मुसलमानों से मूर्तियाँ उठवा कर तो प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे मोदी!

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जगमोहन फुटेला 

आज के इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर छपी है, फोटो समेत. खबर ये है कि जूनागढ़ के मुसलमान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भगवान हनुमान की मूर्ति भेंट कर रहे हैं. ये भेंट मुसलमानों के मन में साम्प्रदायिक सदभाव जगा दिखाने के लिए होती तो हमें खुश होना चाहिए था. मगर ये (खुद इसी खबर में वर्णित) काफिये न निकलने देने की मजबूरी में है तो ये सीधे सीधे ब्लैकमेलिंग है. एक ऐसे समुदाय के साथ जिसके लिए मूर्ति को छूना भी हमेशा से धर्मविरोधी माना जाता रहा है. इसी खबर में ये भी याद दिलाया गया है कि मोदी अपने उपवास के समय मुस्लिम टोपी को स्वीकारने से इनकार कर चुके हैं.

मोदी ने एक शाल भी ग्रहण की है मुसलमानों से. इस पे ‘ॐ नम: शिवाय’ लिखा है. ये, ये दिखाने के लिए है कि या तो मुसलमानों ने हिन्दू धर्म का आदर करना शुरू कर दिया है, या वे ‘राज्य’ के साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए इतने ज्यादा शुक्रगुजार हैं कि अब वे सर्वधर्म समभाव के तहत हिन्दू मुस्लिम में कोई फर्क नहीं समझते या फिर उन्हें मोदी के ‘गुजरात में रहना होगा तो वन्दे मातरम् कहना होगा’. बात अगर सर्वधर्म समभाव की ही होती तो भी मुसलमानों को मूर्ति महिमा के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था. मुसलमानों के लिए भी मूर्ति उतनी ही वर्जित मानी जानी चाहिए थी जितनी कि मोदी साहब के लिए अजमेरी टोपी थी. अगर मोदी भी किसी सार्वजनिक समारोह में अजमेरी टोपी पहन कर भाषण करें साम्प्रदायिक सदभाव पर तो मुसलमानों की इस मूर्तिभेंट को इस देश और दुनिया में सहिष्णुता की महानतम मिसाल माना जाएगा. लेकिन इस्लाम में प्रतिबंधित होने के बावजूद मुसलमानों से मूर्तियाँ उठवाने वाले नरेन्द्र मोदी को वो टोपी भर पहन लेने से ऐतराज़ क्यों है जिस पर न कुरान की कोई आयत छपी है, न किसी वेद या उपनिषद में गोल टोपी पहन लेने को अधार्मिक ही ठहराया गया है.

मैं मोदी को जानता हूँ. बहुत पहले और बहुत नज़दीक से. वे तब बहुत युवा थे. मूल रूप से संघ होने के कारण भाजपा में थे और उन दिनों हरियाणा के भाजपा प्रभारी. हरियाणा में तब उनके सहयोग से चलती बंसीलाल की सरकार थी. दोनों दलों के विधायक मिला कर भी सदन में बहुमत नहीं था सरकार का. इस के बावजूद कहीं किसी एक शहर, कसबे या गाँव में संघ की कोई शाखा नहीं लगती थी हरियाणा में. वे संघ को प्रिय कभी दो अध्याय नहीं जुड़वा पाए स्कूली किताबों में प्रदेश का शिक्षा मंत्रालय भी भाजपा के खाते में होने के बावजूद. चौटाला की हरियाणा में सरकार जब भी कभी बनी तो भाजपा के सहयोग से बनी. उन ने कभी किसी स्कूल में शाखा नहीं लगने दी संघ की. सवाल है कि भाई नरेन्द्र मोदी का हिंदुत्व प्रेम तब कहाँ था?

