वैश्विक नेताओं की सूची में नरेंद्र मोदी शीर्ष पर

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                संदर्भः 2023 की रेटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर शीर्ष स्थान पर

प्रमोद भार्गव

दुनिया में लोकप्रियता के मामले में प्रधानमंत्री नरेंउ्र मोदी ने दुनिया के दूसरे दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। इन पिछड़ने वाले नेताओं में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक बहुत पीछे हैं। बिजनेसा इंटेलीजेंस कंपनी और माॅर्निंग कंसल्र्ट के ताजा सर्वे में वैश्विक नेता अनुमोदन सूचकांक में नरेंद्र मोदी ने 22 देशों के शीर्ष नेताओं को पीछे छोड़कर वैश्विक प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच गए हैं। पहले पायदान पर पहुंचे मोदी ने 78 प्रतिशत समर्थन के साथ शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। इस सूची में मोदी के बाद मैक्सिको के राष्ट्रपति लोपेज ओब्रेडोर है। जिन्हें 68 प्रतिशत रेटिंग मिली है। तीसरे स्थान पर आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज है। जो बाइडेन को 40 प्रतिशत रेटिंग के साथ छठवां स्थान मिला है। ब्रिटेन में चुनावों के दौरान सुर्खियों में रहने वाले ऋषि सुनक 30 प्रतिशत रेटिंग्स के साथ 16वें स्थान पर है। मोदी की लोकप्रियता उन मुस्लिम देशों में बढ़ी है, जिन्हें समझा जा रहा था कि कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद ये देश मोदी के खिलाफ हो जाएंगे। यही नहीं भूख और मंहगाई से तबाह पाकिस्तानी आवाम अब कश्मीर का राग अलापने की बजाय अपने नेताओं से यह सवाल पूछ रही है कि कश्मीर के नाम पर लड़ी गई जंगों में गरीबी, भुखमरी और पिछड़ेपन के अलावा क्या मिला ? इधर कश्मीर में तिरंगा लहराने के साथ नया नारा लगाया जा रहा है ‘आर-पार खोल दो, कारग्लि को जोड़ दो‘। यानी मोदी की लोकप्रियता का परचम चहुंओर है। जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलने से इसे चार चांद लगे हैं।

एक के बाद एक एशियाई व पश्चिमी देशों की यात्राओं में मिली अप्रत्याषित सफलताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वैश्विक नेता के रुप में उभारकर प्रतिष्ठित कर दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में ज्यादातर अप्रूवल रेटिंग एजेंसी के सर्वे में मोदी की हैसियत बढ़ी है। कोरोना महामारी के कारण कई देशों और उनके नागरिकों की आर्थिक स्थिति बद्हाल हुई है। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला समृद्ध देश अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहा। महामारी के चलते बड़े पैमाने पर लोगों ने रोजगार गंवाया और इसका असर यह हुआ कि अमेरिका में भूख की समस्या भयावह हो गई। अमेरिका की सबसे बड़ी भूख राहत संस्था ‘फीडिंग अमेरिका’ की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर-2021 के अंत में पांच करोड़ से ज्यादा लोग खाद्य संकट से जूझ रहे थे। यानी अमेरिका का प्रत्येक छठा व्यक्ति भूखा था। यही नहीं बालकों के मामले में स्थिति का और भी बुरा हाल था, प्रत्येक चैथा बच्चा भूखा रहने को मजबूर हुआ। फीडिंग अमेरिका नेटवर्क ने एक महीने में 54.8 करोड़ आहार के पैकेट बांटे, जिन्हें प्राप्त करने के लिए अमेरिका के उटा में कारों में बैठकर लोग लंबी कतारों में लगे रहे। अमेरिका से आया यह दृष्य अविषवनीय जरूर लगता है, लेकिन हकीकत है। इधर भारत में अनाज का उत्पादन और भंडारण इतना बढ़ता जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2011-22 में खाद्य मंत्रालय को विदेश मंत्रालय से आग्रह करना पड़ा था कि दुनिया के कुछ ऐसे गरीब देश तलाषों, जिन्हें यह अनाज मुफ्त में बतौर मदद दिया जा सके, वरना इसे फेंकना पड़ेगा। इसीलिए जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय मूल्यांकन संस्था डालबर्ग को एक अध्ययन के आधार पर कहना पड़ा था कि 97 प्रतिशत भारतीय मानते हैं कि चंद कमियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार मंें भरोसा है। इसी भरोसे ने देश को विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यस्था के पायदान पर खड़ा कर दिया है।

