मोदी जी का मौलिक नेतृत्व और अमरिका

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-डॉ. मधुसूदन-
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प्रवेश: मुझे कुछ दिनों से निम्न प्रश्न पूछे जा रहे हैं। अपने विचार और मान्यता के आधार पर उनके, उत्तर संक्षेप में, पाठकों की जानकारी के लिए, प्रस्तुत करता हूं।

(१) प्रश्न: मोदी जी के विषय में आप का क्या मत है?
उत्तर: मोदीजी एक मौलिक नेतृत्व है। मौलिकता किसी लीक पर चलकर आगे नहीं बढती। सारे सुभाषितों, या सूक्तियों को, पारकर स्वतंत्र विचारों के आधार पर, मौलिकता पनपती है। जो नियम से संचालित होता है; वह मौलिक नहीं होता।
सिंह किसी मार्ग पर नहीं चलता। सिंह तो जहां से चलता है, वहीं पर, नया मार्ग, बन जाता है।
ऐसी मौलिकता मुझे उनके द्वारा लिए गये निर्णयों में प्रतीत होती है।
उनका निर्णय सारे भारत के हित में होता, पाया है। मानता हूं कि, वैसा निर्णय ही भारत को, एकता देगा और आगे बढ़ा पाएगा।
मैं, प्रामाणिकता से, मानता हूं, कि भारत आज भाग्यवान है, कि भारत के पास मोदी है। यदि पर्याप्त निर्णायक संख्या में, मोदी समर्थक सांसद चुने जाते हैं, तो भारत का सूर्य अवश्य ही चमकेगा। और शीघ्र चमकेगा।
अवश्य भारतीयों को उन्हें साथ भी देना होगा। ६७ वर्षों की भ्रष्ट और जनता को बांटनेवाली परम्परा बदलने के लिए, जनता को भी अपना योगदान देना होगा। कितने वर्षों से सामान्य प्रजा में निराशा थी; अब आशा की किरणें दिखाई दे रही हैं।

(२) प्रश्न: पर, अमरिका मोदी का विरोधी क्यों?
उत्तर: शायद अमरिका को जानकारी है; कि, मोदी न खरिदा जा सकता है, न लुभाया जा सकता है, न झुकाया जा सकता है। अमरिका दुर्बल नेतृत्व को लुभाकर अपना एजेण्डा आगे बढाता है। पर मोदीजी को खरिदना नितांत असंभव है। इस लिए अमरिका मोदीजी को जिताने के पक्ष में नहीं (है) था। मोदी यदि प्रधान-मंत्री चुने ही गये, तो अमरिका की विवशता ही होगी; स्वेच्छा नहीं। क्यों, उसे अपेक्षित (अनुमान) है कि मोदी द्वारा कोई निर्णय मात्र अमरिका के पक्ष में, भारत का अहित सहते हुए, लिए जाने की संभावना नहीं है। यह अमरिका को ठीक पता है। अमरिका भयभीत है। भारत विश्व की बड़ी से बड़ी लोकशाही है। वैश्विक सत्ताओं में तीसरे क्रम पर जापान और रूस के साथ मानी जाती है।

(३) प्रश्न: यदि मोदीजी चुने ही गये तो, अमरिका क्या करेगा?
अब उसे मोदी जी के विजय का अनुमान हो रहा है। इसीलिए विरोधक-से तट्स्थता की ओर गतिविधि दिखाई देती है। जब चुने जाएंगे, तो अमरिका को, अपनी विरोधी नीति भी बदलनी होंगी। ये सारा बदलाव अमरिकाके हित को लक्ष्य में रखकर ही होगा। इसी का संकेत “नॅन्सी पॉवेल की मोदी” भेंट है। किन्तु इसे कूटनैतिक रीति से, पहले अमरिका विरोधक से तटस्थ होना होगा। इसी को और सहज और सरल बनाने के लिए, राजदूत ही बदला(?) जाएगा। और राजदूत बदलने पर उसकी प्रतिमा (दोष) आप ही आप धीरे-धीरे बदलेगी। जिससे यह संबंध सुधार की प्रक्रिया और भी सरल हो जाएगी।
मैं इसी अर्थ में इस मोदी/पॉवेल भेंट को देखता हूं। इस भेंट से अमरिका ने, संबंधों की खटास को घटाने का प्रयास किया है। अमरिका तटस्थता की ओर ही खिसका है। यह उसकी विवशता ही मानता हूं।

