समाज

मानसिक जातियां- भाग एक : प्रो. मधुसूदन

”Castes of Mind” प्रो. निकोलस डर्क्स, पर आधारित लेख।

(एक) प्रवेश

पद पद पर जिस पुस्तक नें मुझे सानंद चौंकाया, उसके कुछ अंशोको आपके सामने रखने में आनंद का अनुभव करता हूं। पहले आग्रह से कह दूं, कि, भारत की हर लायब्ररी में ”Castes of Mind” पुस्तक होनी चाहिए, कालेज के इतिहास के पाठ्यक्रम में इसका समावेश होना चाहिए, और इस पुस्तक के शीघ्रातिशिघ्र हिन्दी और अन्य जन भाषाओं में धारा प्रवाह संक्षिप्त-अनुवाद भी किए जाने चाहिए।

स्वतंत्र भारत को संगठित करने में यह पुस्तक बहुत कारगर साबित होगी।

पुस्तक पढने पर आप जानेंगे, कि,

(१ ) मूलतः परस्पर सहकार पर आधारित समन्वित प्रथाएं, कैसे स्पर्धा के आधार पर, रुपान्तरित की गयी? हमारे आपसी द्वेष और मत्सर का भी कारण क्या है?

(२) मूलतः समन्वयवादी प्रणाली कैसे संघर्षवादी बन गयी?

(३) विविधता में एकता देखने वाली संस्कृति को कैसे एकता में ही भिन्नता देखने वाली विकृति में ढालनेका प्रयास किया गया?

(४) कृण्वन्तोऽविश्वम्‌ आर्यम का नारा सारे विश्वको देनेवाले भारत में ही कैसे आर्य-द्रविड विवाद उकसा कर देश को दुर्बल बनाने का प्रयास किया गया?

(५) स्वस्थ जाति-व्यवस्था हमारी रक्षक थी, या भक्षक ?

(६) मिशनरियों के शब्दों में, पढेंगे कि उन्हें उनके मतांतरण के काम में दारूण निराशा क्यों हाथ लगी?

टिप्पणी : विवेकानंद जी ने सुधार के विषय में कहा है, कि हिन्दू-धर्म विकसनशील है। आवश्यक सुधार अवश्य किए जाएं, ( विवेकानंदजी के शब्दों में ) हमारा सदैव, सुधार का इतिहास रहा है। और वेदों के युग से लेकर आज तक हम उत्क्रान्त होते आए हैं।सुधार करने वाले शत्रुता से नहीं, पर अपनेपन से, सहानुभूति से आगे आएं। हमारा इतिहास भी उन्नयन शील है, ज्ञाता जानते ही है। उनकी पुस्तक ”Castes, Culture and Socialism” भी पढी जाएं।

(दो) ”Castes of Mind” का लेखक डर्क्स कौन है?

यह ”Castes of Mind” किसी भारतीय ने लिखी नहीं है। भारतीय तो स्वतः बुद्धि भ्रमित है, वह ऐसी पुस्तक लिख नहीं सकता, और यदि लिख ले, तो दूसरा भारतीय उसे पढ नहीं सकता। कहेगा, कि, लेखक होगा कोई पोंगा पंथी। इस पुस्तक का लेखक,विख्यात न्यूयोर्क स्थित कोलम्बिया युनिवर्सीटी का, इतिहास और मानव विज्ञान का निष्णात, प्रोफेसर डर्क्स है। डर्क्स की, साम्राज्यवाद-विरोधी निष्ठा ओं के बारे में कोई संदेह नहà ��ं। वह, प्रो. बर्नार्ड कोह्न (Bernard Cohn) की निगरानी में प्रशिक्षित, युनिवर्सीटी ऑफ शिकागो में पढा हुआ शोधकर्ता हैं।

”The Hollow Crown”(खोखला राज मुकुट,१९८७ ) नामक पुस्तक में वह, किसी को भी स्वीकार करने पर, विवश (मज़बूर) करने वाला, मानव विज्ञान का, अंग्रेज़ो ने चालाकी से सम्पन्न किया गया, राजनैतिक, और सामाजिक विकृति-करण का ऐतिहासिक वृत्तांत खोजता हैं।उस पुस्तकमें वह, अंग्रेज़ी राज के समय में, दक्षिण भारत के एक छोटे राज्य पुद्दुकोटी की राजनैतिक और सामाजिक विकृतिकरण की प्रक्रिया का, और देशी राज्य शासन का इ तिहास प्रस्तुत करता हैं।

