@अन्‍नपूर्णा मित्तल; नारी पूजनीय है, नारी को भी ये याद रखना होगा?

 शादाब जफर शादाब

आखिर कब रूकेगी औरतों पर होती यातनाएं, लेख प्रवक्ता पर पढा। अन्नपूर्णा मित्तल जी, आप एक महिला है और महिला होने के नाते आप ने जो भी लिखा, जो भी सुना वो सच नहीं। मुझे ये तो ज्यादा पता नहीं कि दुनिया मैं महिलाओं को लोग किस नजरिये से देखते है पर हां इतना जरूर पता है कि हमारे देश में नारी को पूजा जाता है लक्ष्मी, पार्वती, सीता, सरस्वती और दुर्गा के रूप में। आज समाज और पुरूषों पर तरह तरह के आरोप लगाये जाते है, समाज और पुरूष महिलाओं पर अत्याचार कर रहे है पर क्या ये हकीकत है नहीं बिल्कुल नहीं। आज आधुनिकता की दौड़ में नारी इस हद तक गिर चुकी है कि उसे अपनी अपने परिवार की इज्जत का बिल्कुल ख्याल नहीं। इस का ताजा उदाहरण मैं वीना मलिक के रूप में आप को देना चाहूंगा। जिस नारी को एक मां अपनी कोख में छुपा कर नौ महीने रखती है जिस को वो अपनी छाती का दूध ढक कर पिलाती है। जिस बेटी को बाप दुनिया की बुरी नजर से बचाने के लिये अपनी इज्जत की खातिर अपनी जान तक दे देते हो, जिस के शादी और पढाई की खातिर उस का परिवार खुद को महाजन की दुकान पर गिरवी रख देता हो क्या वो मां, बाप, भाई उस का कभी बुरा चाहेंगे। अगर बुरा नहीं चाहेंगे तो उस से बुरे की उम्मीद भी नहीं करेगे। जो सांस अपने बेटे के लिये चांद सी बहू, गुणवान, भाग्यवान राजलक्ष्मी ढूढते ढूढते अपने ऑखों की रोशनी तक खो देती हो क्या वो सांस कभी उस बहू का बुरा चाहेंगे। पर ऐसा होता नहीं वीना मलिक जैसी बदनाम औरतें कुछ रूपयों की खातिर अपने मां बाप भाई खानदान का ख्याल नहीं करती। और अपने बदन की सरेआम नुमाईश कर पूरे नारी समाज को बदनाम कर देती है। बेटी बहन को इस तरह कौन सा बाप या भाई देख सकता है शायद मुझ से ज्यादा आप जानती होगी, शादी के दो तीन, या एक साल बाद बूढे मां बाप को अकेला छोड पति अपनी पत्नी संग अलग गृहस्थी क्यो बसा लेता है इस का जवाब भी आप के जरूर होगा। आज टीवी, चैनलो, अखबारों में नारी वन पीस, और टू पीस कपडे पहन कर किस प्रकार नारी का मान सम्म्मान बढा रही है आप को जरूर ऐसे औरतो पर गर्व होता होगा।

आज पूरी दुनिया में जिस्मफरोशी का बाजार गर्म है। पहले मजबूरी के तहत औरतें और युवतिया इस धंधे में आती थी लेकिन अब मजबूरी की जगह शौक ने ले ली है। आज अपनी बढी हुई इच्छाओं को पूरा करने के लिये महिलाए और युवतिया इस पेशे को खुद अपनाने लगी है। महज भौतिक संसाधनों को पाने की खातिर कुछ लडकिया आज इस धंधे में उतर आई है। बंगला कार से लेकर घर में टीवी फ्रिज एसी के शौक को पुरा करने के लिये ये युवतियां जिस्मफराशी को जल्द सफलता पाने के लिये शार्टकट तरीका भी मानती है। इसी लिये आज इस धंधे में सब से ज्यादा 16 से 20 व 22 साल की स्कूली छात्राओ की हिस्‍सेदारी है। इन में से केवल 20 प्रतिशत छात्राएं ही मजबूरी के तहत इस धंधे में है 80 प्रतिशत अपने मंहगे शौक को पूरा करने के लिये इस धंधे में आई हुई है। किंग्स्टन विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर रॉन रॉबट्स ने सेक्स उद्योग से छात्र छात्राओं के संबंधो को जानने के लिये किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रिटेन के स्कूल और विष्वविद्यालयो में पढने वाली कई छात्राए अपने स्कूल की फीस जुटाने व दोस्‍तों के साथ मौजमस्ती करने, अच्छे और मंहगे कपडे पहनने के लिये देह व्यापार का धंधा करती है। ये ही कारण है। पिछले दस सालों में देह व्यापार का ये कारोबार शौक ही शौक में 3 प्रतिशत से बढकर 25 प्रतिशत तक पहुंच गया।

