नाना जी देशमुख ने हमेशा अपने उद्बोधन में यही कहा है कि हमें नाना जी मत सम्बोधित करो, मुझे सिर्फ नाना कहो। मैं तुम्हारा नाना हूँ। कितना वात्सल्य झलकता है इन शब्दों में। वाणी की ओजस्विता, हाजिर वक्तृत्व एवं प्रखर कर्तृत्व नाना की अपनी पहचान रही है। ग्रामीण पुर्नसंरचना की वीणा नाना ने उठायी तो शनिवार दिनांक 27.02.2010 के सायंकाल चिरविश्राम मुद्रा में आ गये। चित्रकूट की पावन धरती ने अपने इस ओजस्वी सपूत को अपनी गोद में हमेशा के लिए सुला लिया। न केवल चित्रकूट अपितु राष्ट्र एवं विश्व मानवता नाना की ऋणी है और रहेगी। नाना ने भारत के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में जब गौशाला का श्रीगणेश किया तो उद्धाटन में पूजा के समय उपाध्याय युगल को चुना गया। गौशाला के दूध का सम्बन्ध मेरे पूरे परिवार से रहा है। संस्कार निर्माण की प्रक्रिया में गाय के दूध का कितना महत्व है इसे मैं बखूबी समझती हूँ। गौशाला में हिन्दुस्तान के विभिन्न क्षेत्रों की देशी नस्लों, उनके वंशजों तथा उनके उत्पादों के आधार पर संवर्धन, शोधन, परिस्करण एवं वितरण का गुरूत्तर दायित्व आज की तारीख में भी आरोग्यधाम दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट में जारी है। गो-धन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी है। हिन्दुस्तारी संस्कृति में मुद्रा संवर्धन में भी अनोखा एवं बेजोड़ नमूना है।
गैर कांग्रेसवाद की मुहिम को बीसवीं सदी के आठवें दशक में साकार करने में लोक नायक जयप्रकाश नारायण के साथ नाना का योगदान राष्ट्र के लिए वैकल्पिक राजनैतिक मॉडल तैयार करने तथा समग्र क्रान्ती का बिगुल फूंकने में प्रेरणास्पद रहेगा। हिन्दू मिशन-शैली नाना की अपनी पहचान है। अपने से भिन्न मतावलम्बियों यथा लाहियावादी समाजवादियों को अपने से अभिन्न रखना नाना की समरसता का बेजोड़ नमूना रहा है। दलगत राजनीति के दलदल में फंसी वर्तमान संसदीय प्रणाली से नाना खिन्न थे। सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पुनरूत्थान में बाधक वोट बैंक की राजनीति नाना की दृष्टि हेय थी। परिणाम स्वरूप सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर इस राजर्षि ने ग्रामीण्ा पुर्नसंरचना का जो आदर्श नमूना दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से राष्ट्र के सामने प्रस्तुत किया है उसी से देश की दिशा एवं दशा सुधरेगी। मेरी समझ से ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रधान भारतवर्ष का जीर्णोंध्दार नाना द्वारा सुझाये गये ग्रामीण विकास माडल द्वारा ही सम्भव है।
मेरी लेखनी विश्राम नहीं लेना चाहती फिर कुछ पंक्तियों में मैने अपने नाना को श्रध्दा सुमन अर्पित किया। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि नाना ने स्वीकार कर ली होगी क्योंकि आत्मा की अमरता का सिध्दान्त श्रीमद् भगवत गीता का डिम-डिम घोष है।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारूत:॥