मंशा पर सवाल नहीं किन्तु यह स्वास्थ्य से जुड़ा मामला

बिहार के मधेपुरा के 84 वर्षीय ब्रह्मदेव मंडल को कोरोना का टीका इतना भाया कि इन्होंने 11 बार उसे लगवा लिया। जी हाँ, 11 बार और जब कल वे 12वीं बार कोरोना का टीका लेने गये तो इसलिये दुःखी हो गये क्योंकि टीका केंद्र पर टीके समाप्त हो गये थे। यह कोई कपोल कल्पित घटना नहीं है बल्कि ब्रह्मदेव मंडल जी के पास पूर्व के 11 टीकों का प्रमाण भी है। मंडल जी का कहना है कि टीके लगवाने से उनकी पूर्व की कई बीमारियाँ जड़ से समाप्त हो गई हैं। ब्रह्मदेव मंडल के अनुसार उन्होंने 13 फरवरी, 13 मार्च, 19 मई, 16 जून, 24 जुलाई, 31 अगस्त, 11 सितंबर, 22 सितंबर, 24 सितंबर 2021 को वैक्सीन लगवाई। 10वीं डोज खगड़िया के परबता में और 11वीं डोज भागलपुर के कहलगांव में ली। वे 12वीं डोज लेने चौसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गए थे। वहीं इस पूरे मामले से बिहार के स्वास्थ्य महकमे पर सवालिया निशान लग गए हैं और चूंकि ऐसा करना कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन भी है अतः मधेपुरा के सिविल सर्जन अमरेन्द्र प्रताप शाही ने मामले की विस्तार से जांच हेतु सभी पीएचसी प्रभारियों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब माँगा है। आश्चर्य इस बात का है कि बुजुर्ग ब्रह्मदेव मंडल पर इन 11 टीकों का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। यह घटना चिकित्सा विज्ञान के लिए केस स्टडी हो सकती हैं किन्तु यह सरकारी लापरवाही का उत्कृष्ट नमूना भी है।

पिछले माह अपनी मुंबई यात्रा के दौरान एक कार्यक्रम का निमंत्रण आया। जब वहां पहुंचा तो कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले कुछ लोग बाहर खड़े थे। जब कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे हिमाचल प्रदेश से हैं और उनके पास कोविड टीकाकरण की प्रथम डोज का प्रमाण पत्र है किन्तु उन्हें दोनों डोज लग चुकी हैं और दूसरी डोज का प्रमाण न होने के कारण उन्हें कार्यक्रम स्थल के बाहर ही रोक दिया गया। दरअसल, हिमाचल के जिस गाँव से वे आये थे उन्हें प्रथम डोज तो आधार कार्ड के चलते दे दी गई किन्तु दूसरी डोज के लिए उनके राशन कार्ड को आधार बनाया गया। अब वे सभी पूर्णरूप से टीकाकरण करवा चुके हैं किन्तु सिस्टम के चलते उनके पास पहली डोज का प्रमाण पत्र ही है। इसी प्रकार इंदौर में जिस दुकान पर मैं कटिंग करवाने जाता हूँ वहां के एक कर्मचारी को टीके का एक डोज लगा है किन्तु जब वह दूसरा डोज लगवाने टीका केंद्र गया तो उसे बताया गया कि उसे टीके के दोनों डोज लग चुके हैं। अब वह पशोपेश में हैं कि दूसरा टीका कैसे और कब ले? यहाँ भी सिस्टम ने उसे धोखा दे दिया है। वहीं ऐसी खबर है कि बिहार में ही 18 वर्ष के दो बच्चों को कोविशील्ड की डोज दे दी गई जबकि बच्चों पर उसका प्रशिक्षण किया ही नहीं गया था। सरकारी गाइडलाइन में स्पष्ट था कि बच्चों को कोवैक्सीन की डोज ही देना है। यह साफ तौर पर अनदेखी व् लापरवाही का मामला है।

ये कुछ उदाहरण हैं जो बताते हैं कि टीकाकरण अभियान में भी खामियां हैं और उन्हें दूर किया जाना सभी के हित में है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में अब तक 55.52 फीसद लोग वैक्सीन की दोनों और 87 फीसद लोग पहली डोज लगवा चुके हैं। मतलब देश में अभी भी ऐसे लोग काफी बड़ी संख्या में हैं जिन्होंने वैक्सीन का एक भी डोज नहीं लिया है। और अब तो 15 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए भी टीकाकरण शुरू हो चुका है जिसका अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब कोविड टीकाकरण के रूप में इस सदी का सबसे बड़ा मुफ्त टीकाकरण अभियान शुरू किया था तो उनकी मंशा निश्चित रूप से देशहित व् सभी के उत्तम स्वास्थ्य की थी किन्तु जैसा होता आया है, सरकारी तंत्र ने कोविड टीकाकरण अभियान को भी आंकड़ों में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने और अपना रुतबा बताने का माध्यम बना लिया। उपरोक्त चंद उदाहरण तो वे हैं जो मीडिया की सुर्ख़ियों में आये। ऐसे अनगिनत केस होंगे देश में जहाँ टीकाकरण अभियान में ऐसी अनदेखी व् लापरवाही हुई होगी जो मीडिया में न आने के कारण सार्वजनिक नहीं हो पाई।

लोगों में कोरोना टीके को लेकर शुरुआत में भ्रम की स्थिति थी किन्तु जब प्रधानमंत्री सहित सरकार में मंत्रियों, अधिकारियों, नेताओं व् समाज के उच्च शिक्षित वर्ग ने टीकाकरण करवाया तो क्या शहर-क्या गाँव; सभी स्थानों के टीकाकरण केन्द्रों पर लम्बी-लम्बी कतारें देखी गईं। कई बड़े रिकॉर्ड बने और दुनिया ने हमारी समझ को सराहा किन्तु अब ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानो रिकॉर्ड के चक्कर में पड़ कर सरकारी तंत्र कुछ भी कर गुजरने को तैयार है। एक डोज वाले व्यक्ति को दोनों डोज का प्रमाण पत्र, किसी को कई डोज तो किसी को एक भी नहीं। कुल मिलाकर यह स्थिति चिंताजनक है। यहाँ किसी की मंशा अथवा साख पर सवाल उठाना प्रश्न नहीं है। प्रश्न है कि जब शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री टीकाकरण अभियान को लेकर अति-गंभीर हैं और लगातार इसे बढ़ाने की कवायद कर रहे हैं तो फिर राज्यों तथा स्थानीय स्तर पर ऐसी लापरवाही निश्चित रूप से स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। ऐसे मामले वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को भी धूमिल कर रहे हैं। स्वास्थ्य महकमे को चाहिए कि वह लापरवाही के मामलों में तत्काल संज्ञान लेकर कठोर कार्रवाई करे ताकि कर्मचारी सजा के भय से ही सही, काम तो ईमानदारी से करें। अब जबकि देश में कोरोना के बूस्टर डोज की चर्चा चल रही है, उक्त मामले जनता में भ्रम की स्थिति के साथ ही सरकारों की साख को भी प्रभावित करेंगे।

  • सिद्धार्थ शंकर गौतम
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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