सांसदों को अपने विशेष अधिकारों की चिंता है कर्तव्यों की नहीं ?

इक़बाल हिंदुस्तानी

वे बार बार अपने आपको सेवक की बजाये स्वामी जताते हैं!

अन्ना के आंदोलन से अंदर ही अंदर खौफ़ज़दा और बौखला रहे कांग्रेसी नेता ही नहीं अब राजद के लालू और शिवसेना नेता तक खुलेआम संसद सर्वोच्च होने की दुहाई दे रहे हैं। उनको पता नहीं यह बात कब समझ आयेगी कि अगर संसद सांसदों से बनी है और वे अपने विशेषाधिकारों की तो चिंता करते हैं लेकिन जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को भुला देते हैं तो उनको आज नहीं तो कल जनता चुनाव में संसद से बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है। वे 43 साल से लोकपाल बिल को जानबूझकर एक सुनियोजित साज़िश के तहत लटकाये हुए हैं। आज जनता उनसे अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाकर मज़बूत लोकपाल बिल लाने की जायज़ मांग कर रही है तो वे तरह तरह के हथकंडे अपनाकर भ्रष्टाचार के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं। वे भ्रष्टाचार की बजाये अन्ना और जनता से लड़ते दिखाई दे रहे हैं।

एक बार साम दाम दंड भेद से चुनाव जीतकर वे पांच साल मनमानी और खुली लूट का लाइसेंस चाहते हैं? वे ये भूल रहे हैं कि बड़े बड़े तानाशाह और पुलिस और फौज भी जनता के सामने नहीं टिक पाते हैं। अब जनता चोरी और सीना जोरी से जनता के सब्र का पैमाना लब्रेज़ हो चुका है और वह कभी भी छलक सकता है। ताज़ा मामला सौ सांसदों द्वारा लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को संयुक्त रूप से एक मांगपत्र देकर यह मांग करना है कि उनको भी अपनी कार पर लालबत्ती लगाने का हक़ मिलना चाहिये। उनका यहां तक दावा है कि बिना लालबत्ती के अपने इलाक़े में घूमते समय उनको हीनभावना का एहसास होता है। साथ साथ उनका दर्द यह भी है कि जहां यूपी में मायावती की सरकार ने उनको लालबत्ती का अधिकार दे रखा है वहीं दिल्ली में घुसते ही उनको अपनी लालबत्ती उतारनी पड़ती है क्योंकि राजधानी में उनको ऐसा करने की इजाज़त नहीं है।

उनकी यह भी मांग है कि उनको हाईवे पर बिना टोलटैक्स चुकाये वीवीआईपी की तरह जाने की छूट होनी चाहिये। माननीयों का यह भी कहना है कि उनको लालबत्ती लगाने की अनुमति नहीं होने से एक तो आम आदमी की तरह आयेदिन जाम में फंसना पड़ता है दूसरे एमपी होने के बावजूद पुलिस उनकी और उनकी गाड़ी की जांच पड़ताल करती है। स्पीकर ने सांसदों की मांग को विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया था। समिति ने विचार करके 30 नवंबर को अपने रिपोर्ट में सांसदों की मांग पूरी किये जाने की सिफारिश कर दी है। समिति का कहना है कि लालबत्ती का सीधा सम्बंध सांसदों की हैसियत से है। अब यह देखना है कि सरकार समिति की सिफारिश को मानकर क्या 543$245 सांसदों को लालबत्ती लगाने की इजाज़त देने को तैयार होती है या नहीं?

यह बात हमारी समझ से बाहर है कि हमारे माननीय जनप्रतिनिधि यह बात अच्छी तरह जानने बावजूद कि आम आदमी को जाम में फंसकर और पुलिस की जांच पड़ताल से कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है फिर भी बजाये वास्तविक समस्या का सबके लिये हल निकालने के अपने लिये शॉर्टकट रास्ता निकाल रहे हैं। साथ ही वे अपने रौब के लिये लालबत्ती की ख़्वाहिश रखते हैं। उनका यह भी कहना है कि उनसे चाहे मामूली ही रक़म का हो टोलटैक्स भी ना वसूला जाये। इसका मतलब आम के आम गुठलियों के दाम। उनके पैसे भी बचेंगे और सामने वाले पर यह रौब भी गालिब होगा कि ये कोई वीआईपी जा रहे हैं। कमाल है कि जिस सांसद को जनता अपना सेवक बनाकर चुनाव जिताती है वह आज अपने आपको राजा महाराजा समझ कर अपने लिये विशेष अधिकार की व्यवस्था चाहता है।

उसको इस आशंका से भी कोई सरोकार नहीं है कि अकसर अपराधी लालबत्ती वाली गाड़ी की तलाशी नहीं होने का बेजा फायदा उठाकर कई बार संगीन वारदात अंजाम दे चुके हैं। अगर 788 सांसदों को लालबत्ती की परमीशन मिल जाती है तो पहले ही राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधनमंत्री, राज्यसभा के उपसभापति, लोकसभा अध्यक्ष, डिप्टी स्पीकर, सेंटर के मिनिस्टर, इलेक्शन कमिशनर, न्यायधीश और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सैकड़ों लालबत्ती वाली कारों की सड़कों पर बाढ़ सी आ जायेगी। यह ठीक ऐसी ही बात है जैसे कोई चौकीदार अपने मालिक से भी अधिक सुविधाएं चाहता हो।

