राजनीति

भाजपा पर मेहरबान माया

संजय सक्सेना

 

ऊपर से कड़क दिखाई दे रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती भीतर से सहमी हुई हैं। कई मोर्चो पर मिली नाकामी ने उनका दिन का चैन और रातों की नींद हराम कर रखी है। शासन-प्रशासन में उनकी सख्ती काम नहीं आ रही है जिसका असर उनकी कड़क छवि पर भी पड़ रहा है। बसपाई भी लगातार बेलगाम होते जा रहे हैं। चार साल के शासनकाल में बसपा सुप्रीमो ने अपनी विवादित कार्यशैली से दोस्त कम दुश्मन ज्यादा खड़े कर लिए हैं। माया की नाकामयाबी की लिस्ट लगातार लम्बी होती जा रही है। नौकरशाही पर वह पकड़ बना नहीं पा रही हैं।लॉ एंड आर्डर की जो स्थिति प्रदेश में है, वह कोई छिपी बात नहीं है। हत्याओं-फिरौती की घटनाओं की तो बाढ़ सी आ गई है,लेकिन सबसे दुखद स्थिति प्रदेश की आधी आबादी यानी ‘नारी शक्ति’ की हो गई हैं।उम्मीद थी कि महिला मुख्यमंत्री के रूप में मायावती जब कुर्सी पर विराजमान होंगी तो महिलाओं की स्थिति में जरूर सुधार आएगा,लेकिन हुआ उसके उल्ट। लड़कियों और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं तो बढ़ी ही सबसे दुखद रहा गैंग रेप की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि। शायद ही कोई कोई हफ्ता ऐसा बीतता होगा जब गैंग रेप की घटनाएं अखबारों की सुर्खियां न बनती हो। यहां तक कि बसपा नेताओं पर भी गैंग रेप की घटनाओं में बदनामी के दाग लगे।कई बसपा विधायक अपनी दबंगई और दागदार छवि के कारण जेल में बंद हैं। जिला बदायूं के बिल्सी विधान सभा क्षेत्र के विधायक योगेन्द्र सागर बलात्कार कांड में फरार चल रहे हैं। उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया गया है। हालात यह है कि गैंगरेप की शिकार बच्चियों और युवतियों तथा महिलाओं को मुआवजा तक देने में माया सरकार सफल नहीं हो पा रही है। बांदा की शीलू, बंदायूं की ज्योति, इटावा की सोनम और कानपुर की दिव्या जैसी तमाम लड़कियों को आज तक मुआवजा नहीं मिला है। इसका कारण है जिले और राज्य स्तर पर बोर्ड का गठन नहीं किया जाना।बोर्ड नहीं गठित होने के कारण वितीय वर्ष 2010-11 लिए निर्धारित 2.20 करोड़ की राशि लैप्स हो गई।जबकि गैंगरेप की भुक्तभोगी महिलाओं को 60 दिनों के भीतर मुआवजा मिलने का कानूनी प्रावधान है। बोर्ड का गठन नहीं होने के कारण यह महिलाएं छह माह के भीतर मुआवजे के लिए आवेदन नहीं कर पाई।जबकि दुराचार पीड़ित महिलाओं को मुआवजा देने को भारत सरकार ने महिला एवं बाल विकास विभाग नके सचिव डीके सीकरी ने 24 दिसंबर 2010 को उत्तर प्रदेश सरकार को योजना की गाइड लाइन भेजी थी।

