सनातन धर्म का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होता है


मनमोहन कुमार आर्य

               काल अवधि की गणना करने के लिये समय को वर्ष, महीने, दिन, घंटो, मिनट एवं सेकेण्ड्स आदि में बांटा गया है। वर्ष से अधिक के लिये एक सौ, एक हजार, लाख, करोड़ आदि अनेक शब्द हैं। वैदिक धर्म संसार का एकमात्र सबसे पुराना धर्म है। जो मान्यतायें एवं सिद्धान्त वैदिक धर्म के अनुकूल हैं वह धर्म और इसके विरुद्ध हैं वह धर्म न होकर मत, मजहब या रिलीजन आदि हो सकते हैं। वेद के विद्वानों व ऋषियों को सृष्टि के आरम्भ से वर्ष, महीनों, पक्ष, सप्ताह एवं सात दिनों रविवार से शनिवार तक के नामों ज्ञान था और उन्हें इनके आधार संवत्सर का प्रचलन आरम्भ कर काल गणना आरम्भ कर दी थी। इसी का अनुकरण समस्त संसार व मत-मतान्तरों द्वारा भी किया गया। इसके लिये सभी मत-मतान्तर वैदिक धर्म के ऋणी हैं। नये आर्य वा वैदिक वर्ष का आरम्भ बारह मासों वाले वर्ष के प्रथम माह चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसकी समाप्ति चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होती है। वैदिक वर्ष में बारह मास होते हैं तथा एक मास के दो पक्ष और एक पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या व पूर्णमास की तिथियां होती हैं।

               वैदिक संवत्सर का आरम्भ चैत्र मास के शुल्क पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इससे पूर्व चैत्र मास का कृष्ण पक्ष जो लगभग 15 दिन का होता है, व्यतीत हो चुका होता है, बीत चुका होता है। हमें इस विषय में अपनी युवावस्था से शंका होती थी कि जब चैत्र मास आर्यो के संवत्सर का प्रथम मास है तो इसके प्रथम दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से ही आरम्भ होना चाहिये। हमने अपनी शंका अपने कुछ मित्रों के सामने रखी भी थी परन्तु हमें इसका समाधान नहीं मिला था। कुछ समय पूर्व दार्जीलिंग की एक आर्य बहिन सुनीति जी ने हमसे यही प्रश्न पूछा तो हमने उन्हें अपने विचार बताये। हमने कहा कि चैत्र मास व अन्य सभी मासों में कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष होते हैं। कृष्ण का अर्थ काला और शुक्ल का अर्थ स्वच्छ व उज्जवल होता है। कृष्ण पक्ष में अंधेरी रातें होती हैं और शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की चांदनी से युक्त रातें होती हैं। आर्य अपने मुख्य कार्य यथा विवाह, संस्कार आदि शुक्ल पक्ष में ही प्रायः किया करते हैं। इसी प्रकार से बच्चों के नामकरण, मुण्डन संस्कार, वेदारम्भ, उपनयन आदि संस्कार भी प्रायः शुक्ल पक्ष में ही किये जाते हैं। कृष्ण पक्ष की उपमा रात्रि और शुक्ल पक्ष की उपमा दिन से दी जा सकी है। समय के साथ बहुत सी बातें विस्मृत हो जाती हैं। सृष्टि के आरम्भ मैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही परमात्मा ने अमैथुनी मानव सृष्टि में ऋषियों मनुष्यों को जन्म दिया था और इसी दिन से संवत्सर की गणना हमारे तत्कालीन ऋषियों ने आरम्भ हुई थी। हमारे सृष्टि संवत्सर वा वेदसंत्सर की गणना भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही आरम्भ होती है। इसी दिन परमात्मा से हमारे चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को एक-एक वेद का ज्ञान दिया था। संवत्सर की गणना एवं नव संवत्सर पर उत्सव का आयोजन चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही किया जाता है। यह परम्परा नवीन परम्परा नहीं है अपितु इस परम्परा का मूल बहुत पुराना है। सम्भव है कि सृष्टि के आरम्भ से ही इस नव वर्ष पर्व को मनाया जा रहा हो। कुछ सौ या हजार वर्ष पूर्व इसका ज्ञान हमारे पूर्वज व विद्वानों को रहा होगा परन्तु महाभारत काल के बाद जो ज्ञान के क्षेत्र में अव्यवस्था के कारण इससे सम्बन्धित बहुत से प्रमाण नष्ट हो गये। ऐसी अनेक सम्भावनायें हैं।

