मुझको अब सहना आता है……….

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मुझको अब सहना आता है
इतनी पीड़ा सहने पर अब,
ईश्ववर भी याद नहीं आता,
जितनी पीड़ा देनी है दे दे वो,
मुझको अब सहना आता है।
पीड़ा आज गई घर अपने,
फिर आऊंगी वादा करके।
हर आहट पर लगता है कहीं
पीड़ा वापिस आने का
संकेत तो नहीं …………..
इतनी पीड़ा सहकर अब
रोज़ रोज़ काव्यात्मक,
स्वास्थ समाचार लिखते लिखते,
लगता है खँड काव्य ही,
लिखने की तैयारी है ।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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