(४) प्रश्न: अमरिका भारत के चुनाव से, क्या चाहता था?
अमरिका को, भारत में, परावलम्बी और दुर्बल कठपुतली नेतृत्व चाहिए था; जो उनकी हां में हां मिलाए, जिससे अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर अमरिका द्वारा अपने हित में भारत का गुप्त शोषण संभव हो सके। और इस काम में, भारत का, (exploitation) उपयोग किया जा सके। दिखने में सूक्ष्म दिखाई देनेवाला यह कारण, नगण्य नहीं मानता। कुछ ठीक समझ के लिए, अमरिका की कूटनीति समझनी होगी। अमरिका सैद्धान्तिक रूप से जनतंत्र में विश्वास नहीं करता। क्योंकि, वैश्विक स्तर पर निश्चित ही, जनतांत्रिक प्रतीत नहीं होता। जितना विचार करता हूं, इसी निर्णय पर आता हूं।
अमरिका अपने देश में जनतांत्रिक होगा, पर अमरिका की कूट-परदेश-नीति पूंजीवादी ही है। मानवता को इस नीति में प्रायः दिखाऊ और गौण स्थान होता है।

(५) प्रश्न: अमरिका का वैश्विक कूटनीति का इतिहास कैसा है?
इतिहास साक्षी है कि अमरिका ने प्रायः उन सत्ताधारियों को प्रोत्साहन दिया है, जिनकी ओर से अमरिका के हित में निर्णय लेने की संभावना प्रतीत होती है। और ऐसे निर्णय शीघ्रता से, मात्र एकमुखी सत्ताधारी और तानाशाह ही ले सकते हैं। “जब जनतंत्र से ही व्यवहार करना पड़े तो अमरिका दुर्बल साहसहीन सत्ताधारियों को प्रोत्साहित करता है।”

(६) प्रश्न: अमरिका के अंतरराष्ट्रीय कूटनैतिक इतिहास के कुछ उदाहरण देंगे?
निम्न इतिहास देखने पर आप सम्मत होंगे और इसका ( pattern) चित्र भी उभर आयेगा। और भी बहुत सारे उदाहरण हैं, आलेख की सीमा को ध्यान में रखकर कुछ ही उदाहरण दे रहा हूं। इनके अवलोकन से, आप जान पाएंगे कि कैसे, अमरिका, तानाशाहों को और एक-मुखी सत्ताधारियों को समर्थन देता है; ये पिछले कुछ दशकों के इतिहास के अवलोकन से स्पष्ट देखा जा सकता है।
“ऐसे दुर्बल सत्ताधीशों का, अपने हित साधन में, चतुराईपूर्वक उपयोग कर ये सत्ता, अपने हित में संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य जागतिक विवादों में भी, उनका उपयोग करती हैं।”
अपनी वस्तुओं के लिए बाजार उपलब्ध कराना भी, कम महत्वका नहीं होता। बाजार मिलने के फलस्वरूप अमरिका में, उद्योग विकसित होते हैं। नौकरियां, नियुक्तियां, रोजगार बढ़ता है और बेकारी कम होती है। आज अमरिका में, ऐसी अर्थव्यवस्था को गतिमान करने की कड़ी आवश्यकता दिखाई देती है। ऐसी व्यवस्थाओं का आर्थिक परिणाम तुरंत दिखाई भी देता है। नौकरियां उपलब्ध होती है; जनता रोजगार पाती है; खरीददारी बढ़ती है।खरीददारी बढ़ने से उद्योग भी विकसित होते हैं; सारी अर्थव्यवस्था (Economy) गतिमान होती है।

(७) प्रश्न: इसी के इतिहास से उभरा हुआ चित्र दे सकते हैं?
जी, आपने पढ़ा होगा, या आपको स्मरण होगा जो निम्न इतिहास से व्यक्त होता है।

अमरिका द्वारा,
(१) फिलीपीन्स में मार्कोस का समर्थन,
(२) इरान के बादशाह पहलवी का समर्थन,
(३) सद्दाम हुसैन का प्रारंभिक समर्थन, जो आगे चलकर उलटा पड़ गया।
(४) उसी प्रकार पनामा में नॉरियेगा को भी प्रारंभिक समर्थन,
(५) और सारे पाकिस्तानी नेताओं का समर्थन।
वैसे पाकिस्तान तो, भारत के द्वेष से भी बिक जाता है।
कभी कभी ऐसा समर्थन प्रारंभ में लाभकारी पर बाद में उलटा भी पड़ जाता है।