               चैत्र मास सनातन वैदिक धर्म के संवत्सर का प्रथम मास है और इसका आरम्भ कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से ही होता है। इसके बाद चैत्र मास का शुक्ल पक्ष आरम्भ होता है और प्रतिपदा के दिन नवसंत्सर मनाया जाता है। इसका सबल कारण शुक्ल पक्ष को हमारे पूर्वजों द्वारा महत्व दिया जाना और इसी दिन सृष्टि के आरम्भ में मानव उत्पत्ति सहित वेदों की उत्पत्ति का होना है। अतः जो परम्परा चल रही है उसे उसी प्रकार से स्वीकार कर हमें मनाना चाहिये। परम्परा के अनुसार नव वर्ष का आरम्भ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होकर इसकी समाप्ति एक वर्ष बाद चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन होती है। हम इसे इसी रूप में स्वीकार करते हैं और करना भी चाहिये।

               जहां तक चैत्र मास के कृष्ण पक्ष से आरम्भ होने का प्रश्न है यह ज्योतिष से संबंधित है और उसके अनुसार ठीक है। हमारे जो यह बारह महीने बने हैं वह नक्षत्रों के नाम पर हैं। जिस मास की पूर्णिमा जिस नक्षत्र में होती है उसे उसी नक्षत्र के अनुसार नाम दिया गया है। चैत्र मास चित्रा नक्षण की पूर्णिमा के महीने को कहा जाता है। इसी प्रकार से अन्य महीने हैं। बारह मास के वर्ष के प्रथम मास चैत्र मास का प्रथम दिन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को होने के कारण नया वर्ष इसी दिन मनाया जाये यह आवश्यक नहीं है। यह इसलिये कि मानव सृष्टि का आरम्भ चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ था। इतिहास एवं परम्परानुसार मानव उत्पत्ति एवं वेदोत्पत्ति चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होने के कारण नव वर्ष का इसी तिथि चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाना ही ठीक है।

               हिमाद्रि’ ज्योतिष का एक ग्रन्थ है। इसमें निम्न श्लोक आता हैः-

               चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।

            शुक्लपक्षे समग्रन्तु, तदा सूर्यादये सति।।

               इसका अर्थ है कि चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्यादय के समय ब्रह्मा ने जगत की रचना की थी।

               प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य भास्कराचार्य के ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि’ का निम्न श्लोक भी दृष्टव्य हैः-

               लंकानगर्यामुदयाच्च भानोस्तस्यैव वारं प्रथमं बभूव।

            मधोः सितादेर्दिनमासवर्षयुगादिकानां युगपत्प्रवृत्तिः।।

               इसका भावार्थ है कि (सृष्टि का आरम्भ) लंका नगरी में सूर्य के उदय होने पर आदित्य वार (रविवार) में चैत्र मास शुक्ल पक्ष के आरम्भ के दिन (प्रतिपदा को) मास वर्ष युग आदि एक साथ आरम्भ हुए।

               इन दोनों प्रमाणों से भी स्पष्ट है कि सृष्टि का प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन है और यही आर्यसम्वत्सर का प्रथम दिन है। इसीदिन देश व विश्व में आर्यों व वैदिक धर्मियों द्वारा नवसम्वत्सर मनाया जाता है और यही ठीक वा उचित है। चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को सृष्टि, मानव उत्पत्ति व वेदोत्पत्ति नहीं हुई थी। इस कारण इस दिन वर्ष का आरम्भ नहीं हुआ।

               यदि आर्यसमाज के वैदिक विद्वान इस विषय में कुछ तथ्यात्मक जानकारी देते हैं तो हम उसका स्वागत करेंगे। सत्य का ग्रहण एवं असत्य का त्याग हमें अभीष्ट है। ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य

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