                कोरोना से जब दुनिया में हाहाकार मची हुई थी, तब नरेंद्र मोदी एकाग्रचित्त से भारत ही नहीं दुनिया का कोरोना से मुक्ति के लिए संघर्षरत थे। कोविड-19 की पहली लहर में जब दुनिया उपचार के लिए दवा तय नहीं कर पा रही थी, तब भारत ने हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन गोलियां अमेरिका समेत पूरी दुनिया को उपलब्ध कराईं। नतीजतन दुनिया में मोदी की लोकप्रियता में अप्रत्याषित वृद्धि हुई। इस कालखंड़ में अमेरिका की एजेंसी माॅर्निंग कंसल्ट ने एक सर्वे किया। इस सर्वे में साफ हुआ कि मोदी की लोकप्रियता निरंतर न केवल बनी हुई है, बल्कि बढ़ी भी है। सर्वे में मोदी की प्रसिद्धी की दर 55 प्रतिशत रही। इसे सभी प्रमुख वैश्विक नेताओं में सबसे अधिक अंक मिले। रेटिंग एजेंसी फिच व एसबीआई ने कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक बंद रहने के बावजूद माना की देश के आर्थिक हालात बेहतर हो रहे हैं। बिगड़ी आर्थिक व्यवस्था की चाल को सुधारने के लिए सरकार के स्तर पर अनेक प्रयास हो रहे हैं। नतीजतन आर्थिक समृद्धि भविष्य में बनी रहना  तय है। फिच ने माना की सरकार ने श्रम और कृषि में जो कानूनी सुधार किए हैं। उससे बिचैलिए खत्म होंगे और देश खुशहाल होगा।

2014 में जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी, तब भारत की अर्थव्यवस्था बदहाल थी। महंगाई आसमान पर थी और दूरसंचार, कोयला, राष्ट्रमंडल खेल एवं आदर्ष सोसायटी के घोटालों के उजागर होने से देश शर्मसार था। विदेशी पूंजी निवेश थम गया था। किंतु धीरे-धीरे संस्थागत सुधारों पर बल देते हुए सरकार ने बद्तर हालातों को पूरी तरह नियंत्रण में ले लिया है। यही वजह है कि पिछले तीन साल में 151 अरब डाॅलर का पूंजी निवेश भारत में हुआ है। बीते वित्तीय वर्ष में यह उछाल 36 प्रतिशत रहा है। कर कानूनों में सुधार की दृष्टि से जीएसटी विधेयक पारित कराना क्रांतिकारी पहल रही। धन का लेन-देन पारदर्षी हो, इस नजरिए से डिजिटल आर्थिकी को बढ़ावा देने के लिए नोटबंदी करना साहसिक पहल थी। जनधन और उज्ज्वला जैसी योजनाओं पर तकनीकि अमल से गरीब को वास्तव में लाभ मिला है। नए कानून लाकर जमीन जायदाद के व्यापार और एनपीए पर जिस तरह से शिकंजा कसा है, उससे लगता है, भविष्य में अब रियल स्टेट कारोबार में हेराफेरी और बैंकों से कर्ज लेकर विजय माल्या, नीरव मोदी एवं मेहुल चोकसी की तरह चंपत हो जाने वाले कारोबारियों की मुशकें कसेंगी। इन उपायों से ऐसा लगता है कि देश का ढ़ांचागत कायांतरण हो रहा है। युवाओं को नए रोजगार सृजित करने की दृष्टि से स्टार्टअप और स्टेंडअप जैसी योजनाएं भी लागू की गईं। गोया, भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिलना और देश को रेटिंग एजेंसियों द्वारा सम्मानजनक स्थान देना, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के बिना संभव नहीं है। इस हेतु नरेंद्र मोदी ने एक के बाद एक बिना रुके, बिना थके एशियाई व पश्चिमी देशों की सैंकड़ों यात्राएं कीं। इन यात्राओं में मिली अप्रत्याषित सफलताओं ने प्रधानमंत्री को वैश्विक नेता के रूप में उभार दिया है। द्विपक्षीय रिश्तों में उन्होंने नए प्राण डाले। इन सभी यात्राओं की खास बात यह रही कि हिंदी में भाषण देने के बावजूद राष्ट्रीय ही नहीं, अंतराष्ट्रीय मीडिया में भी मोदी का जादू सिर चढ़कर बोलता रहा है। पिछले कुछ दशकों में ऐसा माहौल भारतीय प्रधानमंत्री तो क्या अन्य किसी देश के मुखिया के विदेशी दौरों में दिखाई नहीं दिया। उनके इस जादू के असर का प्रमुख कारण स्पष्टवादिता, दृढ़ता और वैश्विक आतंकवाद को खत्म करने का कठोर संदेश रहा। मोदी के इसी आचरण के कारण ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरेन उनके प्रशंषकों की सूची में षामिल हो गए हैं। अपने पक्ष में मिले इस विश्वव्यापी समर्थन को देखते हुए ही, मोदी ने फिजी में कहा भी था कि ‘भारत विश्व गुरु की भूमिका निभाएगा और अपनी ज्ञानशक्ति से विश्व का नेतृत्व करेगा।’ दरअसल भविष्य का राजनीतिक नेतृत्व ज्ञान आधारित नेतृत्व पर ही टिका होगा, यह संभावना अमेरिका और ब्रिटेन भी जता चुके हैं।