प्रस्तुत निबंध, उसकी ”Castes of Mind (2001) ”मानसिक जातियां (२००१) ” नामक पुस्तक, जो, उन ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का, परीक्षण करती है, जिन के द्वारा, अंग्रेज़ो नें जातियों के ”व्यवस्था मूलक” स्वरूपका विकृतिकरण किया, उसकी झांकी मात्र है। समग्र विषय को पूरा न्याय देना, ऐसे लघु निबंधों में संभव नहीं है। लेखक के विचारमें विशेष उचित बिंदुओं को इसमें सम्मिलित किया है।

अनुरोध है, कि, यह पुस्तक सारे भारतीय चिंतक-विचारक-देशभक्त, संक्षेप में हर कोई पढे-लिखे भारतीय ने पढनी चाहिए। साधारण पाठक के लिए, यह पुस्तक कुछ कठिन प्रतीत हुयी।

(तीन)कूट नीति

यह लघु-लेख एक हिम-शैल(Tip of the Iceberg) की शिखा मात्र है। इस विषय का बोध अंतर राष्ट्रीय कूट नीति के सैद्धांतिक सूत्र जानने से सरल होगा। अंतर राष्ट्रीय कूट नीति की ”मॉर्गन थाउ” लिखित पाठ्य पुस्तक, कहती है, कि, धूर्त साम्राज्य वादी सत्ताएं (१) सैन्य बल से (२) आर्थिक प्रभुत्व जमाकर, (३) और सांस्कृतिक -मानसिक-प्रभाव जमाकर दूसरे देशों पर अपनी सत्ता चलाती है।

१ ला सैन्य-बल, शीघ्र परिणामी होता है, पर सत्ता समाप्त होनेपर उसका निश्चित और शीघ्र अंत भी होता है,

२ रा आर्थिक प्रभुत्व भी धन-हीन स्थिति में क्षीण हो जाता है,

पर ३ रा मानसिक-सांस्कृतिक प्रभाव मनःपटल पर अंकित हो जाने के कारण, शीघ्रता से मिट नहीं पाता; अनेक शताब्दियों तक, और कभी कभी तो सदा के लिए यह प्रभाव अमिट रूपसे बना रहता है।

{जिन्हें संदेह हो, वे यूनान, मिस्र, रोम इत्यादि देशों का इतिहास देखें }

(चार ) जातियों का अवलोकन, विश्लेषण, मीमांसा इत्यादि

यह लेखक, कुछ दृष्टि-कोणों को Castes of Mind का आधार लेकर सुधी पाठकों के सामने रखना चाहता है। उसे, ”Castes of Mind” में सामान्यतः (कुछ अपवादों को छोडकर) निम्न दृष्टिकोण प्रतीत होते हैं।

(क)Anglicist आंग्ल-शासक, जो शासन की सुविधा की दृष्टिसे सोचता है, यही उसका उद्देश्य (एजेंडा) भी है।वह सारी कूटनीतियां अपनाता है। आज तक की भारत की अंग्रेज़ियत इसी मानसिक प्रभाव की सफलता का परिणाम मानता हूं।

(ख) Orientalist प्राच्यविद, स्वतंत्र, कुछ अंश में निरपेक्ष दृष्टि रख सकता है, सामान्यतः इसका ज्ञान के अतिरिक्त कोई (एजेंडा) उद्देश्य नहीं होता।

(ग)Missionary अपने पंथ का प्रचार करने निकला पूर्वाग्रह दूषित इसाई धर्म प्रचारक, जो भारत को निश्चित ही,हीन दृष्टिसे देखता है, इसका एक ही उद्देश्य (एजेंडा) है, धर्मांतरण। न्यूनतम अपवाद रूप, कोई मिशनरी भी भारतीय परम्पराओं की, प्रशंसा कर बैठता है। इसके उदाहरण भी, इस पुस्तकमें मिल जाएंगे।

(घ) और अन्य विश्वविद्यालयीन शोध-कर्ता, जो बहुतांश में, पूर्वाग्रह रहित दृष्टि से देखकर विश्लेषण करना चाहते है। ऐसा नहीं कि यह सारे सदा ही ऐसी शुद्ध दृष्टि रख पाएं। अन्य संभावनाएं भी नकारी नहीं जा सकती। डर्क्स, कोह्न इत्यादि प्रोफेसर, और लेखक ड्युमॉन्ट इसी वर्गमें आते हैं। इन सभीने भारतीय परम्पराओं को सही समझा है। डुबोइस नामक फ्रान्सीसी जेसुईट ईसाई, तो मनु संहिता की भी अत्युत् तम प्रशंसा करता है।

