अभिशप्त जिंदगी जी रहा मुसहर समुदाय

खुशबू कुमारी

कुछ गज जमीन। जर्जर मकान। सितुहा, घोंघा व मूसा पकड़ कर जीवन की नैया खेते-खेते थक-हार चुका मुसहर समुदाय अब भी हाशिये पर खड़ा है। इस समुदाय की ओर किसी सरकारी नुमाइंदे की नजर नहीं पड़ती है। मुजफ्फरपुर जिले से करीब 60 किमी दूर साहेबगंज प्रखंड मुख्यालय में अवस्थित शाहपुर मुसहर टोली 1970 में इंदिरा नगर घोषित हुआ था। जिले में सर्वप्रथम इंदिरा आवास की शुरुआत यहीं से ही हुई थी। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। लोग कहते हैं कि इंदिराजी ने मुसहर टोली के उद्धार के मकसद से ही इंदिरा नगर बनवाया था। यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और पेयजल की बड़ी समस्या थी। सामुदायिक विकास के लिए 105 इंदिरा आवास, एक प्राथमिक विद्यालय, उपस्वास्थ्य केंद्र और एक आंगनबाड़ी आदि की व्यवस्था की गयी थी, ताकि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े इस समुदाय को भी विकास की धारा में साझीदार बनाया जा सके। परंतु समय के साथ यह बस्ती अपनी पहचान खोता गया और इतने वर्षों के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। गरीबी, अशिक्षा व बेरोजगारी ने बस्ती वालों को पलायन के लिए मजबूर किया है। अब बस्ती में अधिकांश महिलाएं, बच्चे व बुजुर्ग हैं। उन्हें नहीं मालूम कि पंचायत में कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं। उपस्वास्थ्य केंद्र प्रायः बंद रहता है। प्राथमिक विद्यालय में बस्ती के दर्जनों बच्चे नामांकित हैं लेकिन स्कूल नहीं जाते हैं। पूरी बस्ती दमा, टीबी, पोलियो और पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित है। स्वास्थ्य के उचित देखभाल नहीं मिलने के कारण बच्चों के मृत्यु की संख्या अधिक है। आज भी यहां के कुछ लोग चूहा, बिल्ली व सूअर के मांस का सेवन करने को मजबूर हैं। बस्ती के रहने वाले पुरूष सुबह से ही ताड़ी, पाउच जैसे देसी शराब का सेवन शुरू कर देते हैं।

इस मुसहर टोली में महिलाओं की स्थिति अत्यंत ही दयनीय है। अशिक्षा के कारण वह स्वंय को मानसिक व शारीरिक रूप से अक्षम और लाचार पाती हैं। एक-एक परिवार में 4-5 बच्चों की संख्या है, जो कुपोशण व निःशक्तता से अभिशप्त हैं। उचित पोशण के अभाव में कई बच्चे जल्द ही मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। करीब 1500 की आबादी वाले इस समुदाय के एतिहासिक काल से अबतक सामाजिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। मुसहर समुदाय के कल्याण के नाम पर प्रत्येक वर्ष करोंड़ो रूपए जारी किए जाते हैं। लेकिन वह शायद ही इनतक पहुंच पाता है। पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव के समय वोट मांगने के लिए जाने कितने सांसद और विधायक आए लेकिन किसी की भी नजर बस्ती की बदहाली पर नहीं जाती है। केवल कोरा आष्वासन और उनकी तरफ से वोट की कीमत मुर्गा, पाउच, विदेशी शराब की बोतलें गरीबों के गले को तर करती हैं। फिर पूरे पांच साल किसी नेता के कदम इस बस्ती की बदहाली सुधारने के लिए नहीं पड़ते हैं। आजतक इस बस्ती की ओर जाने वाली सड़क पक्का होने की बाट जोह रहा है। ऐसा लगता है कि योजनाओं की कड़ी इस बस्ती तक पहुंचने से पूर्व ही समाप्त हो जाती है।

