प्रो. मनोज कुमार
गाँधी के भारत को देखना हो या आज के मोदी के भारत को तो एक साम्य दोनों में मिलेगा वह है आत्मनिर्भरता. गाँधीजी ने हमेशा आत्मनिर्भर समाज और देश की कल्पना की है. गाँधीजी की आत्मनिर्भरता का अर्थ स्वदेशी हो जाना है. भारत की बुनियाद में स्वदेशी के रास्ते आत्मनिर्भरता परिभाषित है. यह तय है कि गाँधी जी ने जिस स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की चर्चा की थी और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए जो स्वप्र देखा था आज 75 साल के नरेन्द्र मोदी भी उसी गाँधी मार्ग पर चलते दिख रहे हैं. यह बात सच है कि 1947 के पहले का भारत और आज 2025 का भारत बदल चुका है. स्वदेशी तब भी जरूरत था और आत्मनिर्भरता का मार्ग वही था जिस पर चलने का आग्रह नित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं. थोड़ा पीछे पलटकर देखें तो आपको ज्ञात होगा कि गाँधीजी ने उद्योगों का विरोध नहीं किया. वे मशीनीकरण के विरोधी थे आज मोदी के समय में वही आदर्श, वही गाँधी मार्ग का अनुसरण होते हुए देख सकते हैं. जीवन के 75 वसंत देख चुके मोदी की विचारसम्मति अलग हो सकती है लेकिन भारत की माटी में गढ़े गए आदर्श से भला कोई कैसे विरक्त हो सकता है. समय के साथ बदलाव जरूरी है तो उन आदर्शों का अनुगमन भी करना उतना ही जरूरी है, यह आप पन्ने पलट कर देखेंगे तो सहज समझ जाएंगे.
बदलते भारत में बहुत सारी चीजें समय के साथ सिमटती, मिटती जा रही हैं तो कुछ नए स्वरूप के साथ और भी प्रासंगिक हो गई हैं. खादी जो कभी स्वाधीन भारत की प्रतीक और अस्मिता का चिंह था, उससे लोग धीरे धीरे दूर हो रहे थे. और इसी के साथ बुनकर उद्योग पर संकट गहराता जा रहा था. प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी ने संकट को समझा और खादी में क्रांति आ गई. डूबता-सिमटता खादी उद्योग बूम कर गया. मोदीजी ने इसे युवा से जोड़ दिया. खादी वस्त्रों की फैशन परेड होने लगी. युवाओं का खादी के प्रति क्रेज बढ़ गया और एक डूबता स्वदेशी उद्योग को ना केवल धडक़न मिली बल्कि वह चौगुनी रफ्तार से आगे बढऩे लगा. खादी और स्वदेशी का यह नया रिश्ते की बात हम नहीं बाजार कह रहा है. वो बिक्री के आंकड़ें कह रहे हैं कि खादी की गमक लौट आयी है. क्या आप इस बात से इंकार कर सकते हैं.
