प्रवासन मुद्दा: कितनी हक़ीक़त कितना फ़साना

3
199

तनवीर जाफ़री

वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में जहां उद्योग तथा व्यापार के लिए दुनिया के लगभग सभी देशों ने अपने दरवाज़े खाले रखे हैं वहीं दुनिया का कोई भी व्यक्ति किसी भी देश में अपने जीवन के किसी सार्थक मक़सद को लेकर आने-जाने के लिए भी स्वतंत्र है। यही स्थिति अंतर्राज्यीय स्तर की भी है। गोया कोई भी व्यक्ति देश-विदेश में कहीं भी आवागमन,रोज़गार तथा व्यापार के लिए पूर्णत: स्वतंत्र है। परंतु आमतौर पर देखा यह जा रहा है कि प्रवासियों के मुद्दे को लेकर अंतर्राष्ट्रीय व अंतर्राज्यीय स्तर पर बड़े पैमाने पर राजनीति की जाने लगी है। राजनैतिक लोग मात्र अपने राजनैतिक फायदे के चलते स्थानीय लोगों को यह समझाने की कोशिशों में लगे रहते हैं कि प्रवासी लोगों द्वारा स्थानीय लोगों के हिस्से की नौकरियां, रोज़गार तथा व्यापार आदि छीना जा रहा है। इतना ही नहीं बल्कि प्रवासियों के विरोध की राजनीति करने वाली यह शक्तियां प्रवासियों की संख्या को भी बहुत बढ़ा-चढ़ा कर बताती हैं। प्रश्र यह है कि क्या वास्तव में प्रवासन एक समस्या है या फिर इससे मेज़बान राष्ट्रों अथवा राज्यों को तथा वहीं की अर्थव्यवस्था को लाभ ही पहुंचता है।

उदाहरण के तौर पर भारतवर्ष के मैट्रो स्टेट समझे जाने वाले पंजाब व हरियाणा कृषि उत्पादन के क्षेत्र में देश के प्रथम श्रेणी के राज्यों में गिने जाते हैं। इसके अतिरिक्त औद्योगिक क्षेत्र में भी अब यह दोनों राज्य काफी प्रगति पर हैं। बड़े पैमाने पर इन राज्यों में विदेशी पूंजीनिवेश हो रहा है। ज़ाहिर है कृषि हो अथवा उद्योग इन सभी में प्रवासी लोगों की शारीरिक भागीदारी बड़े पैमाने पर देखी जा सकती है। लिहाज़ा हम यह कैसे कह सकते हैं कि प्रवासन अथवा प्रवासी लोग स्थानीय लोगों के लिए एक समस्या मात्र हैं। यहां अभी मात्र दो-तीन वर्ष पूर्व का एक उदाहरण देना चाहूंगा जबकि मनरेगा योजना के तहत मज़दूरी के काम मिल जाने के कारण बिहार व उत्तर प्रदेश के खेतीहर मज़दूर गेहूं और चावल की फ़सल की बिजाई व कटाई के समय पर्याप्त संख्या में हरियाणा व पंजाब राज्यों की ओर नहीं आ सके थे। उन दिनों इन राज्यों के ज़मीदारों की परेशानी का आलम देखने लायक़ था। इन राज्यों में जगह-जगह बैनर व तंबू लगे दिखाई देते थे जिनमें मज़दूरों को आकर्षित करने के लिए आकर्षक मज़दूरी,शर्तें व अन्य कई प्रलोभन दिखाई देते थे। इन राज्यों के प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर भी यूपी व बिहार की ओर से आने वाली रेलगाडिय़ों पर ज़मींदार लोग अपनी टै्रक्टर ट्रालियां व बस आदि लेकर मज़दूरों के स्वागत के लिए पहुंचते दिखाई देते थे। इन ज़मीदारों के साथ मज़दूरों के ठेकेदारों का एक बड़ा नेटवर्क भी जुड़ा होता है जोकि ज़रूरत के समय उनके खेतों में प्रवासी मज़दूरों की आपूर्ति करता है। अब यदि प्रवासी लोग या प्रवासन एक समस्या है तो प्रवासी मज़दूरों के इस प्रकार की आवभगत की ज़रूरत ही क्या है? इन राज्यों की अधिकांश औद्योगिक इकाईयों, अनाज व सब्ज़ी मंडियों तथा निजी व सरकारी निर्माण क्षेत्र में हो रहे विकास में भी इन्हीं प्रवासी लोगों की अच्छी-खासी भागीदारी देखी जा सकती है।

