रेगिस्तान से दूर होते प्रवासी पक्षी

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दिलीप बीदावत

मौसम बदलने के साथ ही देश के कई इलाक़ों में प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो जाता है। इनका एक स्थान से दूसरी जगह प्रवास केवल भोजन तक ही सीमित नहीं होता है बल्कि इसमें पूरा पारिस्थितिकी तंत्र जुड़ा हुआ है। जो पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन पक्षियों का प्रवास मानव सभ्यता के लिए जहां जीवनदायी है वहीं आर्थिक रूप से भी समाज को इसका लाभ मिलता है। देश के विभिन्न हिस्सों में अलग अलग प्रजातियों के प्रवासी पक्षियां अपना डेरा जमाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवास के दौरान यही इनका नियमित ठिकाना होता है।

राजस्थान के कई क्षेत्रों में भी दुनिया के विभिन्न स्थानों से पक्षियों का झुंड प्रवास करता है। कभी नमक उत्पादन के नाम से प्रसिद्ध बाड़मेर जिले का पचपदरा शहर रिफाइनरी स्थापन की घोषणा एवं निर्माण कार्य चालू हो जाने से देश के नक़्शे पर फिर से नई पहचान के साथ उभर रहा है। लेकिन रिफाइनरी से रोजगार और राजस्व प्राप्ति की संभावित आकांक्षाओं ने यहां की एक और पहचान को कभी उभरने नहीं दिया। यहां प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में कुरजां (डेमोइसेल क्रेन) व अन्य प्रवासी पक्षी आते हैं। दूर-दूर तक फैली नमक झील में रूके हुए पानी के किनारे हजारों की संख्या में इस वर्ष भी पक्षी आए हुए हैं। 

थार रेगिस्तान के जलवायु की खास विशेषता है कि यहां सदियों से देसी परिन्दों के अलावा अनेकों प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों का आवागमन रहता है। जो यहां की जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूरू जिले के ताल छापर, बीकानेर जिले के लूणकरनसर, गजनेर झाील, जोधपुर जिले के फलोदी के खीचन और बाप थाना क्षेत्र, बाड़मेर के पचपदरा, तिरसिंगड़ी, कोरणा, नेवाई गांवों व जैसलमेर के तालाबों के किनारे यह अपना डेरा जमाते हैं। रेगिस्तान में बने पारंपरिक जल स्रोत, सुरक्षित व शांत वातावरण और जीवों के प्रति यहां के लोगों का लगाव ही इन पक्षियों के आकर्षण का कारण रहा है। थार के लोगों विशेषकर महिलाओं का कुरजां पक्षी के साथ सखी सहेली जैसा रिश्ता रहा है। महिलाओं और कुरजां के साथ संवाद यहां के लोकगीतों में प्रचलित है।

देशों की प्राकृतिक और राजनैतिक सीमाओं को लांघ कर कुरजां एवं अन्य प्रजातियों के पक्षी दक्षिणी पूर्वी यूरोप, साइबेरिया, उत्तरी रूस, यूक्रेन, कजाकिस्तान के ठंडे क्षेत्रों से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर थार के रेगिस्तान आते हैं और यहां का तापमान बढ़ने की शुरूआत के साथ ही वापस लौट जाते हैं। रेगिस्तान में मानसून के समय तालाब और झीलें पानी से भर जाती है, फसलें कटने के साथ ही ठंडक बढ़ने लगती हैं और इसी के साथ प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो जाता है। अनुकूल तापमान, पानी से लबालब भरे तालाब, झीलें, हरे-भरे ओरण, गौचर जैसे चारागाह और फसल कटाई के बाद खेतों में बिखरा चुग्गा इन पक्षियों के आकर्षण की वजह रही है।


