मुन्ना राजा

मुन्ना राजा धरमपुरा के,
सचमुच के हैं राजा |
जिसका चाहें ढोल बजा दें ,
जिसका चाहें बाजा |

पांच बजे सोकर उठते हैं ,
ब्रश मंजन करते हैं “
सारे काम फ़टाफ़ट करके ,
फिर कसरत करते हैं |
ताल ठोककर कहते हैं फिर,
कुश्ती लड़ले आजा |

कौन लडे अब उस मोटू से ,
सब डरते हैं भाई |
जो भी उससे लड़ा अभी तक ,
सबने टांग तुड़ाई |
टांग देख लो कल्लूजी की ,
टूटी ताजा -ताजा |

नाक तोड़ दी रामूजी की ,
मोहनजी की जांघ |
काम सभी मुन्ना के होते ,
बिलकुल ऊँट पटांग |
खुली छूट है सबसे कहते ,
आजा हाथ तुड़ाजा |

शौक जिन्हें होता तुड़वाता ,
हाथ पैर मुन्ना से,
लट्टू जैसा उन्हें घुमा वह,
देता है गन्नाके |
कहता है जिसको पिटना हो,
खुला हुआ दरवाजा।

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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