‘नो वन किल्ड जेसिका’ में न्यायिक सड़ांध

डॉ. मनोज चतुर्वेदी

यह भारत का दुर्भाग्य हैं कि जिस भारत की दुहायी वेदों, उपनिषदों तथा अन्य भारतीय ग्रंथों में जोश-खरोश के साथ गाया गया है और गाया जाता है। उस भारतीय समाज का यथार्थ क्या है? आजादी के साठ वर्षों में यहां की समाज व्यवस्था, राज्य व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था और न्याय व्यवस्था ने किस प’कार भारत के एकात्मता पर प्रहार किया है। जिसे ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में देखा जा सकता है। मूल रूप से विद्या बालन और रानी मुखर्जी अभिनित इस फिल्म में भारतीय न्याय व्यवस्था के नंगापन को दिखाने का प्रयास किया गया है।

पियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड, शिवानी भटनागर हत्याकांड के बाद, जेसिका लाल हत्याकांड ने सन् 1990 के उतरार्द्ध में तहलका मचाया था। माननीय उच्चतम न्यायालय के कई न्यायधीशों ने भारतीय न्याय व्यवस्था की समीक्षा करने पर जोर दिया था। राजग सरकार ने तो संविधान समीक्षा आयोग का गठन भी कर दिया था। लेकिन जिस समाज का संविधान अपने समाज और देश को तात्कालीन परिस्थितियों के अनुसार नहीं ढालता है वो समाज समाप्त हो जाता है। भारतीय न्यायालयों में लंबित मुकद्दमें की सुनवाई में 50-60 वर्ष लगेंगे। न्याय व्यवस्था में देरी का प्रमुख कारण एक लंबे समय तक टालना व आरोपियों द्वारा धन बल व बाहुबल का प्रयोग करना भी है। जिससे समाज में संघर्ष, मतभेद और हिंसा को बल मिलता है। श्रीराम जन्मभूमि विवाद इसका स्पष्ट प्रमाण है तथा वोटबैंकों के गिध्दों द्वारा दिए गए वक्तव्य इसके उदाहरण है।

कहानी यो है कि जेसिका लाल हत्याकांड के समय घटना स्थल पर 100 से उपर लोग थे। जिसमें अमीर-गरीब भी थे। लेकिन कातिल को किसी ने नहीं पहचाना तथा यहां तक कि हत्या के सबूत को भी नष्ट करने का प’यास किया गया। कहानी में दर्शक सोचने को तब विवश होता है जब न्यायिक जांच करने वाला पुलिस अधिकारी अपराध बोध से ग्रसित हो जाता है। और इस सत्य का पर्दाफाश एक पत्रकार के माध्यम से करता है। मालकिन जेसिका की मौत पर आंसू टपकाते हुए चॉकलेट खाती है। रानी मुखर्जी द्वारा ‘बीप’ का प’योग करना समाज एवं व्यवस्था के प’ति आक्रोश की अभिव्यक्ति है। भारतीय समाज के इस विकृत रूप को युवा ही बदल सकते हैं। बस वर्धमान महावीर, महात्मा बुध्द, गुरु नानक देव, संत कबीर, स्वामी रामनंद, मलिक मोहम्मद जायसी, रसखान, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, खान अब्दूल गफ्फार खान, गुरू अर्जुन देव, भगिनी निवेदिता, एनि वेसेंट, नानाजी देशमुख, डॉ. हेडगेवार, श्री गुरूजी, जयप्रकाश, आचार्य विनोबा, गांधी, दीनदयाल तथा ऐसे लोकनायकों की जरूरत हैं जो भारतीय समाज में व्‍याप्त सड़ांध को नष्ट कर डाले। फिल्म का गीत, संगीत और तकनीकी पक्ष बेहद प्रभावी है।

निर्माता – रानी स्क्रूवाला।

निर्देशक – राजकुमार गुप्ता।

कलाकार – रानी मुखर्जी, विद्या बालन, अयुब खान, मायरा खान और राजेश शर्मा।

गीत – अमिताभ भट्टाचार्य।

संगीत – अमित त्रिवेदी।

1 COMMENT

  1. जेसिका/arushi

    क्या हुआ गर ये महफूज़ न रह सकी,
    ‘फैसले’ इनपे “रक्षित” रहेंगे सदा,
    ज़िंदा रखेंगे इनको किताबों में हम,
    छाया-चित्रों पे हम इनके होंगे फ़िदा.

    -मंसूर अली हाश्मी
    https://aatm-manthan.com

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