संक्षेप में कुछ और ऐतिहासिक प्रमाण
दक्षिण अमरिका – नोरिएगा (पनामा) (१९८३-८९) को समर्थन।
इरान का राजा पहलवी (१९४१-७९) को समर्थन।
अयुब खान (१९५८-६९) को समर्थन।
फर्डिनण्ड मार्कोस (फिलिपिन) (१९६५-८६)को समर्थन।
ज़िया-उल-हक पाकिस्तान -(१९७८-८८)को समर्थन।
सद्दाम हुसैन, इराक-(१९८२-९०)को समर्थन।
सुहार्तो, इन्डोनेशिया (१९६७-९८) को समर्थन।
साउदी अरेबिया के शासक राजा साउद (१७४४-आज तक)समर्थन।
परवेज़ मुशर्रफ -पाकिस्तान (१९९८-२००८)को समर्थन।
होस्नी मुबारक, इजिप्त (१९८१-२०११)को समर्थन।
इतिहास में, इस से भी प्रायः सात-आठ गुना सूची है। सहायकों ने ढूंढ़ निकाली है।
२००२ का कोई भी न्यायालयीन प्रमाण मिले बिना प्रवादों के आधारपर एक मुख्य मंत्रीका विसा अटकाया गया। अमरिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। इसके विपरीत जघन्य अपराधों से जिनका चारित्र मलीन हुआ था, ऐसे अपराधियों को अमरिका ने समर्थन दिया हुआ है।
इस के विपरीत अमरिका मोदी को लुभाया नहीं जा सकेगा; यह जानकर अमरिका मोदी का विरोधी है। पर विवशता से ही उसे स्वीकार (?) करेगा। पर, विसा अटकाना, चुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य से था। आम आदमी पार्टी भी अंशतः अमरिका का मोहरा ही है/थी।
शायद अनजाने में?

6 COMMENTS

  1. भारत से बाहर वैते कुच्ह बुदिजीवि और कलाकार नरेन्द्र मोदि को प्रधान मन्त्रि के रूप मे नहि देख्ना
    चाहते है. . ऊन्का केह्ना है के नरेन्द्र मोदि लोक्तन्त्र के लिये खत्रा है ! भारत मे इन दिनो बुदिजीवि
    नरेन्द्र मोदि पर बते हुऐ है. आजकल भारत के बाजारो मे कही भी जाओ सब जगओ पर ब्रितैन, अमेरिका चाइना का बना हुआ माल ही. दिखाइ देता है. बअजार इन देशो के माल से भरे पदे है. अमेरिअ कि शायद हि कोइ पत्ररिका हो जो भारत मे ना मिलती हो. जब के भारत मे च्हप्ने वाली पत्रिकै भी भारत मे नही मिल्ती. देल्ही मे च्हप्ने वाली पत्रिकै भी नहि मिल्ती है. भारत के सब पदार्थे के लबेल पर जयादातर अन्ग्रेझि लिखि होती है. जैसा के भारत एक अन्ग्रेजि भाशा देश हो. जब भारत से अन्ग्रेज चले गये थे तो अन्ग्रजी को भि चले जाना चहिये था. किन्तू नेहरु की चाल्बाजी के कारन अन्ग्रेजी अभि भी भारत मे बनी हुयी है. आज्कल भारत के कइ घरओ मे
    केवल अन्ग्रेजी बोली जाती है. अमेरिका चाईनआ , और ईन्ग्लान्द् ब अन्य देशो को दर है के न्रेन्द्र मोदि के प्राधान मन्त्रि कि हालत मे भारत से एनग्रेजी का प्रभाब कम हो जायेगा और भारत मे उन्का माल का आयत भी बन्ध हो जाएगा
    मोदि एक रास्त्रभगत व्यक्ती है. श्री मधुसुदन्जी गु ज्राती होते भी हिन्दी मे लिक्ते है. बह एक
    भयिश्य द्रस्ता है . उनहे साधु वाद .
    ंमे अच्ही हिदी नही ्लिख पाया

  2. अमेरिका दिखाने के लिए नेपाल के मावोवादीयो को आतंकीयों की सूची में रखा है. लेकिन उनके नेता प्रचंड एवं बाबुराम को व्हाईट हाउस बुलाता है.जबकी उनकर हात १५००० नेपालेयो की हत्या एवं खून से रंगे है.

