कविता

मेरा वतन वही है ………….

 राकेश कुमार आर्य

शौर्य और साहस जिसका अद्वितीय है ।

विज्ञान ज्ञान जिसका विश्व में अवर्णनीय है ॥

ताप त्याग साधना भी जिसकी अकथनीय है ।

संदेश सत्य का जिसकी पठनीय है ॥

मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है …॥ १ ॥

 

मनु सा संविधानज्ञ जिसकी अमर है ख्याति ।

गौतम कणाद जैसे मुनिवर हैं जिसकी थाती ॥

गुरु वशिष्ठ,द्रोण जैसे जिसके धर्म के साथी ।

ये दुनिया जिनके अब तक झूम-झूम गीत गाती ॥

मेरा वतन वही है,मेरा वतन वही है …॥२ ॥

 

चाणक्य महामति से जिस पुण्य धरा पै विचरे ।

विदुर की पुण्य वाणी के मोती जहां बिखरे ॥

राम और कृष्ण जैसे महामानव जहां से गुजरे ।

पतंजलि ऋषि के जहां योग मोती बिखरे ॥

मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है…. ॥३॥

 

महाराणा प्रताप जैसे हुए वीर जहां नायक ।

छत्रपति शिवाजी जिसकी है ध्वजा के वाहक ॥

ऋषि दयानन्द जैसे यहाँ है वेदो के उद्धारक ।

बुद्ध-गांधी जिसकी शांति के हैं प्रचारक॥

मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है….॥४॥

 

कश्मीर जिसका सिर है कन्याकुमारी पग है ।

कंधार जिसकी बाजू कामरूप भी सजग है॥

हिन्दुत्व जिसकी धड़कन आर्यत्व ही धर्म है।

उस पुण्य भारत भू को ‘राकेश’ का नमन है ॥

मेरा वतन वही है ,मेरा वतन वही है… ॥५॥