मासूमों के भविष्य से खेल रहे मोदी

1
171

मोहम्मद इफ्तेखार अहमद

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही खुद को पूरे देश में विकास की प्रतिमूर्ति के रूप में पेश करते हों और गुजरात में 10 साल पुरानी सत्ता की कामयाबी के बाद अब देश की सत्ता संभालने का सपना देख रहे हों। लेकिन, उनकी तमाम उपलब्धियों का स्याह पक्ष यह है कि आज भी मोदीराज में अल्पसंख्यकों का हित सुरक्षित नहीं हैं। दरअसल, गुजरात सरकार अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के शैक्षणिक उन्नयन की जड़ों को काटने का सुविचारित और सुनियोजित अभियान चल रही है। गंभीर बात यह है कि अल्पसंख्यक हितों की झंडाबरदारी करने वाले खामोश हैं।

गौर कीजिए, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट के आंकड़ों पर। साफ नजर आएगा मोदीराज में अल्पसंख्यक बच्चों के सपने कैसे धूमिल हो रहे हैं। गुजरात सरकार ने केन्द्र सरकार की ओर से वर्ष 2008-2009 में अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के ड्रॉप आउट को रोकने और अल्पसंख्यक परिवारों को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे से शुरू की गई प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना को आज तक लागू ही नहीं किया है। इसकी वजह, सिफ यह कि इसका आधार सच्चर कमेटी की रिपोर्ट है। मोदी की नजर में केंद्र की यह योजना छात्रों के बीच भेद-भाव पैदा करती है। जबकि, बंबई हाईकोर्ट ये साफ कर चुका है कि इस योजना को देशभर में लागू करने के बाद समाज के दूसरे तबके पर कोई बुरा असर देखने को नहीं मिला। सामाजिक संगठनों, योजना आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की तमाम कवायदों के बाद भी मोदी ने इस योजना को अपने राज्य में अब तक लागू नहीं किया है।

गौरतलब है इस योजना के तहत राज्य सरकार को केंद्र ७५ प्रतिशत मदद देता है। जब मोदी ने छात्रवृत्ति राशि बांटने से इंकार कर दिया तो केन्द्र ने राज्य के हिस्से की भी २५ प्रतिशत राशि देने की बात कही। लेकिन, गुजरात सरकार ने इसे भी लेने और स्कॉलरशिप बांटने से इंकार कर दिया।

मोदीराज की इन व्रिदूपताओं के बाद भी भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन देशभर में ढिंढोरा पीट रहे हैं, गुजरात के अल्पसंख्यकों की प्रति व्यक्ति आय देश के बाकी हिस्सों के अल्पसंख्यकों के प्रति व्यक्ति आय से अधिक है। लेकिन, सच्चाई ये है कि गुजरात में 6 से 17 साल के अल्पसंख्यक बच्चों का अधर में पढ़ाई छोडऩे (ड्रॉप आउट) की दर राष्ट्रीय स्तर से कहीं ज्यादा है। गुजरात में 35.5 फीसदी मुस्लिम और 12.7 फीसदी ईसाई बच्चे आर्थिक तंगी के कारण बीच में ही पढ़ाई छोडऩे को मजबूर हैं। जबकि, देश में मुस्लिम विद्यार्थियों का ड्रॉप आउट 28.8 प्रतिशत और ईसाई विद्यार्थियों का ड्रॉप आउट 9.5 प्रतिशत है।

मोदी का यह तानाशाही रवैया न सिर्फ देश के संघीय ढांचे पर चोट करता है। बल्कि, गुजरात के गरीब अल्पसंख्यक परिवारों के मेधावी विद्यार्थियों को बीच में पढ़ाई छोड़कर 50 से 100 रूपए की मजदूरी करने को बाध्य करता है।

उदाहरण के लिए 9 मार्च 2011 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर काफी है। अहमदाबाद का ताहिर खान पढ़ लिखकर इंजीनियर बनना चाहता था। बचपन से ही अपनी लगन और मेहनत के साथ कई साल स्कूल में गुजारे। उसने अपने पसंदीदा विषय में 70 प्रतिशत अंक भी हासिल किया। लेकिन, घर की आर्थिक हालात ठीक नहीं होने पर उसके पिता पढ़ाई का प्रतिमाह का 200 रुपए का खर्च नहीं उठा पाए। इस वजह से ताहिर के ख्वाब बीच में ही चकनाचूर हो गए। वह आज 80 रुपए की दिहाड़ी पर मजदूरी कर रहा है। जबकि, केंद्र की प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप के तहत 450 रुपए प्रतिमाह मिलने वाली राशि ताहिर के सपनों को पंख लगा सकती थी। बहरहाल, ये तो सिर्फ एक ताहिर की कहानी है। गुजरात में हर रोज कितने ही ताहिर की सपने मोदी की सिर्फ एक जिद से चकनाचूर हो रहे हैं।

दरअसल, मोदी अब तक 50,000 अल्पसंख्यक विद्यार्थी को पढ़-लिखकर आगे बढऩे से सिर्फ इस लिए रोका है। ताकि, वे शिक्षित होकर समझदार और आर्थिक रूप से मजबूत न हो जाएं। क्योंकि, ऐसा हुआ तो मोदीराज की हकीकत को वे समझ सकेंगे। इसीलिए अल्पसंख्यकों को जाहिल और गंवार बने रहने की खतरनाक साजिश की जा रही है, ताकि वे जिल्लत की जिंदगी जीते रहें और चंद लोक लुभावन योजनाओं के नाम पर मोदी की तारीफ न भी करें तो कम से कम वोटबैंक की सियासत को तो न समझ सकें।

सवाल यह है कि देश के लगभग 25 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के विकास के बिना क्या देश कभी सुपर पावर बन सकता है? प्रश्न यह भी है कि आखिर अपने ही देश में अपनी जनता को इस तरह से ज़लील कर मारने की सोच रखने वाला व्यक्ति विविधता से भरे इस देश का क्या प्रधानमंत्री बनने के काबिल है? शिक्षा किसी भी देश और समाज की विकास की बुनियाद है। जो समाज जितना शिक्षित होता है, वह उतना ही अधिक विकसित होता है। देश में आज अल्पसंख्यकों खास तौर से मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ापन है, वह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में गरीब अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्राप्ति के लिए केन्द्र से मिलने वाली राशि को रोकना अल्पसंख्यकों को ज़लीलकर मारने की साजिश नहीं तो और क्या है? …और अंत में मोदी जैसी सोच रखने वालों से सवाल यह है कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी अल्पसंख्यक होने के नाते ऐसे ही किसी पक्षपाती रवैये का शिकार हुए होते तो क्या इस देश को मिसाइलमैन मिल पाता?

1 COMMENT

  1. apni इस हालत के liye muslim smaaz khud भी जिम्मेवार है क्योंकि अभी तक शिक्षा में वे मदरसों की इस्लामिक शिक्षा पर ही अटके हुए हैं …

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here