मुहूर्त,मोदी जी और अयोध्या

अयोध्या भूमि पूजन के लिए सज चुकी है जैसे त्रेता युग में जब 14 वर्ष के वनवास के बाद प्रभु श्री राम अयोध्या लौटे थे तब भी ऐसे ही अयोध्या सजाई गयी थी | गोस्वामी जी ने लिखा है “अवधपुरी अति रुचिर बनाई ,देवन्ह सुमन बृष्टि झरि लाई | “ अब लगभग 500-600  वर्ष बाद राम जी अपने घर में विराजेगें इसीलिये पूरे देश में हर्ष का वातावरण है केवल हिन्दू ही नहीं अपितु सभी धर्मावलम्बी परम प्रसन्न हैं क्यों कि राम जी से किसी को बैर नहीं | विरोध राजनीतिक है सो राजनीति भी साथ-साथ हो ही रही है | कुछ लोग मुहूर्त को लेकर तो कुछ लोग माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा भूमि पूजन में उपस्थित होने को लेकर रंग में भंग डालने का प्रयास कर रहे हैं | यह जानते हुए कि  राम सेतु अभी भी है ,राम के पुत्र लव के नाम पर लाहौर नगर  पकिस्तान में है | राम के भाई भारत के पुत्र तक्ष के नाम पर तक्षशिला है और साक्षात् अयोध्या उनका धाम है फिरभी लोग दलगत संकीर्णताओं से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं |  इक्ष्वाकु वंश के 64 राजाओं ने भगवान् राम से पूर्व भारत पर शासन किया जिनकी वंशावली अभी तक ग्रंथों में सुरक्षित है | विश्व स्तर पर किसी भी देश का मान-सम्मान और स्वाभिमान का एक बड़ा पक्ष उसका प्राचीन इतिहास,संक्राति और सभ्यता का भी होता है | दुनिया के संभवतः सभी देशों ने स्वतंत्र होने के बाद अपने-अपने इतिहास और प्राचीन संस्कृति-सभ्यता को संरक्षित करते हुए उस पर गौरव किया है | भगवान् राम हिन्दुओं के लिए धर्मिक आस्था का केंद्र हैं किन्तु भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए वे भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक  गौरव का प्रतीक हैं | राम हैं तभी तो हम कह सकते हैं कि भारत 200 वर्ष या 500 वर्ष पुराना नहीं अपितु हजारों वर्ष प्राचीन देश है |   

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 मध्यकाल में आक्रान्ताओं ने पुस्तकालयों में आग लगा दी, भगवान् राम,कृष्ण,महावीर, भगवान बुद्ध, आदि  सभी देवों के मंदिर तोड़ डाले, भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक  पहचान मिटाने का हर संभव प्रयास किया गया | कहा जाता है कि यदि किसी देश के अस्तित्व को समाप्त करना हो तो उसकी भाषा और संस्कृति को समाप्त कर दो | प्रत्येक देश के पूर्वजों के साथ उस देश का इतिहास और  संस्कृति भी   जुड़ी होती है | राम भारत की संस्कृति,सभ्यता और इतिहास के प्रतीक हैं | भारत की पहचान राम से है,बुद्ध,कृष्ण महावीर आदि अवतारी पुरुषों से है | यदि इन देवतुल्य महपुरुषों/ भगवानों को जनमानस की स्मृति से मिटा दिया जाये तो शेष भारत के पास अपनी पहचान के नाम पर बचेगा क्या ? महर्षि वाल्मीकि भारत के ही नहीं मानव इतिहास में आदि कवि हैं और रामायण प्राचीन ग्रंथों में से एक है | रामायण (24 हजार श्लोक,पांच सौ सर्ग और सात कांड) के बारे  में कहा जाता है  “काव्यबीजं सनातनम” अर्थात रामायण समस्त काव्यों का बीज है | विमर्श इस बात पर होना चाहिए कि महर्षि वाल्मीकि जी के समय में सम्पूर्ण संसार में और कौन-कौन ऐसे कवि हुए हैं | भगवान राम के समय संसार के अन्य देशों में भी कोई ऐसा प्रतापी राजा हुआ है यदि नहीं तो  राम जी को संसार का पहला महान राजा माना जाना चाहिये | जिन्होंने  सर्वप्रथम मानव जाति  के लिए उच्च मूल्यों की स्थापना की  | लंका विजय के पश्चात् न राज्य छीना, न नगर लूटा और न हीं वहाँ की धरोंहरें नष्ट कीं अपितु  राज्य रावण के भाई को ही दे दिया | बाली का वध किया राज्य सुग्रीव को दे दिया और अंगद को युवराज बना दिया | समाज के वंचित  वर्ग और निर्धन वनवासी तक को अपने परिवार का अंग माना | माता शबरी हों  (जनजाति) हो या मित्र निषाद राज (आज के अनुसूचित ) न कोई भेद न कोई अहंकार | राम की अयोध्या में कोई निर्धन नहीं, कोई ऊँच-नीच नहीं, कोई प्रताड़ित नहीं, असत्य और अन्याय का कोई स्थान नहीं | क्या संसार में किसी भी देश या जन समूह के पास ऐसे उच्च आदर्श वाले चरित्र,राज्य और नगर  हैं ? यदि हैं तो उनके सद्गुणों का भी उद्घाटन किया  जाना चाहिए |

यूरोप अफ्रीका आदि देशों में उस युग में लोग क्या करते थे,उनके जीवन मूल्य और जीवन स्तर क्या था ? दशरथ जी के दरवार में आठ मंत्री थे,अयोध्या बारह योजन लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी | उसके राजमार्ग पर पुष्प बिखेरे जाते थे और नित्य जल छिड़का जाता था (मुक्तपुष्पावकीर्णेन जल सिक्तेन नित्यशः ) | वहाँ व्यवस्थित बाजार हैं, सभी कलाओं के शिल्पी हैं,नगर के चारों  ओर  गहरी खाई खुदी हुई है और सैकड़ों शतघ्नी (तोपें) भी लगी हुई हैं | वाल्मीकि जी ने अयोध्या का जो वर्णन किया है वह एक अति उन्नत, समृद्ध अन्तरराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र भी है |  कालान्तर में यह केंद्र दुर्बल होता गया मुग़ल काल में इसे पूर्णतः ध्वस्त कर दिया गया | आज उसी सांस्कृतिक केंद्र का  पुनर्निर्माण होने जा रहा है | यह क्षण केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक भारत वासी के लिए गौरव पूर्ण हैं,क्योकि अपने पूर्वजों का यशगान तो सभी को प्रिय होता है |

डॉ.रामकिशोर उपाध्याय

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