शांघाई में नए आयाम

डॉ. वैदिक
शांघाई सहयोग संगठन की यह बैठक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण थी कि पिछले 17 साल में भारत और पाकिस्तान, इसके दो पूर्ण सदस्य बने। चीन के चिंगदाओ नगर में संपन्न होनेवाली इस बैठक में भारत के प्रधानमंत्री ने पहली बार भाग लिया। भारत इसके पहले भी इसकी बैठकों में जाता रहा है लेकिन सिर्फ एक पर्यवेक्षक की तौर पर ! पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन से मोदी ने हाथ मिलाया लेकिन उनसे अलग से बात नहीं हुई। यह अच्छा हुआ कि वहां भारत और पाकिस्तान के बीच तू-तू–मैं-मैं नहीं हुई लेकिन मोदी ने अपने भाषण में अफगानिस्तान के हवाले से आतंकवाद का जमकर जिक्र किया। इस अंतरराष्ट्रीय बैठक मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना भाषण हिंदी में देकर बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है। इसके अलावा उन्होंने घुमा फिराकर चीन के रेशम महापथ (ओबोर) योजना का भी विरोध किया। उन्होंने सभी पड़ौसी देशों में यातायात और आवागमन की सुविधा बढ़ाने का स्वागत किया लेकिन उन्होंने कहा कि इससे उन राष्ट्रों की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए अर्थात पाक-अधिकृत कश्मीर में सड़क बनाकर चीन भारत की संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है। मोदी ने यह बात दबी जुबान से कही। यह अच्छा हुआ कि संयुक्त घोषणा में ‘ओबोर’ के समर्थकों में भारत का नाम नहीं गिनाया गया। मोदी ने कल चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग के अलावा एसीओ के अन्य छह राष्ट्रों के नेताओं से भी भेंट की। इस तरह के बहुराष्ट्रीय सम्मेलनों का फायदा यही है कि इनमें एक साथ कई राष्ट्रों से एक-दो दिन में ही द्विपक्षीय बातचीत हो जाती है। चीन के साथ ब्रह्मपुत्र नदी के जल-प्रवाह संबंधी सभी जानकारियों देने का समझौता हो गया। इस तरह की जानकारियां चीन ने दोकलाम-विवाद के बाद बंद कर दी थीं। अब उत्तर पूर्व  में जल की कमी या बाढ़ आदि की समस्या पर नियंत्रण रखने में भारत को आसानी होगी। दूसरे समझौते के अनुसार बासमती चावल के अलावा सादा चावल भी भारत अब चीन को निर्यात कर सकेगा। इससे व्यापार-संतुलन बढ़ेगा। भारत और चीन ने अफगानिस्तान में संयुक्त आर्थिक कार्यक्रम चलाने का भी संकल्प किया। इस चिंगदाओ बैठक का चीन ने अपने राष्ट्रहित में जमकर इस्तेमाल किया। अमेरिका के द्वारा लगाए जा रहे व्यापारिक प्रतिबंधों की उन्होंने खुलकर आलोचना की। इस समय अमेरिका, चीन और रुस के बीच खट्टे-मीठे संबंधों का नया दौर चल रहा है। इसमें भारत की भूमिका असंलग्न राष्ट्र की नहीं, सर्वसंलग्न राष्ट्र की हो गई है। हमारी विदेश नीति के नये आयाम उभर रहे हैं।

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