे बेन, प्रत्यय जोडा जाता है। महाराष्ट्र में भी “ताई” (अर्थात बहन) जोडा जाता है।
    पति और पत्नी, कुटुम्ब के पालन पोषण में, एक दूसरे के पूरक है। इसी लिए राम का आदर्श “कर्तव्य” को “अधिकार” से भी महान मानता है। अधिकार के लिए लडना पडता है, तो, कर्तव्य आप ही आप दूसरोंके प्रति प्रेम का पोषक होता है। स्वामी दयानंद सरस्वति कहते हैं, Rights create fights, but Duty fosters beauty.
    Equality की लडाइ समाजके संतुलन को नष्ट करती है।संघर्षसे प्रेम नहीं द्वेष बढता है। कोइ समझाए कि आम= नारंगी, या सोना=चांदी, यह यदि सही है तो पुरूष=नारी (equality) भी सही हो सकता है। वास्तवमें नर=नारी यह कुतर्क है। दोनो अपने अपने स्थान पर श्रेष्ठ है, महान है। वास्तवमें दोनोके गुण भी एक दूसरे के पूरक और कुछ भिन्न भी है। यहां कोई पोंगा पंडित वाली बात नहीं। समस्याएं इन बिंदुओंकी ओर अनदेखी करने से हुयी है।इनके कारण नहीं।भारतसे लौटे, ३ अमरिकन( १ वर्ष के बाद) प्रॉफ़ेसर के भाषण सुनने मैं गया था, सारे, अचरज व्यक्त कर रहे थे, बोले,==” कि आर्थिक विपन्नावस्था में भी, भारतने कैसे कुटुंब संस्था टिकाए रखी है? यह अचरज है। ऐसी अवस्था में पश्चिम तो कभी का कुटुंब खो चुका होता।”==आज भी अमरिका में २१ % कुटुंब ही अपने सगे बालकों सहित बचे है। ५४% पुरुष और ५० % नारियां जीवनमें एक बार भी विवाह करते नहीं है। आवश्यकता ही नहीं। विवाहके बाद मिलने वाली वस्तु, बिना झंझट ही प्राप्त हो, तो कौन मूरख जिम्मेदारी लेने तैय्यार होगा?
    त्रिपाठी जी इसी प्रकार लिखते रहिए। धन्यवाद, शुभेच्छाएं।

    • प्रोफेसर साहब यहाँ मसला समानता का नहीं है, स्त्री को इंसान नहीं समझने का है। राम को कृपया बीच में न लाएँ, सीता-त्याग राम के सारे कर्तव्यों की पराकाष्ठा है… अब तर्क देने के लिए तो कुछ भी दिए जा सकते हैं। भारत में यदि कुटुंब जीवित है तो मात्र स्त्री के कंधों पर और स्त्री भी उसे मजबूरी में जिंदा रखे हुए है। आर्थिक रूप से स्वावलंबी हुई स्त्री को आप बाँध नहीं पाएँगें, तो अब भी यदि कुटुंब नामक अपनी इस धरोहर को सहेजने की ख्वाहिश बाकी है तो पुरुषों को बदलना होगा, तभी इस देश में परिवार बचेंगे और कुटुंब भी। बस आप इंतजार कीजिए महिलाओं के आत्मविश्वासी होने का… यदि पुरुष ने अपनी मानसिकता नहीं बदली तो फिर परिवार और कुटुंब को खत्म होने को कोई रोक नहीं पाएगा…।

      • meri ma bahan our bhabhi teeno svalambhi hai our meri jo patni hogi vo bhi nichit svalambhi hogi,lekin esi bate kabhi bhi mene mere ma-bahan ya bhabhi ji se nahi suni.kutumbh our gar ko todane vali stri hone ka jo dum bhar rahi hai,vo es bat ko sidh karata hai ki apaki jade kha hai,paschim me he na ki bharat mai……………

