ब्लड ग्रुप भी जरुर मिलवा लेवें..वर -वधु के

(नाड़ी दोष/बाधा होने पर शादी से पहले ‘सेहत-कुंडली’ जरुर मिलाएँ)—

एक सामाजिक संस्कार है, जो दो दिलों का मिलन है। विवाह-संस्था के द्वारा परिवार के रूप में कुटुम्ब परंपरा आगे बढ़ती है। शादी से पहले अभिभावक दूल्हा-दुल्हन की जन्मपत्री का मिलान कराते हैं। जन्मपत्री में ग्रह के उपयुक्त मिलान होने पर ही शादी तय होती है।

शादी से पहले अपको अपने भावी पाटर्नर के साथ प्रीमैरिज काउंसलिंग जरूर करना चाहिए| इसमें हम ब्लडग्रुप, एचआईवी,थैलेसीमिया,और हेपेटाइटिस बी जैसी जांच होती हैं| ताकि आपका स्वास्थ्य को आंका जा सके |मुझे लगता हैं कि हर पढें-लिखे और समझदार परिवार को शादी से पहले वर–वधू की यह जांच जरूर करवानी चाहिए,ताकि वे सेहतमंद रहे| प्रीमैरिज काउंसलिंग करवाने से आप दोनों नए जीवन की शुरुआत सहजता से कर सकेंगे |

चिकित्सकों के अनुसार विवाह पूर्व मेरिज-काउंसलिंग होना जरूरी है। एक-दूसरे के विचारों, व्यवहारों, पसंद-नापसंद के अतिरिक्त स्वास्थ्य दृष्टि से शारीरिक गुणों में भी मिलान होना जरूरी है। यदि कोई भी युवक-युवती किसी अनजाने रोग से ग्रसित है तो वह अपने जीवनसाथी को तो रोग देगा/देगी ही, साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी रोग से ग्रसित कर सकता/सकती है।

अतः चिकित्सकों के अनुसार जन्म-कुंडली के साथ स्वास्थ्य-कुंडली का मिलान होना जरूरी है, जो सुखी-समृद्ध वैवाहिक जीवन की सबसे पहली शुरुआत होगी। कई रोग पारिवारिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं जैसे मधुमेह, थैलेसीमिया, मोटापा, हृदयरोग,हिमोफीलिया, कलर ब्लाइंडनेस, गंजापन आदि। यदि पति-पत्नी दोनों को मधुमेह है तो आशंका यह व्यक्त की जाती है कि आधी संतानों को 40 वर्ष की वय के उपरांत मधुमेह कभी भी उभर सकता है।

मँगनी या सगाई होने के बाद युवा शिक्षित होने के बावजूद भी कभी यह पहल नहीं करते। उन्हें भविष्य में होने वाले खतरों की कतई चिंता नहीं होती। इसके पहले सबसे बड़ा कारण शर्म या संकोच है कि कहीं एचआईवी या हैपेटाइटिस का पता लगने पर शादी न टूट जाए, इसलिए युवा चुपचाप ही अपने होने वाले जीवनसाथी को बिना कुछ बताए शादी कर लेते हैं।

यदि पुरुष व महिला में थैलीसीमिया माइनर रूप में है तो भविष्य में उनकी होने वाली संतान मेजर थैलीसीमिया से पीड़ित होगी। वहीं यदि पुरुष में थैलीसीमिया मेजर है तो पैदा होने वाली बेटी माइनर थैलीसीमिया से ग्रसित होगी। वहीं बेटे में थैलीसीमिया मेजर होगा, इसलिए कपल्स को विवाह पूर्व थैलीसीमिया की जाँच भी आवश्यक रूप से करानी चाहिए। इसके लिए इलेक्ट्रॉफोरोसिस टेस्ट होता है, जिससे थैलीसीमिया के बारे में पता चलता है।

एचआईवी, थैलीसीमिया, हैपेटाइटिस, कलर ब्लाइंडनेस, एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस आदि की शिकायत महिला व पुरुषों में होने पर उनके आनुवांशिक कारक पैदा होने वाले बच्चों में चले जाते हैं, जो कि वंशानुगत होने के कारण पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपना प्रभाव डालते हैं। इसके लिए चिकित्सकीय परामर्श लेना बहुत जरूरी है।