गाँधी जी मशीनों का प्रयोग करने के विरोधी नहीं थे। वे हमेशा से इस बात की पैरवी करते रहे हैं कि बोझ और परिश्रम को कम करने वाले यंत्रों की स्थापना की जाए. वे इस बात का प्रतिकार करते रहे हैं कि मानव उपयोगी श्रम को मशीनों के पास जाने दें. वह ऐसे उद्योग धन्धे स्थापित करने के पक्ष में थे, जिसमें काम करने के इक्षुक लोगों को न सिर्फ जीवन निर्वाह के लिए वेतन मिले अपितु स्वाभिमान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार मिले. उन्होंने गाँवों को भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल समस्या मानते हुए उन्होंने लिखा-हमारी समस्या अपने देश के करोड़ों लोगों के लिए खाली समय निकालने की नहीं है, समस्या यह है कि उनके बेकारी के समय का कैसे उपयोग किया जाए जो कि वर्ष में 6 महीने के कार्यकारी दिनों के बराबर होता है. यंत्रों का सही प्रयोग यह है, कि वह मानव श्रम में मदद करें और उसे सरल बनाएं. गाँधी का लक्ष्य ग्राम उन्मुख आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना था क्योंकि भारत गाँवों में बसता है. वर्तमान समय में फिर से पन्ने पलटने की जरूरत इसलिए है कि वर्तमान समय की जरूरत के अनुरूप नरेन्द्र मोदी भी गाँधी के बताये मार्ग पर चल रहे हैं. गाँव को शहर पर लंबित होने के बजाय शहरों को गाँव पर लंबित रहने की जुगत लगाने वाली नवीन योजनाओं के माध्यम से जोड़ रहे हैं. यह नया और युवा भारत है जिनके पास मौजूद कौशल को खुला और बड़ा आसमान दे रहे हैं. स्वदेशी से स्वच्छता का रास्ता गाँधी मार्ग का है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस रास्ते के राहगीर हैं. आज स्वच्छता का जो मानक हिन्दुस्तान ने गढ़ा है, वह कभी आजाद भारत के लिए स्वप्र सा था. स्वच्छता का स्वप्र गाँधीजी ने भी देखा था और वे बार-बार कहते थे कि स्वच्छता का भार हर भारतीय को उठाना होगा. सन 47 के पहले देखा गया यह स्वप्र आज हर घर में सच हो रहा है. प्रधानमंत्री होने के नाते मोदीजी ने देश को एक सपना दिया और वह सपना हकीकत में बदलने लगा. यह कहना भी ठीक नहीं होगा कि इस महादेश में सबकुछ सौफीसद हो गया है लेकिन शून्य से शिखर की ओर पहुँचने की शुरूआत हो चुकी है. नौनिहाल अब सडक़ोंं पर कचरा फेंकने नहीं देते हैं. यही भाव स्वदेशी है जो हमें आत्मनिर्भरता की ओर ले जाता है.
गाँधीजी का स्वप्र था कि हर भारतीय का कौशल निखारा जाए. इसे भी वे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के चश्मे से देखने का प्रयास किया. यहाँ भी आपको नरेन्द्र मोदी गाँधीमार्ग पर आगे बढ़ते दिखेंगे. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कौशल उन्नयन के साथ जोडक़र एक नवीन भारतीय शिक्षा पद्धति को आगे बढ़ाया है. हालांकि अभी इसके समूचे क्रियान्वयन में कुछ बाधा है लेकिन जब नीयत हो तो नियति बदल जाती है. सबसे खास बात यह है कि गाँधीजी अपने पूरे जीवनकाल मातृभाषा में शिक्षा की पैरवी करते रहे हैं और इस 2025 में गाँधीजी का स्वप्र जमीन पर उतर चुका है. शिक्षा को डिग्री बनाने की किसी काल में मैकाले ने साजिश की थी, वह निरंतरता पाता रहा लेकिन मोदी ने इस साजिश को दरकिनार कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति को रोजगार से नहीं, कौशल से, मातृभाषा से जोडक़र भारतीय शिक्षा पद्धति में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर समाज को नयी दिशा दी है. ये थोड़ी सी बातें हैं बदलते भारत की. अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों का उल्लेख किया जा सकता है लेकिन यहां जरूरी नहीं.
75 साल के मोदी से हिन्दुस्तान की अपेक्षा बड़ी है और यह स्वाभाविक भी है. विकास के मॉडल से असहमति हो सकती है. एक महादेश के समक्ष चुनौतियां बड़ी हैं और उन्हें सुलझाने में समय चाहिए होता है. 2047 का भारत मोदी का नहीं, डेढ़ सौ करोड़ भारतीय का सपना है. हिन्दुस्तान क्या अकेले मोदी का है? क्या विकास और विश्वास का रास्ता अकेले मोदी का कांधा मांगते हैं? नहीं, हिन्दुस्तान हम सबका है और हम सबकी बराबरी की जिम्मेदारी है कि हम इस सुदीर्घ अनुभवी नेता का साथ दें. वे अपने जन्मदिन पर कोई उपहार मांगेंगे तो उन्हें बहुमूल्य वस्तु नहीं, हरेेक भारतीय का साथ चाहिए. विश्वास चाहिए. उनके इस जन्मदिन पर उन्हें हौसला दीजिए क्योंकि आपका यह हौसला मोदी का नहीं, भारत का है. हम सबका है.