क्या पत्नी द्वारा पति और सास प्रताडि़त नहीं होते। होते है पर पुरूष प्रधान समाज होते हुए भी ये बात घर से बाहर समाज में नहीं पहुंच पाती। तभी तो सीधे साधे पुरूष चुपचाप कभी घर की इज्जत की खातिर कही अपने बच्चो इज्जत की खातिर समझौता कर चुप घरेलू हिंसा का शिकार होते रहते है। हद तो तब हो जाती है जब पत्नी और ससुराल वालो द्वारा ऐसे पुरूषों को दहेज एक्ट में फॅसा कर जेल तक भिजवा दिया जाता है। दरअसल पिछले कुछ सालो से ऐसे मामलो में लगातार गॉव और कस्‍बों में बडी तादात में इजाफा हो रहा है। जिस में पुरूषों को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड रहा है। इन घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले पुरूशो के लिये कुछ समाजसेवी संगठन बन रहे है ये एक अच्छी पहल है। क्‍योंकि महिलाओं के मुकाबले पुरूष घरेलू हिंसा के शिकार का सब से भयावह पहलू यह है कि पुरूषों के खिलाफ होने वाली हिंसा की बात न तो कोई मानता है और न ही पुलिस इस की शिकायत दर्ज करती है हॅसी मजाक में पूरे प्रकरण को उडा दिया जाता है समाज में कुछ लोग घरेलू हिंसा के शिकार व्यक्ति को जोरू का गुलाम, नामर्द और न जाने क्या क्या कहते है। जिसे सुन पीडित पुरूष खुद को हीन महसूस करता है इस सब से परेशान होकर बेबसी में पुरूष कई बार आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर भी मजबूर हो जाते है।

पुरूषो के साथ महिलाये हिंसा ही नहीं करती उन की मर्जी के बगैर जबरदस्ती रोज रोज उन का यौन शौषण भी करती है। इस के साथ ही पैसों व खाना बनाने के लिये उन्हे मजबूर किया जाता है ऐसा न करने या मना करने पर उन के साथ मारपीट तो आम बात है। यदि पुरूष इस सब का विरोध करता है तो पत्नी और उस के परिवार वाले उसे दहेज के झूठे मामलो में फसाने कि धमकिया देकर उस का और उत्पीडन करते है। क्या कोई इन सब बातो को स्वीकार करेगा। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने भी इन सब बातो को महसूस किया और पिछले महीने एक मामले की सुनवाई के दौरान घरेलू हिंसा के शिकार पुरूषो की स्थिति को समझते हुए न्यायमूर्ति दलवीर भण्डारी और न्यायमूर्ति के0एस0 राधाकृष्णन की खण्डपीठ ने धारा 498(ए) के दुरूपयोग की बढती शिकायतों के मद्देनजर ये कहा था कि महिलाये दहेज विरोधी कानून का दुरूपयोग कर रही है। सरकार को एक बार फिर से इस पर नजर डालने कि जरूरत है न्यायालय को ऐसी कई शिकायतें देखने को मिली है जो वास्तविक नहीं होती है और किसी खास उद्वेश्य को लेकर दायर की जाती है। भारत में सेव फैमिली फाउंडेशन और माय नेशन फाउंडेशन ने अप्रैल 2005 से मार्च 2006 के बीच एक ऑनलाईन सर्वेक्षण किया था। जिस में शामिल लगभग एक लाख पुरूषों में से 98 फीसदी पुरूष किसी न किसी प्रकार की घरेलू हिंसा का शिकार रह चुके थे। इस सर्वेक्षण में आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और यौन संबंधो के दौरान की जाने वाली पत्नियो द्वारा हिंसा के मामले में पुरूष पीडित थे।