एक तरफ राज्य की जनता माया सरकार के कामकाम के तरीकों से हल्कान है तो दूसरी तरफ विपक्ष भी माया शैली को हजम नहीं कर पा रहा है। वह, बसपा सुप्रीमों पर लगातार अरोप लग रहे हैं कि मायावती राजनीतिक विरोध को व्यक्तिगत मुद्दा बना देती हैं जो लोकतंत्र के लिए घातक है।समाजवादी प्रमुख मुलायम सिंह यादव कई बार माया सरकार की हठधर्मी के खिलाफ अलख जगा चुके हैं। उन्हें नाराजगी माया की हठधर्मी सरकार से ही नहीं इस बात से भी है कि ब्यूरोक्रेटस बसपा प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं । मुलायम ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए यहां तक कहा कि सत्ता के नशे में चूर मुख्यमंत्री मायावती और उनके ‘दरबारी’ अधिनायक शाही जताने में लगे हैं और विपक्ष के साथ बदले की भावना से दमनचक्र चला रहे हैं। सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव भी माया के दरबारियों की बदजुबानी से कम हैरान नहीं दिखे।उनकी नाराजगी जायज भी लगती है। अखिलेश यादव ने कहा कि कैबिनेट सचिव शशांक शेखर ने नेता जी के प्रति जो टिप्पणी की वह अमर्यादित, निंदनीय और बचकानी है। मुख्यमंत्री का इशारा पाकर ही डी के ठाकुर जैसे पुलिस अधिकारी बर्बरता पर उतर आएं। लाठी के बल पर शासन कर रहीं मुख्यमंत्री मायावती विरोध के सभी सुरों को कुचल देने को बेताब लगती हैं। खासकर, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के प्रति उनका रवैया अति संवेदनशील है, लेकिन भाजपा के प्रति माया साफ्ट टारगेट लेकर चल रही है। ऐसा क्यों हो रहा है यह बात दावे के साथ तो कोई भी नहीं बता सकता है लेकिन राजनैतिक पंडितों की बातों पर विश्वास किया जाए तो इसके पीछे माया की दूरगामी सोच है।

माया को पता है कि 2012 के विधान सभा चुनाव में उन्हें बहुमत नहीं मिलने वाला है।ऐसे में उन्हें बैशाखी की जरूरत पड़ सकती है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी तो उनकी बैशाखी बनने को राजी होगें नहीं, रही बात भाजपा की तो भाजपा का माया प्रेम जगजाहिर है। कई मौकों पर भाजपा न-न करते हुए माया की हो चुकी है। और अब जबकि उसे दूर-दूर तक सत्ता की चाबी नहीं दिख रही है तो माया के सहारे ही सही उसे यह चाबी मिल जाती है तो इसे भाजपा की कोई बुराई नहीं समझना चाहिए।मायावती जुझरू नेत्री हैं। उनके इसी जुझारूपन और अखड़ बोली ने उन्हें दलितों का बड़ा नेता बना दिया। माया जब कड़क आवाज में ब्यूराक्रेसी को फटकार लगाती हैं या फिर समाजवादियों पर लाठी बरसाती हैं तो उनका यही वोटर गद्गद हो जाता है। इस बात का अहसास मायावती को भी है,इसीलिए वह बिना परवाह किए सपा की कमर तोड़ने का मौका नहीं छोड़ती हैं। उन्हें पता है कि पिछले विधान सभा चुनाव में जब वह कहती थीं कि मुलायम और अमर को सत्ता में आने पर जेल भेजा जाएगा तो उनके वोटर खूब ताली बजाते थे। बाद में यही तालियों की गड़गड़ाहट वोटों में तब्दील हो गईं थी।अबकी बार भी माया ऐसा कुछ करना चाहती हैं जिससे एक बार फिर सबको चौकाया जा सके। यह काम तभी हो सकता है जब माया 2007 के विधान सभा चुनाव के पूर्व वाले तेवरों में लौटें।पिछली बार की तरह अबकी बार भी माया के निशाने पर मुलायम ही हैं। बस फर्क इतना है कि इस बार माया जहां बैठी (मुख्यमंत्री की कुर्सी पर) हैं, पिछली बार वहां मुलायम सिंह बैठा करते थे। यही वजह है अबकी माया का डंका ज्यादा जोर से बज रहा है। वह लगातार मुलालय और सपाइयों पर अपनी ताकत की नुमाइश कर रही है । शायद वह अच्छीर तरह से जानती है कि उनका वोटर यही सब देखना चाहता है। बसपा सुप्रीमो को इस बात का भी अहसास है कि विपक्ष उन्हें जितना कोसने-काटने का काम करेगा, बसपा का वोट बैंक उतना ही मजबूत होगा।ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। आय से अधिक सम्पति मामले में कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने से तिलमिलाई माया अपना कद छोटा प्रतीत नहीं होने देना चाहती हैं।