पंजाब में कुछ मोदी जैसों ने कहा एक दफे कि सिख हिन्दुओं में से उपजे हैं इस लिए वे भी हिन्दू हैं. सिख संगठन खड़े हो गए इस प्रचार के खिलाफ. बवाल मचा. भाजपा मौन हो गई. पंजाब में आज भी भाजपा के सहयोग से चल रही है सरकार. संघ की शाखाएं आज भी नहीं लगतीं पंजाब में कहीं. सिख आज भी सिख हैं. हिन्दू आज भी हिन्दू. सिख आज भी मंदिरों में चले जाते हैं और हिन्दू गुरुद्वारों में. लेकिन किसी तरह का कोई वैमनस्य नहीं है. न हिन्दुओं और सिखों के बीच न मुसलामानों और इन दोनों के बीच. ये है पंजाब में धर्म की परिभाषा और ये है पंजाब का राजधर्म. हिमाचल में तो खुद के बूते पर सरकार है भाजपा की. मुसलमानों की संख्या भी पूरे हिमाचल में होगी तो महज़ कुछ सौ की गिनती मैं होगी. संघ की शाखाएं और स्कूली किताबों में वो अध्याय आज भी नहीं हैं वहां जिन्हें शामिल न करने के लिए कभी भाजपा ने हरियाणा बंसी लाल से समर्थन वापिस ले लिया था. उडीसा को देख लीजिये. कभी बीजेडी सहयोगी दल हुआ करता था बीजेपी और एनडीए का. वहां आज भी हर कोई दूर गली में दिखाई न देने वाले मंदिरों की ओर भी झुक कर नमस्कार करते हुए चलता है. धार्मिकता की पराकाष्ठा है ये. मगर संघ की शाखाएं कभी वहां भी नहीं लगीं. न वीर दामोदर सावरकर की कोई किताब ही पढ़ाई गई वहां के स्कूलों में.

धर्म और राजधर्म में एक बड़ा फर्क होता है. वही नहीं निभा रहे मोदी. ऐसे तो प्रधानमन्त्री कैसे हो पाएंगे? सच तो ये है कि वे पार्टी का धर्म भी नहीं निभा पा रहे हैं. कल जब अपने अध्यक्ष नितिन गडकरी समेत पूरी भाजपा आडवाणी के रथ यात्रा समापन समारोह में एक तरह से इतिहास रच रही थी वे अपने को उस उसे अलग और शायद उन सब से ऊपर दिखाने का प्रयास कर रहे थे. मुसलमानों से मूर्तियाँ उठवा कर. आपके खौफ से अपने वाहनों पे ‘ॐ’ लिखा सकते हैं मुसलमान टैक्सी वाले. आपको मूर्तियाँ भी भेंट कर सकते हैं. मगर इस से न वे आपके हो जाएंगे और न आपकी ये अदा गुजरात के बाहर किसी प्रकाश सिंह बादल, जयललिता, नितीश कुमार या कुलदीप बिश्नोई को ही जंचेगी. मतलब ये कि आपके आदर्शों और उसूलों पे चल के तो भाजपा भी इस देश में राज करने से रही. कल आपने आडवाणी की सभा को तिरस्कृत किया. आने वाले भविष्य में भाजपा को आपसे दूरी बनानी पड़ेगी.

