पांच साल का प्रवक्ता / आशीष कुमार ‘अंशु’

pravaktaअधिक दिन नहीं बीते ब्लॉग युग को खत्म हुए। उन दिनों ब्लॉगर्स मीट शब्द चल पड़ा था। हर दूसरे सप्ताह एक नया ब्लॉगर मीट हो आता था। शर्त यही थी कि जो लोग उस मुलाकात में शामिल होंगे, वे अपने-अपने ब्लॉग पर इस मुलाकात से जुड़ी हुई एक पोस्ट जरूर लिखेंगे। यदि एक ब्लॉगर मीट में बीस लोग भी शामिल हुए तो वह एक बड़ी खबर बन जाती थी, ब्लॉगरों के छोटे समाज के बीच।

ब्लॉगर भी कई तरह के थे, कुछ शौकिया ब्लॉगर थे। कुछ लोग अधिक से अधिक लोग ब्लॉग तक आए, इसलिए ब्लॉग लिखते थे। उनके पोस्ट में ऊल-जलूल शीर्षक हुआ करता था। इस तरह के ऊज-जलूल शीर्षक वाले पोस्ट पर अधिक ट्रैफिक होता था। कुछ लोगों का मानना है कि इंडिया टीवी की प्रेरणा रजत शर्मा को इन्हीं ब्लॉगरों से मिली। जिनकी ऊज-जलूल शीर्षकों पर ट्रैफिक अधिक होता है।

इस भीड़ में भी कुछ लोग अपनी-अपनी विचारधारा के लिए प्रतिबद्धता से काम कर रहे थे। बिना आने-जाने वालों की गिनती किए। ऐसे ही दो ब्लॉग में एक था हितचिन्तक, (https://hitchintak.blogspot.in/) जहां जाने पर आपका स्वागत ‘लोकतंत्र एवं राष्ट्रवाद की रक्षा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है’ जैसी पंक्ति से होता है।

दूसरा था मोहल्ला, (https://mohalla.blogspot.in/) जहां लिखा होता है- हम सब कभी वहीं थे…. अब भी नहीं भूले अपना-अपना मोहल्ला।

दोनों ब्लॉग विचारधारा के स्तर पर दो ध्रुव थे लेकिन एक साम्य था इनमें, अपनी विचारधारा को लेकर प्रतिबद्धता। इसलिए यह दोनों ब्लॉग अपनों के बीच ही नहीं बल्कि असहमति रखने वालों के बीच भी पढ़े जाते थे। यदि मैं गलत नहीं हूं तो उन दिनों इन दोनों ब्लॉग के मॉडरेटर एक दूसरे के नाम से परिचित थे, लेकिन एक दूसरे से मिले नहीं थे। बाद के दिनों में दोनों मॉडरेटर एक दूसरे से मिले, जिनमें एक नाम संजीव सिन्हा था और दूसरे का नाम अविनाश दास। दोनों की विचारधारा दो किनारे थे, एक उत्तरी किनारा और दूसरा दक्षिणी छोर। दोनों विचारधारा के दो धारा होने के बावजूद सादगी पसंद। शायद एक दूसरे में यही बात इन दोनों को पसंद आई होगी। दोनों की दोस्ती बढ़ी। दिलीप सी मंडल के खुर्दबीन से देखने वाले इनकी मित्रता की कुछ अलग व्याख्या कर सकते हैं। वैसे दोनों बिहार से हैं।

फिलहाल मेरा मकसद बिल्कुल इन दोनों की मित्रता की जांच पड़ताल करना नहीं है। लेकिन इनकी मित्रता ने इनके सार्वजनिक जीवन कुछ असर डाला है या नहीं इसके लेकर मीडिया के तीक्ष्ण विश्लेषक विनीत कुमार को अपने छात्रों से एक लघु शोध कराना चाहिए।

हितचिन्तक को कम और प्रवक्ता को जबसे संजीव सिन्हा ने अधिक समय देना प्रारंभ किया और मोहल्ला की जगह अविनाश दास का अधिक समय जबसे मोहल्लालाइव लेने लगा, यह दोनों वेबसाइट अपने प्रारंभिक समय में चाहे धारदार बने रहे हों लेकिन कालान्तर में दोनों की धार कुंद पड़ी। प्रवक्ता सिर्फ नाम का प्रवक्ता रह गया। उसे पढ़कर तय कर पाना कम से कम मुझ जैसे कम-समझ वालों के लिए मुश्किल है कि वह किसका प्रवक्ता है? मोहल्ला जो कभी अपने धारदार इन्ट्रो और मुद्दों पर अपने स्टैन्ड की वजह से जाना जाता था। मोहल्लालाइव होने के बाद उसका स्टैन्ड पीछे चला गया और एजेन्डा आगे आ गया।

बहरहाल एक पाठक के नाते संजीव सिन्हा और अविनाश दास से हितचिन्तक और मोहल्ला लौटाने की मांग कर ही सकता हूं। वैसे इस बात का अनुमान है मुझे कि उस तेवर के साथ एक ब्लॉग चलाना भारी कीमत मांगता है। उन्होंने वह कीमत उन दिनों चुकाई भी है और इस वक्त दोनों उस कीमत पर ब्लॉग चलाने को तैयार नहीं है।

प्रवक्ता मुझे ढेर सारे आलेखों का संग्रह ही दिखता है। जहां कोई दिशा नहीं है। पंकज झा जैसे इसके नियमित लेखकों ने एक समय कोशिश की थी, प्रवक्ता को एक दिशा देने की लेकिन वे असफल हुए।

इन सब बातों के बावजूद पांच साल तक बिना किसी आर्थिक लाभ के इतना समय और श्रम लगाकर प्रतिबद्धता के साथ प्रवक्ता को जीवित रखना आसान काम तो नहीं कहा जा सकता। जब पिछले पांच सालों में दर्जनों वेबसाइट सामने आई, चली और ना जाने कब बंद हो गई। प्रवक्ता लगातार चलता रहा। सबसे खास बात, इसके मॉडरेटर संजीव सिन्हा हमेशा नेपथ्य में ही रहे। इनकी यही अदा इन्हें सबसे जुदा बनाती है। भारत भूषण भाई भी इस मामले में बधाई के पात्र है।

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