दहेज विरोधी कानून हमारे देश में सभी धर्मो के अर्न्तगत किये गये विवाहों पर लागू होता है। पर सन् 1983 से आज तक दहेज उत्पीडन के नाम पर अदालतों में ऐसे हजारो मुक्कदमे फाईल हुए है जिन की जद में आकर हजारो निर्दोश परिवार तबाह बर्बाद हो गये है। ससुराल पक्ष में किसी एक ने ताना या कुछ कहा नहीं कि बहू सारे ससुराल वालो पर भा.दं.सं. की धारा 498ए के तहत पति, सास, ससुर नन्द, जिठानी, जेठ, देवरो सहित घर के सारे लोगो को मुक्कदमा दर्ज करा कर जेल करा देती है हमारी पुलिस भी इन केसो में गजब की जल्दी दिखाती है और जो लोग दूसरे शहरों कस्‍बों में रहते है उन को भी पकड पकड कर जेलो में ठूस देती है कोई कोई घर तो इतना बदनसीब होता है कि इन घरों में बचे बुजुर्ग लोगो को कोई पानी देने वाला तक नहीं बचता और किसी किसी केस में नाबालिग और दूध मुहे बच्‍चों को भी काफी वक्त जेलो में बिताना पडता है।

5 COMMENTS

  1. शादाब जफ़र शादाब जी, लेखिका के लेख “आखिर कब रूकेगी औरतों पर होती यातना” पर आपकी तीखी टिप्पणी को बहुत लोगों ने सराहा है,पर बुरा न मानिए तो मैं यही कहूँगा की यह पूरी टिप्पणी एक बकवास और हमारे मानसिक और वैचारिक दोगलापन का एक मिसाल मात्र है.आप जब वीना मल्लिक की बात करते हैं तो आप यह क्यों भूल जातेहैं की किसी भी समाज या राष्ट्र में वीना मलिक जैसी लडकियां वहां के नारी समाज का प्रतिनिधत्व नहीं करती ,बल्कि वे अपवाद हैं.फिर भी वीना मल्लिक को भी मैं उस समाज की, जहां की वह उपज हैं,सदियों से दबी और सताई नारी जाति की एक भयंकर प्रतिक्रिया मात्र मानता हूँ. मैं वीना मल्लिक का समर्थन नहीं करता,पर भारत की कितनी आधुनिक नारियां वीना मल्लिक का अनुकरण कर रहीं हैं?सबसे अधिक चर्चा हमारे यहाँ औरतों के पहरावे को लेकर होती है..सच पूछिए तो यह भी हम पुरुषों के पसंद के कारण है.आप लोग साड़ी की बात करते हैं,तो पंजाब में जब सर्वप्रथम साड़ी का प्रचलन हुआ था तो वहां के नारियों को लगता था की यह तो सरासर नंगापन है.,क्योंकि इसको पहन कर तो चमकदार फर्श पर खड़ा भी नहीं हुआ जा सकता. शक्ति की देवी दुर्गा धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती के रूपमें नारी की पूजा हिन्दू अवश्य करते हैं,पर यह सम्मान वहीं तक सीमित है.भ्रूण हत्या भी सबसे ज्यादा हिन्दुओं में हीं प्रचलित हैदहेज़ प्रथा,नारियों को जला कर मारना,लडकी पैदा होने पर न केवल लडकी ,बल्कि उसकी माँ को भी प्रताड़ित करना कहाँ का न्याय है?मैं मानता हूँ की वर्तमान क़ानून का नाजायज लाभ भी उठाया जारहा है,पर उसमे केवल महिलाओं का हीं नहीं उनके परिवार के पुरुष वर्ग काभी कम हाथ नहीं है.लड़के लडकी में कितना भेद भाव हमारे समाज में है,यह देख कर भी आप लोग अनदेखा कर रहे हैं. आपने कभी सोचा है की सुचिता का माप दंड नारी और पुरुष के लिए अलग अलग क्यों है?नारी अगर वेश्या बननेके लिए मजबूर होती है तो क्यों/?मैंने यह भी पढ़ा है की कुछ आधुनिक लडकियाँ अपने शौक पूरा करने के लिए भी वेश्या वृति को अपना रही हैं .हो सकता है की यह सच हो,पर इसके लिए क्या पुरुष समाज कम जिम्मेवार है?आप लोगों ने कभी सोचा है की .उनके जिस्म का खरीददार कौन है?नैतिकता का जब हनन होता है तो हमारी नारी जाति उसका पहला शिकार होती है.नारी जाति को दबाकर रखना और उसके परदे से थोड़ा बाहर आने को बेहयाई कहना जंगली पनके सिवा कुछ नहीं .आपलोगों में से पता नहीं कितने लोगों ने यह पुराना गाना सुना है,
    औरत ने जन्म दिया मर्दों को ,मर्दों ने उसे बाजार दिया.
    सचाई यही है.

