राजनीति

मोदीफोबिया से ग्रस्त मिस्त्री

संजय सक्सेना,लखनऊ

imagesउत्तर प्रदेश की सरजमी दो गुजरातियों की रणभूमि बनने लगी है।प्रदेश भाजपा को ‘शाह’ तो कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिस्त्री’ मिल गया है।मिस्त्री के कंधों पर उस कांग्रेस की बुनियाद मजबूत करने की जिम्मेदारी है जो यूपी में करीब दो दशकों से ‘कोमा’ की स्थिति में हैं।इसी तरह से भाजपा के प्रदेश प्रभारी भी चैतरफा घिरे हुए हैं।दोनों ही दल भीतरघात,आपसी कलाह और नेता-कार्यकर्ताओं के ‘अवसाद’ग्रस्त होने से जूझ रहे है।2009 के लोकसभा और 2012 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के युवराज ने काफी कोशिश की थी कि किसी तरह से पार्टी को ‘कोमा’ से बाहर निकाल लिया जाये,लेकिन उनकी हसरत परवान नहीं चढ़ सकी।लोकसभा चुनाव में तो फिर भी राहुल पार्टी की लाज बचा ले गये थे लेकिन विधान सभा चुनाव में उनका ग्राफ औंधे मुंह गिर गया।वैसे दोनों ही बार वह ‘ही मैन’ की तरह यूपी वालों के सामने प्रकट हुए थे और लोगों के दिलो-दिमाग पर छा गये।कुर्ते की बांहे चढ़ा कर भाषण देने का राहुल का अंदाज खूब चर्चा में रहा।युवराज का प्रचार अभियान काफी धमाकेदार रहा तो मीडिया ने भी उनको कुछ ज्यादा कवरेज दी।

उधर,जनता ने उनकी(राहुल) बातें सुनी तो लेकिन विश्वास नहीं किया।कांग्रेस को लेकर आशंकित मतदाताओं ने वोटिंग मशीन का बटन साइकिल वाले खाने का दबा दिया।कांगे्रस को हार मिली तो लोकसभा चुनाव 2009 में 22 सीटें कांग्रेस की झोली में डालने वाले युवराज की इमेज पूरी तरह से धुल गई। दिला कर यूपी में जो ईमेज बनाई थी,वह 2012 के विधान सभा में पूरी तरह से धुल गई।यह तब हुआ जब कांगे्रसी एकजुट होकर राहुल गांधी का टैम्पो हाई कर रहे थे।राहुल सेना के कमांडर की तरह आगे बढ़कर मोर्चा संभाले हुए थे,परंतु कांग्रेसी सेना को हार का मुंह देखना पड़ गया।पिछली हार से सबक लेते हुए और अधिक बदनामी से बचने के लिये राहुल ने अपने आप रोल बैक कर लिया है और गुजरात के नेता और सांसद मधुसूदन मिस्त्री को अबकी से फ्रंट पर खड़ा कर दिया है।

मधुसूदन,वह नाम हैं जो गुजरात में कभी नरेन्द्र मोदी को चुनौती नहीं दे पाये,मगर यूपी में उनके खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं।वह यूपी की जनता को मोदी की हकीकत बता रहे हैं।उन्हें (मोदी को)कारपोरेट घराने का एजेंट करार दे रहे है।परंतु जिस तरह की भाषा वह बोल रहे है,उससे तो यही लगता है कि अन्य तमाम कांग्रेसियों की तरह मिस्त्री भी मोदी को लेकर खौफजदा है।एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि कहीं कांग्रेस ने मिस्त्री को प्रभारी बना कर चूक तो नहीं कर दी।अमित शाह और उनके गुरू मोदी को लेकर मिस़्त्री अजीब से उहापोह में दिखते हैं।मोदी का कद उन्हें परेशान कर रहा था।इसी लिये वह मोदी के खिलाफ बोलते हुए गड़े मुर्दे उखाड़ने लगे।पिछले दिनों उन्होंने यहां तक कह दिया ‘ईश्वर करे किसी राज्य में न हो गुजरात जैसे हालात।’वह यह भूल गये कि वह ऐसा कहकर उन छह करोड़ गुजरातियों के उस निर्णय को नकार रहे हैं जो उसने मोदी को सत्ता सौंपने का लिया था।कांग्रेस को मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा था।

आज हालात यह हैं कि अमित शाह आगे-आगे चल रहे हैं ओर मिस्त्री पीछे-पीछे।अमित शाह को देखकर कांगे्रसी मिस्त्री से कार्यक्रम तय कर रहे हैं।भाजपा ने अमित शाह का कार्यक्रम अयोध्या में रखा तो कांग्रेस ने मिस्त्री का प्रोग्राम बना दिया।कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है कि इस तरह की ‘हरकतों’ से उसके मुस्लिम वोट बैंक पर क्या असर करेंगा।मिस्त्री मोदी फोबिया से बुरी तरह से ग्रस्त हैं।यह ‘बीमारी‘ वह गुजरात से ही लेेकर आये हैं।आशंका तो यह भी जताई जा रही है कि कहीं पूरी कांग्रेस को ही वह मोदीफोबिया से ग्रस्त न कर दें।