नेपाल-क्रांति, पहली महिला पीएम के समक्ष बड़ी चुनौतियाँ

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विजय सहगल  

नेपाल की ओली सरकार द्वारा अपने देश में सोशल मीडिया पर लगाए प्रतिबंध के फलस्वरूप, 8 सितंबर 2025 को नेपाल के युवाओं मे उपजी क्रोधाग्नि से  नेपाल की संसद, सुप्रीम कोर्ट और अन्य अनेक सरकारी कार्यालयों और सरकार के प्रधान मंत्री सहित अन्य मंत्रियों के निजी निवास, व्यापारिक प्रतिष्ठान और अन्य अनेक संस्थान जल उठे। उनकी राह में आने वाली हर वो चीज आग की लपटों मे घिर गयी, फिर वो चाहें संसद मे रक्खे पेपर, दस्तावेज़ हों या फिर  फर्नीचर, वाहन या दिखावटी सामान। आंदोलनकारी संसद से टेबल और कुर्सी तक लूट कर ले गये। आंदोलित युवाओं ने इसे जेन-ज़ी (ऐसी नेतृत्वकारी जेनरेशन, जिसका जन्म 1995 और 2010 के बीच हुआ हो) की क्रांति बतलाया। नेपाल की राजधानी काठमांडू सहित नेपाल के अनेक शहरों जैसे पोखरा, विराटनगर, धरान, दमक  के आक्रोशित  नौजवानों के  इस  स्वस्फूर्त आंदोलन ने पूरे नेपाल मे अराजकता, अव्यवस्था और अस्तव्यतस्ता की स्थिति उत्पन्न कर दी।

 ये ऐसे आंदोलनकारी युवा थे जो  इंटरनेट के युग मे पले बढ़े थे और जिन्होने सोशल मीडिया से ही अपनी शिक्षा, पहचान, कारोबार और सामाजिक रिश्ते बनाये। आंदोलन के दौरान, हिंसा और आगजनी के शुरुआती दौर मे पुलिस बलों के लाठी और अश्रु गैस के बलप्रयोग से आंदोलन विस्तृत और  व्यापक हो उठा। सेना की तैनाती के साथ कर्फ़्यू लगाना पड़ा। प्रदर्शनकारियों के  हिंसक विरोध और अनियंत्रित भीड़ के चलते, देखते ही देखते गोली मारने के आदेश दिये गये। इस अप्रिय स्थिति मे 19 लोगों की मौत और तीन सौ से ज्यादा लोगों के घायल होने  ने, आग मे घी का काम किया। 

सूचना मंत्रालय में पंजीकरण न करवाने की बजह से 3 सितम्बर को नेपाल सरकार द्वारा  सोशल मीडिया के मंच फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, युट्यूब, एक्स, और व्हाट्सप्प जैसे 26 सोशल मीडिया ऐप्प्स पर प्रतिबंध के चलते युवाओं की पढ़ाई-लिखाई और अन्य सूचना संचार के अभाव मे संवाद हीनता की स्थिति पैदा हो गयी, जिसने  युवाओं को  क्रोध, रोष और गुस्से से भर दिया। हॉस्पिटल मे पहुंचे हताहतों को देखकर डॉक्टर्स और अन्य नर्सिंग स्टाफ भी सकते मे आ गये जब उन्होने देखा कि मृत आंदोलनकारी युवाओं के सीने और सिर मे गोलियां लगी हैं। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की हठधर्मिता ने, नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य गणमान्य, प्रभावशाली लोगों का सरकार को  संयम बरतने के आग्रह को  भी अनसुना कर दिया गया। सरकार और नौकरशाही मे व्याप्त भ्रष्टाचार का आलम ये था कि सरकार के मंत्रियों और उनके  परिवार जनों तथा रिशतेदारों  द्वारा विलासता पूर्ण जीवन शैली की घटनाओं ने, बेरोजगारी, मेहंगाई और कदम कदम पर भ्रष्टाचार से जूझ रहे नेपाल के युवाओं और आम नागरिकों को उद्वेलित और उत्तेजित कर दिया।