आज के आधुनिक जीवन में कई युवक-युवतियाँ विवाह-पूर्व असुरक्षित यौन-संबंधों के जाल में उलझ जाते हैं। उनकी थोड़ी-सी लापरवाही एड्स जैसे गंभीर रोग को आमंत्रण दे सकती है। ऐसे संबंधों से अन्य संक्रमण जैसे सिफीलिस, गोनोरिया, हरपीज होना भी आम है। ये सभी रोग विवाह के बाद एक जीवनसाथी से दूसरे जीवनसाथी को ‘गिफ्ट’ के रूप में मिल जाते हैं तथा बच्चों को भी पैदा होते ही घेर लेते हैं। ऐसे संक्रमणों और आत्मघाती रोगों से बचने के लिए स्वास्थ्य-पत्री मिलान अत्यंत जरूरी है। यह स्वास्थ्य-पत्री 6हिस्सों में हो सकती है

एड्स-पत्री : विवाह पूर्व युवक-युवतियों को एड्स का संक्रमण है या नहीं, इस हेतु एचआईवी टेस्ट करा लेना चाहिए। एड्स एक लाइलाज रोग है, इसका बचाव ही उपचार है।

सिफीलिस-पत्री : यह रोग सर्पकीट ट्रेपोनेमा से होता है। यह यौन संचारित रोग है। भारत में हर 25 में से 1 व्यक्ति को यह रोग है। यह रोग स्वयं को तो नुकसान पहुँचाता है, साथ ही आने वाली पीढ़ी जन्मजात सिफीलिस रोग लेकर पैदा होती है। इससे जन्मजात हृदयरोग भी हो सकता है तथा कई युवतियों में यह बार-बार गर्भपात हो जाने का कारण भी बनता है।

थैलेसीमिया-पत्री : थैलेसीमिया मेजर एक ऐसा रोग है जिसमें बच्चे का खून स्वतः समाप्त होता जाता है। बच्चे को नियमित रूप से रक्त चढ़ाना पड़ता है। अतः थैलेसीमिया मेजर न हो, इस हेतु भावी पति-पत्नी को एचबीए-2 नामक हिमोग्लोबिन का टेस्ट कराना चाहिए जिससे थैलेसीमिया माइनर होने का पता लग जाए। यदि दूल्हा-दुल्हन दोनों एचबीए-2 पॉजीटिव हैं तो विवाह तय नहीं करना चाहिए।

हेपेटाइटिस बी एवं सी-पत्री : हेपेटाइटिस बी एवं सी लीवर को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोग हैं, जो कालांतर में व्यक्ति की जान ले सकते हैं। यह रोग शारीरिक संपर्क से फैल सकता है अतः इस रोग का पता विवाह पूर्व हो जाना जरूरी है। भारत की कुल आबादी के 4-5प्रतिशत लोग हेपेटाइटिस-बी से प्रभावित हैं।

ब्लड ग्रुप-पत्री : यदि महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पुरुष का पॉजीटिव है तथा इसके चलते बच्चे का ब्लड ग्रुप भी पॉजीटिव है तो समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं अतः ब्लड ग्रुप का मिलान भी विवाह पूर्व हो जाए तो बेहतर है।

टॉर्च-पत्री : टॉर्च गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करने वाला 4 रोगों का समूह है जिनमें टॉक्सोप्लाज्मोसिस, सायटोमेगालोवायरस,रुबेला एवं हरपिज शामिल हैं। ये रोग युवतियों में विवाह पूर्व होने पर भावी संतान मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग पैदा हो सकती है अतः विवाह पूर्व टॉर्च टेस्ट करा लेना चाहिए।