कुछ ऐसी ही स्थिति मुंबई की भी है। देश का सबसे बड़ा औद्योगिक महानगर समझा जाने वाला तथा देश की आर्थिक राजधानी के रूप में अपनी पहचान बनाने वाला मुंबई महानगर पूरे देश के कामगरों को अपनी ओर आकर्षित करता है। निश्चित रूप से प्रवासन के चलते आज मुंबई की आबादी इतनी बढ़ गई है कि वहां रहने के लिए जगह की का$फी दि$क्$कत हो रही है। जगह-जगह गगनचुंबी इमारतें बनाकर लोगों के सिर छिपाने की व्यवस्था की जा रही है। नई मुंबई बसाई जा चुकी है तथा तमाम जगहों पर समुद्री किनारों को पाटकर उनपर इमारतें बनाई जा चुकी हैं। परिणामस्वरूप थोड़ी सी बारिश होने पर मुंबई में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। परंतु इन सब के बावजूद मुंबई आर्थिक प्रगति की अपनी मंजि़लों को तय करता हुआ निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। ज़ाहिर है इस आर्थिक विकास में जहां स्थानीय लोगों का योगदान है वहीं प्रवासी लोगों के महत्वपूर्ण योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। मुंबई ह्यूमैन डवेल्पमेंट संसथा द्वारा जारी एक रिपोर्ट में पिछले दिनों यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि महानगरों के आर्थिक विकास में प्रवासियों का योगदान अधिक होता है। परंतु सत्ता हासिल करने की लालच में वोटों की ओछी राजनीति करने वाले शिवसेना व महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के नेतागण न सि$र्फ प्रवासियों की संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं बल्कि यह स्थानीय लोगों को ‘धरती पुत्र’ कह कर संबोधित करते हैं तथा प्रवासियों को धरती पुत्रों के अधिकारों पर डाका डालने वाले शरणार्थियों’ के रूप में ‘प्रोजेक्ट’ करने की कोशिश करते हैं। यहां प्रवासियों से संबंधित किसी मामूली सी बात में भी न सि$र्फ राजनीति की जाने लगती है बल्कि कई बार निहत्थे व असहाय प्रवासियों को हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रवासन को लेकर कुछ ऐसे ही हालात हैं। दूसरे देशों में भी प्रवासन मुद्दे को एक बड़ी समस्या बताकर स्थानीय लोगों के समक्ष पेश किया जाता है। यहां भी प्रवासियों के विरोध की राजनीति करने वाले स्थानीय लोगों द्वारा इनकी संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है। इन्हीं कारणों से प्रवासियों व स्थानीय लोगों के बीच अविश्वास तथा न$फरत जैसे भाव पैदा होने लगते हैं। पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन(आईओएम)ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की जिससे कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार प्रवासन की प्रक्रिया से हालांकि सभी देशों को आर्थिक लाभ ही पहुंचता है। परंतु उसके बावजूद प्रवासियों को लेकर स्थानीय लोगों की आम धारणा नकारात्मक ही रहती है। आईओएम द्वारा जिन मेज़बान देशों का सर्वेक्षण किया गया वहां यह पता चला कि स्थानीय लोगों के मध्य यह आम धारणा बन चुकी है कि उनके देश में आवश्यकता से अधिक प्रवासी लोग रहते हैं। स्थानीय लोग प्रवासियों की संख्या का अंदाज़ा भी उनकी वास्तविक आबादी से कहीं अधिक लगाते हैं’। इस रिपोर्ट में एक अत्यंत चौंकाने वाली बात यह बताई गई कि कुछ देशों में तो आबादी का यह अनुमान प्रवासियों की वास्तविक आबादी का तीन सौ प्रतिशत से भी अधिक लगाया गया है।