समाजवादी पार्टी के बाद नंबर आता है कांग्रेस का। कांग्रेस और बसपा के बीच 36 का आंकड़ा चल रहा है। दोनों पाटियों की लड़ाई में कभी बसपा सुप्रीमों भारी पड़ती हैं तो कभी कांग्रेस। बसपा कांग्रेस की केन्द्र सरकार पर उत्तर प्रदेश के हितों की अनदेखी का आरोप लगाती रहती है, वहीं उन्हें कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का दलित प्रेम भी रास नहीं आता है।बसपा सुप्रीमों इस बात से भी खफा रहती हैं कि कुछ मुद्दों को कांग्रेस बिना वजह हवा देते हैं। आय से अधिक सम्पति के मामले में भी माया की यही सोच है। बसपा-कांग्रेस की तकरार का ही नतीजा रहा कि कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्षा रीता बहुगुणा के घर में आगजनी तक हो गई। आगजनी के आरोपी बसपा नेताओं को माया ने 2012 के विधान सभा चुनाव के लिए टिकट देकर अपनी मंशा साफ कर दी हैं। केन्द्र और माया सरकार के बीच दूरियां कितनी बढ़ गई हैं इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि माया सरकार ने दोनों पार्टियों को यहां की जनता के हितों का भी ध्यान नहीं रह गया है।ऐसे समय में जब नक्सलियों से निपटने के लिए तरह-तरह की तैयारियं की जा रही थीं तब माया सरकार ने सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन की स्थापना के लिए जमीन नहीं उपलब्ध करा कर प्रदेश के साथ नाइंसाफ कर दिया। माया सरकार को यह बात स्पष्ट करना चाहिए कि उसने कोबरा बटालियन की स्थापना के लिए जमीन उपलब्ध कराने में क्यों राजनीति की? माया सरकार का फैसला इस लिए और दुखदायी प्रतीत होता है क्योंकि सीआरपीएफ की बटालियन के लिए चंदौली में जमीन का चयन हो चुका था।माया को समझना चाहिए कि इस तरह की राजनीति से न उनका भला होगा न प्रदेश का। एक तरफ मायावती विकास का रोना रोती हैं तो दूसरी तरफ केन्द्र की योजनाओं को धता बताने में लगी रहती है।इससे पहले उत्तर प्रदेश में नए बिजली संयंत्रों की स्थापना के केन्द्र के प्रस्ताव भी इस लिए आगे नहीं बढ़ पाए थे क्योंकि राज्य सरकार ने उसमें रूचि ही नहीं ली। इसी तरह से अमेठी और रायबरेली में केन्द्रीय संस्थाओं की स्थापना में अड़ंगे लगाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुबोध श्रीवास्तव से जब इस संबंध में पूछा गया तो उनका साफ कहना था,’ राजनीति देश-प्रदेश के विकास के लिए होनी चाहिए, न की उसको पीछे ले जाने के लिए। माया राज में उत्तर प्रदेश का विकास पांच साल पीछे खिसक गया है। मुख्यमंत्री बेजान पत्थरों पर तो हजारों करोड़ रूपया खर्च कर सकती है, लेकिन आम जनता के प्रति उनका कोई सरोकार नहीं है। इसी वजह से माया सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है।

बसपा सुप्रीमो का एक तरफ कांग्रेस और सपा के प्रति कठोरता तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रति आवश्यकता से अधिक लचीलापन भी सबको हैरान किए हुए है। उत्तर प्रदेश में अपनी जमीनी ताकत बढ़ाने को उतावली भाजपा के लिए बसपा का यह रवैया कुछ लोगों के समझ से परे है तो कुछ इसे माया की मौकापरस्त राजनीति का हिस्सा बता रहे हैं। जानकार 2012 के विधान सभा चुनाव के बाद बसपा और भाजपा में करीबी बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं करते हैं।बसपा तो इस मामले में अपनी चुप्पी साधे हुए है लेकिन समाजवादी पार्टी इसे भाजपा और बसपा की मजबूरी बता रहे हैं। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खॉ का कहना है कि बसपा विश्वास करने वाली पार्टी नहीं है। वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का ढिंढोरा तो जरूर पीटती है लेकिन भाजपा के साथ उसकी भीतर से सांठगांठ हो रखी है। भाजपा के प्रति बसपा के साफ्ट कार्नर के बारे में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही इसे सपा और कांग्रेस की साजिश करार देते हुए कहते हैं कि भाजपा भविष्य में बसपा से हाथ नहीं मिलाएगी।

बहरहाल, भाजपा के साथ बसपा को खड़ा दिखाने की कांग्रेस और सपा साजिश कर रहे हैं या फिर यही हकीकत है। इसका पता तो बाद में चलेगा लेकिन इतना तय है कि इससे बसपा को नुकसान हो सकता है। बसपा के मुस्लिम वोटर सपा और कांग्रेस की तरफ रूख कर सकते हैं। और शायद यही दोनों दल चाहते भी हैं।