  3. आकलन का अपना तरीका है।डाक्टर मधुसूदक़्न जैसे शोध कर्ता के आकलन पर टिप्पणी करना भी आसान नहीं है,वह भी उस आदमी के लिये,जिसे यह भी मालूम नहीं कि इस विषय पर टिप्पणी करने की योग्यता भी उसमे है या नहीं। फिर भी दुस्साहस करने की गुस्ताखी करता हूँ ।
    सर्वप्रथम प्रश्न उठता है नमो को वीजा न दिये जाने के बारे में। यह सबको मालूम है कि अमेरिका में मानवाधिकार संगठन बहुत मजबूत है।वह अमेरिका के राष्ट्र पति को भी नहीं छोड़ता है। पूर्व राष्ट्रपति बुश इसके सबसे ताज़ा शिकार हैं। नमो का रिकार्ड मानवाधिकार के मामले में आज भी अच्छा नहीं है। २००२ को भूल भी जाया जाये तो भी नमो सरकार इस मामले में काफी फिस्सडी सिद्ध हुई है।प्रवक्ता के पृष्ठों पर सप्रमाण बहुत सी टिप्पणियाँ दी हुई हैं,जिसके उत्तर में अभी तक कुछ नहीं आया, ,तो इस मुद्दे के तहत अगर अमेरिका ने नमो को वीजा नहीं प्रदान किया ,तो इसमे ज्यादा चकित होने जैसा कुछ नहीं है।
    अब बात आती है उन देश नेताओं की ,जिनको अमेरिका की क्षत्र चाया उपलब्ध हुई। मेरे विचारानुसार वहां ऐसा कोई प्रबल नेतृत्व कभी नहीं रहा,जो स्वतन्त्र रूप से कुछ कर सके या जिनका मानवाधिकारों के विकास में कोई अच्छा योगदान हो।ऐसे भी उनमे ऐसा कोई देश नहीं है,जिसकी भारत से तुलना की जा सके।
    मगर हमे यह नहीं भूलना चाहिये कि अमेरिका वस्तुत व्यापारी है,अतः वह अपनी हानि लाभ को सर्वोपरी रखता है।अगर कोई सत्ताधारी जो अमेरिका की आर्थिक नीतियों पर चलता हो और जहाँ अमेरिका को आर्थिक लाभ की संभावना हो,वहां उसका मानवाधिकार की रक्षा करनेवाला पलड़ा थोड़ा हल्का हो जाता है,अगर इस संदर्भ में देखा जाये तो नमो अमेरिका के बहुत नजदीक दिखाई पड़ेंगे।
    नमो जिस तरह भारत के सैन्य बल को मजबूत करना चाहते हैं,अगर उसमे उन्होने स्वदेशी शोध को महत्व नहीं दिया और भारत अस्त्र शस्त्र के मामले में आत्म निर्भर नहीं हुआ ,तो अमेरिका के हथियारोंके सौदागरों के लिये इनसे अच्छा कोई भारतीय प्रमुख नहीं होगा।

  4. This is most revealing article and you have given details of many historical examples
    which are well documented and it proves beyond doubt that America is most canning and can do anything for its influence, greed for power and can destroy other countries or leaders of other nations by assassinations to dominate for its selfish purpose.
    America talks of democrasy but has fully supported the dictators of the world for its own interests without second thought.
    In Chile democratically elected government of DR. Allende was finished by American conspiracy and then Pinochet came to power who proved to be dictator and thousands of innocent were tortured and killed and he had American support.
    American saying ‘ TRUST NO ONE ‘.
    This must be read by all who are in politics and in power to be careful from American interests.

    • धन्यवाद बिपिन जी। कुछ लोगों के और भी प्रश्न अंग्रेज़ी में इ मैल से आये हैं। उसी पर अगला आलेख सोच रहा हूँ।
      कठिनाई उन पाठकों को है, जो हिन्दी पढते हैं, पर लिख नहीं पाते; तो( रोमन में)टिप्पणियों में लिखने में हिचकते हैं।
      ==>स्वस्थ रहिए-लिखते रहिए।
      मोदी जी के लिए, अच्छा परिणाम अपेक्षित है।
      वन्दे मातरम्‌।

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