मायावती ब्राह्मणों और सवर्णों के लिए कोई पॅकेज लाती हैं तो एक दलित वोट नहीं टूटता उनका. वे समझते हैं कि ये बहन जी की दलितों का राज लाने की चाल है. आडवाणी भी मुसलमानों के दो चार फीसदी वोटों का इंतजाम कर लिए होते. हमेशा के लिए खेल हो गया होता. बहुत बड़ी भूल की थी संघ ने आडवाणी के जिन्ना वाले बयान को खुद तूल दे के. मुसलमानों को ज़रा सा भी एहसास दे पाई होती भाजपा सुरक्षा और सम्मान का तो आज राज कर रही होती वो देश पे. काग्रेस की हालत आज भी कोई बहुत अच्छी नहीं है. हरियाणा में आज चुनाव करा लो. नब्बे में से उन्नीस सीटें नहीं जीत पाएगी वो. पंजाब में वो जीतेगी तो अमरेंदर सिंह की वजह से. दिल्ली में उसे नाकों चने चबाने पड़ेंगे. यूपी में वो फिर बहुत बुरा करने वाली है. उत्तराखंड के चुनावों में वो अभी तो बहुत महफूज़ नहीं है. ममता आँखें दिखा रही है. राजस्थान में भंवरी नहीं जैसे खुद कांग्रेस गायब है. दक्षिण की बात करें तो करूणानिधि को यूं ‘मार’ के वो खुद जिंदा नहीं हो जाने वाली है वो. आन्ध्र में जगन रेड्डी का जो भी हो कांग्रेस का काम तमाम तो वो कर ही देंगे. बिहार से कांग्रेस अब लम्बी जुदाई पे है. कम्युनिस्ट इतिहास बन ही चुके हैं. किसी तीसरे मोर्चे की कोई संभावना नहीं. ऊपर से अन्ना, रामदेव सब फैक्टर भी सब भाजपा की ही मदद करते हैं. भाजपा फिर भी इस देश पे परचम नहीं लहरा पाई तो इसकी वजह नरेन्द्र मोदी की सोच और उसकी वजह भाजपा से किनारा कर सकने वाले उसके नितीश, जयललिता जैसे सहयोगी होंगे.

अपना ये मानना है कि एक स्थिति में आ के नितीश कुमारों, जयललिताओं, चन्द्र बाबुओं, पटनायक, बादल और बिश्नोइयों को सोचना पड़ेगा कि मोदी की सोच वाली भाजपा या खुद अपने प्रदेश की राजनीति? भाजपा और संघ को तब एक फैसला लेना पड़ेगा. तय करना पड़ेगा कि उन्हें मोदी और इस देश की सत्ता में से क्या चाहिए?

15 COMMENTS

  1. ==> फुटेला जी: दो मौलिक इकाइयां है।
    (१) वयक्तिक चुनाव, रूचियां, आहार, वेषभूषा इत्यादि जो वयक्तिक रूचिपर निर्भर होता है। उदाहरणार्थ: मुझे रेशमी स्वर्ण रंगी कुर्ता, हल्की नीली क़मिज़ इत्यादि रूचता है। ऐसी रूचियों की विविधता अपेक्षित और स्वीकार्य होनी चाहिए। रूचियों के लिए, कारण या तर्क आवश्यक नहीं।
    किन्तु;
    (२) यदि मैं मेरी रुचियां अन्य पाठकों से भी स्वीकार करवाना चाहूं, तो फिर मुझे कारण देने पडेंगे, तर्क खडे करने पडेंगे।रुचियों का मान्यताओं का भी आदान प्रदान सही है।
    पर आप किसी मान्यता को सभी से मनवाना चाहते हैं, (लेखक यही करता है)तो आपको तर्क या प्रमाण देना पडेगा।
    (३) उदा: मुझे मातृभाषा गुजराती से प्रेम है। पर मैं चाहूं कि, गुजराती भारतकी राष्ट्र भाषा हो, तो मुझे तर्क देना पडेगा।
    मैं मानता हूं, कि, आप ने चुना हुआ विषय तार्किक है; इसलिए मेरी ओरसे, प्रश्न पूछे गए।

    वैसे तो साहित्यिक लेखन के, बहुत प्रकार होते हैं, पर साधारण लेखों के ४ प्रकार होते हैं।
    (क)==>Argument: तर्क, कार्य कारण की कडियां, इत्यादि। इसमें आप को कारण देकर आपका मत प्रस्थापित करना होता है।
    (ख)==>Explanation: स्पष्टीकरण या खुलासा करना होता है: क्या घटा और क्यों घटा, इत्यादि।
    (ग)==>Definition: व्याख्या: जो किसी संज्ञा या शब्दकी अवधारणा या संकल्पना को समझाता है।
    (घ)==>Description: वर्णन: यह केवल वर्णन होता है।
    ==>आपका लेख (क) वर्गमें प्रतीत होता है।
    इस लिए आपको तर्क जो ४ प्रकार के प्रमाणों पर आधारित होता है, जो, प्रमाण देने से वह सर्व स्वीकृत हो सकता है।
    विषय बडा है। आप भारतीय “न्याय शास्त्र” को जानते होंगे। उसमें संदर्भ ढूंढ सकते हैं।
    संक्षेपमें लिखा है। समय मर्यादा के कारण आप की वेब साइट देखूंगा, पर लिखने में असमर्थ हूं।
    आपका शुभाकांक्षी।

