-विजय कुमार
बाबा तुलसीदास लिख गये हैं – हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ। सभी संतों ने इसे अपनी-अपनी तरह से कहा है। जहां तक पुर्नजन्म की बात है, भारतीय धर्म और पंथ तो इसे मानते हैं; पर विदेशी मजहब इसे स्वीकार नहीं करते।
पिछले दिनों एक गोष्ठी में चर्चा का यही विषय था कि क्या अगले जन्म में अपनी इच्छानुसार शरीर और कार्य निर्धारित किया जा सकता है ? रात में इसी विषय पर सोचते हुए नींद आ गयी। मुझ पर भोलेनाथ की बड़ी कृपा है। प्रायः वे स्वप्न में आ जाते हैं। आज भी ऐसा ही हुआ।
– बोलो बच्चा, अगले जन्म में तुम्हें किसान बना दें ? भारत में तो ‘‘उत्तम खेती, मध्यम बान, निखद चाकरी, भीख निदान’’ की कहावत प्रसिद्ध है।
– नहीं बाबा। किसानों की दुर्दशा तो आप देख ही रहे हैं। उद्योग हो या बिजलीघर, बांध हो या नगर, सबकी निगाह किसान की भूमि पर ही है। उसका हाल तो ‘‘गरीब की लुगाई, पूरे गांव की भौजाई’’ जैसा है। उसके आगे कर्ज है, तो पीछे आत्महत्या।
– तो फिर सैनिक या पुलिसकर्मी बनाना ठीक रहेगा। देशसेवा का पुण्य भी मिलेगा और समाज में सम्मान भी।
– क्या कह रहे हैं बाबा ? कभी सैनिक सीमा पर गोली खाकर मरते थे; पर अब तो वह बिना लड़े ही मर रहा है। नक्सली और माओवादी सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों को मार चुके हैं। कश्मीर में भी वे उग्रवादी मुसलमानों के पत्थर और गोली खा रहे हैं; फिर भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री उन्हें संयम रखने को कहते हैं। वे जान हथेली पर लिये कश्मीर को पाकिस्तान में जाने से बचाये हुए हैं; पर शासन उनके अधिकारों में कटौती पर तुला है।
– मैं समझ गया बच्चा ! अगले जन्म में तुम व्यापारी या उद्योगपति बनना चाहते हो।
– न न भोलेनाथ। इनके सिर पर तो करों की तलवार सदा लटकी रहती है। सरकार का पेट मेज के ऊपर से नोट देकर भरना पड़ता है, तो कर्मचारियों का मेज के नीचे से। इसके बाद पुलिसकर्मी, छुटभैये नेता और फिर नगर से लेकर गली तक के गुंडे।- लेकिन उद्योगपति के तो बड़े ठाठ रहते हैं ?
– क्या बताऊं भोलेनाथ ! उसके नाम में पति जरूर है; पर उसकी दशा दहेज के झूठे मुकदमे में फंसे पति जैसी है। वह न गृहस्थ है और न विधुर। आप तो श्मशान के नाथ हैं, आग की जलन एक बार मुर्दे से पूछ कर तो देखो।
– तो फिर तुम खुद ही बताओ कि अगले जन्म में ड१क्टर, वकील, अध्यापक, अभियन्ता…..क्या बनना चाहते हो ?
– भोलेनाथ, अगले जन्म में मुझे राजनेता बना दें।- राजनेता ? इस धन्धे के बारे में तो मैंने कभी नहीं सुना ?
– नहीं सुना होगा; पर इन दिनों सबसे अच्छा धन्धा यही है। एक बार सांसद या विधायक बनने से कई पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। वेतन, भत्ते, आवास, चिकित्सा और यात्रा के नाम पर लाखों रुपये पीट सकते हैं। नेता बनते ही मकान, दुकान, गाड़ी, खेत और पेट सब चक्रवृद्धि ब्याज की तरह तेजी से बढ़ते हैं। लड़कियों और महंगाई के बढ़ने की कहावत भी इसके आगे फीकी है।
– पर सुना है भारत में तो लोकतन्त्र है ?
– हां बाबा, है तो; पर उसकी आड़ में पूरा परिवारतंत्र जड़ जमाये है। अब वोट मुद्दों की बजाय वंश, जाति, क्षेत्र और मजहब के नाम पर पड़ते हैं। इसलिए लोग जेल में रहकर भी जीत जाते हैं। जो स्वयं नहीं लड़ सकते, तो अपने भाई, बेटे या पत्नी को ही लड़ा देते हैं। इसलिए अगले जन्म में मुझे सांसद या विधायक …।
– पर बच्चा, इसके लिए तो बड़ी लम्बी लाइन लगी है।
– तो आप मुझे ग्राम प्रधान, सरपंच, नगर या ब्लाक प्रमुख ही बना दें। सरकारी योजनाओं में इतना पैसा आ रहा है कि एक साल में ही लाखों के वारे-न्यारे हो जाते हैं। मनरेगा से लेकर विद्यालयों में दोपहर के भोजन तक में खाने-पीने की इतनी गुंजाइश है कि क्या बताऊं। बस आप अगली बार…….।
किस्सा तो बहुत बड़ा है; पर जब सुबह मैडम ने मुझे उठाया, तो मैं नींद में ही गा रहा था – अगले जनम मोहे नेता ही………