मुलायम का बयान,मचाए घमासान।

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        अब गठबंधन का बंटाधार।

      राजनीति में कोई किसी न तो स्थाई विरोधी है और न ही स्थाई हितैषी है। राजनीति का खेल एक ऐसा खेल है जिसमें ह्रदय का प्रयोग कम और मस्तष्कि का प्रयोग अधिक किया जाता है। प्रत्येक राजनेता अपने-अपने राजनीतिक लाभ एवं हानि का आंकलन हमेशा करते रहते हैं। जैसे किसी प्रकार की राजनीतिक हानि एवं लाभ का आंकलन होता है वैसे ही नेता जी तुरंत अपना पाला बदल लेते हैं। सदैव ऐसा देखा गया है कि नेतागण चलते हुए जहाज़ पर ही सवारी करने की चेष्टा रखते हैं। डूबते हुए जहाज़ को कोई कदापि बचाने का प्रयास नहीं करता। ऐसा समय-समय पर सदैव देखा गया है जब राजनेताओं ने समय के अनुसार अपने फैसलों को बदला, कार्य को बदला, नीति भी बदली, नीयत बदली यहाँ तक की समय का आभास होते ही अपने सुर भी बदल लिए। इसी का एक दृश्य फिर बुधवार को लोकसभा के अन्दर देखने को मिला। जहाँ देश में घूम-घूमकर विपक्ष अपनी एकता का प्रमाण देने में जी-जान से जुटा हुआ है। वहीं विपक्षी एकता का भंडाफोड़ हो गया। यदि शब्दों को परिवर्तित करके कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा, कि सम्पूर्ण विपक्ष के किए कराए पर पानी फिर गया। क्योंकि, देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश अहम भूमिका निभाता है। और जब उत्तर प्रदेश की ही धरती से आनी वाली मुख्य पार्टी के जन्मदाता इस तरह के बयान दें तो विपक्ष के लिए वास्तव में मुँगेरी लाल के हसीन सपने से इतर कुछ भी नहीं बचा। विपक्ष की एकता का भंडा फूट गया। ऐसा एक नया मोड़ तब आया जब संसद की कार्यवाही में अपने-अपने व्यक्तिगत विचारों का आदान प्रदान होने लगा तभी एक ऐसा विचार उभरकर सामने आया जिससे सम्पूर्ण विपक्ष को सोचने, समझने, विचार करने, आत्ममंथन करने के लिए पुनः मजबूर होना पड़ा। क्योंकि, उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्य भूमिका रखने वाला दल अगर विपक्षी गठबंधन की लाईन से हटकर कुछ अलग बयान देता है तो वास्तव में ऐसा बयान विपक्ष के लिए चिंता का विषय है। क्योंकि, चाहे दिल्ली हो अथवा बंगाल, कर्नाटक हो अथवा तमिलनाडु सबका एक ही मुद्दा है कि भाजपा हटाओ देश बचाओ मोदी हटाओ देश बचाओ सम्पूर्ण विपक्ष बस एक ही मुद्दे पर कार्य करने की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। विपक्ष जहाँ चुनाव के बाद अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार चुनने की बात कर रहा है वहीं विपक्ष की एक बड़ी पार्टी मोदी को प्रधानमंत्री पद पर पुनः वापसी की कामना एवं आशिर्वाद जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए दिखाई दे रही है। ऐसे में क्या समझा जाए कि वास्तविकता क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं की यह सब सोची समझी एवं गढ़ी हुई स्क्रिप्ट है जोकि समय-समय पर लाई जा रही है। क्योंकि, राजनीति को यदि राजनीति के चश्में देखें और पूर्ववर्ती सभी घटना क्रमों को गंभीरता पूर्वक देखें तो सारी स्थिति साफ होते हुए पटल पर दर्पण की भाँति उभरकर सामने आ जाती है।       कहीं ऐसा तो नहीं कि यह पूरा कार्य किसी पार्टी की सरकार बनवाने के लिए नहीं किया जा रहा। क्योंकि, हम अगर थोड़ा सा पीछे जाते हैं और उत्तर प्रदेश का पिछला विधान सभा चुनाव देखते हैं तो उस समय भी सपा में विद्रोह की राजनीति थी जोकि चाचा और भतीजे के मध्य थी जिसका परिणाम यह हुआ की जनता भ्रमित होकर बिखर गई और उसका सीधा फायदा एक पार्टी को मिला। उसी का एक रूप फिर देखने को मिला क्योंकि भाजपा का संगठित वोट बैंक और विपक्ष का बिखरा हुआ जनाधार जिसमें सपा से निकलकर एक पार्टी और बन गई। इससे जनाधार और बिखर गया। उसके बाद उत्तर प्रदेश में और नई पार्टियों उदय हो गया जिससे जनाधार और बिखर गया। इन सभी समीकरणों पर यदि ध्यान केंद्रित करते हुए प्रदेश की राजनीतिक गतिविधियों को समझने का प्रयास किया जाए तो भाजपा उत्तर प्रदेश से फिर भारी बहुमत से विजयी होती हुई दिखाई दे रही है। जोकि दिल्ली की सरकार बनाने में मजबूती के साथ एक बार फिर उभरकर सामने आ रही है। एक बात सत्य है कि अगर इसी तरह चुनाव में एक दो बयान और किसी विपक्षी महागठबंधन से संबन्धित नेता के आ गए तो यह आग में घी कार्य निश्चित ही करेगें। जिससे सीधे-सीधे एक पार्टी को फायदा होना सुनिश्चित है।

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