सुबह या शाम ?

-मनु कंचन-

poem

अभी आँख खुली है मेरी,

कुछ रंग दिखा आसमान पे,

लाली है तो चारों ओर,

पर पता नहीं दिन है किस मुकाम पे,

दिशाओं से मैं वाक़िफ़ नहीं,

ऐतबार करूँ तो कैसे मौसमों की पहचान पे,

चहक तो रहे हैं पंछी,

पर उनके लफ़्ज़ों का मतलब नहीं सिखाया,

किसी ने पढ़ाई के नाम पे,

रुका था दुनिया को समझने के लिए,

जो खुद चल रही थी किसी और के निशान पे,

अब घर से निकल पड़ा हूं फिर भी,

विश्वास रखा है बस,

मैंने अपनी सुबह की खोयी शाम पे

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