नेपाल लंबे वक्त से राजनैतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भाई-भतीजा वाद जैसे नाजुक हालातों से गुजर रहा है। दुर्भाग्य देखिये कि 2008 मे इन्ही मुद्दों पर नेपाल की राजशाही को हटा कर लोकतान्त्रिक व्यवस्था को स्थापित किया था लेकिन सत्रह साल के लंबे काल खंड के बावजूद स्थितियाँ और परिस्थितियाँ जस के तस रहीं। नेपाल के भोले भाले  लोगों की विडंबना पर दृष्टिपात करें तो   उनकी  आकांक्षा और अभिलाषाए आज भी मृग मरीचिका के समान उन से कोसों दूर प्रतीत होती हैं।  वे आज तक राजशाही और लोकशाही के भ्रष्टाचार रूपी  दो  पाटों के बीच पिस  रहे हैं अन्यथा क्या कारण थे कि 17 वर्षों  के लोकतान्त्रिक व्यवस्था मे  14 सरकारें नेपाल की जन भावनाओं पर खरी नहीं उतरी।      

आंदोलन कारी युवाओं की मांग है कि नेपाल सरकार द्वारा सभी प्रतिबंधित सोशल मीडिया मंचों से प्रतिबंध हटाये। भ्रष्टाचार के विरुद्ध समुचित कार्यवाही हो। युवाओं की आवाज सुनी जाएँ। लोकतन्त्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी बहाल हो। युवाओं की मांग है कि बेहतर शिक्षा, रोजगार और सरकार मे पारदर्शिता हो जबकि सरकार का कहना था कि ये सोशल मीडिया बिना अनुमति चल रहे हैं, फर्जी खातों के कारण अपराध बढ़ने और कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न और राष्ट्रीय सम्मान, सुरक्षा और समाज मे शांति, सौहार्द खतरे मे है।  नेपाल के गृह मंत्री ने तो 8 सितम्बर को ही इस्तीफा दे दिया था। 9 सितम्बर को भी जारी रहे हिंसक प्रदर्शन के बीच मे आंदोलनकारी युवाओं की सोशल मीडिया से प्रतिबंध हटाने की मांग को मानने के बावजूद  प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली सरकार के स्तीफ़े की मांग पर प्रदर्शनकारी डटे रहे। नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, प्रधानमंत्री ओली  और सेना की शांति और संयम बरतने की अपील का भी आंदोलनकारियों पर कोई असर नहीं हुआ। जब अनियंत्रित भीड़ प्रधानमंत्री के स्तीफ़े की मांग को लेकर उनके कार्यालय मे घुसी, तो हारकर प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री ओली,  सौभाग्यशाली रहे कि सेना उन्हे बमुश्किल बचा कर हेलीकाप्टर से सुरक्षित स्थान पर ले गयी लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री, शेर बहादुर देऊबा को लहूलुहान कर मारपीट की तस्वीरे विचलित करने वाली थी। उन्मत्त भीड़ द्वारा वित्तमंत्री विष्णु पौडेल  को सड़क पर दौड़ा दौड़ा कर पीटने के दृश्य खीझ पैदा कर रहे थे लेकिन एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री खाला नाथ खनल की पत्नी श्रीमती राज्यलक्ष्मी चित्रकार की  उनके घर मे आगजनी से हुई मृत्यु दिल दहलाने वाली थी। सुरक्षा की दृष्टि को देखते हुए, हिंसक आंदोलन के दौरान नेपाल की राजधानी काठमांडू से आने व जाने वाली सभी  हवाई उड़ाने रद्द कर दी गयी। मंगलवार को ही आंदोलनकारियों ने नेपाल कॉंग्रेस के दफ्तर और अन्य वामपंथी दलों के कार्यालयों मे भी आग लगा दी। कोटेश्वर मे तीन पुलिस अधिकारियों की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गयी।