उदाहरण के तौर पर इटलीवासियों को ऐसा प्रतीत होता है कि उनके देश में प्रवासियों की संख्या 25 प्रतिशत है। जबकि हक़ीक़त में यह आंकड़ा केवल 7 प्रतिशत का ही है। इस रिपोर्ट में भी स्थानीय लोगों की उस अवधारणा का जि़क्र है जिसमें लोगों को यह महसूस होता है कि प्रवासी लोग स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि प्रवासन संबंधी इसी प्रकार की $गलत धारणाओं के परिणामस्वरूप ही प्रवासन संबंधी अन्य प्रमुख समस्याओं जैसे कि आवासीय समस्या तथा बेरोज़गारी आदि की समस्या जैसे मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। आई ओ एम ने इस महत्वपूर्ण सर्वेक्षण के बाद यह चेतावनी भी दी है कि प्रवासन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर यदि सकारात्मक व रचनात्मक बहस नहीं कि गई तो प्रवासियों व स्थानीय लोगों के मध्य का एकीकरण व इनमें परस्पर सामंजस्य स्थापित करना मुश्किल होगा। इसके अतिरिक्त प्रवासियों के दरकिनार होने का भी खतरा बना रहेगा।

अंतर्राष्ट्रीय संगठन आई ओ एम की इसी रिपोर्ट के अनुसार चीन, भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश तथा फ़िलीपीन्स देशों के लोगों ने 2010 में सबसे बड़ी संख्या में दूसरे देशों का रुख किया। इसी वजह से इन देशों में पर्याप्त विदेशी धन भी आया। उदाहरण के तौर पर भारत में 2010-11 में दूसरे देशों से भेजी गई 51 अरब डॉलर से भी ज़्यादा की रक़म आई। 2009 के आंकड़ों के अनुसार भारत से 97 प्रतिशत तथा पाकिस्तान से 87 प्रतिशत प्रवासियों ने खाड़ी सहयोग संगठन के देशों अर्थात् जी सी सी देशों में पलायन किया। इन खाड़ी देशों की ओर पलायन का कारण यही था कि जिस समय अधिकांश अमेरिकी व यूरोपीय देश आर्थिक मंदी से जूझ रहे थे, उस समय मध्य पूर्वी देशों में तेल के बढ़ते दामों के कारण वहां वैश्विक मंदी का प्रभाव नहीं था। आई ओ एम की रिपोर्ट जहां प्रवासन के प्रचारित किए जाने वाले झूठे आंकड़ों को बेनकाब करती है, वहीं यह रिपोर्ट इस हक़ीक़त को भी उजागर करती है कि बाहर से आने वाले लोग स्थानीय लोगों की तुलना में बेरोज़गारी का अधिक शिकार होते हैं। इसका कारण प्रवासियों के संबंध में होने वाला राजनीति से प्रेरित विकृत व नकारात्मक प्रचार भी है। जिसकी वजह से कई देशों में उनके विरुद्ध स्थानीय स्तर पर प्रतिरोध बढ़ रहा है। प्रवासियों को एक विशेष प्रकार के वर्ग में डाला जाता है तथा उनके साथ भेदभाव व पूर्वाग्रह से ग्रसित विचारों को प्रचारित किया जाता है।

