सब गंवाने के बाद भी होश में नहीं आई कांग्रेस

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सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि देश को अब कांग्रेस की आवश्यकता नहीं है। इसलिए कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों पर नजर डाली जाए तो यही परिलक्षित होता दिखाई देता है कि देश की जनता ने महात्मा गांधी की बात पर अमल करना प्रारंभ कर दिया है। वर्तमान में पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भररत बनाने के सपने को साकार करने के लिए अपने कदम बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है। 2014 के लोकसभा में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई, उसे कांग्रेस की ऐतिहासिक पराजय माना गया। देश के कई राज्यों कांग्रेस अपना खाता भ्ज्ञी नहीं खोल पाई थी, ऐसे में कांग्रेस की जो भूमिका होना चाहिए थी। कांग्रेस ने उसकी अनदेखी की और अपना लक्ष्य केवल नरेन्द्र मोदी तक ही केन्द्रित करके रखा। इससे नरेन्द्र मोदी को मुफ्त में ही जबरदस्त प्रचार मिल गया और कांग्रेस लगातार सिमटती चली गई।
पांच राज्यों के जो चुनाव परिणाम आए हैं, वह कांग्रेस के लिए फिर से एक सबक है। लेकिन सवाल यह आता है कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के बाद कोई सबक नहीं लिया तो इन चुनावों के बाद वह अपनी हार के कारणों पर आत्म मंथन करेगी, ऐसा कम ही लगता है। लोकसभा चुनावों के बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लगातार सिमटती चली जा रही है। दिल्ली और बिहार के चुनाव परिणाम की बात की जाए तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वहां के परिणाम कांग्रेस के लिए लाभकारी कतई नहीं रहे। अब असम और केरल में कांग्रेस की सत्ता का विदा होना कांग्रेस के गिरते हुए ग्राफ का साक्षात उदाहरण है। चुनाव परिणामों के बाद समाचार चैनलों पर जिस प्रकार की बहस चल रही थी, उसमें कांग्रेस के नेताओं ने प्रत्यक्ष रूप से इस सत्य को स्वीकार नहीं किया कि वह बुरी तरह से हार गए हैं। हसरने के बाद भी उसका विरोध करने का तरीका वही था, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान में कांग्रेस को यह तो स्वीकार करना ही होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को स्वच्छ शासन से साक्षात्कार कराया है। देश में कांग्रेस ने जिस प्रकार से राजनीतिक भ्रष्टाचार किया था, उससे वर्तमान सरकार कोसों दूर है। कहा जाता है कि जब शासक की नीयत स्वार्थी होती है, तब उस देश का भगवान ही मालिक है, लेकिन आज शासक की नीयत एकदम ठीक है। कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं है। इस कारण यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस जितना नरेन्द्र मोदी का विरोध करेगी, उसका खामियाजा उसे भुगतना ही होगा।
पूर्वोत्तर राज्य असम में भाजपा का ऐतिहासिक प्रदर्शन इस बात का संकेत करने के लिए काफी है कि वह धीरे धीरे ही सही, लेकिन पूरे देश में प्रभाव बनाती जा रही है। लेकिन कांग्रेस के लिए असम का परिणाम बहुत बड़ा झटका ही है। कांग्रेस ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी इतनी दुर्गति हो जाएगी। कांग्रेस मुक्त भारत का उदाहरण इससे अच्छा क्या हो सकता है कि आज उत्तर भारत के मुस्लिम बाहुल्य राज्य जम्मू कश्मीर में भाजपा समर्थित सरकार है, तो पश्चिम के राज्य गुजरात में भी भाजपा का परचम है। इसी प्रकार पूर्व के असम में भी भाजपा का जलवा हो गया है और दक्षिण के गोवा में पहले से ही भाजपा की सरकार विराजमान है। इससे यह आसानी से कहा जा सकता है कि देश के चारों कोने जहां भाजपा का प्रभाव है, वहीं कांग्रेस देश के चारों कोनों से विदा हो गई है। आज भले ही कहने को कांग्रेस के पास सात राज्य हैं लेकिन उन सात राज्यों का राजनीतिक अस्तित्व उत्तर भारत के भाजपा शासित राज्यों के मुकाबले कहीं भी नहीं ठहरता। एक कर्नाटक राज्य की सत्ता ही कांग्रेस के लिए आनंददायक कही जा सकती है।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की एक सबसे बड़ी गलती यह भी कही जा सकती है कि उसे अपनी दशा सुधारने के लिए अपने कार्यक्रमों में परिवर्तन करना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कांग्रेस केवल और केवल एक ही लक्ष्य बनाकर ही चलती रही कि कैसे भी हो राहुल गांधी को राष्ट्रीय नेता बनाया जाए। आज देश राहुल गांधी के बचकाने व्यवहार को देखकर उससे किनारा करने लगा है, लेकिन कांग्रेस फिर भी राहुल को थोपने वाले अंदाज के लिए ही राजनीति कर रही है।
