
भारत एक विशाल देश है, इस देश में हर तरह के लोग रहते हैं, अमीर, गरीब, व्यापारी, किसान, मजदूर आदि लेकिन हमारा मीडिया इस विशालता को नहीं देख पाता ! वो तो बस कुछ शहरों में ही सिमटा हुआ है ! दो के अनेक भाग तो ऐसे हैं जिन्हें शायद मीडिया देश का हिस्सा मानता ही नहीं इसीलिये उनसे संबधित समाचार तो दिखाते ही नहीं !
भारत में 60: से ज्यादा लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती करना है लेकिन शायद ही ऐसा कोई समाचार पत्र या खबरिया चैनल है जहाँ इसके लिये कोई संवाददाता नियुक्त हो ! अखबारों में खेती से संबंधित आधा पेज भी तय नहीं है ! इस नाम से कोई बीट ही नहीं है ! लेकिन जब कोई फैशन शो होता है तब सभी अखबारों और चैनलों से कोई न कोई जरूर जाता है ! उस शो को कवर करने के लिये मीडिया की भीड लगी होती है ! यहाँ ये बात गौरतलब है की भारत में ब्रान्डेड कपडे पहनने वाले मात्र 0.003 : है ! स्पष्ट हो जाता है की हमारा मीडिया कितना व्यस्क और जिम्मेदार है !
इसी प्रकार गरीब और दलित लोगों के लिये भी भारतीय मीडिया में कोई स्थान नहीं है ! यदि कोई युवराज अपनी राजनीति चमकाने के लिये किसी कलावती के घर जाये तब तो सभी कैमरे तुरंत किसी गाँव में चमकने लगते हैं ! लेकिन जब कोई दलित 21 सदी में भी मल खाने को मजबूर हो जाता है तो उसे राष्ट्रीय मीडिया में ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता क्योकि वहाँ कोई युवराज नहीं गया ! तमिलनाडु के एक जिले में कुछ ईसाइयों ने ( जो जाति आदि को नहीं मानते और उसे समाप्त करने के लिये भारत में धमारंतरण करते है ! ) मिलकर एक दलित युवक को मल खिला दिया लेकिन वो समाचार पूरे देश तक नहीं पहुच पाता !
आज मीडिया को अपनी गिरेबान में झाक कर देखने कि जरुरत है ! लोकतन्त्र के तीन स्तम्भों को प्रकाश दिखाने वाला यदि खुद ही अन्धा हो जायेगा तो लोकतन्त्र का क्या होगा इसका हम सहज ही अन्दाजा लगा सकते हैं !
dev tumne kamal kaa lekh likhaa है.
चौथे स्तंभ की सी जबाबदारी भी मीडिया को उठानी ही चाहिये , अधैर्यता पूर्ण संपादन , टीआर पी की दौड़ में कुछ भी परोस देना और पीत पत्रकारिता इस सबसे मीडिया को स्वयं ही बचना होगा any way happy holi to all