हमारे माननीय सांसदों को पता है कि जनता कैसे घंटों यातायात व्यवस्था गड़बड़ाने से जाम में फंसी रहती है और किस तरह पुलिस जांच पड़ताल के नाम पर नागरिकों को परेशान करती है लेकिन वे फिर भी व्यवस्था सुधारने के बजाये अपने लिये वीआईपी ट्रीटमेंट चाहते हैं। उनको पता होना चाहिये कि अगर जनता परेशान रहेगी तो उनको यह सुख सुविधायें और राजा महाराजाओं वाले ऐशोआराम एवं जलवा अधिक समय तक मयस्सर होने वाला नहीं है। बेहतर है कि वे आत्मसाक्षात्कार करें नहीं तो जनता बगावत पर मजबूर हो सकती है।

जिन पत्थरों को हमने अता की थी धड़कनें,

जब बोलने लगे तो हम ही पर बरस पड़ें।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

2 COMMENTS

  1. ||ॐ साईं ॐ || सबका मालिक एक है|इसीलिए प्रकृति के नियम क़ानून एक है…..
    सांसदों को अपने विशेष अधिकारों की चिंता है कर्तव्यों की नहीं ? देश की जनता की नहीं …आतंकवादियों की सुरक्षा की चिंता है ….
    ये अपने विशेषाधिकारों की तो चिंता करते हैं लेकिन जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को भुला देते हैं तो उनको आज नहीं तो कल जनता चुनाव में संसद से बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है। वे 43 साल से लोकपाल बिल को जानबूझकर एक सुनियोजित साज़िश के तहत लटकाये हुए हैं। आज जनता उनसे अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाकर मज़बूत लोकपाल बिल लाने की जायज़ मांग कर रही है तो वे तरह तरह के हथकंडे अपनाकर भ्रष्टाचार के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं। वे भ्रष्टाचार की बजाये अन्ना और जनता से लड़ते दिखाई दे रहे हैं। सीधा सा मतलब ये सारे के सारे चोर चोर मौसेरे भाई है…..आज फिर हुई लोकतंत्र की हत्या कब तक कांग्रेसी इस देश में अपना आतंक फैलाते रहेंगे…….29 दिसम्बर 2011 , वीरवार , राज्यसभा में लोकपाल पर बहस चल रही थी और कांग्रेस्सियों ने अपनी रणनीति खेल डाली रात की बहस में एक ड्रामा प्रधान मंत्री की जगह नारायण स्वामी ने कर दिया बचा कुचा कांग्रेस के चमचे लालू की पार्टी के एक सांसद ने कर दिया ,,, एक राजनीती नाम के सांसद ने नारायण स्वामी से लोकपाल बिल लेकर राज्यसभा में फाड़ दिया और उसके बाद की रणनीति विपक्ष समझ गया की ये क्या ड्रामा चल रहा है……..
    तीसरा मोर्चा का मतलब है, “थकेले”, “हटेले”, “जातिवादी” और क्षेत्रीयतावादी नेताओं का जमावड़ा, एक भानुमति का कुनबा जिसमें कम से कम चार-पाँच प्रधानमंत्री हैं, या बनने की चाहत रखते हैं।
    दोस्तों १९४७ के बाद से जितने भी पहले दुसरे और तीसरे मोर्चे बने सारे भ्रष्ट हो चुके है …आज देश को एक इमानदार युवा चौथा मोर्चा चाहिए जिसका…… इन पहले ,दुसरे,और तीसरे मोर्चे से कोई सम्बन्ध नहीं हो जो सिर्फ और सिर्फ सच्चा भारतीय हो …..तभी भ्रष्टाचार मुक्त भारत की नीव राखी जा सकती है और तीनो भ्रष्ट मोर्चो के नेताओं,मंत्रियो,और संतरियो को फांसी दे दी जाये……
    “अन्ना का अनशन”—-एक सुपरहिट ड्रामे की श्रंखला क्योकि ये नहीं चाहते है की देश में कोई युवाओं का चौथा मोर्चा पैदा हो….मोहन दास करमचन्द गाँधी ने भी कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा मोर्चा बन्ने नहीं दिया था….अन्ना और टीम अनन्ना भी यही कर रहे है…इनको लगता है की इन तिन भ्रष्ट मोर्चो के अलावा देश को कोई चला नहीं सकता है…जबकि कोई जिले का कलेक्टर रिटायर होता है उस जिले को कोई युवा आई इ एस ही चलाता है ,वह भी उससे ज्यादा अच्छे से…..तो देश क्यों नहीं….
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार ,

  2. लाल बत्ती और टोल बूथ पर न रोके जाने के पीछे एक ही उद्देश्य है,वह यह हैं की इधर का माल उधर करने में और अपने उन गुंडा सहयोगियों को बचाने में आसानी हो जिनके बल पर वे शासन कर रहे हैं.ऐसे भी जो चुनाव जीतकर आता है वह अपने को पुराने जमाने के राजाओं या बादशाहों से कम नही समझता..ये सब हथकंडे इसलिए भी अपनाए जारहे हैं,जिससे लूटने में आसानी हो.

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