उपरिनिर्देशित हर वर्ग में कुछ अपवाद भी थे। कुछ मिशनरी भी भारत आने पर यहां की संस्कृति से प्रभावित हो अपना मत बदल सके थे।इन सारी, दृष्टियों से, भारत में, अंग्रेज़ी ”राज” की १५०-२०० वर्षों की कालावधि में जो बदलाव आए, विशेष रूपसे भारतकी जाति व्यवस्था पर, वे” Castes of Mind” में मुद्रित है, उसी के कुछ चुने हुए, विशेष अंश इस लघु निबंध में प्रस्तुत हैं।इसके अतिरिक्त और भी बिंदू इस पुस्तक में ‚ छेडे गए हैं, पर उन सारों पर लिखना इस छोटे लेख में संभव नहीं।

(पांच) मिशनरी, कुछ उद्धरण। मिशनरियों का गुप्त पत्र व्यवहार डर्क्स ने उद्दरित किया है।

एक व्युत्पत्ति के अनुसार,”जाति” शब्दका का मूल ”ज्ञाति” है, और व्याख्या है, ”ज्ञाताः परस्पराः स ज्ञाति”। परस्पर एक दूसरे को जानने वाले, समुदाय का नाम है जाति। {गुजराती में ज्ञाति (जाति नहीं)उच्चारण प्रचलित है।} तो लीजिए कुछ उद्धरणों का हिन्दी अनुवाद। हरेक उद्धरण का पहलु अलग है।

[क]

(42-W B Addis,letter to Church Board, Coimbatore, Jan 6 1852)

हरेक मिशनरी के सैंकडों अनुभव थे, उन्हें धर्मांतरण, संभव लगता था, पर जैसे ही जाति हस्तक्षेप करती थी, तो धर्मांतरण रूक जाता था, और निराशा हाथ लगती थी।

पादरी बाबा W B Addis चर्च बोर्ड को लिखे १८५२ के पत्र में यह लिख रहे हैं। (पृष्ठ १४१ डर्क्स)

कि, ”जाति ऐसी बुराई ( उनके लिए) है, जो लम्बे अरसे तक सोय़ी पडी होती है, पर जैसे इसाइकरण की खबर फैली कि, सचेत हो जाती है, और इसाइकरण रुकवा देती है। कभी उसका परिवार ही इसाइकरण रूकवाने के लिए, जाति को बुला लाता है। इस लिए, जाति को हमेशा धर्मांतरण के, प्राथमिक शत्रु के रूप में देखा गया।

इतिहास साक्षी है, जहां, जातियां बची नहीं थी, जहां के हिन्दू पहले बौद्ध बन चुके थे, वहां, धर्मांतरण हो गया। [यह बात, नेहरू जी की Discovery of India में, और विवेकानंद जी की, Caste Culture and Socialism में लिखी स्मरण है।]

[ख]

मिशनरी Dubois का कथन page #25 पर लिखा है। उसके अनुसार, जाति के नीति-नियमों ने ही, हमें काम वासना के ( Pornographic )खजुराहो और कोणार्क प्रेरित विकारों से भी बचाया है। यह आज के स्वच्छंद-स्वैर-वातावरण में विशेष ध्यान देने योग्य बिंदू है।

उसके अनुसार ”जाति-व्यवस्था की प्रतिभा ने ,और उसके नीति नियमों, और बंधनों ने ही, भारत को उसी के मंदिरों पर बनी , कामुक शिल्पकला के बुरे परिणामों से भी में बचाकर रखा है।

{आगे, उसके अनुसार कुछ अटपटी अचरज की बात उसे प्रतीत हुयी!} कि, जाति भी धर्म से अलग थी भी और नहीं भी थी। { है न अटपटी बात? }

आगे कहता है, कि यह जाति ही थी, जिसकी प्रतिभा ने, भारत को, परदेशी (सत्ता और ) प्रभाव से बचा कर रखा था ; और साथ साथ अप्रत्यक्ष रूपसे से, हिंदु-धर्म की भी रक्षा की।

[ग]

जिसकी , रूढियां और (कानून )नियम, वगैरा बिल्कुल अलग थे; ऐसे पराए धर्म के हुकम तले से हिंदू अनेकानेक बार, गुज़रा हैं, पर फिर भी, उसकी रूढियों में बदलाव लाने की सारी कोशिशे, नाकामयाब साबित हुयी।और पराया शासन, कोई भारतीय परंपरा ओं पर खास प्रभाव नहीं कर पाया।

उसके कथन के अनुसार==>

सबसे पहले और सबसे ज्यादा जाति-व्यवस्था ने ही उसकी(भारतकी) रक्षा की । जाति व्यवस्थाने ही, हिंदुओं को बर्नरता में गिरने से बचाया , और यही कारण है, कि इसाई मिशनरी भी उनके धर्मांतरण के काम में सफल होने की संभावना नहीं है। —– Dubois

क्रमशः