लेकिन अब थार में भी स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। विकास की तेज रफ्तार, ऊर्जा, संचार और यातायात के साधनों का विकास, बाजार का जीवनचर्या में हस्तक्षेप, प्रकृति और पर्यावरणीय मूल्यों को नजरअंदाज कर किए जाने वाले खनन और स्थापित किए जाने वाले उद्योग व मानव का प्रकृति से अलगाव जैसे कारणों के चलते थार का रेगिस्तान बदल रहा है। चारागाहों के वनस्पति विहीन होने, पारंपरिक जल स्रोतों के बर्बाद होने जैसे कारणों के चलते वह दिन दूर नहीं जब इन पक्षियों का आगमन पूर्णतः रूक जायेगा। प्रकृति के साथ तालमेल से जीवन यापन करने वाले पक्षी अतिसंवेदनशील होते हैं तथा जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों को जल्दी भांप लेते हैं। यही कारण है कि कुरजां और अन्य प्रवासी पक्षी रेगिस्तान में तेजी से अपने ठिकाने बदल रहे हैं। 

हाल ही में ताल छापर में हजारों की संख्या में हुई देसी और प्रवासी पक्षियों की मौत सरकार व समाज दोनों के लिए चेतावनी है कि परिंदों के बाकी ठिकानों को भी ठीक किया जाए। पचपदरा में रिफाइनरी बन जाने से उद्योग और आबादी तेजी से बढ़ेगी। कल तक विरान पड़ी नमक झील में जमीन के दावेदार खड़े हो रहे हैं। अवैध कब्जे होने लगे हैं। रिफाइनरी चालू होने से वातावरण प्रदूषित होगा। पक्षियों की उपस्थिति को अनदेखा कर प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण से प्रमाणपत्र लेना कोई कठिन काम नहीं है। पक्षियों के ठहरने वाले स्थान को पचपदरा कस्बे से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों व गंदगी से पाट दिया गया है। कुरजां का एक पूरा झुंड गंदगी ढेर पर डेरा डाले हुए है। दिन में पानी के किनारे, तो रात्रि में झील में उगे विलायती बवूलों की झाड़ियों में शरण लेते हैं।


छापर ताल की घटना के बाद सरकार बार-बार दावा कर रही है कि वह इस मसले पर गंभीर है। अगर यह गंभीरता केवल ताल छापर में मरे हजारों पक्षियों के मौत के कारणों की जांच तक सीमित रहती है तो यह यहां के पर्यावरणविदों, जीव-जंतु कल्याणी प्रेमियों के लिए चिंता का विषय होनी चाहिए। अच्छा होता कि ताल छापर से सबक लेकर सरकार थार के रेगिस्तान में प्रवासी पक्षियों के सभी ठिकानों का जायजा लेती, इन ठिकानों को संरक्षित व सुरक्षित करने के लिए संबंधित विभागों को उचित निर्देश जारी करती, समुदाय और ग्राम पंचायतों की सहभागिता से इनके संरक्षण व सुरक्षा के लिए पारंपरिक जल स्रोतों, चारागाहों के विकास की योजनाएं बनाने के लिए प्रेरित करती। कोरणा गांव के लोगों से सीख लेकर समाज भी इनके बचाव के लिए आगे आता। ज्ञात रहे कि दो वर्ष पूर्व बाड़मेर जिले के कारेणा गांव में ओरण व आगौर जहां हजारों की संख्या में कुरजां और दूसरे पक्षी आते हैं, में सरकार द्वारा ग्रीड सब स्टेशन बनाने के निर्णय के विरोध में लोग एकजुट होकर लड़े और जीत हासिल की। खीचन में कुरजां व अन्य पक्षियों के सुरक्षा व संरक्षण की व्यवस्था ग्राम पंचायत व समुदाय करता है। इसी प्रकार रेगिस्तान के अन्य ठिकानों को संरक्षित व सुरक्षित करने की पहल सरकार और समाज दोनों की होनी चाहिए। इस मुद्दे पर यदि अभी गंभीर नहीं हुए तो मानव सभ्यता को भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

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