                राष्ट्राध्यक्षों की विदेश यात्राओं के दौरान यह घटना विलक्षण ही होती है कि कोई मेजबान देश अतिथि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को अपने देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था संसद में बोलने का अवसर दे ? लेकिन मोदी ने नेपाल, भूटान और फिजी की संसदों को तो संबोधित किया ही, विकसित देश आस्ट्रेलिया की संसद को संबोधित करने का मौका मिला है। इस तरह किसी पश्चिमी देश की संसद को संबोधित करने वाले मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। मोदी की चतुरता प्रवासी भारतीयों को लुभाने में भी पेष आती रही है। इससे पहले देश का कोई प्रधानमंत्री अपने ही रक्त संबंधियों की भावनाओं को इस तरह सम्मोहित नहीं कर पाया ? आस्ट्रेलिया में 28 साल बाद तो फिजी में 33 साल बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री अपने रक्त-संबंधियों से दुख-दर्द बांटने पहुंचा था। मोदी के पहले राजीव गांधी और इसके पहले इंदिरा गांधी फिजी गए थे। फिजी में 40 प्रतिशत भारतीय मूल के लोगों की आबादी है। इनमें से ज्यादातर ब्रिटिष शासनकाल 1879 से 1916 के बीच गिरमिटिया मजदूरों के रुप में ले जाए गए थे। फिजी की 83 फीसदी अर्थव्यवस्था वन संपदा, मछली और पर्यटन उद्योग पर टिकी है। लेकिन विडंबना है कि इस उद्योग के बड़े भाग पर वर्चस्व महज दो फीसदी गोरी आबादी का है। बावजूद फिजी की राजनीति में भारतवंषियों का दबदबा कायम है। 1997 में फिजी में जब लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ तो उसके प्रधानमंत्री भारतवंषी महेंन्द्र सिंह चौधरी बने। फिजी में भारतीयों की अब राजनीति के साथ-साथ आर्थिक हैसियत भी बढ़ रही है। इसीलिए मोदी को फिजी की संसद को संबोधित करने का अवसर मिला था। फिजी भारत के निकटता अपनी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत और हिंदी के कारण है। वहां हिंदी खूब पढ़ी व बोली जाती है। फिजी विश्व हिंदी सम्मेलन भी आयोजित कर चुका है। इंदिरा गांधी ने भी फिजीवासियों के इस मर्म को समझा था। इस कारण वे भी फिजी गई थीं और उन्होंने द्विपक्षीय वार्ता में फिजी को महत्व दिया था। मोदी ने फिजी सरकार से कृषि व दुग्ध उद्योग के क्षेत्र में बढ़ावे का करार किया था। फिजी को डिजीटल क्षेत्र में भारत मदद कर रहा है। प्रवासी भारतीय हर साल अपने नाते-रिष्तेदारों को 70 अरब डाॅलर भारत भेजते हैं। मोदी की निगाहें प्रवासी भारतीयों के इस निवेष को और बढ़ाने पर भी टिकी रही हैं। इसलिए प्रवासी भारतीय निरंतर भारत में निवेष कर रहे हैं। चूंकि ज्यादातर प्रवासी भारतीय गरीबी की हालत में अपने साथ धरोहर के रूप में गीता और रामायण साथ ले गए थे। मोदी ने इसी सांस्कृतिक विरासत को लेकर दुनिया के देशों की अनेक यात्राएं कीं, इसलिए दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं। दूसरी तरफ वैश्विक आतंकवाद की खिलाफत और मोदी द्वारा सैंकड़ों देशों से नए धरातल पर बनाए द्विपक्षीय संबंधों ने मोदी की लोकप्रियता तो बढ़ाई ही, उन्हें वैश्विक नेता के रुप में स्थापित करने का काम भी किया है।

प्रमोद भार्गव

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