      • बहन जी यह मेरा नहीं “श्रीमाँ” का कहना है।
        ॥दासता॥
        (संदर्भ श्री मातृवाणी:)अरविंदाश्रम पॉंडिचेरी (श्री अरविंद सोसायटी)
        श्रींमाँ: कहती हैं:
        जब तक कि स्त्रियां अपने-आप को स्वतंत्र न करें तब तक कोई कानून उन्हें स्वतंत्र नहीं कर सकता।
        कौन-सी चीज है, जो उन्हें दासी बनाती है?
        १-पुरुष और उसके बलके प्रति आकर्षण,
        २-घरेलू जीवन और सुरक्षाकी कामना,
        ३-मातृत्व के लिए आसक्ति।
        यदि स्त्रियां इन तीन दासताओं से मुक्त हो सकें तो वे सचमुच पुरुषों के बराबर हो जाएंगी।
        पुरुषकी भी तीन दासताएं है:
        १- स्वामित्वकी भावना, शक्ति और आधिपत्य के लिए आसक्ति,
        २-नारी के साथ लैगिक संबंध की इच्छा,
        ३-विवाहित जीवन की छोटी-मोटी सुविधाओं के लिए आसक्ति।
        यदि पुरुष इन तीन दासताओं से मुक्ति पा लें, तो वे सचमुच स्त्रियों के बराबर हो जाएंगे।
        श्रींमाँ: (संदर्भ श्री मातृवाणी:)अरविंदाश्रम पॉंडिचेरी (श्री अरविंद सोसायटी)

        • प्रोफेसर साहब, बात खत्म हुई… जब पुरुष अपनी और स्त्री अपनी दासता से मुक्ति पा लेंगे तो फिर झगड़ा किस बात का है? मुश्किल अभी है… स्त्री की मानसिकता की, सदियों से दासता, निर्भरता और दलन सहती स्त्री अभी तक स्वतंत्रता की कल्पना मात्र से घबरा उठती है… । मुझे दुख है कि यहाँ बहस घुम-फिरकर या तो व्यक्तिगत आऱोप-प्रत्यारोप पर आकर ठहरती है या फिर राजनीतिक और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों पर… जब हम बात दलितों की करते हैं, तो फिर रश्मिजी की करूण कथा सुनकर हमें सहानुभूति नहीं होती है, तो फिर क्या हम इंसान कहलाने लायक हैं? दुनिया का हरेक धर्म हमें इंसान होने की शिक्षा देता है, यदि हम इंसान नहीं हो सकते हैं तो फिर सर्वोच्च ब्राह्मण हो जाए या फिर देवता हो जाए, इसका हासिल क्या है? यदि हम इतिहास और वर्तमान का सच नहीं देखना चाहे और देखकर भी मानना नहीं चाहें तो फिर कैसी बहस और किससे बहस…। यदि इस देश का युवा इतना पूर्वाग्रही और मानवता के प्रति इतना संवेदनहीन है तो फिर उससे किसी भी चीज की उम्मीद नहीं की जा सकता है, बस इस देश के युवाओं को सद् बुद्धि मिले ऐसी ही प्रार्थना है।

          • अमिता जी– “मौलिक चिंतन” पर लघु लेखातमक टिप्पणी देख ले। उसीपर यदि प्रश्न हो तो उसी, लेख के नीचे १, २, ३ इस क्रमवार पूछे।
            (१) किसीको भी (आपको भी )अपना स्वतंत्र मत रखनेका अधिकार है, कोई कठिनाई नहीं।
            (२) पर उस मतको, दूसरों पर थोपने का अधिकार नहीं है।
            (३) उसे दूसरा स्वीकार करें, इस लिए आपको तर्क देना पडेगा।
            दूसरा उदाहरण: आप एक साडी पसंद करके खरिदती हैं। आपकी वैयक्तिक पसंद इसके लिए पर्याप्त हैं। पर वही साडी आप किसी और सहेली को खरिदने के लिए कहती है, तो सामन्यतः आपको तर्क देना होगा।
            आपकी भावनाएं आपके व्यवहारके लिए पर्याप्त है। दूसरोंको तर्क देना होता है।
            स्नेहादर सहित।

  58. त्रिपाठी जी , स्त्री विमर्श पर हो रही बहस में आपका यह लेख काफी दिशा बोधक सिद्ध होगा.

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