मोटापा वीरस्य भूषणम

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अमित शर्मा (CA)

मोटापा ऊपरवाले की देन है जिसे वो आलस और पेटूपन जैसे अपने अंडरकवर एजेंट्स की सहायता से धरती पर रवाना करता है।  मोटापा भले ही ऊपरवाले की देन हो लेकिन इस दैवीय देन को किसी दैवीय प्रकोप की देनदारी से बचाए रखने के लिए देना बैंक की नहीं बल्कि ‘लेना बैंक’ की तरह परिचालन और परिवहन करना पड़ता है क्योंकि चाहे “देना बैंक” हो या “देगी मिर्च” इनके केवल नाम में ही देना है।

आज के इस दौर में, दौरे पड़ने के कारण जहाँ प्यार और वफ़ा जैसी बातें बेमानी और बदचलन होती जा रही है वही मोटापा एक बार गले पड़ने के बाद आपको अनकंडीशनल प्यार और वफ़ा की बेडियो में प्रेमकैदी की तरह जकड़े रहता है।

मोटापा, मानव मात्र को निस्वार्थ प्यार का संदेश और साथ मे बीमारियां भी फ्री में देता है, जिससे प्यार जैसी स्वायत्त संस्था में आपका विश्वास, भ्रष्टाचार की तरह सनातन बना रहता है। मोटापा आपसे कुछ नहीं चाहता नहीं लेकिन आप फिर भी उससे छुटकारा चाहते है, ये रुपये की तरह गिरते मानवीय मूल्यों की तरफ़ संकेत करता है। मोटापा बिन बुलाए मेहमान की तरह विनम्रतापूर्वक आता है औऱ फिर छोटे से कामर्शियल ब्रेक के बाद, किराए ना देने वाले किराएदार की तरह मकान पर कब्ज़ा कर लेता है।

लापरवाही की सवारी करते हुए मोटापा सबसे पहले उदारतापूर्वक, आपके ‘उदर’ (पेट) पर धावा बोलता है। पेट को मोटापे की चपेट में आने के बाद अपना कार्यक्षेत्र बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ता है और इस दुर्घटना के चलते पेट, सफलतापूर्वक बिल्डअप और कार्पेट एरिया में वृद्धि करते हुए मोटापे की सिद्धि को प्राप्त  कर लेता है। बढ़े हुए उदर की कदर करने की अपेक्षा हर विकासशील देश के  जिम्मेदार नागरिक से की जानी चाहिए क्योंकि विकासशील देश हर क्षेत्र में बढ़ने के लिए सतत प्रयासशील और भावुक रहता है। पेट का विधिवत रूपांतरण ज़ब तोंद के रूप में होता है तो उसका रूप और निखर जाता है। शरीर का अभिन्न अंग बने रहने के लिए तोंद, गोंद की तरह चिपकी होती है।

पेट से प्रेरणा और ताकत लेकर कमर भी घेरेबंदी करते हुए, चीन और पाकिस्तान की तरह अपनी सीमाओ का अतिक्रमण करते हुए अपना घेरा अनाधिकृत रूप से बढ़ाकर 1BHK के मिडिल क्लास घर से निकलकर 3 BHK के अपर क्लास सपने को पूरा कर लेती है।

ज़ब इंसान मोटापे को प्राप्त होता है तो हर कोई उसे सुबह कुछ ना कुछ खाली पेट लेने की सलाह देता है ज़बकि मोटापा को बिना निविदा के विदा करने के लिए खाली पेट रहने की ही ज़रूरत होती है। मोटे लोगो को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए कई “मोटापा चिंतक” धारा तेल काम में लेने की सलाह देते है। मोटापा धारण करना कोई आसान काम नहीं है, मोटा होने पर सामाजिक तानेबाने से ताने सुनने पड़ते है और सर्दी-गर्मी के साथ ज़िल्लत भी सहनी पड़ती है। अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर कहा जाए, “मोटापा वीरस्य भूषणम।”

मोटापे को एक साजिश के तौर पर शारीरिक और सामाजिक बुराई बताया जाता है ताकि मोटापे के मोटे फ़ायदो का खुलासा, देश की आम जनता के सामने ना हो पाए। हमे भारी लोगो का आभारी होना चाहिए क्योंकि अगर वो अपना वजन नहीं बढ़ाते तो नई-नई बीमारियां जन्म और संकल्प लेकर अपना जलवा नहीं दिखा पाती, और अगर नई नई बीमारियां सामने नहीं आती तो चिकित्सा विज्ञान इनका निदान ना ढूंढ कर नादान ही रह जाता।

चिकित्सा विज्ञान की प्रगति और चिकित्सको की समृद्धि के पीछे मोटापे का, ढ़ाई किलो से भी भारी हाथ है। मोटापे से घृणा करने वाले मोटापे की इस उपलब्धि पर प्रकाश ना डालकर, पर्दा डाल देते है। अगर मोटापा ना होता तो फिटनेस का महत्व डकवर्थ-लुईस की तरह कभी समझ में नहीं आता लेकिन मोटापे ने कभी इसका श्रेय लेने की हिमाकत नहीं की जो उसकी सदाशयता का परिचय देता है।

गली गली में खुलकर नंगे हो चुके, फिटनेस सेंटर और जिम कभी अस्तित्व में और आपकी पहुँच में नहीं आ पाते, अगर मोटापा, बड़ी आपा की तरह मानव मात्र पर अपनी करुणा-कृपा नहीं बरसाता। “मोटापा घटाओ उद्योग” से जुड़े और चिपके हुए लोगों की रोज़ी-रोटी और दाल मखनी, जिस बिना सब्सिडी वाले चूल्हे से चल रही है उस पर मालिकाना हक भी मोटे लोगों का ही है।

इस रंग बदलती हुई दुनिया मे जहाँ भाई, भाई को छोड़ रहा है, नेता बड़ी बड़ी छोड़ रहे है वहीं पृथ्वी अपनी धुरी नहीं छोड़ पा रहीं है इसके पीछे (आगे और साइड में भी) मोटे लोगों का ही वरदहस्त है क्योंकि उनके वजन का वात्सल्य भाव ही पृथ्वी को अपनी धुरी पर टिकाने का सामर्थ्य, वैध-अवैध रूप से उचित दामो पर रखता है।

मोटापे के उपरोक्त फायदों को देखते हुए मोटापे कम करने या  करवाने को गैर जमानती अपराध घोषित किया जाना चाहिए और मोटापे के लिए शर्मिंदा होने या करने वालो पर रासुका लगाना चाहिए।

इन सब के इतर मोटापा इतराने की विषयवस्तु है क्योंकि ज़्यादा वजन घटाने से लोग आपको हल्के में लेने लगते है।

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