पूर्व मुखिया किशोरी मांझी कहते हैं कि मुसहर समुदाय अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। आजादी के बाद कितने पंचायतों-गांवों का विकास हुआ, परंतु इंदिरा नगर की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। इतने वर्शों के बाद भी इस बस्ती में शिक्षा की लौ नहीं जल पाई है तो वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य के संबंध में भी यहां बुरा हाल है। मुसहर बस्ती में पेयजल भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। यहां दो कुंए जो खराब पड़े हुए हैं वहीं 6 हैंडपंपों से निकलने वाले पानी पीने के लायक नहीं होते हैं फिर भी यहां के लोग मजबूरी में उसका प्रयोग करते हैं। मांझीं कहते हैं कि मुसहर टोली की सबसे बड़ी समस्या रोजगार को लेकर है। जागरूकता की कमी और आर्थिक रूप से पिछड़े होने के कारण कोई भी पूर्ण रूप से शिक्षित नहीं हो पाया है। ऐसे में बाल श्रमिकों की संख्या अधिक देखी जाती है। आज भी यहां के लोग अपने परिवार का भरण-पोशण मजदूरी करके या घोंघा, केकड़ा, सितुहा अथवा सूअर पाल कर करते हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार इस समुदाय को किसी प्रकार से नजरअंदाज करती है। आजादी के बाद देश में दलितों के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं चलाई गईं तथा संविधान में विषेश आरक्षण की व्यवस्था भी की गई। इसका मकसद सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आगे बढ़ाना तथा उन्हें विकास की प्रक्रिया में भागीदार बनाना था। इसके लिए इन्हें विषेश सुविधाएं दी गई और शिक्षा तथा नौकरियों में भी आरक्षण प्रदान किए गए। आजादी के छह दशक बाद बिहार सरकार ने दलित वर्ग के साथ-साथ महादलित नाम से एक नए वर्ग का गठन किया। इसके गठन की मूल मंशा दलितों में भी अत्यधिक रूप से पिछड़ों की पहचान कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना है। इस वर्ग में मुसहर जाति को भी शामिल किया गया है। राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम वास्तव में क्रांतिकारी कहे जा सकते हैं। लेकिन सरकार के यही कदम ऐसा लगता है कि कागजों तक सीमित होकर रह गए हैं। होना तो यह चाहिए था कि जो योजनाएं वंचितों के उत्थान के लिए बनाई गई हैं वह वास्तविक धरातल पर पूर्ण होती। लेकिन बिहार सरकार द्वारा महादलित उत्थान योजना से यहां के रहने वाले मुसहर अब भी पूर्ण रूप से लाभान्वित होते नजर नहीं आ रहे हैं। सुविधाओं का लाभ मिलना तो दूर, इस वर्ग में शामिल कई महादलितों तक योजनाओं की जानकारी भी नहीं पहुंची है।

राज्य सरकार ने 2008 में बिहार महादलित विकास मिशन के गठन के साथ ही उनके उत्थान के लिए 16 स्कीमों का भी एलान किया था। जिसमें उन्हें स्थाई घर दिलाने के अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार पर भी खास जोर दिया गया है। इन योजनाओं के प्रचार और प्रसार के लिए प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही माध्यमों का जोर षोर से सहारा लिया गया है। लेकिन शाहपुर के इंदिरा नगर के मुसहर समुदाय के लोग अब भी इस योजना की बाट जोह रहे हैं। यहां के सैकड़ों लोगों की निगाहें इस आस पर टिकी है कि एक दिन हमारी स्थिति सुधरेगी और हम भी सम्मानित जीवन यापन करेंगे। (चरखा फीचर्स)

3 COMMENTS

  1. अच्छा विषय चुना । सितुहा, घोंघा व मूसा वैसे काफी पौष्टिक भोजन है मेडिकल्ली पर गरीबी के चलते करना॥मैं मिथिला का हूँ आउर उन्हे नजदीक से देझा है..गरीब के लिए विदायलायबेमानी है , रही हैं। स्वास्थ्य केंद्र की अवधारणा ही रूसी मोडेल पर फेल है प् ताड़ी, पाउच जैसे देसी शराब से बचान आवश्यक है ।
    महिलाओं की स्थिति ,4-5 बच्चों की संख्या है, जो कुपोशण व निःशक्तता, सांसद और विधायक
    पेयजल, जागरूकता की कमी , आरक्षण की व्यवस्था उत्तर नही है, महादलित नीतीश का ढकोसला है, मुशहर मेहनती हैं आउर जब सही संबल मिलेगा तभी वे जगेंगे,

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