इस रिपोर्ट का समर्थन करते हुए ब्रिटेन में रहने वाले कई प्रवासी लोगों ने सा$फतौर पर कहा कि यदि यहां किसी विभाग में अथवा किसी कंपनी में नौकरी करने का कोई अवसर निकलता है तो सर्वप्रथम उन लोगों को प्राथमिकता के आधार पर अवसर दिया जाता है जिनके पास ब्रिटिश नागरिकता है। इसके पश्चात यूरोपीय लोगों को दूसरे नंबर पर रखा जाता है। इसके पश्चात यदि रिक्त स्थान शेष रहता है तब कहीं जाकर भारतीय अथवा अन्य देशों के प्रवासी लोगों को पूछा जाता है। प्रवासन संबंधी इसी विकृत मानसिकता ने ही तमाम प्रमुख देशों के लिए मिलने वाले वीज़ा नियमों में भी काफी सख़्ती कर दी है। वैसे भी संख्या बल को लेकर जहां वोटों की राजनीति करने वाले स्थानीय राजनीतिज्ञ निचले स्तर की राजनीति कर स्थानीय लोगों को प्रवासियों के विरुद्ध भडक़ाते हैं, वहीं इसके अतिरिक्त दूसरी उससे बड़ी समस्या उस समय भी उत्पन्न हो जाती है जबकि कोई प्रवासी व्यक्ति दूसरे देश में जाकर अपनी मेहनत व बुद्धिमानी के बलबूते पर अपने क़द को इतना ऊंचा कर लेता है कि वह प्रवासी होने के बावजूद ऊंचाई के किसी शिखर पर दिखाई देने लगे। जैसा कि अभी कुछ समय पूर्व ही उन दिनों देखने को मिला था जबकि भारतीय मूल के उद्योगपति लक्ष्मी निवास मित्तल ने यूरोप में आर्सेलर ग्रुप की इकाईयां खरीदनी चाहीं थीं। उस समय भी उन्हें इसी प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ा था। बहरहाल प्रवासन को लेकर पैदा की जाने वाली इन समस्याओं से निपटने की ज़रूरत है तथा सभी देशों व राज्यों के लोगों को भी स्थानीय स्तर पर यह समझने की ज़रूरत है कि प्रवासन को एक समस्या के रूप में चिन्हित करने वाले स्थानीय राजनीतिज्ञ किस प्रकार ‘धरतीपुत्रों’ के बीच में हक़ीक़त को फ़साना के रूप में परिवर्तित व दुष्प्रचारित कर अपने राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि का प्रयास करते हैं।

3 COMMENTS

  1. यह लेख एक अच्छी जानकारी प्रस्तुत करता है,पर इस पर ” सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार” की टिप्पणी मेरी समझ में नहीं आयी.

  2. Akhand Hindu Rashtra
    https://www.bikaners.com/International/isi-agent-fai-met-indian-cabinet-ministers
    ISI एजेंट से होती थी भारतीय मंत्रियों की मुलाकात …..दोस्तों इसका सीधा सा मतलब है की देश हुए सारे आतंकवादी हमलो की जानकारी कांग्रेस को थी…और आगे भी आतंकी बोम्ब विस्फोट कांग्रेस की मर्जी और जरूरत के अनुसार करेंगे..तभी तो हम सोचे की देश में हो रहे आतंकी हमलो का दर्द कांग्रेसियों को क्यों नहीं होता है….राहुल गाजी बड़े आराम से फरमाता है की सरकार एक एक आदमी को सुरक्षा थोड़े ही दे सकती है…हां एक एक आतंकवादी को मुवावजा दे सकती है….अब एक सनसनीखेज खुलासा होने वाला है की…९/११ को अमेरका पर हुए आतंकी हमले की पक्की खबर कांग्रेस और सीबीआई को २४ घंटे पहले से थी….FBI को चाहिए की सारे कांग्रेस के नेताओं और सीबीआई अधिकारियों को अमेरिका उठाकर ले जाए और उलटा लटकाकर इतने जूते मारे की ये इनकी पाकिस्तानियों और आतंकवादियों से संत गांठ काबुल कर लेंगे….क्योकि हराम की कमाई खा खा कर इनकी हड्डिया इतनी कमजोर हो गई है की दो चार जूतेपड़ते ही खाड़ी के पैजामे गिले हो जायेगे….इनको सारे मोस्ट वांटेड आतंकवादियों के नाम पते भी मालोम्म है…कुछ ने कई आतंकवादियों को भारत में इनके फार्म हाउसों पर छुपा भी रखा है……

Leave a Reply to R.Singh Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here