राजनीतिक दृष्टि से दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य तमिलनाडु में जयललिता का जादू ऐसा चला कि उन्होंने तीन दशक बाद राज्य में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार की निरंतरता को बनाए रखा है। तमिलनाडु में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनना हालांकि कोई नई बात नहीं है, लेकिन एमजी रामचंद्रन के बाद राज्य में जयललिता दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहीं हैं। वे छठवीं बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनेंगी। तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में द्रविड़ मुनेत्र कषगम के मुखिया ने कांग्रेस की डूबती नैया पर सवार होकर राजनीतिक वैतरणी को पार करने का सहारा लिया, लेकिन तमिलनाडु में कांग्रेस तो डूबी ही, साथ ही द्रमुक को ले डूबी। लोकसभा चुनाव में सब कुछ लुटा कर भी होश में नहीं आने वाली कांग्रेस को इन चुनावों में झटका लगना स्वाभाविक ही था। जयललिता के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि उसने पिछले प्रदर्शन की तुलना में इस बार अपनी ताकत बढ़ाई है। पिछले 2011 के विधानसभा चुनाव में उसकी पार्टी अन्नाद्रमुक को जहां उसे 38.40 प्रतिशत मत मिले थे, तो इस चुनाव में उसके मतों का प्रतिशत 41 के लगभग रहा है।
कांग्रेस पार्टी ने तमिलनाडु में द्रमुक के साथ मिलकर जो सपने देखे थे, वे सपने आज चकनाचूर हो गए। अब इस बात की संभावना जताई जा रही है कि द्रमुक अगर अकेले ही चुनाव मैदान में होती तो शायद उसकी सरकार बन सकती थी, लेकिन तमिलनाडु की जनता का कांग्रेस के प्रति जो गुस्सा था, उसकी परिधि में करुणानिधि की द्रमुक पार्टी भी आ गई। इसलिए द्रमुक की स्थिति ”आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास, वाली होकर रह गई। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की जिस प्रकार से दुर्गति हो रही है। उसके सत्ता वाले राज्य एक एक करके दूर होते जा रहे हैं। तमिलनाडु में पूरी तरह से कांग्रेस और द्रमुक को यह विश्वास हो गया था कि राज्य में निश्चित ही उसकी सरकार बनेगी। हालांकि इसके गठबंधन ने भी सौ का आंकड़ा पार कर लिया है, लेकिन लोकतंत्र में सरकार बहुमत के आधार पर बनती हैं, जो आज कांग्रेस के पास नहीं है और जयललिता का जादू बरकरार रहा।
पश्चिम बंगाल के विधानसभा के परिणामों पर नजर दौड़ाई जाए तो वहां ममता बनर्जी ने एक बार फिर से परचम लहराया है। यहां कांग्रेस ने भले ही दूसरे नंबर का बड़ा दल होने का गौरव प्राप्त किया है, लेकिन यहां भाजपा की उपस्थिति चौंकाने वाली ही कही जाएगी। अगले साल भी पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा व मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने हैं, इनमें कहीं भी कांग्रेस के आने की उम्मीद नहीं है। आखिर कांग्रेस की यह दशा क्यों होती जा रही है, पार्टी के लिए चिंतनीय है।
कांग्रेस की वर्तमान स्थिति के राजनीतिक विश्लेषण शुरु हो चुके हैं। कई राजनीतिक पंडित इस बात को सहज रूप में स्वीकार करने लगे हैं कि पांच राज्यों चुनाव परिणाम कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी बहुत बड़ा व्यवधान है। इसके बाद कांग्रेस क्या राष्ट्रीय दल की पहचान खो सकती है। यकीनन यह सही भी हो सकता है। जिस प्रकार से कांग्रेस राज्यों से बेदखल होती जा रही है उससे तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस अब डूब रही है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी विसंगति यही कही जाएगी कि उसके राष्ट्रीय नेता केवल राजा बनकर रह गए हैं। जमीनी राजनीति से बहुत दूर हो चुके कांग्रेस के नेता जनता से जुडऩा ही नहीं चाहते। अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब पूरा भारत कांग्रेस मुक्त हो जाएगा।

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