शादियां: कश्मीर दिखा रहा रास्ता

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने वह कर दिखाया है, जो देश के हर मुख्यमंत्री को करना चाहिए। शादियों में होने वाले अनाप-शनाप खर्च पर रोक लगाने का जो विधेयक संसद में आ रहा है, उस पर मुहर लगे या न लगे लेकिन हर प्रदेश की सरकार चाहे तो वह ऐसे कड़े कानून बना सकती है कि जिससे देश के गरीब और मध्यम वर्ग को जबर्दस्त राहत मिल सकती है। महबूबा सरकार ने सबसे पहले तो निमंत्रण पत्रों की खबर ली है।

आजकल शादी के एक-एक कार्ड पर लोगों को 50-50 हजार रु. खर्च करते हुए मैंने देखा है। वे कार्ड के साथ चांदी के गिलास, सोने की अंगूठी, विदेशी टी-सेट, मेवे और मिठाई के डिब्बे भेजते हैं। खुद कार्ड की कीमत 500 से हजार रु. तक होती है। लाखों रु. तो सिर्फ कार्डों पर खर्च हो जाते हैं। फिर बैंड, बाजे, बारात, सजावट, गाना-बजाना–इस पर भी लाखों से कहीं ज्यादा खर्च होता है। छोटे-छोटे शहरों में भी मुंबई, दिल्ली और लंदन तक से गाने और नाचने वालों को बुलाया जाता है।

महबूबा सरकार ने नियम बनाया है कि कार्ड के साथ कोई मिठाई, मेवा या तोहफा नहीं भेजा जाएगा। कार्ड याने सिर्फ कार्ड। मैं तो कहता हूं, दस-बीस रु. का कार्ड भी क्यों, सिर्फ पांच रु. में आज भी पत्रिका छप सकती है, सुंदर और सुरुचिपूर्ण ! वह ही क्यों नहीं भेजी जाए ! शादी के दिन लाउडस्पीकर, पटाखेबाजी और अन्य धूम-धड़ाकों पर भी रोक रहेगी। लड़की ले अपने मेहमानों की संख्या 500 और लड़केवाले 400 तक सीमित रखेंगे।

यह ठीक है लेकिन अन्य मुख्यमंत्री चाहें तो वे यह भी कर सकते हैं कि जो परिवार सौ मेहमानों की सीमा रखेगा, उसे राज्य पुरस्कृत करेगा और संभव हुआ तो उस शादी में राज्य का कोई प्रतिनिधि भी भाग लेगा। इसके अलावा महबूबा सरकार ने खाने के व्यंजनों की भी सीमा बांधी है। 7 शाकाहारी और 7 मांसाहारी सिर्फ! और दो मिठाई ! ऐसे भोजन पर 200 या 300 रु. प्रति व्यक्ति से ज्यादा क्या खर्च होगा? यदि 500 लोग भी आ जाएं तो डेढ़-दो लाख रु. में शादी निपट सकती है।

आजकल शादी क्या होती है, कई मध्यमवर्गीय परिवार जीवन भर के लिए निपट जाते हैं। शादी बर्बादी सिद्ध होती है। नव-विवाहित लोग अपने जीवन की शुरुआत ही भयंकर दबाव से करते हैं, यह कितने दुख की बात है! इस मामले में सिर्फ कानून के जरिए सफलता नहीं मिल सकती। यदि कोई ऐसा आंदोलन चले, जो इस फिजूलखर्ची का विरोध करे तो ज्यादा सफलता मिलेगी। जैसे उस शादी में हम जाएं ही नहीं, जिसमें दहेज लिया-दिया जाता है। कार्ड के साथ लाए गए तोहफों को लौटा दें। पांच-सितारा होटलों की शादियों का बहिष्कार करें। जिन शादियों में अंधाधुंध खर्च हों, उनमें से बिना भोजन किए लौट जाएं।

मेरे पिताजी ऐसी किसी शादी में नहीं जाते थे, जिसका निमंत्रण अंग्रेजी में छपा हो। दर्जनों लोगों ने उन्हें बुलाने के लिए अपने कार्ड दुबारा छपवाए और हिंदी में छपवाए। यह भी हम शुरु करें और खर्चीली शादियों को भी हतोत्साहित करें।

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