यदि हमें अपने भविष्य की बेल को हरा-भरा रखना है तो किसी जैनेटिक विशेषज्ञ से परामर्श लेकर इन बीमारियों की जाँच करा लेना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र में वर-कन्या की यदि नाड़ी एक ही है तो भविष्य में संतानोत्पत्ति में बाधा हो सकती है। नाड़ी आदि, मध्य व अंत तीन प्रकार की होती है, इसलिए समाज में लोग नाड़ी दोष को बहुत मानते हैं, साथ ही संगोत्रीय विवाह भी हमारे हिंदू रीति-रिवाजों में नहीं होता। इसमें वर, कन्या व दोनों के मामा का गोत्र स्पष्ट रूप से मिलाया जाता है, ताकि आगे कोई परेशानी न आए। संगोत्रीय विवाह को कराने के लिए कर्मकांडों में एक विधान है, जिसके चलते संगोत्रीय लड़के का दत्तक दान करके विवाह संभव हो सकता है।

इस विधान में जो माँ-बाप लड़के को गोद लेते हैं। विवाह में उन्हीं का नाम आता है। वहीं ज्योतिष के वैज्ञानिक पक्ष के अनुरूप यदि एक ही रक्त समूह वाले वर-कन्या का विवाह करा दिया जाता है तो उनकी होने वाली संतान विकलांग पैदा हो सकती है।

अत: नाड़ी दोष का विचार ही आवश्यक है. एक नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के मध्य नाड़ी दोष समाप्त हो जाता है लेकिन नक्षत्रों में चरण भेद आवश्यक है. ऐसे अनेक सूत्र हैं जिनसे नाड़ी दोष का परिहार हो जाता है. जैसे दोनों की राशि एक हो लेकिन नक्षत्र अलग-अलग हों. वर कन्या का नक्षत्र एक हो और चरण अलग-अलग हों. पादवेध नहीं होना चाहिए. वर-कन्या के नक्षत्र चरण प्रथम और चतुर्थ या द्वितीय और तृतीय नहीं होने चाहिएं. वैसे तो वर कन्या के राशियों के स्वामी आपस में मित्र हो तो वर्ण दोष, वर्ग दोष, तारा दोष, योनि दोष, गण दोष भी नष्ट हो जाता है. वर और कन्या की कुंडली में राशियों के स्वामी एक ही हो या मित्र हो अथवा नवांश के स्वामी परस्पर मित्र हो या एक ही ही हो तो सभी कूट दोष समाप्त हो जाते हैं.

लेकिन हमारे अनुभवानुसार कन्या की यदि राशि एक ही हो, नक्षत्र एक ही हो, चरण भी एक ही हो तो ऐसे नाड़ी दोष से युक्तत वर-कन्या को विवाह वर्जित कहना चाहिए. वरना दोनों को कष्ट या परस्पहर वियोग का कष्ट झेलना पड़ सकता है. दोनों का नक्षत्र पाद चरण कभी भी एक नहीं होना चाहिए. नाड़ी दोष विचार में बड़ी सूक्ष्मता और गंभीरता की आवश्यकता है और कुण्ड्ली मिलान में नाड़ी दोष को हल्केन नहीं लेना चाहिए.

दि भविष्य की बेल मजबूत होगी तो आने वाला जीवन अपने आप सुखमय व्यतीत हो जाता है। यदि आप भी अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ देखना चाहते हैं तो शादी से पहले एक बार अपना रक्त परीक्षण जरूर कराएँ। आपके एचआईवी या फिर हैपेटाइटिस से ग्रसित होने पर उत्पन्न होने वाली संतान पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए वंशानुगत कारणों के लिए हमेशा सजग रहें।

ज्योतिषाचार्यों ने भी अपना वैज्ञानिक पक्ष रखते हुए कहा कि विवाह के लिए वर-कन्या यदि एक ही रक्त समूह के होंगे तो संतानोत्पत्ति में बाधा आ सकती है। कर्मकांडों में नाड़ी दोषों वाले विवाह को सर्वथा वर्जित माना गया है।

चिकित्सकों का मानना है कि यदि लड़के का आरएच फैक्टर पॉजिटिव हो व लड़की का आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो विवाह उपरांत पैदा होने वाले बच्चों में अनेक विकृतियाँ सामने आती हैं, जिसके चलते वे मंदबुद्धि व अपंग तक पैदा हो सकते हैं। वहीं रिवर्स केस में इस प्रकार की समस्याएँ नहीं आतीं, इसलिए युवा अपना रक्त परीक्षण अवश्य कराएँ, ताकि पता लग सके कि वर-कन्या का रक्त समूह क्या है???

पंडित दयानन्द शास्त्री

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