  2. लेख कतई टिप्पणी के लायक नहीं है, मैं उस समय को कोस रहा हूँ जब यह लेख मैंने पढ़ना शुरू किया, एकदम एकतरफा लेख बुद्धीमानों एवं देश का भला सोचने वालों के पढने लायक नहीं. मुझे समझ में नहीं आ रहा की मोदी जी ने क्या मुस्लिमों से निवेदन किया होगा की मुझे मूर्तियाँ और रामनामी भेट करो,(यह संभव ही नहीं है) यह सब क्यों हुआ होगा ये तो वे मुस्लिम ही जाने, पर इस्लाम में ये वर्जित है वो वर्जित इसकी चिंता में लेखक का दुबला होना समझ से परे है.

  3. आदरणीय डा. मधुसूदन जी,
    इस दुनिया में सब तरह की विचारधारा और सोच के लोगों को अगर संतुष्ट किया जा सकता होता तो इतने मन और मतभेद नहीं होते, न इतने अलगाव, न बिखराव. इसी साईट और इसी लेख पर आईं प्रतिक्रियाएं भी इसका प्रमाण हैं. सब को एकमत तो मैं भी नहीं कर पाऊंगा. फिर भी आप के अध्ययन, चिंतन और मनन और आपकी मेरे मन में छवि के मद्देनज़र मैं एक विनम्र निवेदन आपसे अवश्य करना चाहूंगा. पर इस विचार पर कुछ निरंतरता देने का प्रयास किया है, buddhijeevi.com पर ‘ये कैसी धारा है जो अधर्म करा कर ही बह सकती है’ के माध्यम से. मेरा आग्रह है कि मैं और आप वहां सकारात्मक वैचारिक आदान प्रदान से अपने शेष मित्रों और समाज के लिए चिंतन का एक आधार प्रस्तुत करने का प्रयास करें. मेरा वादा है आपसे कि आपका लिखा एक एक शब्द जस का तस प्रकाशित किया जाएगा.

  4. जगमोहन जी कहते हैं “मुसलमानों से मूर्तियाँ उठवा कर तो प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे मोदी!” मैं पूछता हूँ, “अरे भाई, आप ही बता दीजिए कैसे बन पायेंगे प्रधान मंत्री हमारे प्रिय मोदी जी?”

  5. तुष्टिकरण, तुष्टिकरण, तुष्टिकरण।
    (१)
    फिरसे फुटेला जी तुष्टिकरण, जो आज तक आम इस्लामी उपासक की तरक्की नहीं, कर पाया, या करवा पाया है, उसीके पक्षधर प्रतीत होते हैं।
    (२)
    और फिरसे मुसलमानों को “वोट बैन्क” बनने के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रीतिसे उकसा रहे हैं।
    (३)
    क्या, फुटेला जी, जो मुसलमान राष्ट्रीय प्रवाह से जुड रहा है, उसे फिरसे तुष्टिकरण के द्वारा नुकसान पहुंचाना चाहते हैं?

  6. (१)
    “मुसलमानों से मूर्तियाँ उठवा कर तो प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे मोदी!”–फुटेला जी ने इसे जब शीर्षक ही दिया है, तो मेरा निम्न प्रश्न उचित ही मानता हूँ।
    (२)
    जगमोहन जी फुटेला “उठवाना” और “उठाना”
    के बीचका अंतर आप लेखक होने से निश्चित जानते होंगे। मैं गलत तो नहीं ना?
    (३)
    मेरा प्रश्न:
    “मूर्तियां मुसलमानों से उठवाई गयी थी,”
    इस की पुष्टि के क्या क्या प्रमाण है, आपके पास?