  2. हाल में एक मामला सामने आया जिसमे लड़का उच्च शिक्षा प्राप्त था तथा पूरा परिवार बेहद सुसंस्कृत. बहु भी अच्छे परिवार की थी. लेकिन उसकी माताजी अपने पति से दूर रहती थीं और अपने बेटी से ये अपेक्षा रखती थी की वो रोजाना उसे अपने निजी अन्तरंग अनुभव सुनाये और ये भी चाहती थीं की उनका बड़ा दामाद जो अमेरिका में रहता है और उन्हें दिन में तीन बार दूरभाष पर अपने सब अनुभव बताता है उसी की भांति छोटा दामाद भी सब अनुभव शेयर करे. ऐसा न करने पर उन्होंने बेटी की तरफ से दिल्ली महिला आयोग में शिकायत करा दी. जिसमे ये मुद्दा उठाया गया की पति पत्नी की माँ से बातें नहीं करता. महिला आयोग ने भी जब लड़की को फटकार लगायी तो अब लड़के के खिलाफ पुलिस में कार्यवाही की धमकी दी जा रही है. तो ये सही है की समाज का नजरिया महिलाओं के प्रति अनेक मामलों में अनुचित रहता है लेकिन ये भी सही है की आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में लड़कियां/महिलाएं स्वयं भी अपने सम्मान के साथ खिलवाड़ कर रही हैं और पुरुषों के प्रति अनावश्यक आक्रोश का इजहार करती हैं. हाल ही में गाजियाबाद में एक महिला पुलिस अधिकारी ने कुछ मनचलों पर लगाम कसने का प्रयास किया तो हमारे मिडिया ने उस महिला अधिकारी के खिलाफ हल्ला बोल दिया और उसे अच्छे काम के लिए निलंबन का इनाम मिल गया. वो बेचारी अधिकारी आखिर लड़कियों के सम्मान के लिए ही तो मनचलों पर अंकुश लगा रही थी.

  3. शादाब भाई ! मैं सबसे ज्यादा शर्मिंदा अपने मुसलमान होने पर हुईं !
    मुसलमानों की औरत की हालत दुनिया में सबसे ज्यादा खराब हैं !
    वो केवल बच्चा पैदा करनी की मशीन हैं ! उनके मानवाधिकार ही नहीं है !

  4. साश्वत सत्य को जिस मौलिकता निर्भीकता के साथ सादाब जी ने प्रस्तुत किया उसकी जीती भी तारीफ की जाय कम है .

    साधुवाद

  5. अच्छा लेख है। हरिजन एक्ट की तरह दहेज विरोधी कानून भी निर्दोषों के उत्पीड़न का एक प्रभावी हथियार बन चुका है। स्त्री-स्वातंत्र्य के हिमायती वीना मलिक की नग्न तस्वीर और विद्या बालन की डर्टी पिक्च्रर पर चुप्पी साध लेते हैं। नग्न या अर्द्ध नग्न अवस्था में सड़क पर चलती हुई युवती की सुरक्षा की गारंटी कौन ले सकता है? क्या विश्व या भारत की महिलाओं को यह तथ्य ज्ञात नहीं है? सबकुछ जानने के बाद भी जानबूझकर ऐसा रिस्क लेने वालों को छींटाकसी या दुर्घटना से कभी न कभी गुजरना ही पड़ेगा। इस्लाम ने नारियों में बढ़ने वाली उच्छृंखलता को बहुत पहले भांप लिया था। उनके अनुसार बुर्का इसका सही समाधान है। आज की नारी अपनी वेश-भूषा और क्रियाकलापों से इस इस्लामी प्रथा की आवश्यकता को न्यायोचित ठहरा रही है। आज जबकि पूरे विश्व में कपड़े की कोई किल्लत नहीं है, नारियां कपड़े से क्यों परहेज़ करती हैं, समझ के परे है। जहांतक सुन्दर दिखने का प्रश्न है, मेरा अपना अनुभव है कि भारत की नारी साड़ी में ही सबसे सुन्दर दिखती है।

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