जेन-ज़ी आंदोलन की पृष्ठभूमि शांतिपूर्ण प्रदर्शन की थी. यही कारण था कि पहले दिन सारे आंदोलनकारी अपनी स्कूल ड्रेस मे थे एवं अपने स्कूल बैग और किताबों के साथ आये थे।  आंदोलन शांतिपूर्ण था पर अचानक हिंसक बारदातें शुरू हुई और पुलिस के हथियारों की लूट, जेल से खूंखार कैदियों का भागना, व्यापारिक संस्थानों मे लूटपाट और विश्वप्रसिद्ध पशुपति नाथ मंदिर मे तोड़ फोड़ के प्रयास इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आंदोलन मे कुछ विध्वंसकारी और असामाजिक तत्वों की घुसपैठ से इंकार नहीं किया जा सकता।        

नेपाल मे हुई हिंसक क्रांति और सत्ता परिवर्तन पर, यहाँ भारत मे, इंडि गठबंधन के कुछ नेता यहाँ  भी इसी तरह के आंदोलन से मोदी सरकार को सत्ताच्युत कर सत्ता पाने के हसीन सपने देखने लगे जिसमे कॉंग्रेस के छुटभैये नेताओं और  शिवसेना उद्धव गुट के संजय राऊत सबसे आगे थे। इन नेताओं ने पिछले दिनों,  श्रीलंका, बांग्लादेश मे हुए सत्ता परिवर्तन के समय भी ऐसे ही उद्गार व्यक्त किए थे. शायद उनको इस भारतीय लोकोक्ति की जानकारी नही रही, कि “कौआ के कोसे ढ़ोर नहीं मरते”!! नेपाल मे भड़की हिंसा और अशांति के बीच भारत लगातार नेपाल के घटनाक्रम पर अपनी पैनी निगाह बनाए हुए है। भारत सरकार ने भी नेपाल के लोगों से शांति और सद्भाव से समाधान निकालने की अपील की है। इसी बीच भारत-नेपाल सीमा पर अलर्ट जारी किया है और सीमा सुरक्षा बलों द्वारा  लगातार चौकसी बरती जा रही है।   

नेपाल के युवाओं के दो दिन के आंदोलन से ही, प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के इस्तीफे से हुए  रिक्त स्थान की भरपाई हेतु सेना प्रमुख की अगुआई मे चली चर्चा मे जेन-ज़ी के नेतृत्व मे ही आपस मे फूट पड़ गयी और वे परस्पर ही लड़ाई झगड़े करने लगे। रैपर से काठमांडू के मेयर बने बालेन्द्र शाह, नेपाल सुप्रीम कोर्ट की पूर्व प्रधान  न्यायाधीश सुशीला कार्की और लाइट मेन के नाम से मशहूर कुलमान घीसिंग के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए कड़ा मुक़ाबला हुआ और अंततः लंबी जद्दो-जेहद और विचार विमर्श के बाद, सर्वसम्मति से सुशीला कार्की  के नाम पर आम  सहमति बनी। 12 सितम्बर को शपथ ग्रहण के पश्चात उन्होने नेपाल मे छह माह के अंदर नई सरकार के लिये चुनाव करवाने की घोषणा की। दो दिन मे पूरे देश मे संसद, सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य सरकारी कार्यालयों मे हुई आगजनी और लूटपाट के बाद पूरे नेपाल मे युवाओं और नौजवानों की आकांक्षाओं और अभिलाषाओं को पूरा करते हुए नेपाल मे  शांति कायम कर देश की कानून व्यवस्था को  सामान्य बनाना, नई प्रधानमंत्री सुशीला कार्की के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। समय की कसौटी पर वे कितनी कामयाब होंगी, ये आने वाला समय ही बताएगा। 

विजय सहगल  

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