कविता साहित्‍य

नवरात्र पर विशेष कविता : स्‍त्री

नवरात्र का महापर्व चल रहा है. देवी की आराधना हो रही है. स्त्री भी देवी का ही एक रूप है. समाज में तरह-तरह के लोग है. किसी लम्पट आदमी ने औरत को जला दिया, या बलात्कार कर लिया तो इससे औरत का महत्त्व कम नहीं हो जाता. उथली मानसिकता से ग्रस्त लोगो द्वारा अकसर व्यंग्य में यह कह दिया जाता है कि लोग औरत को देवी कहते है और उसके साथ बुरा आचरण भी करते है.लेकिन माफ़ करें, ऐसा कुछ लोग ही करते है. अधिकांश लोग स्त्री के प्रति आदर भावः ही रखते है. मै बुरी घटनाओ के निकष पर औरत की अस्मिता को रख कर नहीं देखता. औरत के अनेक रूप है. अपने हर रूप में औरत सफल रहती है. पुरुषों के मुकाबले में उसका समर्पण बड़ा है, इसीलिए वह पूजी जाती है. नवरात्र इसका बहुत बड़ा प्रमाण है. अब इसके बावजूद औरत के साथ कही कुछ बुरा घटित होता है तो औरत की क्या गलती? अपराध तो उस आदिम-प्रवृत्ति का ही है जो कभी-कभी माँ, बहन जैसे पवित्र रिश्ते तक को कलंकित कर देता है. फूल ईश्वर पर चढ़ता है, वेश्या के कोठे पर भी बिखरता है, प्रेयसी के जूडे में भी सजता है, और किसी निर्मम हाथो द्वारा मसल भी दिया जाता है. दोष फूल का नहीं मसलने वाले का है. सजा उसे मिले, स्त्री को नहीं. यह भी ध्यान रखा जाये कि पूरी की पूरी मानसिकता मसलने वाली नहीं है. इसलिए इधर के स्त्री-लेखन में आक्रोश ऐसी ही प्रवृत्ति पर उतरना चाहिए, न कि समूची पुरुष जाति पर. इधर के स्त्री-लेखन को इस तरफ विचार करना चाहिए.

दिव्य है महान है स्त्री . ..

शक्ति का संधान है स्त्री

ईश का वरदान है स्त्री

खुशबुओ से जो महकती है

एक वह उद्यान है स्त्री

देवता जिसकी शरण में है

धरा पे भगवान है स्त्री

मत नज़र डालो बुरी इस पे

हम सभी की शान है स्त्री

है तुम्हारी माँ, बहन, बेटी

उनके जैसी आन है स्त्री

फूल को मसलो नहीं पूजो

सृष्टि का अवदान है स्त्री

वासना जिनकी रही पूजा

उनके लिए सामान है स्त्री

गाय, गंगा और धरती माँ

दिव्य है, महान है स्त्री

-गिरीश पंकज