  7. एसा करके क्या मिलता है मोदी तो प्रधानमंत्री बने या न बने तुम काहै को अपने केरियर को ठोस पहुँचा रहे है बीजेपी जिदाबाद अब गरम तो होता है लेकिन क्या करे बीजेपी दिल से दुर होता नहीं है अब फिर जल रहे न हम तो जश्न मना रहे है

  8. समझ में नहीं आता कि कुछ लोगो को नरेन्द्र मोदी की इतनी फ़िक्र क्यों हैं. ..? मोदी ने ऐसा किया, वैसा किया. ये नहीं किया वो क्यों किया??
    अक्सर देखता हूँ कि लेखकगन मोदी का निष्पक्ष मूल्यांकन करने की बजाय आरोपों की झडी लगाना शुरू कर देते हैं. और अपनी विश्वसनीयता खोकर कोंग्रेसी प्रवक्ता जैसे लगते हैं. और इन सब के बावजूद आज मोदी देश के सर्वाधिक सफल, लोकप्रिय और कर्मठ शासक के रूप में साबित हुए हैं.

  9. सुरेश जी की भषा से साफ लग रहा है कि वे घोर प्रतिक्रियावादी है, वे कुछ ज्यादा ही फील कर गए, यह जरूरी नहीं है कि कोई किसी का समर्थक हो या नहीं अथवा किसी मकसद विशेष से लिखे, भले ही किसी के विचारों से सहमति न हो, मगर इतना उग्र हो कर आप अपना ब्लडप्रेशर ही बढाएंगे

  10. फुटेला जी ,
    पूरी तरह से एकतरफा लेख लिखा है …. मैं अंत तक समझ नही पाया की क्या साबित करना चाह रहे है …!!!

  11. मोदीजी जो कुछ कर रहे है या उन्हेंने जो कुछ किया है , सराहनीय है उसी के वजह से वो सत्ता पर है और बने रहेंगे , रही बात मुसलमानों से मुर्तिया उठवाने की तो पिचले कहीं दशको से मुसलमानों को खुस करने की कोशिश मैं न जाने कितने हिंदुयों की बलि चढ़ी है , अब उनको हिंदुयों को खुस रखन होंगा

  12. फ़ुटेला जी एवं इकबाल जी…
    भाजपा को सत्ता नहीं मिलती तो न मिला करे… आपको परेशानी क्या है? लेख की भाषा से साफ़ दिख रहा है कि आप भाजपा समर्थक तो हैं नहीं, फ़िर आपको भाजपा के उत्थान की इतनी फ़िक्र क्यों हो रही है यह समझ से परे है…।

    2014 के चुनाव में UPA यदि तीसरी बार सत्ता में आ भी जाए तो आपको क्या फ़र्क पड़ने वाला है?

    जैसा कि आपने कहा, यह स्टण्ट करके मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, तो यह तो आपके लिए खुशी की बात होनी चाहिए, फ़िर यह बेचैनी कैसी? मेहरबानी करके भाजपा को उसके हाल पर छोड़ दीजिए… काहे सिर खपा रहे हैं?

  13. ||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक एक है… इसीलिए प्रकृति के नियम क़ानून एक है …भारत में सबके लिए अलग अलग क़ानून क्यों ?
    मुसलमान हो ,हिन्दू ,सिक्ख हो सब साईं के प्यारे, जैन बुद्ध हो या इसाई सब आँखों के तारे
    साईं राम कृष्ण रहमान साईं गीता वेद कुरान || ॐ साईं ॐ||

  14. हार्दिक बढ़ाई. बहुत शानदार लिखा अपने फुटेला जी. समय अ गया है के भाजपा खुद को जनता की चाहत के अनुसार बदले नहीं तो उसको इस सोच के रहते सत्ता कभी नहीं मिलेगी. संपादक पब्लिक ऑब्ज़र्वर, najibabad

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